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कर्नाटक: दलित मज़दूर महिलाओं का उत्पीड़न, बीजेपी समर्थक पर बंदी बनाने का आरोप

महिला मज़दूरों को एक कमरे में 15 दिन बंधक बनाकर उनसे मार-पीट का मामला सामने आया है। आरोपियों की गिरफ़्तारी के मामले में अभी तक पुलिस के हाथ खाली हैं, जिसे लेकर शासन-प्रशासन पर सवाल उठ रहे हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार: द हिंदू

कर्नाटक एक बार फिर प्रताड़ना को लेकर सुर्खियों में है। इस बार मामला सांप्रदायिक तनाव, हिजाब, हलाल और कारोबार से आगे बढ़कर महिलाओं के शोषण उत्पीड़न से जुड़ा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राज्य में दलित महिला मजदूरों के साथ मारपीट का मामला सामने आ रहा है। आरोप है कि दो लोगों ने महिला मजदूरों को एक कमरे में 15 दिन बंधक बनाकर उनसे मार-पीट की। इस दौरान एक गर्भवती महिला का गर्भपात होने की भी खबर है। दोनों आरोपियों को सत्ताधारी पार्टी बीजेपी का समर्थक बताया जा रहा है। हालांकि बीजेपी ने इस मामले से खुद को दूर कर लिया है। लेकिन आरोपियों की गिरफ्तारी के मामले में अभी तक पुलिस के खाली हाथों को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं।

बता दें कि पुलिस के अनुसार ये सभी दलित महिला मजदूर कर्नाटक के जेणुगड्‌डे गांव में आरोपी जगदीश गौड़ा के कॉफी प्लांटेशन में दिहाड़ी पर काम करती थीं। इन्होंने जगदीश से 9 लाख रुपए का लोन लिया था। जब ये लोन नहीं चुका पाईं तो जगदीश ने उन्हें बंधक बना लिया।

क्या है पूरा मामला?

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, जगदीश गौड़ा ने कथित तौर पर पड़ोसियों से झगड़े के सिलसिले में एक महिला मजदूर मंजू को पीटा था। इसके बाद अन्य कर्मचारियों ने काम करने से मना कर दिया। इस पर मालिक ने कहा कि वो उससे उधार लिए पैसे वापस करने के बाद ही काम छोड़ सकते हैं। जब मजदूरों ने पैसे नहीं लौटाए तो गौड़ा ने उन्हें कथित रूप से अपने घर के एक कमरे में बंद कर दिया। खबर की मानें तो, इस दौरान कमरे में बंद एक प्रेग्नेंट महिला मजदूर कथित तौर पर टॉर्चर नहीं सह पाई और उसे गर्भपात का सामना करना पड़ा। बाद में उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। 

दैनिक भास्कर ने एक सीनियर पुलिस अफसर के हवाले से बताया है कि 8 अक्टूबर को कुछ लोग बेलहोन्नुर पुलिस थाने आए। उन्होंने दावा किया कि जगदीश गौड़ा उनके परिजनों को टॉर्चर कर रहा है, लेकिन शाम को उन्होंने अपनी शिकायत वापस ले ली। अफसर के अनुसार अगले दिन यानी 9 अक्टूबर को गर्भवती महिला को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया और चिकमगलूर में पुलिस चीफ के पास नई शिकायत दर्ज कराई गई। तब इस मामले में एफआईआर दर्ज हुई। एफआईआर में जगदीश गौड़ा और उसके बेटे तिलक गौड़ा के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया है। दोनों आरोपी फिलहाल फरार हैं।

इस मामले की जांच कर रहे अफसर ने बताया कि जब वे कॉफी प्लांटेशन पहुंचे तो वहां उन्हें एक कमरे में कई लोग बंद मिले। उस जगह चार परिवारों के 16 लोगों को 15 दिनों से कैद करके रखा गया था। ये सभी मजदूर पिछड़ी जातियों के थे। पुलिस ने वहां से सभी लोगों को बाहर निकाला।

