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बीएचयू में एनी बेसेंट फेलोशिप पर विवाद जारी: सवर्ण छात्रों को लाभ पहुंचाने का आरोप, दलित व ओबीसी छात्र गुस्से में

पिछले दो दिनों से ओबीसी और एससी-एसटी स्टूडेंट्स बीएचयू के सेंट्रल ऑफिस को घेरे हुए हैं। आंदोलन शुक्रवार को भी जारी रहा। ये स्टूडेंट्स पूरी रात वहीं धरने पर बैठे रहे। नई फेलोशिप में आरक्षण की मांग को लेकर स्टूडेंट्स का यह प्रदर्शन पिछले कई दिनों से जारी है।
BHU
आरक्षण के मुद्दे पर कुलपति दफ्तर का घेराव करते स्टूडेंट्स

उत्तर प्रदेश के वाराणसी का बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) सुलग रहा है, क्योंकि हाल ही में शुरू की गई नई एनी बेसेंट फेलोशिप योजना में आरक्षण व्यवस्था सिरे से खारिज कर दी गई है। इस मुद्दे को लेकर गुरुवार से ओबीसी और दलित स्टूडेंट्स कुलपति दफ्तर के दरवाजे पर धरना दे रहे हैं। आंदोलनकारी स्टूडेंट्स को समझाने पहुंचे विश्वविद्यालय प्राक्टोरियल बोर्ड के अफसरों से उनकी तीखी बहस हुई। आरोप है कि गुरुवार की रात चीफ प्राक्टर अभिमन्यु सिंह सेंट्रल आफिस पहुंचे और उन्हें बंधक बना लिया। यूजीसी के नियमों के मुताबिक देश के किसी विश्वविद्यालय में पिछड़ों और दलितों को नियमानुसार आरक्षण देना अनिवार्य है।

आरक्षित वर्ग के स्टूडेंट्स ओबीसी-एससी-एसटी संघर्ष समिति बनाकर तभी से आंदोलन कर रहे हैं, जब से बीएचयू प्रशासन ने एनी बेसेंट फेलोशिप योजना का ऐलान किया है। एनी बेसेंट फेलोशिप में आरक्षण के लिए मुहिम चला रहे दलित स्टूडेंट अजय भारती का आरोप है, "बीएचयू में सवर्ण लॉबी पिछड़ों और दलितों के नैसर्गिक अधिकारों को पहले ही पूरी तरह लील चुकी है। अब कुलपति प्रो. सुधीर कुमार जैन ने सवर्ण स्टूडेंट्स को सीधे लाभ पहुंचाने के लिए नया चोर दरवाजा खोला है। यह दरवाजा दलित और ओबीसी स्टूडेंट्स को बेरोजगार बनाएगा और हमें गुलामी के रास्ते पर ढकेलेगा।"

बीएचयू में अध्ययनरत ओबीसी और एससी-एसटी के स्टूडेंट्स गुरुवार को स्टूडेंट्स बीएचयू के सेंट्रल आफिस स्थित कुलपति दफ्तर के बाहर पहुंचे। फेलोशिप में आरक्षण के बाबत स्थिति स्पष्ट करने के लिए उन्हें 11 अगस्त को बुलाया गया था। दलित और ओबीसी स्टूडेंट्स जब सेंट्रल आफिस पहुंचे तो आरक्षण के बाबत कोई भी जानकारी देने से बीएचयू के अफसर आना-कानी करने लगे। तब आक्रोशित स्टूडेंट्स ने हंगामा और नारेबाजी शुरू कर दी। बाद में वे कुलपति दफ्तर के ठीक बाहर धरने पर बैठ गए। इस दौरान स्टूडेंट्स की विश्वविद्यालय के प्रशासनिक अफसरों के साथ काफी देर तक कहासुनी हुई। आंदोलनकारी स्टूडेंट्स को कुलपति दफ्तर से हटाने के लिए बीएचयू प्रशासन ने बहुत प्रयास किया, लेकिन उनकी कोशिशें नाकाम हो गईं।

