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अंकिता भंडारी हत्याकांड : महिला मंच ने जारी की फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग रिपोर्ट, शासन-प्रशासन की भूमिका पर सवाल

इस रिपोर्ट में कई चिंताओं और सवालों के साथ ही उन तथ्यों को भी सामने रखा गया है, जो टीम ने अंकिता के घर से लेकर घटनास्थल तक अपनी आंखों से देखा और लोगों से सुना।
Ankita bhandari case

उत्तराखंड के बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड मामले में महिला और मानवाधिकार संगठनों की संयुक्त फैक्ट फाइंडिंग टीम ने मंगलवार, 7 फरवरी को दिल्ली के प्रेस क्लब में अपनी फैक्ट रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में कई चिंताओं और सवालों के साथ ही उन तथ्यों को भी सामने रखा गया है, जो टीम ने अंकिता के घर से लेकर घटनास्थल तक अपनी आंखों से देखा और लोगों से सुना। इसके अलावा एसआईटी की अभी तक की जांच, पोस्टमार्टम रिपोर्ट और आरोपियों के खिलाफ दाखिल चार्जशीट के भी तमाम पहलुओं को भी इस रिपोर्ट के केंद्र में रखा गया है।

इस फैक्ट रिपोर्ट में एसआईटी पर जांच में जानबूझकर लापरवाही बरतने समेत वनंतरा रिजॉर्ट पर बुलडोज़र चलाने, पुलिस रिमांड की मांग न करने और राजस्व पुलिस से लेकर उत्तराखंड पुलिस तक के गोलमोल भूमिका पर सवाल खड़े किए गए हैं। रिपोर्ट इस मामले में कानूनी हस्तक्षेप और उच्च न्यायालय की निगरानी में जांच की मांग को भी उठाती है। इसके साथ ही सभी कामकाजी महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित करने और सम्मानजनक माहौल देने के लिए सरकारी और गैर सरकारी वर्क प्लेस पर विशाखा गाइडलाइन्स का सख्ती से पालन करने की भी मांग करती है।

कई राज्यों की महिला और नागरिक संगठनों ने मिलकर बनाई रिपोर्ट

इस फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट को उत्तराखंड महिला मंच की ओर से सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर, अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की उपाध्यक्ष जगमति सांगवान, मैमूना मुल्ला, महिला अधिकार कार्यकर्ता कविता कृष्णन और अन्य महिला संगठनों से जुड़ी कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और आमजन के बीच रखा गया। इस रिपोर्ट को उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक समेत कई राज्यों की महिला और नागरिक संगठनों समेत वकीलों और पर्यटन विशेषज्ञों के 30 प्रतिनिधियों ने अपने अनुभव और जांच के आधार पर तैयार किया है।

बता दें कि 19 साल की अंकिता लक्ष्मण झूला इलाक़े में वनंतारा रिसॉर्ट की रिसेप्शनिस्ट थीं। अंकिता को आखिरी बार पुलकित आर्य के साथ रिसॉर्ट में 18 सितंबर 2022 को देखा गया था, जबकि उसका शव छह दिन बाद 24 सितंबर को चिल्ला पावर हाउस के पास शक्ति नहर से पुलिस ने बरामद किया था। इस दौरान मुख्य आरोपी पुलकित ने खुद को पाक-साफ दिखाने के लिए रेवेन्यू विभाग में अंकिता के गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज करवाई थी। अंकिता के परिवार वालों का आरोप था कि इस मामले में राजस्व पुलिस पहले हाथ पर हाथ धरे बैठी रही और फिर बाद में 22 सितंबर को इस मामले को नियमित पुलिस के हवाले किया गया।

उत्तराखंड महिला मंच की ओर से उमा भट्ट ने बताया कि इस रिपोर्ट को सामने लाने के पीछे फैक्ट फाइंडिंग टीम का यही मकसद था कि लोगों को अंकिता की असल जिंदगी के बारे में करीब से पता लग सके, वे जाने कि कैसे एक युवा लड़की के कामकाजी महिला बनने के सपन को खत्म कर दिया गया। यह समझा जाए कि कैसे पुलिस और प्रशासनिक प्रणाली ने उस युवा लड़की के साथ ही उसके परिवार के साथ भी अन्याय किया। इसके अलावा अंकिता जैसी ही अन्य लड़कियां जो खुद के दम पर कुछ करने की चाह रखती हैं, उनके लिए जरूरी उपाय सुनिश्चित हो सकें।

रिपोर्ट में उठाए गए प्रमुख मुद्दे?

