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सिद्दी ट्राइब के बच्चों में खेलों के प्रति जुनून दिलाएगा देश में उन्हें 'नई पहचान' !

उत्तर कर्नाटक में सिद्दी कम्युनिटी के बच्चे खेलों का सहारा लेकर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं जिसमें एक लोकल NGO उनकी मदद कर रहा है। इस NGO के तहत देश का नाम रौशन करने का सपना देख रहे बच्चों की कहानी संघर्षों से भरी है।
NGO
NGO में दूसरे बच्चों से साथ सिद्दी कम्युनिटी के बच्चे

सोशल मीडिया पर इन दिनों रविकिरण नाम के आदिवासी लड़के की एक वीडियो चर्चा में है जिसे ट्राइबल आर्मी के ट्विटर हैंडल से भी शेयर किया गया है। देखे वीडियों :

रविकिरण के वीडियो की कहानी

ये वीडियो उत्तर कर्नाटक के रविकिरण फ्रांसिस ( Ravikiran Francis)  का था, वीडियो में ज़िक्र है कि रविकिरण भारत में रहने वाली सिद्दी कम्युनिटी से आता है और वह ओलंपिक में हिस्सा लेकर भारत का नाम रौशन करना चाहता है। वीडियो के मुताबिक़ वह भारत में 100 मीटर की रेस में सबसे तेज़ दौड़ने वाला धावक बनना चाहता है और इसमें उसकी मदद एक लोकल NGO 'Bridges of Sports' कर रहा है, इसी वीडियो में रविकिरण बताता है कि उसकी कम्युनिटी और उसके गांव को उससे बहुत उम्मीदें हैं जिन्हें वो पूरा करना चाहता है, वे बताता है कि उसके पिता कहते हैं कि उसे उसैन बोल्ट( Usain Bolt) की तरह बनना है।

रविकिरण अफ्रीकी मूल के किसी शख़्स जैसा दिखता है ( बाकी सिद्दी कम्युनिटी के लोगों की तरह ही)  लेकिन वो बहुत अच्छी हिंदी बोलता है। रविकिरण वीडियो में कहता है कि लोग बोलते हैं कि, ''इन्हें अफ्रीका से लेकर आए हैं लेकिन मुझे अब तक इसका जवाब नहीं मिला है कि मैं किधर से लाया गया हूं? गूगल करने से भी पता चलता है कि पुर्तगाली हमें काम करने के लिए अपने साथ लाए थे।"

रविकिरण की बातें सुनकर लगा कि हमें पता करना चाहिए कि आख़िर वह कहां है, क्या कर रहा है? और कौन हैं सिद्दी कम्युनिटी के लोग?

कुछ घंटों की तलाश के बाद हमें रविकिरण का पता चला और साथ ही ये भी कि जो वीडियो वायरल हो रहा था वो क़रीब डेढ़ से दो साल पुराना है, इस वक़्त वह अपनी आगे की पढ़ाई (ग्रेजुएशन) पर ध्यान दे रहा है और साथ ही प्रैक्टिस भी कर रहा है। जिस NGO ने रविकिरण को तलाश किया था उनके यहां सिद्दी कम्युनिटी के और भी बच्चे हैं जो आगे चलकर देश का नाम रौशन करने का सपना देख रहे हैं। ये NGO कर्नाटक में सिद्दी कम्युनिटी के साथ ही दूसरे ट्राइब से जुड़े बच्चों को भी प्रोफेशनल एथलीट ( Athlete) बनाने में मदद करता है।

हम रविकिरण से बात करना चाहते थे लेकिन NGO के कुछ प्रोटोकॉल की वजह से हमारी बात रविकिरण से नहीं हो पाई लेकिन जब हमने रविकिरण के परिवार से बात करने की कोशिश की तो पता चला कि वे उत्तर कर्नाटक के उन घने जंगलों के बीच बसे गांव में रहते हैं जहां मोबाइल फोन का नेटवर्क काम नहीं करता। ये बात हमें एहसास करा रही थी कि क्यों रविकिरण से उसके परिवार, गांव और कम्युनिटी को बेहद उम्मीदें हैं।