धरने पर बैठे ओबीसी व दलित स्टूडेंट्स।

बीएचयू में तनातनी और बवाल

दरअसल, आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलित स्टूडेंट्स गुरुवार की सुबह कुलपति से बातचीत करना चाहते थे। मगर मौके पर पहुंचे चीफ प्राक्टर अभिमन्यु सिंह। स्टूडेंट्स ने उनसे वार्ता करने की कोशिश की तो वे आना-कानी करने लगे। इस पर दोनों पक्षों के बीच तीखी तकरार भी हुई। स्थिति तनावपूर्ण होने पर चीफ प्राक्टर ने मौके पर लंका थाने की पुलिस और बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों को बुला लिया। आंदोलनकारी स्टूडेंट्स के खिलाफ जब एफआईआर की धमकी दी गई तो वो उग्र हो गए और नारेबाजी तेज कर दी।

पिछले दो दिनों से ओबीसी और एससी-एसटी स्टूडेंट्स बीएचयू के सेंट्रल ऑफिस को घेरे हुए हैं। आंदोलन शुक्रवार को भी जारी रहा। ये स्टूडेंट्स पूरी रात वहीं धरने पर बैठे रहे। नई फेलोशिप में आरक्षण की मांग को लेकर स्टूडेंट्स का यह प्रदर्शन पिछले कई दिनों से जारी है। यह ऐसी फेलोशिप योजना है जिसमें टॉप 5 पर्सेंटाइल स्टूडेंट्स को पीएचडी में सीधे दाखिला दिया जाएगा। साथ ही उन्हें 31,000 से लेकर 36,000 तक हर महीने लगातार चार साल तक वजीफा भी मिलेगा।

छात्रों का कहना है कि उन्हें बंधक बनाया गया।

आंदोलनकारी स्टूडेंट्स के शैलेश कुमार व रितेश कुमार मुताबिक, "गुरुवार की रात चीफ प्राक्टर अभिमन्यु सिंह रात करीब आठ बजे सेंट्रल आफिस पहुंचे और धरना खत्म कराने के लिए धमकी दी। बात नहीं बनी तो चीफ प्राक्टर ने उन्हें बंधक बनाते हुए सेंट्रल आफिस के दफ्तर का चैनल बंद करा दिया। स्टूडेंट्स के उग्र विरोध के बाद सुरक्षाकर्मियों ने चैनल का दरवाजा खोला। आंदोलनकारी स्टूडेंट्स ने बीएचयू के चीफ प्राक्टर अभिमन्यु सिंह का एक वीडियो जारी किया है जिसमें वह लंका थाना पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने के लिए धमकी देते नजर आ रहे हैं। हम विश्वविद्यालय प्रशासन का पक्ष जानने के लिए सेंट्रल ऑफिस पहुंचे तो असल मुद्दे पर हमसे बात नहीं की गई। हमें बरगलाने की कोशिश की गई। आखिर हम अपना हक कैसे छोड़ दें। जब सवर्ण तबके के स्टूडेंट्स हमारे अधिकार लूट लेंगे तो आखिर हम कहां जाएंगे?"

ओबीसी और एससी-एसटी वर्ग के स्टूडेंट्स विशाल यादव, रनैत कुमार भारती, अंकित, केतन पाटिल कहते हैं, "नई एनीबेसेंट फेलोशिप योजना में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है, जो संवैधानिक रूप से अन्याय है। आरक्षण नियमों को शामिल करने के बाद नए सिरे से पंजीयन शुरू किया जाए। अगर ऐसा नहीं होता है तो आंदोलन को व्यापक रूप दिया जाएगा। इसी मुद्दे को लेकर स्टूडेंट्स ने छह अगस्त 2022 को सेंट्रल आफिस पर प्रदर्शन किया था। उस समय विश्वविद्यालय के डिप्टी चीफ प्राक्टर विनय कुमार सिंह ने स्टूडेंट्स को लिखित रूप से भरोसा लिया था कि 11 अगस्त तक आरक्षण की स्थिति स्पष्ट कर दी जाएगी, लेकिन बीएचयू के कुलपति तानाशाही रवैया अपनाए हुए हैं।"

