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दिल्ली : महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा को लेकर प्रदर्शन, बड़े आंदोलन की चेतावनी

प्रदर्शनकारी महिलाओं ने कहा कि अगर सरकार उनकी मांगें नहीं सुनती है तो अभी वो संसद मार्ग आई हैं, आगे संसद भवन भी पहुंचेंगी और उन्हें इससे कोई नहीं रोक सकता है।
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देश में दिन-प्रतिदिन महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा और आरोपियों को मिलते सरकारी संरक्षण के खिलाफ आज यानी मंगलवार, 14 फरवरी को दिल्ली के जंतर-मंतर पर ऑल इंडिया महिला सांस्कृतिक संगठन के नेतृत्व में तमाम महिला कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर ज़ोरदार धरना प्रदर्शन किया और सरकार से महिलाओं की सुरक्षा के वादे नहीं नीयत और नीति की मांग की। प्रदर्शनकारी महिलाओं ने साफ किया कि अगर सरकार उनकी मांगे नहीं सुनती है तो अभी तो वो संसद मार्ग आई हैं, आगे संसद भवन भी पहुंचेंगी और उन्हें इससे कोई नहीं रोक सकता है।

इस प्रदर्शन में दिल्ली-एनसीआर के अलावा हरियाणा, गुजरात, उत्तराखंड और कई अन्य राज्य की महिलाएं भी शामिल रहीं। सभी ने एक सुर में केंद्र की मोदी सरकार को महिला विरोधी बताते हुए जमकर नारेबाजी की। इन दौरान इन महिलाओं का एक प्रतिनिधिमंडल देश में महिलाओं की मौजूदा स्थिति और उन पर बढ़ते अत्याचार के संबंध में अपनी मांगों को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय ज्ञापन देने भी पहुंचा। इस कार्यक्रम में अंकिता भंडारी की मां सहित अन्य कई हिंसा को झेल चुकी महिलाओं ने अपना दुख सांझा किया और अन्य महिलाओं को आगे आने और आवाज़ बुलंद करने का आह्वान किया।

पीड़ितों का सहारा बनने की बजाय सरकार आरोपियों की संरक्षक

कार्यक्रम की शुरुआत में ऑल इंडिया महिला सांस्कृतिक संगठन की अध्यक्ष किया डे ने कहा कि इस समय देश में महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ अपराध अपने चरम पर हैं। लेकिन सरकार पीड़ितों का सहारा बनने की बजाय आरोपियों की संरक्षक बनी हुई है, जो अपने आप में सरकार की महिला विरोधी मंशा को जाहिर करता है। उन्होंने कहा कि ये समय हर उस महिला के साथ खड़ा होने का है, जो सिस्टम से निराश और न्याय की तलाश में है। फिर इसके लिए बड़े जन आंदोलन की ही जरूरत क्यों न पड़े, हम सभी इसके लिए तैयार हैं।

मंच से संगठन की महासचिव छवि मोहंती ने महिलाओं को हर जुल्म के खिलाफ एकजुट होने का संदेश देते हुए इस पितृसत्तामक समाज में महिलाओं के हक़ के लिए आवाज़ बुलंद करने की बात कही। उन्होंने गुजरात की बिलकिस बानो, उत्तराखंड की अंकिता भंडारी, दिल्ली की अंजली सहित सभी पीड़ित महिलाओं-बच्चियों के लिए न्याय की मांग के साथ झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के लिए भी राहत की बात रखी, जिनके घर विकास के नाम पर उजाड़े जा रहे हैं।

इस प्रदर्शन में अंकिता भंडारी, बिलकिस बानो के समर्थन और निजीकरण व नई शिक्षा नीति के खिलाफ में सर्वसम्मति से प्रस्ताव भी पास किए गए। संगठन की ओर से बोलते हुए शारदा दीक्षित ने बताया कि आज देश तमाम विसंगतियों से जूझ रहा है। महिला-मज़दूर न्याय के लिए भटक रहे हैं, तो वहीं बड़े उद्योगपति अपनी जेब भर रहे हैं। एक ओर हम बलात्कारियों को सजा दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर बिलकिस के अपराधियों को स्वतंत्रता दिवस के दिन छोड़ दिया जा रहा है। ये अन्याय आखिर कब तक बर्दाश्त किया जाएगा, कब तक महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के उनके अधिकार से उन्हें डरा-धमका कर दूर रखने की साजिश की जाएगी।

