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पत्रकारों की गिरफ़्तारी और बढ़ते हेट स्पीच को लेकर डीयूजे ने चिंता ज़ाहिर की  

दिल्ली यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स ने विशेष तौर पर अल्पसंख्यकों को टारगेट करती हुई हेट स्पीच की बढ़ती प्रवृत्ति के ख़िलाफ़ अपनी चिंता ज़ाहिर की है। 
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार :  National Herald

दिल्ली : दिल्ली यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स (डीयूजे) ने पिछले साल भारत में पत्रकारों की हुई गिरफ़्तारी और पत्रकारिता पर हमले को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। पिछले सप्ताह जारी ह्यूमन राइट्स वॉच रिपोर्ट-2023 और अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ बढ़ते हेट स्पीच से ये स्पष्ट होता है।

एचआरडब्ल्यू (HRW)की रिपोर्ट के अनुसार, मोहम्मद ज़ुबैर और रूपेश कुमार सिंह सहित कई पत्रकारों को पिछले साल गिरफ्तार किया गया था। वहीं सिद्दीक कप्पन जैसे अन्य पत्रकार अभी भी क़ैद हैं।

डीयूजे ने ह्यूमन राइट्स वॉच रिपोर्ट का हवाला देते हुए रेखांकित किया कि साल 2022 में फहद शाह और सजाद गुल की गिरफ़्तारी के साथ ही कश्मीर में स्थिति सबसे ख़राब थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि "अगस्त 2019 से, जब जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द किया गया था, इसके बाद से ही कश्मीर में 35 पत्रकारों ने पुलिस पूछताछ, छापे, धमकियों, शारीरिक हमले, आंदोलन की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध और इसके अलावा अपनी रिपोर्टिंग के लिए मनगढ़ंत आपराधिक केसों का सामना किया है।" इस रिपोर्ट में प्रेस पर अन्य हमलों के साथ-साथ मीडियाकर्मियों को निशाना बनाने के लिए पेगासस स्पाईवेयर के इस्तेमाल का भी ज़िक्र है।

इसके अलावा यूनियन ने विशेष तौर पर अल्पसंख्यकों को टारगेट करती हुई हेट स्पीच की बढ़ती प्रवृत्ति के ख़िलाफ़ अपनी चिंता ज़ाहिर की है। हेट स्पीच के मुद्दे पर, डीयूजे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग एंड डिजिटल स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (एनबीडीएसए) की हिचकिचाहट पर सवाल उठाया है और हेट स्पीच के मुद्दों पर निष्क्रिय होने के लिए उसकी खिंचाई भी की है।

मुसलमानों और ईसाइयों के ख़िलाफ़ हेट स्पीच के मामलों में राज्यों की निष्क्रियता को उजागर करने वाले मामलों की सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र और राज्यों से कहा कि वे इन मामलों को गंभीरता से लें। यह देखा गया कि हेट स्पीच एक "संकट" से कम नहीं है। अगर इसे अनियंत्रित छोड़ दिया जाए तो ये राक्षसी रूप ले सकती है। शीर्ष अदालत ने यह भी पाया कि भारत में टेलीविजन चैनल, समाज को विभाजित कर रहे हैं क्योंकि वे ख़ास एजेंडे से प्रेरित हैं। डीयूजे ने अपने बयान अदालत की टिप्पणी का स्वागत किया है।

रविवार को एक संयुक्त बयान में डीयूजे के अध्यक्ष एसके पांडे और महासचिव सुजाता मधोक ने प्रेस बैशिंग को रोकने का आह्वान किया।
अक्सर असमंजस की स्थिति में रहने वाले टूथलेस प्रेस काउंसिल और एनबीडीएसए दोनों को बदलने के लिए उन्होंने मीडिया काउंसिल ऑफ इंडिया की स्थापना का सुझाव दिया। संगठन ने कहा कि अतीत में कांग्रेस और बाद में सूचना मंत्री के रूप में सुषमा स्वराज वाली भाजपा सरकार सहित विभिन्न सरकारों ने अधिक सशक्त मीडिया परिषद की सिफारिश की थी।

डीयूजे ने चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा, “समाचार चैनल एनडीटीवी का द्वेषपूर्ण अधिग्रहण किया गया और इसके परिणामस्वरूप इस चैनल से एंकर रवीश कुमार के साथ जो इस्तीफ़े की शुरूआत हुई वह ग्रुप प्रेसिडेंट सुपर्णा सिंह, मुख्य रणनीति अधिकारी अरिजीत चटर्जी और मुख्य टेक्नोलॉजी एंड प्रोडक्ट अधिकारी कवलजीत सिंह बेदी तक पहुंच गई। इस तरह इस चैनल में इस्तीफ़े की बाढ़ आ गई। यूनियन ने कहा, "इन इस्तीफ़ों का यह सिलसिला कई गुना बढ़ सकता है क्योंकि अडानी ग्रुप ने एनडीटीवी ग्रुप का पूरा नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।"
डीयूजे ने कहा, "एनडीटीवी उन आख़िरी चैनलों में से एक था, जो केवल सरकार और कॉरर्पोरेट प्रचार या विभाजनकारी, सांप्रदायिक हेत स्पीच को बढ़ावा देने के बजाय कुछ हद तक स्वतंत्र रूप से रिपोर्टिंग करता था।"

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों का स्वागत करते हुए डीयूजे ने कहा कि यह दृढ़ विचार है कि बजाय सरकार को पुलिसिया शक्ति देने या किसी अन्य निकाय को अधिक शक्तियां देने के दीर्घकालिक उत्तर संसद में एक व्यापक और वैधानिक आधारित मीडिया कॉउंसिल के लिए कदम उठाने में निहित है जिसमें कुछ अधिक शक्तियों के साथ प्रेस काउंसिल को बदलने के लिए संपूर्ण और व्यापक मीडिया स्पेक्ट्रम शामिल है।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः 

Delhi Union of Journalists Concerned Over Policing of Scribes, Rising Hate Speech

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