शोध में आरक्षण के बाबत यूजीसी का निर्देश

यूजीसी के नियमों की अनदेखी

एनी बेसेंट फेलोशिप में आरक्षण के लिए मुहिम चला रहे दलित स्टूडेंट प्रमोद कुमार ने न्यूज़क्लिक से कहा, "देश का कोई भी विश्वविद्याल यूजीसी के नियमों से संचालित होता है, लेकिन बीएचयू के कुलपति प्रो. सुधीर कुमार जैन खुद को कायदे-कानून से ऊपर समझते हैं। फेलोशिप में जब रिजर्वेशन का प्राविधान नहीं है तो स्टूडेंट्स को अपनी जाति बताने के लिए बाध्य क्यों किया जा रहा है। फेलोशिप के फार्म में जाति की कटेगरी क्यों बनाई गई है? यह तो अन्याय की पराकाष्ठा है। आखिर बीएचयू की यह कैसी योजना है जिसमें आरक्षण की कोई बात ही नहीं की गई है। यूजीसी के नियमों के मुताबिक, ओबीसी, एससी, एसटी और ईडब्ल्यूएस के लिए सीटें आरक्षित की जानी चाहिए। वह ऐसी फेलोशिप योजना लेकर आए हैं जिससे सिर्फ ऊंची जातियों के स्टूडेंट्स का भला होगा। ओबीसी, एससी, एसटी और ईडब्ल्यूएस तबके के स्टूडेंट्स का प्रोफेसर बनने का सपना हमेशा के लिए टूट जाएगा। लगता है कि दलितों और पिछड़े के वजूद को नेस्तनाबूत करने के लिए कुलपति ने आखिरी कील ठोकी है। हम विश्वविद्यालय प्रशासन की दमनकारी नीतियों के आगे झुकने वाले नहीं हैं। बीएचयू प्रशासन को अपना फैसला वापस लेना होगा। आरक्षण के नियमों को समाहित करने के बाद ही फिर से पंजीकरण की प्रक्रिया चालू की जाए। नहीं तो आंदोलन काफी बड़े स्तर पर होगा।"

क्या है फेलोशिप योजना ?

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) का दावा है कि शोध क्षेत्र में युवाओं की अभिरूचि बढ़ाने के लिए एनी बेसेंट फेलोशिप योजना शुरू की गई है। यह योजना बेहद शानदार है। इससे न केवल युवा विद्यार्थी शोध क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित होंगे बल्कि उन्हें आर्थिक संबल भी मिलेगा। इस योजना के जरिए बीएचयू ने स्नातकोत्तर डिग्री पूरी करने के ठीक बाद अपने मेधावी छात्र-छात्राओं को पीएचडी कार्यक्रमों में सीधे शामिल होने का न्योता दिया है। इसके लिए विश्वविद्यालय ने स्टूडेंट्स को प्रोत्साहन स्वरूप नई एनी बेसेंट फेलोशिप शुरू की है। इस फेलोशिप के लिए विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर कार्यक्रमों के अंतिम वर्ष के स्टूडेंट्स आवेदन कर सकेंगे। हालांकि, उन्हें न्यूनतम 8.5 सीजीपीए के साथ शीर्ष पांच पर्सेंटाइल में होना जरूरी होगा।

पीएचडी प्रोग्राम के छात्रों के लिए एनी बेसेंट फेलोशिप के लिए आवेदन करने की अंतिम तिथि 5 अगस्त, 2022 तय की गई थी। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की आधिकारिक अधिसूचना के मुताबिक, फेलोशिप में शामिल होने वालों से कार्यक्रम में शामिल होने के चार साल के भीतर अपनी पीएचडी थीसिस पूरी करने की उम्मीद की जाएगी। चयनित उम्मीदवारों को उनके पीएचडी कार्यक्रम के दौरान सीएसआईआर/ यूजीसी के समान जेआरएफ प्रदान किया जाएगा। इस अवधि में 31 हजार रुपये हर महीने लगातार चार साल तक छात्रवृत्ति दी जाएगी।

फेलोशिप मानदंड के अनुसार, यदि छात्र एक वर्ष के भीतर यूजीसी या सीएसआईआर की जेआरएफ/नेट योग्यता या फिर इंस्पायर फेलोशिप आदि के लिए अर्हता प्राप्त कर लेता है, तो बीएचयू अलग से पांच हजार रुपये प्रति माह नकद प्रोत्साहन देगा। यदि छात्र ने यूजीसी या सीएसआईआर की जेआरएफ/नेट योग्यता या फिर इंस्पायर फेलोशिप आदि क्वालीफाई नहीं किया है तो विश्वविद्यालय पहले वर्ष में जेआरएफ के लिए प्रचलित दर पर फेलोशिप प्रदान करेगा। यदि दूसरे वर्ष तक भी छात्र यूजीसी या सीएसआईआर की जेआरएफ/ नेट योग्यता या फिर इंस्पायर फेलोशिप आदि के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाता है तो दूसरे वर्ष से विश्वविद्यालय फेलोशिप को जेआरएफ दर के 50 फीसदी तक कम कर देगा। इसके अलावा यदि कोई छात्र किसी भी स्तर पर प्रधानमंत्री रिसर्च फेलोशिप यानी पीएमआरएफ प्राप्त करता है, तो उसे बीएचयू उसे टॉप-अप फेलोशिप नहीं देगा।

