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भारत का सिद्दी ट्राइब क्यों आज भी अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है?

सिद्दी ट्राइब हमारे देश में सदियों से रह रही है वे हमारी विरासत और कला-संस्कृति का हिस्सा हैं लेकिन आज भी उन्हें पहली बार देखने वाले लोगों का सवाल होता है कि ''क्या तुम अफ़्रीका से हो?"
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फ़ोटो साभार: बीबीसी ट्रैवल

"लोग बाल के बारे में पूछते हैं, रंग के बारे में पूछते हैं, वे हमें देखकर कुछ हैरान हो जाते हैं कि ये कहां से आए हैं? अक्सर लोग पूछते हैं कि अफ्रीका से आए हो? ये सुनकर बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था क्योंकि मैं इंडिया से ही हूं, जब मैं गांव में था तो ऐसे सवाल कभी नहीं सुने थे।"

कर्नाटक की सिद्दी कम्युनिटी से आने वाले अनीश एथलीट बनकर ओलंपिक में भारत का नाम रौशन करना चाहता हैं, लेकिन जो सवाल अनीश से पूछे जाते हैं उनके जवाब कौन देगा क्या पता? माज़ी में पलट कर देखें तो भारत में समय-समय पर दुनिया भर से लोग आए और इसमें रच-बस गए लेकिन सदियों पहले आए सिद्दी कम्युनिटी के लोगों को देखकर आज भी इस तरह के सवाल अनीश की तरह ही सिद्दी कम्युनिटी के लोगों से पूछे जाते हैं। पर ऐसा क्यों? आख़िर क्या वजह है कि आज भी लोग उनसे पूछते हैं कि ''क्या अफ्रीकन'' हो? 

इसे भी पढ़ें: सिद्दी ट्राइब के बच्चों में खेलों के प्रति जुनून दिलाएगा देश में उन्हें 'नई पहचान' !

सिद्दी ट्राइब की महिला जिन्हें पद्मश्री मिला,साभार: ANI 

पद्मश्री हीराबाई लोबी 

अनीश से पूछे जाने वाले सवालों के जवाब तलाश करने से पहले हाल ही में ऐलान हुए पद्म पुरस्कारों में एक नाम का ज़िक्र करते हैं, ये नाम है हीराबाई लोबी का है। हीराबाई भी सिद्दी कम्युनिटी से आती हैं और उन्हें पद्मश्री पुरस्कार मिला है। उन्हें ये पुरस्कार सिद्दी कम्युनिटी की महिलाओं के लिए काम करने के लिए मिला है। वे गुजरात के जंबूर गांव में रहती हैं। जंबूर गांव जूनागढ़ में गिर के जंगलों के क़रीब बसा है और गिर के जंगल दुनिया भर में एशियाटिक शेरों के लिए प्रसिद्ध है।

एशियाटिक शेर और गुजरात के गिर के जंगल के क़रीब रहने वाली सिद्दी कम्युनिटी पर यूनाइटेड नेशन्स की एक डॉक्यूमेंट्री है जिसमें सिद्दी कम्युनिटी ( ख़ासकर गुजरात में रहने वाले ) के बारे में बहुत ही दिलचस्प पहलू दिखाए गए हैं- 

हीराबाई को भारत सरकार की तरफ से पद्म श्री पुरस्कार मिला जो हमारे देश में नागरिकों को मिलने वाले सम्मानित पुरस्कारों में से एक है, किसी सिद्दी कम्युनिटी की महिला को इस पुरस्कार का मिलना बहुत मायने रखता है, जब पुरस्कार का ऐलान हुआ था हीराबाई लोबी को मीडिया कवरेज मिला था, लेकिन क्या इस मीडिया कवरेज से आम लोगों को पता चला कि आख़िर कौन होते हैं सिद्दी लोग?

'सीदी सैयद जाली' साभार: बीबीसी ट्रैवल 

सीदी सैयद मस्जिद का सिद्दी कम्युनिटी से क्या है संबंध?

