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छत्तीसगढ़: 225 दिनों से जारी विधवा महिलाओं का प्रदर्शन, अनुकंपा नियुक्ति की मांग पर सरकार को घेरा

चुनाव के वक़्त कांग्रेस ने कहा था कि सरकार बनने के बाद इन्हें नौकरी दी जाएगी। लेकिन सरकार का अब कार्यकाल पूरा होने को है बावजूद इसके उनके लिए कुछ नहीं किया गया।
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छत्तीसगढ़ में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में राज्य की भूपेश बघेल सरकार और सत्ताधारी कांग्रेस के सामने युवाओं, कर्मचारियों और महिलाओं की कई चुनौतियां हैं। राजधानी रायपुर के बूढ़ा तालाब में दिवंगत शिक्षाकर्मियों की विधवाएं बीते 225 दिनों से अनुकंपा नियुक्ति की मांग को लेकर धरने पर बैठी हैं। इतना ही नहीं ये महिलाएं पहले सीएम हॉउस के घेराव से लेकर आत्मदाह की कोशिश भी कर चुकी हैं। बावजूद इसके सत्ता में बैठे हुक्मरानों के कानों पर जू तक नहीं रेंग रही है। इस मामले में राज्य सरकार का उदासीन रवैया रहा है, जिसकी विपक्ष भी कई बार विधानसभा में आलोचना कर चुका है।

बता दें कि बीते साल 20 अक्तूबर से ये सभी महिलाएं प्रदेश के अलग-अलग जिलों से रायपुर में आंदोलन कर रही हैं। ये सभी पंचायत स्तर के उन शिक्षाकर्मियों की पत्नियां हैं जिनकी हादसे या बीमारी की वजह से मौत हो गई है। इनका कहना है कि घर में कमाने वाले व्यक्ति की मौत के बाद नियमों के मुताबिक परिवार में किसी एक सदस्य को अनुकंपा नियुक्ति मिलती है। सरकार ने इस बात का इन्हें आश्वासन भी दिया था, लेकिन बीते 5 सालों से इन्हें कोई नियुक्ति नहीं, कोई सहायता राशि नहीं मिली। जिसके चलते इनके परिवार आर्थिक दिक्कतों का सामना कर रहे हैं।

घर के हालात ठीक नहीं है, पैसों की तंगी

अनुकंपा नियुक्ति शिक्षाकर्मी कल्याण संघ छत्तीसगढ़ के बैनर तले जारी इस प्रदर्शन में सैकड़ों ऐसी महिलाएं शामिल हैं जिनके घर के हालात ठीक नहीं है, पैसों की तंगी है और परिवार में न तो कमाने वाला कोई है और न ही खाने के पर्याप्त साधन हैं। इन महिलाओं का साफ तौर पर कहना है कि सरकार इन्हें इनकी योग्यता के अनुसार कोई भी काम दे दे, जिससे ये अपने घर में दो रोटी ला सकें। लेकिन सरकार और अधिकारीगण लगातार इनकी मजबूरी की अनदेखी कर केवल आश्वासनों के जरिए इन्हें ठगते आ रहे हैं।

संगठन की उपाध्यक्ष अश्विनी सोनवानी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि राज्य में शिक्षाकर्मियों की विधवाएं अनुकंपा नियुक्ति के लिए संघर्ष बीते पांच साल से कर रही हैं। ज्यादातर महिलाएं 12वीं पास हैं, किसी ने बीएड भी किया है। अब इन्हें टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट, D.ED के बिना अनुकंपा नियुक्ति नहीं दिए जाने का नियम बताया जा रहा है। सरकार इतनी संवेदनहीन हो गई है कि उसे ये नहीं समझ आ रहा कि जिनके पास घर चलाने के लिए भी पैसे नहीं है वो पढ़ाई और डिग्री कहां से हासिल करेंगी।

अश्विनी सरकार से मांग करती हैं कि सभी प्रदर्शकारी महिलाओं को उनकी योग्यता अनुसार नौकरी मिले और यदि फिर भी कोई कमी है, तो सरकार नौकरी देकर उन्हें प्रशिक्षण या डिग्री हासिल के लिए समय दे। क्योंकि सरकार ने खुद पिछले 50 दिनों के प्रदर्शन पर कमेटी बनाकर इन महिलाओं को नियुक्ति का आश्वासन दिया था और अब वो पीछे नहीं हट सकती।