''सिद्दी बच्चों में खेलों को लेकर बहुत संभावनाएं हैं''

इन बच्चों में से कुछ से बात करने के लिए एक लंबे प्रोसेस से गुज़रने के बाद हमारी बात NGO के एक कोच रिज़वान से हुई। रिज़वान सिद्दी कम्युनिटी से ही आने वाले एक और बच्चे अनीश (Anish) को तैयार कर रहे हैं। रिज़वान से हुई बातचीत के दौरान पता चला कि सिद्दी कम्युनिटी/ट्राइब से आने वाले बच्चों में खेलों को लेकर बहुत संभावनाएं (Potential) होती हैं, लेकिन सिद्दी कम्युनिटी के इन बच्चों को अक्सर इनके रंग, बालों और पहचान को लेकर पूछे जाने वाले सवाल परेशान करते हैं।

''दिल तोड़ने वाले सवाल''

रिज़वान बताते हैं, "हाल ही में हम मैसूर गए थे, वहां लड़कियों के एक ग्रुप ने अनीश को बुलाया, अनीश को कोई अंदाज़ा नहीं था कि वे लोग उसे क्यों बुला रही हैं, वह चला गया और जब वे उन लड़कियों के पास पहुंचा तो उन लड़कियों ने उसके बालों को टच किया और चली गईं, तो ये बात अनीश को बहुत हर्ट हुई उसने मुझसे कहा कि अगर मुझे बुलाया था तो मेरे बालों को टच क्यों किया? पूछना था तो मुझसे मेरे बारे में पूछतीं पर ये क्या, बिना कुछ कहे बालों को टच किया और चली गईं ऐसे क्यों? मैं भी उसी लैंग्वेज में बात कर रहा था (लोकल) जिसमें वे बात कर रही थीं, हम इतने सालों (सदियों) से यहां रह रहे हैं लेकिन इनको समझ नहीं आता।''

रिज़वान बताते हैं कि ''यही वजह है जिससे ये बच्चे अपनी ही कम्युनिटी के बच्चों से दोस्ती करते हैं, लोग इन्हें अफ्रीकन बोलते हैं, कहते हैं कि तुम्हें अफ्रीका से लेकर आए हैं।''

वे हाल ही में हुई एक और घटना के बारे में बताते हैं, ''अभी कुछ दिन पहले ही मैं इन बच्चों को बाहर लेकर गया था तो वहां के कोच ने कहा कि अरे ये तो सारे अफ्रीकन हैं, आप इन्हें कहां से ले आए हैं? फिर मैंने उन्हें आराम से बैठा कर इनके (सिद्दी कम्युनिटी) बारे में सबकुछ बताया और समझाया कि ये भी इंडियन हैं हालांकि सदियों पहले इनके पूर्वज अफ्रीका से आए थे।"

रिज़वान के पास इन बच्चों से जुड़ी बहुत सी बातें थीं उन्होंने बताया कि, “एक-दो दिन पहले ही वो बच्चों से पूछ रहे थे कि उनके इसी NGO में आने की क्या वजह है? बच्चों ने किसी और संस्थान में जाने की कोशिश क्यों नहीं की तो बच्चों का जवाब था ‘उन जगहों पर सिद्दी कम्युनिटी के बच्चों के लिए अलग हॉस्टल होते हैं।’, बच्चे पूछते हैं कि उनके लिए अलग हॉस्टल क्यों है? इसके अलावा वे कहते हैं कि अगर हम सब एक हैं तो सबको मिलकर ही रहना चाहिए न।”

