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घरेलू कामगार: मेड कहो या हाउस हेल्प, लेकिन न काम की स्थितियां बदलीं, न व्यवहार

भारत सरकार के ई-श्रम पोर्टल के अनुसार घरेलू काम देश का दूसरा सबसे बड़ा असंगठित क्षेत्र है। जागोरी के सर्वे के अनुसार 68% महिलाएं ऐसी हैं जो 10 हजार प्रति माह से कम कमा पाती हैं। सर्वे में शामिल 25% महिलाओं ने कहा कि उनके लिए अलग बर्तन रखे जाते हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : TOI

घरेलू कामगारों के साथ अत्याचार की खबरों से अखबार भरे पड़े हैं। कहीं किसी नाबालिग को गरम चिमटों से पीटा गया तो कहीं भूखा रखा गया और डस्टबीन से खाना खाने को मजबूर किया। लेकिन इससे ना तो सरकारों को कुछ फर्क पड़ता है और ना ही मंत्रालयों का आलस टूटता है।

अति गंभीर अत्याचार के मामलों में लोग द्रवित हो जाते हैं और पुलिस में शिकायत कर देते हैं। लेकिन अन्यथा देश में घरेलू कामगारों के बारे में गजब की लापरवाही है। सदियों से लोगों के घरों में ये घरेलू कामगार महिलाएं खपती आई हैं, लेकिन इन्हें आज तक वर्कर की पहचान तक नहीं मिली है। कमाल है ये वर्क तो खूब करती हैं लेकिन वर्कर नहीं है। इनके काम और काम के हालात के बारे में कुछ निश्चित नहीं है। ना छुट्टी, ना काम के घंटे, ना वेतन, ना काम की नेचर। किसी को नहीं पता कि इन पर कौनसा श्रम कानून लागू होता है? ये महिलाएं पराये घरों में पसीना बहा रही हैं, लेकिन आज तक इनके काम का ढंग से क्लासिफिकेशन नहीं हुआ है।  

घरेलू कामगार यानी देश का दूसरा सबसे बड़ा असंगठित क्षेत्र

भारत सरकार के ई-श्रम पोर्टल के अनुसार घरेलू काम देश का दूसरा सबसे बड़ा असंगठित क्षेत्र है। पहले स्थान पर कृषि है। देश में 2,82,07,597 घरेलू कामगार ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्टर्ड हैं। वास्तविक संख्या इससे कई गुणा ज्यादा है। पिरोयडिक लेबर फोर्स सर्वे (2017-18) के अनुसार देश में सवा 5 करोड़ से ज्यादा घरेलू कामगार महिलाएं हैं। वहीं घरेलू कामगार आंदोलन का मानना है कि देश में घरेलू कामगारों की संख्या 50 करोड़ तक हो सकती है। घरेलू काम में बड़े पैमाने पर नाबालिग बच्चियों को रखा जाता है। घरेलू कामगार आंदोलन के अनुसार देश में पौने दो लाख से ज्यादा बच्चे हैं जो घरों में या ढाबों पर काम करते हैं। जिनका रजिस्ट्रेशन इस पोर्टल पर संभव ही नहीं है। क्योंकि ये तो बाल मजदूरी प्रतिषेध कानून का उल्लंघन हो जाएगा। बड़े पैमाने पर ऐसी महिलाएं हैं जो घरों में काम करती हैं लेकिन इस पोर्टल पर रजिस्टर्ड नहीं है। पोर्टल पर वो दलित महिलाएं तो कतई रजिस्टर नहीं हैं जो आज भी देहात में “सवर्णों” के घर, आंगन, पशु बाड़े और गलियां बुहार रही हैं, कूड़ा-कर्कट कर रही हैं, लेकिन काम के बदले में उन्हें दो रोटी और छाछ मिलता है। एक अनुमान के अनुसार देश में 90% घरेलू कामगार महिलाएं हैं और उनमें से 25% 14 वर्ष से कम उम्र की हैं।