स्टूडेंट्स जय कुमार भंते और सत्यम शशांक बताते हैं, "बीएचयू में अब से पहले रिसर्च इंट्रेंस टेस्ट (आरईटी) के जरिये पीएचयू में दाखिला मिलता था। नेट और जेआरएफ क्वालीफाई अभ्यर्थियों को इंटरव्यू के जरिये पीएचडी में दाखिला दिया जाता रहा है। दलित स्टूडेंट्स इसलिए भी शोध के लिए अर्ह नहीं हो पा रहे थे क्योंकि बीएचयू प्रशासन अभ्यर्थी के लिए 215 मार्क्स अनिवार्य कर दिया था। आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की सीटें खाली जा रही थीं। एनी बेसेंट फेलोशिप मोदी सरकार के उस योजना का हिस्सा है जो टीच फार बीएचयू के लिए विशेष रूप संचालित की जा रही है। इस योजना के तहत बीएचयू को करीब 1500 करोड़ रुपये मुहैया कराए गए हैं।"

जय कुमार कहते हैं, "फेलोशिप में आरक्षण को सिरे से नकार दिए जाने के बाद हमने पिछड़ा वर्ग आयोग के अलावा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग से भी शिकायत की है। बीएचयू प्रशासन इतना बेशर्म है कि वह हमारे हितों की अनदेखी करते हुए इंटरव्यू शुरू करा दिया है। पीएचडी में दाखिले के बाद सितंबर से क्लास भी शुरू हो जाएगी। बीएचयू के शिक्षकों में ज्यादातर ब्राह्मण हैं। ये लोग अपनी जातियों के स्टूडेंट्स को अच्छे नंबर देते आए हैं। बीएचयू में हमारी प्रतिभा दम तोड़ रही है। एनी बेसेंट फेलोशिप मुख्य रूप से सवर्ण स्टूडेंस्ट के लाभ पहुंचाने के लिए है। संभव है कि आरएसएस के इशारे पर कुलपति ने इस तरह की योजना बनाई हो।"

क्या है छात्रों की मांग?

एनी बेसेंट फेलोशिप में आरक्षण की मांग इसलिए उठाई जा रही है, ताकि आरक्षित वर्ग के स्टूडेंट्स के साथ नैसर्गिक न्याय हो सके। सेंट्रल आफिस में धरने पर बैठे स्टूडेंट शिवशंकर सिंह पटेल ने न्यूज़क्लिक से साफ तौर पर कहा, "ऊंची जातियों को लाभ पहुंचाने के लिए नई फेलोशिप लाई गई है। कुलपति की नीयत में शुरू से ही खोट है। इस योजना के क्रियान्वयन के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किया गया, जिसमें किसी दलित अथवा ओबीसी वर्ग के सदस्य रखे ही नहीं गए। समिति के संयोजक अर्थशास्त्र विभाग प्रो. राकेश रमन बनाए गए हैं। इनके अलावा प्रो. राकेश पांडे (मनोविज्ञान विभाग), प्रो. संगीता पंडित (संगीत विभाग) और प्रो. अजय कुमार ( भौतिकी विभाग) को समित का सदस्य बनाया गया है।"

"सवर्ण जातियों के ये टीचर आरक्षित वर्ग के स्टूडेंट्स के साथ न्याय नहीं कर सकते हैं। बीएचयू ऐसा विश्वविद्यालय है जहां दलित और ओबीसी के प्रोफेसरों की तादाद पहले से ही नगण्य है। सवर्ण शिक्षक हमेशा ऊंची जातियों के स्टूडेंट्स को ही टॉप कराते रहे हैं, क्योंकि पर्चा बनाने से लेकर जांचने और नंबर देने का अधिकार इन्हीं शिक्षकों के हाथ में होता है। पिछले कुछ सालों से ओबीसी के स्टूडेंट्स सवर्णों से आगे निकलते जा रहे थे। इन्हें रोकने के लिए पीएचडी में सीधे प्रवेश की योजना लाई गई है।"