-अंकिता 18 सितंबर से गायब थी, लेकिन पिता को जब इसकी जानकारी 19 सितंबर को मिली तो उन्हें एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे कई थानों के चक्कर लगवाए गए। आखिर में 20 जनवरी को दोपहर 2 बजे राजस्व पुलिस अधिकारी विवेक कुमार ने उनकी रिपोर्ट ले ली। उन्हें बताया गया कि पुलकित आर्य ने पहले ही इस मामले में विस्तृत गुमशुदगी की रिपोर्ट दी है।

इसके बाद भी अंकिता के पिता जांच में तेजी लाने के लिए दर-दर भटकते रहे। राज्य महिला आयोग और विधानसभा अध्यक्ष और देहरादून के वरिष्ठ अधिकारियों से व्यक्तिगत रूप से संपर्क करने के बाद 22 तारीख की शाम को पौड़ी के जिला कलेक्टर ने उनके द्वारा दर्ज की गई रिपोर्ट का संज्ञान लिया और मामला लक्ष्मण झूला की नियमित पुलिस को स्थानांतरित कर दिया गया, जिसके बाद हुई और 23 को तीनों आरोपियों पुलकित आर्य, सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता को गिरफ्तार किया गया।

24 सितंबर को शव बरामद हुआ, उसी दिन एम्स ऋषिकेश में पोस्टमार्टम हुआ। रिपोर्ट में शरीर पर मौत से पहले चोटों का खुलासा तो हुआ लेकिन यौन हमले की बात इस आधार पर खारिज कर दी गई कि लड़की के प्राइवेट पार्ट के आसपास कोई चोटें नहीं है। हालांकि सिर्फ इस बीनाह पर यौन हिंसा की बात से इंकार नहीं किया जा सकता। इसके बाद पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने अंकिता के अंतिम संस्कार को भी ड्रामे का रूप दे दिया। उन्होंने परिवार, पिता, पुत्र और मां पर दबाव डालते हुए 25 तारीख को शव का अंतिम संस्कार कर दिया। मां को आखिरी बार अपनी बेटी का चेहरा तक नहीं देखने दिया गया।

-आपराधिक न्याय प्रणाली का ध्वस्त होना और साक्ष्यों को नष्ट करने की छूट मिलना भी इस मामले में साफ देखने को मिलता है। सत्ताधारी पार्टी बीजेपी की विधायक रेनू बिष्ट का नेतृत्व में 23 सितंबर की रात को अपराध स्थल सहित कीमती सबूतों को नष्ट कर दिया गया। रेनू बिष्ट का खुद का एक रिजॉर्ट भी इसी इलाके में है। इसमें पुलिस की लापरवाही और दुर्भावना नज़र आती है। आखिर पुलिस द्वारा अपराध स्थल को सील क्यों नहीं किया गया। रेनू बिष्ट पर साक्ष्यों को नष्ट करने को लेकर कार्रवाई क्यों नहीं हुई, उन्हें सरकारी बुलडोज़र चलाने की अनुमति किसने दी।

- इस मामले में वीआईपी कौन था, जिसे स्पेशल सर्विस देने की बात हो रही थी? इसके जवाब में पुलिस का कहना हा कि वीआईपी शब्द का प्रयोग प्रेसिडेंशियल सुइट में ठहरने वाले लोगों के लिए किया जा रहा था। यहां ये सावाल उठता है कि क्या ये केवल बोलचाल का नाम है या फिर कोई शक्तिशाली व्यक्ति, राजनेता या कोई अन्य प्रभावशाली व्यक्ति।