हरियाणा के रेवाड़ी से आईं सुमन बताती हैं कि संदीप सिंह के मामले में सरकार पीड़िता की बजाय आरोपी के पक्ष में खड़ी नज़र आती है। लगातार प्रदर्शन और विरोध के बावजूद अभी भी वो मंत्री पद पर बने हुए हैं, ये महिलाओं के साथ अन्याय का सबसे बड़ा उदाहरण है। किसी राज्य में जब एक खेल से जुड़ी महिला कोच सुरक्षित नहीं तो भला लड़कियां कैसे सुरक्षित होंगी। कुश्ती के विवाद में भी बीजेपी नेता का ही नाम सामने आया है, ऐसे ही कई और मामले सामने आए हैं, जहां सत्ता पक्ष के लोग लिप्त दिखाई देते हैं, फिर भी सरकार कोई ठोस कार्यवाही नहीं करती, शायद यही उनकी मंशा है।

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जब तक सुरक्षा नहीं, बेटी-बचाओं, बेटी पढ़ाओं के नारे का कोई मतलब नहीं

उत्तराखंड से आईं विजीता सिंह कहती हैं, “अंकिता भंडारी के मामले में हम लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंग रही। वहां घर-घर लोगों का समर्थन मिल रहा है, लोग अपने बच्चों को खासकर बेटियों को पढ़ाकर आगे बढ़ाना चाहते हैं लेकिन न स्कूल में लड़कियां सुरक्षित हैं और ना नौकरी में। ये सरकार की जिम्मेदारी है कि वो एक सुरक्षित माहौल तैयार कर सके, कानून के अनुसार यौन उत्पीड़न की शिकायतों के लिए समितियां कारगर बनें, तभी लड़कियां अपने सपनों को जी पाएंगी, नहीं तो बेटी-बचाओं, बेटी पढ़ाओं के नारे का कोई मतलब नहीं रहेगा।"

इस मौके पर मौजूद अंकिता भंडारी की मां सोनी देवी से न्यूज़क्लिक ने खास बातचीत की। उन्होंने डबडबी आखों और भरे गले के साथ बताया कि उनकी बेटी उनकी हिम्मत थी, जो चली गई लेकिन वो नहीं चाहती की देश की किसी और बेटी के साथ ऐसा हो, वो अपनी बेटी के लिए भी न्याय की आस में जंतर-मंतर पहुंची हैं। उनका कहना था कि अंकिता के सपने बहुत बड़े थे, वो अपने साथ ही अपने परिवार को भी संभालना चाहती थी, कुछ करना चाहती थी लेकिन कभी झुकना नहीं चाहती थी, इसलिए उसे मार दिया गया। वो चाहती हैं कि अंकिता के अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले और बाकी लड़कियां जो काम पर जाती हैं, उनके लिए सुरक्षा सुनिश्चित हो।

अंकिता की मां आगे कहती हैं कि शासन-प्रशासन जानबूझकर मामले की गंभीरता को दबाना चाहता है क्योंकि बड़े लोग इसमें शामिल हैं। वो कहती हैं कि उनके परिवार के खिलाफ गलत अफवाह उड़ाई जा रही है कि उन्हें सरकार की ओर से बड़ी धनराशि और उनके लड़के को सरकारी नौकरी मिल गई है और ये लोग लालच में मामले को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। सोनी देवी इन बातों का खंडन करते हुए परिवार की मौजूदा खस्ता आर्थिक स्थिति और हालात के बारे में बताती हैं कि उनके पति का ऑपरेशन हुआ है, वो घर पर ही हैं, बेटे की भी पढ़ाई छूट गई है, वो भी घर पर है। किसी के पास फिलहाल कोई रोज़गार नहीं है और न ही कोई जमापूंजी। वो इसके बावजूद अपनी हिम्मत को अपना सबसे बड़ा सहारा बताते हुए अंकिता के लिए लड़ने का हौसला दिखाती हैं।4