हालांकि NGO के हेड ऑफ परफॉर्मेंस (Head of Performance) तैंजिन (Tenzin Zongpa) का कहना है कि बच्चों के साथ रेशियल बेसिस (Racial) पर कुछ नहीं हुआ, बस लोग उत्सुकता वश (Curiosity) सवाल पूछते हैं। वे बताते हैं कि, "इन बच्चों से पूछा जाता है कि आप कहां से हो लेकिन ये हर्ट करने के अंदाज़ में नहीं होता बल्कि दूसरे लोगों में इन्हें देखकर इनके बारे में जानने की उत्सुकता होती है, लेकिन एक ही सवाल बार-बार पूछने पर ये बच्चे थोड़ा परेशान हो जाते हैं वरना ऐसी कोई बात नहीं है।"

तैंजिन (Tenzin Zongpa) की बात सही हो सकती है लेकिन यहां यह कौन तय करेगा कि किसी का उत्सुकतावश पूछा गया सवाल दूसरे को हर्ट करेगा या नहीं? जैसा की अनीश और उनके कोच ने बताया कि सिद्दी कम्युनिटी के बच्चों के बालों और रंग को लेकर लोग सवाल करते हैं भले ही उनकी मंशा हर्ट करने वाली ना हो लेकिन ये सवाल इन बच्चों को चुभ जाते हैं।

बच्चों से पूछे गए सवाल उत्सुकता में पूछे गए सवाल होते हैं और ये सवाल उस वक़्त कुछ और बढ़ जाते हैं जब ये बच्चे प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं।

इन बच्चों का खेलों की तरफ़ बहुत रुझान है, ये ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए खेलों में अच्छा प्रदर्शन करने का सपना देखते हैं।

''अनीश यूट्यूब देखकर प्रैक्टिस करता था''

रिज़वान ने बताया कि NGO की जूनियर विंग में कुल 20 बच्चे हैं जिनमें से 9 बच्चे सिद्दी कम्युनिटी के हैं, इन बच्चों का यहां तक पहुंचने का सफ़र भी चुनौतियों से भरा है। 17 साल के अनीश से मिलने की कहानी बताते हुए रिज़वान कहते हैं, "जब वो हमें मिला था तो सातवीं में था और एक स्टेट मीट के दौरान मिला था, वहां वह 200 मीटर रेस में दौड़ रहा था जो उसकी उम्र के मुताबिक़ ठीक नहीं था। हमने उसके टैलेंट को देखते हुए उसे समझाया और उसे यहां ले आए, इससे पहले वो मोबाइल पर यूट्यूब देखकर तैयारी कर रहा था, उस वक़्त उसे कुछ नहीं पता था सिवाय इसके कि उसे खेलों में जाना है, दौड़ना है।"

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''सिद्दी बच्चे खेलों के लिए बने हैं''

सवाल : सिद्दी कम्युनिटी के बच्चों में खेलों को लेकर जुनून की बात करें तो आप क्या देखते हैं ? 

जवाब (रिज़वान) : ये बच्चे अपना 100 परसेंट देते हैं, दूसरे बच्चों को हमें थोड़ा पुश करना पड़ता है लेकिन इन बच्चों को देखकर लगता है कि 99 परसेंट बच्चे (सिद्दी कम्युनिटी के) खेलों के लिए बने हैं।

हमने सिद्दी कम्युनिटी से आने वाले रिज़वान के स्टूडेंट अनीश से भी बात की। अनीश के परिवार में पांच लोग हैं और वह घर में सबसे बड़ा है, 13 साल की उम्र में अनीश ने पहली बार शहर (बैंगलोर) देखा था जहां वह बहुत सी गाड़ियों और बिल्डिंग देखकर बहुत ख़ुश हो गया था। अनीश को खेलों का बहुत शौक था। उसने यूट्यूब पर वीडियो देखकर प्रैक्टिस करनी शुरू कर दी थी। अनीश ने अभी कोई बड़ा मेडल नहीं जीता है, वह फिलहाल स्टेट लेवल के खेलों में हिस्सा ले रहा है लेकिन वह हमसे कहता हैं, "आगे चलकर मैं इंडिया का प्रतिनिधित्व (Represent) करना चाहता हूं, मैं ओलंपिक में हिस्सा लेना चाहता हूं।"