तारीख़ में झांक कर देखें तो गुजरात के पुराने शहर अहमदाबाद की ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध मस्जिद सीदी सैयद मस्जिद सिद्दी कम्युनिटी से जुड़ी है। ये मस्जिद 15वीं शताब्दी में बनकर तैयार हुई थी और इस मस्जिद को बनाने वाले सीदी सैयद (Shaikh Sayyid al-Habshi Sultani) थे, ये वो वक़्त था जब गुजरात में सुल्तान मुजफ्फर शाह -III की हुकूमत थी। इस मस्जिद में बनी नक्काशीदार जाली जिसे 'सीदी सैयद जाली' या फिर 'Tree of Life' भी कहा जाता है। देश के सबसे सम्मानित बिजनेस स्कूल IIM अहमदाबाद का Logo भी इससे प्रभावित बताया जाता है। ऐसी ही ख़ूबसूरत कारीगरी और इमारतों की वजह से UNESCO ने अहमदाबाद को भारत की पहली वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का ख़िताब दिया था।

तो आख़िर कौन होते हैं सिद्दी?

सिद्दी कम्युनिटी के लोगों के बारे में पता करने के लिए कुछ एक किताबें और पब्लिश पेपर के साथ ही हमने कुछ-एक उन लोगों से बातचीत कि जो सिद्दी लोगों के साथ काम कर चुके हैं। के.के प्रसाद ने कर्नाटक में सिद्दी कम्युनिटी के ऊपर काम किया है उन्होंने जो लिखा-पढ़ा है उसके मुताबिक़ सिद्दी लोगों को Sidi, Siddhi, Sidhi, Sheedi के अलावा Habshi के नाम से बुलाया जाता रहा है। इनके अफ्रीका से भारत आने को लेकर अलग-अलग थ्योरी हैं, बताया जाता है कि ये लोग ईस्ट अफ्रीका के BANTU से आए थे। बीबीसी ट्रैवल की एक रिपोर्ट के मुताबिक सिद्दी कम्युनिटी के पूर्वजों को सातवीं शताब्दी में अरब गुलाम के तौर पर लाए थे। 

* जबकि कुछ लोगों का कहना है कि इन्हें पुर्तगाली और बाद में ब्रिटिश राज में भारत लाया गया। 

* जबकि कुछ के मुताबिक़ ये भारत में व्यापार करने, नाविक के तौर पर और भाड़े के सैनिकों ( Mercenaries ) के तौर पर लाए गए थे । 

 गुजरात में सिद्दी कम्युनिटी ( ख़ासकर भरूच) के साथ लंबे समय तक काम कर चुके थिएटर कलाकार डॉ. लईक़ हुसैन से हमारी बात हुई उन्होंने सिद्दी कम्युनिटी से जुड़ी बहुत से जानकारी हमें दी उन्होंने बताया कि ''इनके भारत में आने पर कई वर्जन हैं।  एक तो ये कि ये किसी राजा के साथ भारत आए।  दूसरा वर्जन ये है कि ये किसी बिजनेसमैन के साथ आए।  ये क़रीब आठ सौ साल पहले आए थे। और तीसरा वर्जन है कि ये बाबा गोर के साथ आए थे इस्लाम फैलाने के लिए, हमने जब इन से बात की तो कोई कुछ कहता है और कोई कुछ कहता है। गुजरात में भरूच और जूनागढ़ में ज़्यादातर सिद्दी कम्युनिटी के लोग हैं और कुछ साउथ में हैं कर्नाटक में। ये ज़्यादातर तटवर्ती इलाक़ों के पास ही रहे''। 

सिद्दी धमाल डांस,  साभार: फेसबुक पेज

क्या है 'सिद्दी धमाल' ? 