सरकार की ओर से कोई राहत नहीं

अनुकंपा नियुक्ति शिक्षाकर्मी कल्याण संघ की मीडिया प्रभारी त्रिवेणी यादव ने कहा, “इन महिलाओं की केवल एक मांग अनुकंपा नियुक्ति है, जिसके लिए बीते करीब आठ महीनों से ये ठंड, धूप, बारिश और अन्य परेशानियां बर्दास्त कर रही हैं। इनके साथ-साथ इनका परिवार भी कई दिक्कतों का सामना कर रहा है। ऐसे में सरकार को इनकी मांगों को तत्काल प्रभाव से गंभीरता से लेने की जरूरत है, नहीं तो आगे प्रदर्शन और तेज़ हो सकता है।

त्रिवेणी के अनुसार दिवंगत शिक्षाकर्मियों की इन पत्नियों को सरकार की ओर से अभी तक कोई राहत राशी नहीं मिली, न ही कभी कोई सहायता ही मिल पाई है। ये अकेले सालों से अपने घर-परिवार के साथ संघर्ष कर रही हैं। संगठन के कई ज्ञापनों के बाद भी सरकार ने कोई साकारात्मक पहल नहीं की है। ऐसे में सरकार को कम से कम अब अपने वादों पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि ये महिलाएं आर्थिक और सामाजिक तौर पर पहले ही बहुत कुछ झेल रही हैं।

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चुनावी वादा याद करे कांग्रेस

प्रदर्शन पर बैठी कई महिलाओं ने न्यूज़क्लिक को ये भी बताया कि बीते चुनाव के वक्त कांग्रेस के बड़े नेताओं ने कहा था कि सरकार बनने के बाद नियमों को शिथिल कर हमें नौकरी दी जाएगी। लेकिन सरकार का अब कार्यकाल पूरा होने को है बावजूद इसके कुछ नहीं दिख रहा है। सरकार महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है। लेकिन सच्चाई यही है कि महिलाओं की सुनवाई कहीं नहीं होती।

कई महिलाओं का कहना है कि उनके घर की आर्थिक हालत बहुत बिगड़ चुकी है। बच्चे दाने-दाने के लिए मोहताज़ हो गए हैं, बुजुर्ग बिमारियों से ग्रस्त हैं और वो यहां सब कुछ छोड़-छाड़कर अपने अधिकारों के लिए लड़ने को मजबूर हैं क्योंकि उनके पास कोई और रास्ता नहीं है। अब उनकी लड़ाई आर-पार की है, जिसमें वो जीत कर ही अपने घर जाना चाहती है क्योंकि ये पहले ही बहुत कुछ खोकर और दाव पर लगाकर यहां बैठी हैं।

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गौरतलब है कि प्राप्त जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ में साल 2018 से पहले स्कूलों में दो तरह के शिक्षक काम कर रहे थे। पहले स्कूल शिक्षा विभाग में नियुक्त नियमित शिक्षक। दूसरे पंचायत और नगरीय निकायों की ओर से नियुक्त शिक्षाकर्मी। शिक्षाकर्मी नियुक्ति नियमित नहीं थी और ये पैरा शिक्षक का पद था। इनका वेतन भी कम था और इन्हें राज्यकर्मी भी नहीं माना जाता था। 2019-20 में इनको स्कूल शिक्षा विभाग में नियमित कर दिया गया। ऐसे में सरकार की मानें तो शिक्षाकर्मी की मृत्यु के बाद सामान्य सरकारी कर्मचारी की तरह अनुकंपा नियुक्ति का प्रावधान नहीं था। इसलिए सरकार ऐसे मृतकों के परिजनों को नियुक्ति नहीं दे पा रही थी। लेकिन सरकार का इनके लिए हर संभव उपाय तलाश रही है।

ध्यान रहे कि सरकार के लोक शिक्षण संचालनालय ने साल 2022 के अगस्त महीने में सभी संभागीय संयुक्त संचालकों और जिला शिक्षा अधिकारियों को एक पत्र जारी किया था। जिसमें कहा गया था, आपके जिले में अनुकंपा नियुक्ति के ऐसे प्रकरण जिसमें कर्मचारी की मृत्यु शिक्षाकर्मी के रूप में स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन से पूर्व हो चुकी है। उनकी सूची संचालनालय को उपलब्ध कराएं ताकि अनुकंपा नियुक्ति के मामले में सामान्य प्रशासन विभाग से मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सके।

इस पत्र के साथ कई महीनों से अनुकंपा नियुक्ति की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे सैकड़ों परिवारों को राहत की उम्मीद बंधी थी, लेकिन इसके बाद अभी तक कोई कार्यवाही न होने से इन महिलाओं का धैर्य खत्म हो चुका है। और ये आगामी चुनावों से पहले सरकार से अपनी समस्याओं का समाधान चाहती हैं। सभी आंदोलनकारियों ने ठाना है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होंगी तब तक आंदोलन जारी रहेगा।

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