अनीश कहता है, "मेरे लिए अच्छा करना, नाम कमाना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि मैं जिस कम्युनिटी से हूं वहां के बहुत कम बच्चों को मौक़ा मिलता है और अगर मुझे मौक़ा मिला है तो मुझे कुछ अच्छा करना होगा, ये मेरी कम्युनिटी के लिए भी ज़रूरी है।"

हालांकि फोन पर हुई बातचीत के दौरान हमें अनीश की आवाज़ में उस वक़्त कुछ भारीपन महसूस होने लगा जब हमने उनसे पूछा कि लोग आपसे कैसे सवाल करते हैं?

अनीश ने कुछ ठहर कर जवाब दिया कि, "लोग बाल के बारे में पूछते हैं, रंग के बारे में पूछते हैं, वे हमें देखकर कुछ हैरान हो जाते हैं कि ये कहां से आए हैं? अक्सर लोग पूछते हैं कि अफ्रीका से आए हो? ये सुनकर बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था क्योंकि मैं इंडिया से ही हूं, जब मैं गांव में था तो ऐसे सवाल कभी नहीं सुने थे।"

अनीश फिर कुछ देर के लिए ठहरता है और कहता है, "मैं सीनियर लेवल पर इंडिया को Represent कर उन सब लोगों को जवाब देना चाहता हूं।"

''नयना की प्रतिभा उसे मिला कुदरत का तोहफा है''

वैसे तो हम सिद्दी कम्युनिटी पर स्टोरी कर रहे थे लेकिन जिस NGO में ये बच्चे प्रोफेशनल एथलीट बनने की ट्रेनिंग ले रहे हैं वहां दूसरी ट्राइब के बच्चे भी ट्रेनिंग ले रहे हैं और ऐसी ही एक लड़की है नयना (Nayana Kokare)।

imageनयना, गवली कम्युनिटी की मेडल जीतने वाली एथलीट

मेडल जीत चुकी है नयना

नयना (Nayana Kokare) नेशनल लेवल पर मेडल जीत चुकी है, नवंबर 2022 में असम में हुई 37वीं नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप ( 37th National Junior Athletics Championship 2022) में नयना ने अंडर-20 में 100 मीटर और 200 मीटर की दौड़ में मेडल जीते थे और रिकॉर्ड भी बनाया था। NGO का दावा है (कुछ टेक्निकल ग्राउंड पर) कि नयना (Nayana Kokare) भारत में अंडर-20 में सबसे तेज़ दौड़ने वाली एथलीट (लड़कियों में) बन गई है। NGO के कोच तैंजिन (Tenzin Zongpa) ने बताया कि अब नयना मई-जून में अंडर-20 के एशियन चैंपियनशिप के लिए खु़द को तैयार कर रही है।

तैंजिन (Tenzin Zongpa) बताते हैं कि नयना की प्रतिभा उसे नेचर से मिला तोहफा है। वे बताते हैं कि नयना के परिवार के लोग कभी महाराष्ट्र से आकर उत्तर कर्नाटक में बस गए थे। ये लोग जंगलों में रहते हैं और इनका कल्चर और भाषा आज भी मराठी ही है, वे बताते हैं कि जब वे नयना के गांव में स्काउटिंग प्रोग्राम (Scouting Program) के लिए गए थे और नयना को जब सेकेंड राउंड के लिए बुलाया गया था तो उन्हें उसी वक़्त इस बात का अंदाज़ा हो गया था कि नयना दूसरे बच्चों से हटकर है लेकिन उसे आगे की ट्रेनिंग देने के लिए कैंपस में लाना बहुत मुश्किल सफ़र था क्योंकि उसके पिता बहुत ही पारंपरिक रिवाजों को मानने वाले हैं। उन्होंने पहले तो नयना को भेजने से साफ़ इनकार कर दिया। वो लड़कियों के घर से दूर जाकर इस तरह से तैयारी करने के सख़्त ख़िलाफ़ थे लेकिन समय के साथ उन्होंने बेटी की प्रतिभा को समझा और उसे आगे की ट्रेनिंग के लिए भेज दिया।