पटेल यह भी कहते हैं, "बीएचयू में बहुत से सवर्ण जातियों के दबंग स्टूडेंट्स हैं जो शिक्षकों पर दबाव बनाकर अथवा चाटुकारिता से अपने नंबर बढ़वाते रहे हैं। नई स्कीम में ऐसे स्टेडेंट्स के प्रोफेसर बनने का नया रास्ता खुल जाएगा और आरक्षित वर्ग के प्रतिभाशाली स्टूडेंट्स बेरोजगार ही रह जाएंगे। बीएचयू के कुलपति प्रो. सुधीर जैन स्टूडेंट्स से न मिलना चाहते हैं और न ही हमारी समस्याएं सुनना चाहते हैं। बस तानाशाह बने हुए हैं। इनके लिए विश्वविद्यालय अनुदाय आयोग का कायदा-कानून कोई मायने नहीं रखता। नई फेलोशिप योजना में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है, जो संवैधानिक रूप से अन्याय है। हम चाहते हैं कि आरक्षण नियमों को शामिल करने के बाद नए सिरे से पंजीयन शुरू किया जाए। अगर ऐसा नहीं होता है तो आंदोलन को व्यापक रूप दिया जाएगा।"

आंदोलनकारी स्टूडेंट्स की मांग है कि टॉप-5 परसेंटाइल का नियम आरक्षित वर्गों के लिए उनके संवैधानिक आरक्षण के अनुरूप कैटेगरी वाइज एससी-एसटी, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस के आधार पर दिया जाए। टॉप-5 परसेंटाइल में आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए आयु में पांच फीसदी की छूट दी जाए। आरईटी यानी कि टेस्ट में मिनिमम क्वालिफाइंग मार्क्स की अनिवार्यता को खत्म किया जाए। यह योजना आरक्षण व्यवस्था का घोर उल्लंघन करती है, इसलिए नई फेलोशिप की प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाई जाए और पुराने आदेश को वापस लिया जाए।

बीएचयू के स्टूडेंट परमदीप पटेल और शिवशक्ति ने न्यूज़क्लिक से कहा, "बीएचयू में ओबीसी आपको ढूंढने पर बड़ी मुश्किल से मिलेंगे। दलित और आदिवासी शोधार्थी भी नगण्य हैं। राजग सरकार ने दो वर्ष पहले इस तबके को उच्च अध्ययन में प्रेरित करने के लिए ‘नेशनल फेलोशिप फॉर ओबीसी‘ की शुरूआत की है, लेकिन यह महज 300 विद्यार्थियों के लिए है, जो इस विशालकाय वंचित आबादी के लिए यह ऊंट के मुंह में जीरा के समान ही है।"

हॉस्टल्स में आरक्षण नहीं

ओबीसी स्टूडेंट्स को इस बात का भी रंज है कि बीएचयू प्रशासन को ओबीसी कतई नहीं सुहाते। बीएचयू में पिछड़ी जातियों के चंदे से 39 छात्रावास बनाए गए हैं, लेकिन उनमें प्रवेश पाते हैं ज्यादातर सवर्ण स्टूडेंट्स। बीएचयू से इतर देश में जितने भी विश्वविद्यालय हैं उनमें कहीं भी ओबीसी स्टूडेंटस के साथ ऐसा भेदभाव रवैया नहीं अपनाया जाता है।

बीएचयू के छात्रावासों में आरक्षण लागू करने की मांग को कई बार स्टूडेंट्स आंदोलन-प्रदर्शन कर चुके हैं। पिछले दिनों इस मुद्दे को लेकर भी केंद्रीय कार्यालय पर प्रदर्शन किया गया था। नारेबाजी करते हुए स्टूडेंट्स ने कुलपति को ज्ञापन भी दिया था। ओबीसी स्टूडेंट्स चाहते हैं कि हॉस्टल्स में उन्हें भी 27 फीसदी आरक्षण दिया जाए। विश्वविद्यालय में प्रवेश की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है और अब अधिकांश संकायों में कक्षाएं शुरू हो गई हैं। इसके बावजूद ओबीसी स्टूडेंट को हॉस्टल्स में 27 फीसदी आरक्षण नहीं दिया जा सका है।

