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दिल्ली: स्कूली छात्रा पर एसिड अटैक, लचर क़ानून व्यवस्था ज़िम्मेदार?

साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने तेज़ाब की खुली बिक्री पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद आज देश में एसिड की बिक्री धड़ल्ले से जारी है।
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फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

एसिड अटैक यानी महिलाओं पर तेज़ाब फेंके जाने का मुद्दा आमतौर पर हाशिए पर ही दिखाई देता है, जब तक ऐसी कोई घटना अख़बारों की सुर्खियां या चैनलों की हेडलाइन न बने। 14 दिसंबर, बुधवार को जब राजधानी दिल्ली के द्वारका इलाके में बाइक सवारों ने स्कूल जा रही एक 12वीं कक्षा की छात्रा पर तेजाब से हमला किया, तो देशभर के लोगों में एक बार फिर इसके खिलाफ रोष देखने को मिला। पुलिस ने इस घटना के कुछ देर बाद ही मुख्य आरोपी समेत तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया लेकिन तब तक छात्रा का चेहरा और शरीर का अन्य हिस्सा बुरी तरह से झुलस चुका था और एक बड़ा सवाल हमारे सामने खड़ा था कि आख़िर सुप्रीम कोर्ट के बैन के बावजूद देश में एसिड की बिक्री धड़ल्ले से कैसे जारी है।

बता दें कि साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने तेज़ाब की खुली बिक्री पर रोक लगा दी थी। इसके अलावा एसिड बेचने वाले प्रतिष्ठानों के लाइसेंस और पंजीकरण के दिशानिर्द्श के साथ ही खरीदने वाले ग्राहकों से एक पहचान पत्र और एसिड खरीदने का कारण पूछना भी अनिवार्य कर दिया था। अदालत ने साफ किया था कि 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति को तेज़ाब नहीं बेचा जा सकता। ये गाइडलाइंस कोर्ट ने 2006 में तेज़ाब के हमले में घायल नाबालिग़ लक्ष्मी अग्रवाल की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान जारी किए थे। हालांकि ये बेहद गंभीर मामला है कि सर्वोच्च अदालत के देशव्यापी प्रतिबंध लगाने के नौ साल बाद भी तेजाब हमलों के लिए आसानी से मिल जा रहा है।

क्या है पूरा मामला?

बीते दिन बुधवार को दिल्ली के द्वारका ज़िले में स्कूल जा रही 17 वर्षिय नाबालिग छात्रा पर कुछ बाइक सवारों ने तेजाब से हमला कर दिया। घटना के समय लड़की अपनी छोटी बहन के साथ थी, उसने घरवालों को इस पूरे हमले की सूचना दी। परिजनों के मुताबिक छात्रा का चेहरा और शरीर का अन्य हिस्सा बुरी तरह से झुलस गया है। घायल पीड़िता का इलाज सफदरजंग अस्‍पताल में चल रहा है। छात्रा का इलाज कर रहे डॉक्टरों ने गुरुवार, 15 दिसंबर को बताया कि उसके चेहरे और गले पर जलने के निशान हैं।

दिल्ली पुलिस के मुताबिक गवाहों और स्थानीय स्रोतों से मिली जानकारी के आधार पर आरोपी व्यक्तियों की पहचान कर और घटना के कुछ घंटों के भीतर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने मीडिया को बताया कि आरोपियों की पहचान सचिन अरोड़ा, हर्षित अग्रवाल और वीरेंद्र सिंह उर्फ सोनू के रूप में हुई है। पुलिस के अनुसार तकनीकी साक्ष्य के आधार पर पता चला है कि आरोपी सचिन ने एक ऑनलाइन शॉपिंग साइट से तेजाब खरीदा था।

दिल्ली महिला आयोग ने केंद्र सरकार को घेरा

इस बीच दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने इस मामले में केंद्र सरकार को घेरा है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा है- द्वारका मोड़ के पास एक स्कूली छात्रा पर तेज़ाब फेंका गया। हमारी टीम पीड़िता की मदद के लिए अस्पताल पहुँच रही है। बेटी को इंसाफ़ दिलाएँगे। दिल्ली महिला आयोग सालों से देश में तेज़ाब बैन करने की लड़ाई लड़ रहा है। कब जगेंगी सरकारें?

उन्होंने एक अन्य ट्वीट में लिखा, "देश की राजधानी में दो बदमाशों ने एक लड़की पर दिनदहाड़े तेजाब फेंका और भाग गए, क्या किसी को कानून का डर है?"

राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस मामले का स्वतः:संज्ञान लेते हुए सफदरगंज अस्पताल में जाकर पीड़िता का हाल जाना और परिजनों से भी इस मामले में बात की। आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा कि यह बेहद दर्दनाक है, खबर आने के बाद हमने अपनी टीम को अस्पताल भेजा है और वे अब भी वहां मौजूद हैं।

एसिड अटैक मामले में क्या कहता है देश का कानून?

गौरतलब है कि एसिड अटैक न सिर्फ किसी महिला के चेहरे को खराब कर देता है या उसकी आँखों की रोशनी छीन लेता है लेकिन उसे समाज में दोयम दर्जे का नागरिक बना देता है। हो सकता है उसकी जान न जाए, पर ज़िंदगी बेहद बोझिल और दर्दनाक होकर रह जाती है। जिस्म पर लगे घाव तो सबको दिखते हैं लेकिन ज़हन पर लगे घाव किसी को नज़र नहीं आते। आत्मनिर्भर और ज़िंदादिली से भरपूर एक औरत देखते ही देखते असहाय, दूसरों पर आश्रित महिला बन जाती है। विकृत चेहरे से समझौता कर पाना किसी के लिए आसान नहीं होता। देश में एसिड हमलों के कई मामले देखने को मिलते हैं, लेकिन इससे जुड़ा कोई विश्वसनीय आँकड़ा मौजूद नहीं है।

सरकारी आंकड़ों की मानें तो, दिल्ली में 2018 से 2021 के बीच तेजाब से हमले के 32 मामले दर्ज किए गए थे। कोरोना महामारी के दौरान इस तरह के हमले में गिरावट देखी गई थी लेकिन अब इसमें वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हवाले से केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने इसी साल मानसून सत्र के दौरान संसद को बताया था कि साल 2018 से 2020 के बीच देश में महिलाओं पर एसिड हमलों के 386 मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से कुल 62 मामलों में न्याय मिल सका, जो कि 25 प्रतिशत से भी कम है।

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में एक पीड़िता की अर्ज़ी पर सुनवाई के दौरान कहा कि एसिड हमला, हत्या से भी बुरा है. इससे पीड़ित का जीवन पूरी तरह बर्बाद हो जाता है। इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने एसिड हमलों के पीड़ितों के इलाज और सुविधाओं के लिए भी नई गाइडलाइंस भी जारी की थी। इसके तहत कोई भी अस्पताल तेज़ाब हमले के पीड़ित के इलाज से मना नहीं कर सकता। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को एसिड हमले के शिकार को तुरंत कम से कम तीन लाख रुपये की मदद देनी होगी, पीड़िता का निःशुल्क इलाज भी सरकार की ज़िम्मेदारी है। उसी समय सुप्रीम कोर्ट ने तेज़ाब की खुली बिक्री पर रोक लगाई थी। इसके अलावा ग़ैर-क़ानूनी ढंग से तेज़ाब बेचने वाले पर 50,000 के जुर्माना का प्रावधान भी किया गया।

एसिड हमलों को अपराध की श्रेणी में लाने के लिए साल 2013 में ही भारतीय दंड संहिता में धारा 326ए और धारा 326बी जोड़ी गई। इसके तहत किसी को स्थायी या आंशिक नुक़सान पहुंचाने के इरादे से एसिड फेंकना, फिंकवाना या एसिड फेंकने की कोशिश को गंभीर जुर्म माना गया है।

इसमें एसिड हमलों के पीड़ितों के लिए भी विशेष प्रावधान किए गए। इन धाराओं के तहत दोषी पाए जाने पर कम से कम 10 साल की जेल की सज़ा का प्रावधान किया गया, जो कुछ मामलों में बढ़ाकर उम्रकैद भी की जा सकती है। कुछ मामलों में दोषियों को हर्जाने के तौर पर पीड़ित के इलाज में खर्च होने वाली राशि जितना ही भुगतान करना पड़ सकता है।

बहरहाल, सख्त कानून के बावजूद देश में एसिड अटैक के सामने आते मामले सरकारी निगाह से परे कहीं भटकते रहते हैं। कई मामलों में देखा जाता है कि दोषी ज़मानत पर रिहा हो जाते हैं और उनकी ज़िंदगी आगे बढ़ जाती है, जबकि पीड़ित की ज़िंदगी वहीं की वहीं थम कर रह जाती है। तेज़ाब से हुआ हमला जिस्म ही नहीं ज़हन को भी अंदर छलनी कर जाता है, जिसके लिए लचर कानून व्यवस्था भी बहुत हद तक ज़िम्मेदार है। फिलहाल इन मामलों में केवल आश्वासन नहीं खास प्राथमिकता देने की जरूरत है।

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