घरेलू कामगारों में बड़ी संख्या महिलाओं की है। कुछ महिलाएं पार्ट टाइम हैं। इसका मतलब ये नहीं है कि वो पार्ट टाइम जॉब करती हैं। बल्कि इसका मतलब है कि वो कई घरों में काम करती हैं। उदाहरण के तौर पर दो-तीन घरों में सफाई, बर्तन और खाने आदि का काम करती हैं। फुल टाइम वर्क वो हैं जो सुबह से लेकर रात तक एक ही घर में फुल टाइम काम करती है। कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जो रात को वहीं रहती हैं जहां काम करती हैं। फुल टाइम घरेलू कामगारों में ज्यादातर बच्चे या वो महिलाएं होती हैं जो मानव तस्करी के जरिये अन्य राज्यों से लाई गई होती हैं। घरेलू काम के लिए बड़े पैमाने पर देश से बाहर भी बच्चों और महिलाओं की तस्करी की जाती है।

घरेलू कामगार के काम और आमदनी

घरेलू कामगार को घर में बहुत सारे काम करने पड़ते हैं। घर की सफाई (झाड़ू, डस्टिंग, पोंचा आदि), बर्तन मांजना, खाना बनाना, कपड़े धोना, बच्चे की देखभाल, घर के बीमार की देखभाल, बुजुर्ग की देखभाल आदि। यहां इन्हें एक काम की तरह ही लिखा गया है, लेकिन इन कामों में अनेक और काम भी छिपे हुए हैं।

अब बात करते हैं इनकी आमदनी की। घरेलू महिला कामगारों की स्थिति को समझने के लिए जागोरी ने एक अध्ययन किया। जागोरी महिला अधिकारों पर काम करने वाली एक संस्था है। अध्ययन के दौरान दिल्ली और जयपुर की 524 घरेलू कामगार महिलाओं से बात की गई और अन्य स्टेक होल्डर के भी साक्षात्कार किए गए। जागोरी ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की है।

जागोरी संस्था के इस अध्ययन के अनुसार 21% घरेलू कामगार महिलाएं महीने का 5000 रुपये से कम कमाती हैं। 46% महिलाएं 5-10 हजार रुपये महीना कमा पाती हैं। 15-20 हजार प्रतिमाह कमाने वाली महिलाएं 6.9% हैं और मात्र 1.9% महिलाएं ही 20 हजार से ज्यादा कमा पाती हैं। यानी 68% महिलाएं ऐसी हैं जो 10 हजार प्रति माह से कम कमा पाती हैं।

असंगठित क्षेत्र के कामगारों की आमदनी और जाति के बारे में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय से एक सवाल (सवाल क्रमांक 2498) पूछा गया। श्रम राज्यमंत्री रामेश्वर ने 10 अगस्त 2023 को जिसका लिखित जवाब दिया। अपने जवाब में उन्होंने ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्टर कामगारों की संख्या का तो राज्यवार ब्योरा दिया है लेकिन ये नहीं बताया कि इन कामगारों की जाति क्या है और आमदनी कितनी है। उन्होंने बस इतना लिखा कि जाति और आमदनी का डेटा सेल्फ डिक्लरेशन के आधार पर होता है। लेकिन ऐसी अनेक मीडिया रिपोर्ट हैं जिन्होंने ई-श्रम पोर्टल के ही हवाले से लिखा है कि ई-श्रम पर रजिस्टर 94.11% कामगार की महीने की आमदनी दस हजार से कम हैं और रजिस्टर कामगारों में से 74% दलित, आदिवासी और ओबीसी हैं। ये कुल कामगारों का डेटा है, घरेलू कामगार इसमें शामिल हैं।