- इस मामले में जांच दल ने गवाहों को अब तक कोई सुरक्षा नहीं मिलने पर भी चिंता जाहिर की है। रिपोर्ट का कहना है कि रिसॉर्ट के कर्मचारी अभिनव, कुश और अन्य, अंकिता का दोस्त पुष्प इस मामले मेें मुख्य गवाह हैं। इन लोगों ने ही हत्या की कड़ी जोड़ने में मदद की है। धारा 164 और प्रमुख गवाहों के बयान के बावजूद पुलिस का यह तर्क पर्याप्त नहीं है कि किसी भी गवाह ने किसी तरह की धमकी या धमकाने की जानकारी नहीं दी। इसलिए सुरक्षा नहीं दी गई।

- यह महिलाओं के कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम 2013 को लागू करने में विफलता दर्शाता है। यहां मौजूद लगभग सभ रिसॉर्ट की कामकाजी महिलाओं को इस अधिनियम के बारे में पता ही नहीं था। इसलिए आंतरिक शिकायत समिति है ही नहीं। पर्यटन विभाग के अपर सचिव के पास होटल व्यवसाय द्वारा इस कानून की अनदेखी का कोई जवाब नहीं था।

-राज्य महिला आयोग ने भी इस मामले में सक्रिय भूमिका नहीं निभाई, सिवाय फोन करने के, वे भी तब जब पिता शिकायत लेकर आयोग पहुंचे। इसके बाद फॉलेअप में भी इस तरह की घटनाओं में फंसी महिलाओं के लिए किसी समाधान पर कोई चर्चा नहीं की गई। आयोग ने पेशेवर कामकाजी महिलाओं के हितों को सुनिश्चित करने के लिए सरकार से कोई संवाद नहीं किया।

- उत्तराखंड पुलिस का विरोधाभास भी यहां साफ देखने को मिला। जब अंकिता के पिता शिकायत दर्ज करवाने पहुंचे तो यह कहकर उन्हें मना कर दिया गया कि यह उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता साथी ही फैक्ट फाइंडिंग टीम को भी रिसॉर्ट का का दौरा करने से मना कर दिया गया।लेकिन रेनू बिष्ट को खुली आजादी दी गई।

-व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के सार्वजनिक वित्त पोषण में कमी भी इस मामले को व्यापक आयाम देती है। अंकिता के साथ ये कमी रह गई कि वो सरकार द्वारा वित्तपोषित व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रम में दाखिला नहीं ले सकी और इसलिए अपनी होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी नहीं कर सकी। फीस की कमी के कारण उसे पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। अंकिता जैसी और भी कई लड़कियां है, जो मजबूरी के चलते अपने सपने नहीं पूरा कर पाती और किसी अपराध का शिकार हो जाती है।

लीगल सिस्टम की खामियां और पुलिस का असंवेदनशील रवैया

इस रिपोर्ट पर कानूनी पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि हमारे लीगल सिस्टम में बहुत खामियां हैं, जिसका फायदा मजबूत लोग उठाने से बिल्कुल नहीं चूकते। उन्होंने आईपीसी की धारा 166 की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि कानून के हिसाब से अगर ऐसे मामलों मेें एफआईआर नहीं दर्ज की गई पुलिस के द्वारा तो कानून में उस पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है। और ये कार्रवाई कानूनी होगी, नाकि डिपार्टमेंटल इंक्वायरी के नाम पर खानापूर्ति। उन्होंने मंच से सवाल उठाया कि आज तक कितने पुलिस वालों के खिलाफ ये कार्रवाई हुई है। क्या इसका कोई रिकॉर्ड है?

वृंदा ने इस पूरे मामले पर लास्ट सिन एविडेंस का प्वाइंट भी रखा, इसके मुताबिक अंकिता को आखिरी बार जिनके साथ देखा गया था, जिसके सबूत हैं उन पर हत्या 302 का मामला दर्ज होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले को यौन हिंसा तक सीमित करके नहीं देखना चाहिए और नाही फांसी किसी समस्या का समाधान है। सरकार जो कर रही है और महिला आंदोलन की जो मांग है उसमें फर्क है। निर्भया के बाद जो कानून में संशोधन हुआ वो महिला आंदोलन के संघर्ष का नतीज़ा था लेकिन फांसी नहीं। इस मामले की जांच सीबीआई से इतर हाई कोर्ट की निगरानी में होनी चाहिए।