फैक्ट फाइंडिंग टीम ने शासन-प्रशासन की भूमिका पर उठाए थे सवाल

बता दें कि 19 साल की अंकिता लक्ष्मण झूला इलाक़े में वनंतारा रिसॉर्ट की रिसेप्शनिस्ट थी। अंकिता को आखिरी बार पुलकित आर्य के साथ रिसॉर्ट में 18 सितंबर 2022 को देखा गया था, जबकि उसका शव छह दिन बाद 24 सितंबर को चिल्ला पावर हाउस के पास शक्ति नहर से पुलिस ने बरामद किया था। इस दौरान मुख्य आरोपी पुलकित ने खुद को पाक-साफ दिखाने के लिए रेवेन्यू विभाग में अंकिता के गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज करवाई थी। अंकिता के परिवार वालों का आरोप था कि इस मामले में राजस्व पुलिस पहले हाथ पर हाथ धरे बैठी रही और फिर बाद में 22 सितंबर को इस मामले को नियमित पुलिस के हवाले किया गया था। फिलहाल इस मामले में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है और केस कोर्ट में है।

बीते सप्ताह उत्तराखंड महिला मंच की ओर से इस मामले में महिला और मानवाधिकार संगठनों की संयुक्त फैक्ट फाइंडिंग टीम ने 7 फरवरी को दिल्ली के प्रेस क्लब में अपनी फैक्ट रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में शासन-प्रशासन की भूमिका के साथ ही कई चिंताओं और सवालों और तथ्यों को भी सामने रखा गया था, जो टीम ने अंकिता के घर से लेकर घटनास्थल तक अपनी आंखों से देखा और लोगों से सुना था। इसके अलावा एसआईटी की अभी तक की जांच, पोस्टमार्टम रिपोर्ट और आरोपियों के खिलाफ दाखिल चार्जशीट के भी तमाम पहलुओं को भी इस रिपोर्ट के शामिल कर सबूतों को नष्ट करने से लेकर लीगल सिस्टम की खामियां और पुलिस का असंवेदनशील रवैया पर सवाल उठाया गया था।

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ऑल इंडिया महिला सांस्कृतिक संगठन नेे महिला हिंसा के अलावा नशाखोरी, शराब के नए ठेके खुलने का भी विरोध किया। संगठन ने महिलाओं को इससे होने वाली दिक्कतों को रेखांकित करते हुए इसे घरेलू हिंसा का एक प्रमुख कारण भी माना। संगठन के एजेंडे में आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की समस्याएं भी थीं। संगठन ने अपने मंच से सभी को न्यूनतम 25, 000 के मानदेय की बात कही। साथ ही कुपोषण से लड़ने में सरकार की मौजूदा नीतियों को नाकाफी बताते हुए सभी के लिए उचित पौष्टिक आहार की मांग की।

महिला संगठन की प्रमुख मांगें :

  • सभी महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
  • महिला अपराध के गंभीर मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो।
  • सोशल मीडिया, वेबसाइट, सिनेमा आदि में अश्लीलता परोसने पर प्रतिबंध लगे।
  • नशाखोरी और शराबखोरी पर रोक लगे।
  • सभी महिलाओं के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और रोज़गार के अवसर सुनिश्चित हों।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र का निजीकरण बंद हो।
  • आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को न्यूनतम मजदूरी 25,000 दी जाए।
  • सभी शिक्षण संस्थानों में लड़कियों की सुरक्षा के लिए जूडो-कराटे प्रशिक्षण की व्यवस्था लागू हो।
  • महिलाओं और बच्चों में कुपोषण की रोकथाम के लिए उचित उपाय किए जाएं।

गौरतलब है कि इस समय देश में महिला अपराधों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के मुताबिक भारत में एक दिन में औसतन 87 रेप की घटना होती हैं। साल 2021 में नाबालिग़ों के साथ बलात्कार की भी घटनाओं में काफी वृद्धि देखी गई। जहां 18 साल से ज़्यादा आयु की महिलाओं के साथ बलात्कार के कुल 28,644 मामले दर्ज हुए, वहीं नाबालिग़ों के साथ बलात्कार की कुल 36,069 घटनाएं हुईं। वहीं महिलाओं के खिलाफ अपराध की बात करें तो, इसमें साल 2021 में बीते साल के मुकाबले 15.3 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 4,28,278 मामले दर्ज हुए। ऐसे में सरकार भले ही महिला सुरक्षा के लिए खुद को प्रतिबद्ध बताती हो, लेकिन हक़ीक़त में इस मोर्चे पर विफल ही नज़र आती है।

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