पुलिस को यहां कैद अर्पिता नाम की महिला ने बताया कि जगदीश ने उसे एक दिन के लिए कमरे में बंद रखा। उनके साथ मारपीट की और गालियां दीं। जगदीश ने उसका फोन भी छीन लिया। उसने उसके पति और बेटी को भी मारा। इतना ही नहीं, अर्पिता दो महीने की गर्भवती थी, मारपीट के चलते उनका मिसकैरेज भी हो गया।

दलित श्रमिकों की ज़मीनी सच्चाई

गौरतलब है कि इस घटना ने एक बार फिर देश में श्रमिकों, खासकर दलित श्रमिकों की जमीनी सच्चाई सबके सामने रख दी है। मजबूरन मजदूरी और उधारी के नाम पर सालों से जारी मज़दूरों का शोषण-उत्पीड़न किसी से छुपा नहीं है, फिर भी इस मामले की लगातार अनदेखी हो रही है। कपड़े बनाने की फैक्टरियां हों या ईंट बनाने की भट्ठी, कई पेशे हैं जिनमें लोग अपने अपने घरों से दूर जा कर काम करते हैं और फिर वहां कम वेतन और अमानवीय हालात में फंसे रह जाते हैं।

दरअसल इन श्रमिकों को जानबूझ कर गुलाम बनाने के लिए इन्हें काम के बदले बेहद मजदूरी दी जाती है। जिसमें इनका गुजर बसर न हो सके, बाद में यही मालिक इन्हें ऊंची ब्याज दर पर कर्ज देकर अपना गुलाम बना लेते हैं। ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में भारत में करीब 80 लाख लोग आधुनिक गुलामी में जी रहे थे। हालांकि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि असली संख्या इससे कहीं ज्यादा है।

समाज में हाशिए पर खड़े दलित समुदाय की हालत इस मामले में और खराब है। भेदभाव की वजह से दलितों को आर्थिक और सामाजिक उत्थान के अवसरों से वंचित रखा जाता है और उनका शोषण सबसे ज्यादा होता है। 2019 में आई यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर तीसरा दलित गरीब है।

कर्नाटक के आगामी चुनाव

बीते कुछ सालों से देश में दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। अजीब बात है कि दलित सशक्तिकरण की तमाम दावों और वादों के बीच दलितों का उत्पीड़न बेरोकटोक सभी जगह जारी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2020 में देश भर में दलितों के खिलाफ उत्पीड़न के 50,291 मामले दर्ज हुए थे और 2021 में ये मामले बढ़ कर 50,900 हो गए। ब्यूरो के मुताबिक कर्नाटक में 2020 में दलितों के खिलाफ अपराध के 1,504 मामले दर्ज किए गए थे। राज्य सरकार के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2021 में यह संख्या बढ़कर 2,327 हो गई थी। वैसे कर्नाटक में बीजेपी की सरकार है और यहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में ये देखना होगा कि पार्टियां अब दलितों के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए क्या नया वादा करती हैं।

वैसे दलित भूमिहीनों को भूमि, रोजगार, शिक्षा, आवास और चिकित्सा देखभाल जैसी बड़ी-बड़ी बातें यहां की लगभग सभी पार्टियां कर चुकी हैं लेकिन अभी तक उनके सशक्तिकरण का भौतिक आधार तैयार नहीं किया जा सका है। चुनाव की घड़ी से पहले प्रमुख राजनीतिक दलों, और उनके कई सहयोगियों, विशेष रूप से आरएसएस-बीजेपी समूह, से यह पूछने की जरूरत है कि अभी तक के वादों का क्या हुआ और मौजूदा सरकार ने अपने कार्यकाल में दलितों के खिलाफ भेदभाव और हिंसा की प्रथा को तोड़ने के लिए क्या व्यापक उपाय किए हैं।

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