वृंदा ने कहा कि जब देश में महिलाएं वोट ज्यादा कर रही हैं, तो मुद्दे भी उनके सुने जाने चाहिए। कामकाजी महिलाओं के लिए जिसा स्तर पर लोकल कमेटी का प्रावधान है इसे सुनिश्चित करना चाहिए। विशाखा गाइडलाइन्स के साथ ही एक सुरक्षित खुलकर जीने और काम करने का माहौल मिलना चाहिए।

कार्य स्थल पर महिलाओं की यूनियन

महिला अधिकार कार्यकर्ता कविता कृष्णन कहती हैं कि हम सभी को ये सोचने की जरूर है कि कैसे कामकाम में महिलाओं की संख्या बढ़े। क्योंकि जो लोग अंकिता के मामले के बाद लड़कियों को नौकरी नहीं देने या काम पर नहीं जाने देने की बात कर रहे हैं, उन्हें बताने की जरूरत है कि लड़कियां आगे बढ़ेंगी तभी ये अपराध रूकेगा। हर अंकिता आगे आकर खुलकर जी सके, इसके लिए कार्य स्थल पर महिलाओं की यूनियन होनी चाहिए, सुरक्षा के सारे इंतजाम होने चाहिए और उनके कॉन्ट्रैक्ट का सिस्टम होना चाहिए।

कविता पर्यटन उद्योग में तस्करी और सेक्स वर्क की वारदातों पर बताती हैं कि ये देश के पूरे टूरिजम जगत के लिए चुनौती है, इसके लिए खुले में बात करने की जरूरत है, ऐसा माहौल बनाने की जरूरत है कि अगर किसी के साथ कुछ गलत हो रहा है, तो वो खुलकर, बिना डरे बोल सके। कविता इस पूरे मामले को एक व्यापक स्तर पर देखने की बात के साथ ही ऐसे मुद्दों को केवल यौन हिंसा तक सीमित कर के देखने को नकारती हैं, वो अंकिता जैसे तमाम लोगों के लिए इसे अन्याय बताती हैं।

सरकारी तंत्र का संरक्षण और पीड़िता के चरित्र हनन

जगमती सांगवान भी अंकिता के मामले और इसमें सरकारी तंत्र के संरक्षण को पूरे देश के संदर्भ में जोड़कर देखते हुए हरियाणा के मंत्री संदीप सिंह पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों पर सरकार की चुप्पी और पीड़िता के चरित्र हनन की कोशिश को शर्मनाक बताती हैं। साथ ही खेलों में महिलाओं की स्थिति तो लेकर चिंता भी जाहिर करती हैं।

जगमति के मुताबिक ये जीरो एफआईआर की सुविधा होते हुए भी महिलाओं और उनके परिजनों को एक थाने से दूसरे थाने जानबूझकर परेशान किया जाता है। पुलिस और सिस्टम पीड़िता के प्रति संवेदनशीलता कम और आरोपि के प्रति वफादारी ज्यादा दिखाते नज़र आते हैं। महिलाओं के लिए ऐसी भाषा की इस्तेमाल किया जाता है, जिसका बेहद गिरा स्तर होता है, लेकिन आरोपी को गणमान्य व्यक्ति बना दिया जाता है, ये सब इसलिए संभव होता रहा है क्योंकि इसमें सिस्टम का संरक्षण है।

गौरतलब है कि अंकिता भंडारी का मामला फिलहाल अदालत में है और हत्याकांड के आरोपियों के खिलाफ एसआईटी बीते साल 19 दिसंबर को कोर्ट में करीब 500 पन्नों का आरोप पत्र दाखिल कर चुकी है। इसमें 97 लोगों को गवाह बनाने के अलावा अंकिता की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, घटनास्थल से प्राप्त इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को एफएसएल परीक्षण के लिए भेजकर प्राप्त की गयी रिपोर्ट को भी शामिल किया गया है। महिला संगठनों की भी इस पर पूरी नज़र है और वो इस मामले में को सुप्रीम कोर्ट तक भी संघर्ष करने को तैयार हैं।

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