कोच बताते हैं कि क़रीब 100 परिवारों वाले नयना के गांव से महज़ चार या पांच लड़कियां ही हैं जो 12वीं से आगे की पढ़ाई कर पाईं, नयना के घर में ख़ुद ऐसे हालात थे कि बड़ी बेटी को उस वक़्त स्कूल छोड़ना पड़ा जब उसका भाई स्कूल जाने लगा और जब नयना ने स्कूल जाना शुरू किया तो उसके भाइयों को स्कूल छोड़ना पड़ा।

नयना की वजह से बदल रही है सोच

नयना के आगे बढ़ने से गांव में सोच बदलने लगी है। कोच तैंजिन बताते हैं कि नयना को जब पहली बार कैंप के लिए कर्नाटक से पुणे जाना था तो उसके पिता ने बहुत चिंता जताई थी, उन्हें बहुत ही मुश्किल से मनाया गया था लेकिन अब नयना विदेशों तक कैंप करके आती हैं और उनके परिवार की सोच बदल चुकी है। हालांकि उनके पिता को अब भी बेटी की चिंता रहती है लेकिन उनकी बेटी ने पिता और परिवार का विश्वास जीत कर साबित कर दिया है कि वो आगे परिवार ही नहीं बल्कि गांव और अपनी कम्युनिटी का नाम रौशन करने वाली है।

हमने नयना से भी बात की। 19 साल की नयना 12वीं की बोर्ड परीक्षा दे रही है और साथ ही प्रैक्टिस भी कर रही है, जिस वक़्त नयना NGO के साथ जुड़ी थी वो करीब 15-16 साल की थी। नयना ने सातवीं क्लास में दौड़ना शुरू किया था और NGO की मदद मिलने के बाद आज उसके नाम नेशनल मेडल दर्ज है।

नयना कहती है, "सबको मौक़ा नहीं मिलता, मुझे मिला है तो मैं इसका इस्तेमाल अच्छे से करना चाहती हूं, मैं नहीं बता सकती कि मैं कितनी मुश्किल से यहां तक पहुंची हूं। मेरी जैसी लड़कियां मेरे गांव में बहुत सारी हैं लेकिन उनके पास सुविधाएं नहीं हैं कि वे आगे आ पाएं।"

''नयना का सपना''

वह कहती हैं, "मेरा सपना है कि मैं भारत का प्रतिनिधित्व करूं ताकि लोगों को पता चले कि हमारे देश में एक ऐसी कम्युनिटी भी है, एक ऐसा गांव भी है जहां से मैं आती हूं।

बात सिद्दी कम्युनिटी से आने वाले बच्चों की हो या फिर इस NGO में देश का नाम रौशन करने का सपना देखने वाले दूसरी ट्राइब के बच्चों की इन सब में एक बात कॉमन है कि इन सब बच्चों को इन्हें मिले मौक़े की बेहद कद्र है और इनका जुनून सिर्फ ख़ुद को साबित करने तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये अपनी कम्युनिटी को भी सम्मान दिलाने के लिए जी-जान से लगे हुए हैं।

सिद्दी कम्युनिटी के इन बच्चों को भले ही 'बाहरी' होने के सवालों को सुनना पड़ता हो लेकिन ये खेलों में नाम कमा कर साबित करना चाहते हैं कि ये भारत का ही नाम रौशन करना चाहते हैं।

कौन हैं सिद्दी कम्युनिटी के लोग ?

इन सबके बीच एक सवाल उठता है कि आख़िर कौन हैं ये सिद्दी कम्युनिटी के लोग जिन्हें Sidi, Siddhi, Sidhi और Sheedi नाम से भी बुलाया जाता है, आख़िर ये कहां से आए थे, इनका इतिहास क्या है और भारत के किस हिस्से में ये रहते हैं?

इन्हीं सवालों के जवाब आगे की रिपोर्ट में....

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