बीएचयू में ओबीसी फंड/अतिरिक्त फंड से 39 छात्रावासों का निर्माण किया गया है। नियमानुसार ओबीसी के छात्रों को इसका लाभ मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा है। अब तक कई बार मांग करने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस दौरान बेबी पटेल, राजेश कुमार, दिलीप कुमार चौरसिया, राणा रोहित, अजय यादव, सतीश पटेल, विनीत यादव, कमलेश कुमार, आरडी यादव ने कहा है कि इस मुद्दे को लेकर भी बीएचयू प्रशासन के खिलाफ आंदोलन तेज किया जाएगा।

चौंकाने वाले जवाब

बीएचयू में शिक्षकों के खाली और भरे जाने वाले पदों की संख्या को लेकर एक आरटीआई के जवाब में चौंकाने वाला मामला सामने आया है। दो साल पहले बीएचयू ने इस मामले में जो जानकारी मुहैया कराई थी, उसमें उसमें ओबीसी के लिए 568 स्वीकृत पदों की जानकारी दी गई है, जबकि इसमें 224 को भरे जाने और 141 के खाली होने का जिक्र है, जबकि बचे 203 के बारे बीएचयू की ओर से कोई स्पष्ट जवाब नहीं दर्ज है।

नागपुर में सामाजिक कार्यकर्ता संजय थुल ने बीएचयू में एक आरटीआई के माध्यम से आरक्षित वर्ग के शिक्षकों के पदों के बारे में जानकारी मांगी थी। बीएचयू के एससी, एसटी सेल के सेक्शन आफिसर की ओर से जो जवाब भेजा गया था उसमें ओबीसी के 568 पद का जिक्र किया गया था। जिसमें प्रोफेसर के 61, एसोसिएट प्रोफेसर के 135 और असिस्टेंट प्रोफेसर के 372 पदों के स्वीकृत होने की जानकारी दी गई थी। प्रोफेसर के कुल 61 पदों में 25 को खाली बताया गया, जबकि 36 पदों के बारे में कोई जिक्र नहीं है। एसोसिएट प्रोफेसर के स्वीकृत 135 पदों में केवल 42 को खाली बताया गया, जबकि भरे जाने वाले कॉलम में शून्य लिखा दर्शाया गया।

उधर, असिस्टेंट प्रोफेसर के भी 321 पदों में से 224 को भरे जाने का जिक्र किया गया और सिर्फ 74 पद खाली बताए गए। स्वीकृत-भरे और खाली को मिलाकर 74 पद कहां गए, इसका आरटीआई में कोई जवाब नहीं मिल सका है। अगर तीनों कैडर में कुल पदों को जोड़ा जाए तो 568 स्वीकृत पद में विश्वविद्यालय की ओर से दिए गए जवाब में भरे गए पद और खाली पदों को जोड़ने पर केवल 365 आते हैं, ऐसे में बाकी 203 पद के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है।

आरटीआई एक्टविस्ट संजय सिंह कहते हैं, "बीएचयू में कुछ भी मुमकिन है। चाहे छात्रवृत्ति और दाखिले का मामला हो या फिर नियुक्ति का। यहां बड़ी संख्या में ऐसे प्रोफेसर हैं जिन्हें यूजीसी की गाइडलाइन के ताक पर रखकर नियुक्ति दी गई है। कुछ ऐसे भी प्रोफेसर हैं जो दलित और ओबीसी का फर्जी फर्जी सर्टिफिकेट लगाकर प्रोफेसर बने बैठे हैं। बीएचयू में न्यूरोलाजी और कृषि अर्थशास्त्र समेत तमाम ऐसे विभाग हैं जहां दलित और ओबीसी के प्रोफेसर ढूंढे भी नहीं मिलेंगे।"

फेलोशिप मामले में बीएचयू के सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी राजेश सिंह से बातचीत करने की कोशिश की गई, लेकिन प्रयास के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन का पक्ष नहीं मिल सका। इस मुद्दे पर बीएचयू का कोई भी अधिकारी बात करने के लिए तैयार नहीं है।

(बनारस स्थित लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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