काम की स्थितियां और स्वास्थ्य

इन घरेलू कामगार महिलाओं की काम की स्थितियां बहुत ही अमानवीय हैं। इन्हें नौकर, बाई या मेड कहा जाता है। आजकल एक फैंसी शब्द “हाउस हेल्प” भी प्रचलित है। लेकिन इस अंग्रेज़ी से शब्द से भी इनकी गरिमा की बहाली नहीं हुई। इनके काम को नीचा करके देखा जाता है। जागोरी की रिपोर्ट में एक महिला कहती हैं कि “कोठियों में काम करना कुत्ते की जिंदगी के बराबर है।” ये महिला ऐसा इसलिए कहती है क्योंकि इनके साथ एक इंसान नहीं बल्कि एक सेवक, गुलाम और नौकर की तरह बर्ताव किया जाता है।

जागोरी के सर्वे में शामिल 25% महिलाओं ने कहा कि उनके लिए अलग बर्तन रखे जाते हैं। 18% ने बताया कि उनके लिए पानी और खाने का कोई इंतजाम नहीं है। 13% महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें बीमार पड़ने पर भी छुट्टी नहीं मिलती।

महिलाओं ने बताया कि जिस टायलेट को वो साफ करती हैं उसे इस्तेमाल नहीं कर सकती। जिसकी वजह से खासतौर पर माहवारी के दिनों में इन्हें काफी परेशानी होती है।

इस अजब देश के गजब लोग हैं। ये महिलाएं जो खाना बनाती हैं उसे खा नहीं सकती, जिन बर्तनों को साफ करती हैं उन बर्तनों को इस्तेमाल नहीं कर सकती, जिस टायलेट को ये साफ करती हैं उसका इस्तेमाल नहीं कर सकती और जिस घर को चमकाती हैं उसमें इनके बैठने तक के लिए कोई जगह नहीं है। इसका एक कारण जातिवाद है। क्योंकि हमारे यहां साफ-सफाई, कूड़ा उठाने और टायलेट साफ करने का काम दलितों पर थोपा गया है और आमतौर पर जातिवादी समाज उनसे घृणा करता है।

इनके काम के घंटे ज्यादा होते हैं और काम के परिस्थितियां भयानक, जिसका असर इनके स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।

जागोरी की रिपोर्ट के अनुसार 68% महिलाओं ने बताया कि उन्हें झुक कर काम करना पड़ता है, जिससे शरीर में दर्द होता है। 53% महिलाओं ने बताया कि उन्हें लंबे समय तक खड़ा रहकर काम करना पड़ता है जिससे शरीर दर्द करता है। 32% महिलाओं ने बताया कि उन्हें बिना खाना खाए घंटों काम करना पड़ता है जिससे शरीर में कमजोरी महसूस होती है। 30% महिलाओं ने बताया कि उन्हें सर्दी में भी ठंडे पानी से बर्तन धोने पड़ते हैं, जिससे सेहत बिगड़ती है।

काम की जगह पर यौन उत्पीड़न

कितनी ही महिलाएं काम की जगह पर यौन हिंसा और उत्पीड़न से गुजरती हैं। यूं तो देश में काम की जगह पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून है। लेकिन ये इन महिलाओं की पहुंच से बहुत दूर है। क्योंकि काम की जगह ही ऐसी है। जो इन घरेलू कामगार महिलाओं का “वर्क प्लेस” है वो किसी का प्राइवेट स्पेस है। जो इन घरेलू कामगार महिलाओं का “दफ्तर” है वो किसी का बेडरूम, ड्राइंग रूम, टायलेट और किचन है।

काम की जगह पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून के तहत प्रावधान है कि असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाएं लोकल शिकायत समिति के पास जा सकती हैं और शिकायत दर्ज करा सकती हैं। लेकिन ज्यादातर जगहों पर ये समितियां निष्क्रिय हैं। इन कम पढ़ी-लिखी महिलाओं को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।

ये महिलाएं तीन स्तर का शोषण झेलती हैं। महिला होने का, दलित होने का और गरीब होने का।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)

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