सिद्दी कम्युनिटी की संस्कृति से जुड़ा एक डांस है जिसे 'धमाल' कहा जाता है, चूंकि ये सिद्दी कम्युनिटी से जुड़ा है तो इसे 'सिद्दी धमाल' कहा जाता है। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा दिल्ली से निकले डॉ. लईक़ हुसैन को ट्राइबल लोगों के साथ काम करने का शौक था वे बताते हैं कि ''जब मैं 1985 में NSD से निकला तो मुझे एक फेलोशिप मिली थी तो इस दौरान मैं घूम रहा था तो मैंने बाबा गोर की दरगाह पर सिद्दी लोगों से जुड़े रिवाजों के बारे में सुना कि सिद्दी डांस करते-करते ऐसी अवस्था में चले जाते हैं जिसमें वे आग पर डांस करते हैं, सिर पर नारियल फोड़ने लगते हैं, ये बातें सुनकर मैं वहां पहुंच गया और इनके डांस पर काम करने के बारे में उसने इजाजत ली पहले तो उन्होंने इनकार कर दिया लेकिन बाद में मान गए फिर मैंने उनके डांस को कोरियोग्राफ किया और मैं इन्हें स्टेज पर ले कर आया और 1986 में इनका प्रोग्राम हुआ दिल्ली में उस वक़्त ये पहली बार दिल्ली आए थे''। 

सवाल- इन लोगों के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा? 

डॉ, लईक़ हुसैन का जवाब- ये गुजराती में बात करते हैं, लेकिन अच्छी हिंदी भी बोलते हैं, मैंने इन्हें बहुत मेहनती पाया। उस वक़्त ( 1980s) मैंने देखा था कि जो लोग इन्हें पहली बार देखते थे तो उन्हें लगता है कि ये अफ्रीकी हैं, लेकिन जब वे गुजराती और कच्छ की ज़बान में बातचीत करते थे तो लोग हैरान हो जाते थे।  गुजरात के सिद्दी लोगों को फिर भी लोग जानते हैं लेकिन कर्नाटक के सिद्दी लोगों को तो उस तरह से एक्सपोज़र नहीं मिला, बहुत से लोगों को कर्नाटक के सिद्दी कम्युनिटी के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है, यहां तक कि गुजरात में रहने वाले सिद्दी कम्युनिटी के लोगों को ही कर्नाटक या फिर दूसरी जगह रहने वाले सिद्दी लोगों के बारे में बहुत बाद में पता चला था''।  

सिद्दी कम्युनिटी के लोग भारत में कहाँ-कहाँ रहते हैं? 

के.के प्रसाद के मुताबिक ये लोग कर्नाटक( उत्तर कर्नाटक) के अलावा, गुजरात, दमन-दीव, गोवा के अलावा हैदराबाद, मुंबई (महाराष्ट्र) और कुछ केरल में भी रहते हैं। देखने से पता चलता है कि पश्चिमी घाट और गुजरात के तट से लगे हिस्सों में ये लोग रहते हैं। जबकि कुछ सिद्दी कम्युनिटी के लोग पाकिस्तान के हैदराबाद में भी रहते हैं।  

( Siddi area of habitation) साभार: के.के प्रसाद की किताब से 

किस धर्म को मानते हैं सिद्दी कम्युनिटी के लोग?
  
स्वतंत्र शोधकर्ता Mark Sebastian Pinto के The Forgotten community, '' the siddis of Uttara Kannada'': How Portuguese Indian Ocean Slave Trade produced a community of Indians of African descent के मुताबिक़ सिद्दी कम्युनिटी के लोग हिन्दू धर्म, इस्लाम और ईसाई धर्म को मानते हैं। वहीं के.के प्रसाद अपनी किताब ''Siddi ( of Karnataka):Religion and Unification Processes among Siddis'' में बताते हैं कि कर्नाटक में सिद्दी मुसलमान उर्दू और हिंदी बोलते हैं, हिंदू सिद्दी कोंकणी में कन्नड के कुछ लफ़्ज़ मिलाकर बोलते हैं, जबकि ईसाई सिद्दी मराठी और कोंकणी मिलाकर बोलते हैं। 

अब भी अफ्रीकी मूल के ही क्यों दिखते हैं सिद्दी लोग?

जिस वक़्त हम कर्नाटक के सिद्दी कम्युनिटी के बच्चों के खेल के माध्यम से आगे बढ़ने की कोशिश पर स्टोरी कर रहे थे तो हमें पता चला कि उत्तर कर्नाटक के जिन इलाक़ों में इनके घर हैं वो बहुत ही दूर-दूर हैं। इनके घर पास-पास नहीं बल्कि दूर-दूर होते हैं ( जो की घने जंगल का इलाक़ा है) । कुछ एक घर साथ में होते हैं। बात करें शादी ब्याह की तो सिद्दी कम्युनिटी के लोग अपनी ही कम्युनिटी में शादी करते हैं इसी वजह से ये लोग आज भी अफ्रीकी मूल के ही दिखते हैं। के.के प्रसाद की किताब के मुताबिक  सिद्दी कम्युनिटी में वैसे तो औरतें शादी के बाद पति के धर्म का ही पालन करती हैं लेकिन कुछ एक उदाहरण ( कर्नाटक में ) ऐसे भी मिलते हैं जिसमें पति ने शादी के बाद पत्नी के धर्म का पालन किया, हालांकि कुछ जोड़े ऐसे भी हैं जिनके शादी के बाद एक से ज़्यादा धर्म के पालन करने के भी उदाहरण मिलते हैं। 

सिद्दी कम्युनिटी का संघर्ष 

के.के प्रसाद की किताब में सिद्दी कम्युनिटी को साल 2003 में मिले अनुसूचित जनजाति ( Scheduled Tribe) के दर्ज के लिए किए गए संघर्ष का ज़िक्र है। उनकी किताब में दी गई इस तस्वीर के माध्यम से इनके संघर्ष को क़रीब से समझने में मदद मिलेगी। 

साभार: के.के प्रसाद की किताब से

इस तस्वीर में जंगल क़ानून के लिए हिंदू, मुसलमान और क्रिश्चियन कम्युनिटी के सिद्दी एक साथ मिलकर संघर्ष कर रहे हैं। प्रदर्शन के दौरान बैनर पर मंडेला की तस्वीर,  Dammam ड्रम और बाबा साहेब आंबेडकर की तस्वीर की मौजूदगी इनके अफ्रीकी मूल के होने के साथ ही दलित और अनुसूचित जाति से इनके संबंध और इन्हें अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग को दिखाता है। हालांकि जब इन्हें अनुसूचित जाति में शामिल कर लिया तो इन्हें एक पहचान के साथ ही कल्याणकारी योजनाओं का फायदा भी मिला, लेकिन यहां सबसे बड़ी समस्या ये दिखी कि बहुत से सिद्दी लोगों को इन योजनाओं के बारे में ठीक से जानकारी ही नहीं मिल पाई।  

सिद्दी कम्युनिटी में शिक्षा 

कर्नाटक में सिद्दी कम्युनिटी के बच्चों पर स्टोरी करने के दौरान हमें पता चला कि इस कम्युनिटी के लोग बहुत ग़रीब हैं ज़्यादातर खेती-बाड़ी और मज़दूरी कर गुज़र-बसर करते हैं। इसलिए बच्चों को आगे पढ़ाने में उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है।  स्कूल-कॉलेज के दूर होने की वजह से इन बच्चों के लिए पढ़ाई हासिल करना संघर्ष की कहानी बन जाती है। हालांकि कुछ एक सिद्दी कम्युनिटी के लोगों ने अपने संघर्ष से नौकरी और खेलों में नेशनल लेवल पर पहुंचने तक की राह बना ली। 

 लेकिन एक सवाल जो बहुत ही अहम है वे ये कि सदियों से हमारे देश में रह रहे सिद्दी कम्युनिटी के लोग न सिर्फ हमारी विरासत और कला-संस्कृति से जुड़े रहे लेकिन बावजूद उनके रंग-रूप की वजह से उन्हें अलग पहचान के साथ ही अपने देश में रहना पड़ रहा है। अनीश जैसे होनहार बच्चे आज जब खेलों में हिस्सा लेकर आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं तो एक सवाल कि ''क्या तुम अफ्रीकी हो'' ?  दिल तोड़ने का सबब बन जाता है।

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