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द्रौपदी मुर्मू ने जीता राष्ट्रपति चुनाव... पहली बार आदिवासी समाज की महिला बनेगी महामहिम

आदिवासी समाज से आने वाली और एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया है।
Droupadi Murmu
Image courtesy : ANI

आदिवासी समाज से आने वाली द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति बन गई हैं। जिस वक्त द्रौपदी मुर्मू के नाम पर मुहर लगी वो क्षण ऐतिहासिक था, क्योंकि मुर्मू ऐसी पहली आदिवासी महिला हैं, जो देश के सबसे बड़े संवैधिक पद पर बैठेंगी।

एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को बहुत बड़े अंतर से हरा दिया है।  

आपको बता दें कि द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति चुनावों में 72 फीसदी वोट मिले हैं, यानी उनके खाते में 5 लाख 77 हज़ार 777 जबकि विपक्ष के यशवंत सिन्हा को 261062 वोट गए हैं।

द्रौपदी मुर्मू की जीत के बाद जश्न की तैयारी के लिए ओड़ीशा में उनका पूरा गांव सजकर तैयार है, वहीं दिल्ली में उनके आवास पर ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जाकर मुलाकात करेंगे।

द्रौपदी मुर्मू ओडिशा से आनेवाली आदिवासी नेता हैं। झारखंड की नौंवी राज्यपाल रह चुकीं द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के रायरंगपुर से विधायक रह चुकी हैं। वह पहली ओडिया नेता हैं जिन्हें राज्यपाल बनाया गया। इससे पहले भाजपा-बीजेडी गठबंधन सरकार में साल 2002 से 2004 तक वह मंत्री भी रह चुकी हैं।

नजर लोकसभा की 60 से ज्यादा सीटों पर

गौरतलब है कि लोकसभा की 543 सीटों में से 47 सीट ST श्रेणी के लिए आरक्षित हैं। 60 से अधिक सीटों पर आदिवासी समुदाय का प्रभाव है। मध्य प्रदेश, गुजरात, झारखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में आदिवासी वोटर निर्णायक स्थिति में हैं। ऐसे में आदिवासी के नाम पर चर्चा चल रही थी। इससे भाजपा को चुनाव में भी फायदा मिल सकता है, क्योंकि गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अगले डेढ़ साल के भीतर विधानसभा चुनाव होंगे, जिसका सियासी तौर पर लाभ भाजपा को मिलने की संभावना जताई जा रही है।

इसके अलावा भाजपा की नज़र महिला वोटरों पर भी बहुत पैनी है, यही कारण है कि एनडीए की ओर से राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित किए जाने से पहले उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के नाम को लेकर भी चर्चा हुई थी, जबकि छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके भी इस रेस में शामिल थीं। यानी इतना तो तय था कि किसी महिला को ही उम्मीदवार बनाना है, जबकि द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने महिलाओं की संवेदनाएं तो प्राप्त की हीं, साथ में आदिवासी समाज को भी अपनी ओर खींचने का भरसक प्रयास किया।

ममता के तीन पसंदीदा चेहरों का इनकार

वहीं बात विपक्ष की करें तो पूर्व केंद्रीय मंत्री और तृणमूल कांग्रेस  के नेता यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय किया था। इसके बाद सिन्हा ने तृणमूल कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। कई दिनों से विपक्ष को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी नहीं मिल रहा था।

दरअसल एनसीपी  प्रमुख शरद पवार, नेशनल कांफ्रेंस के मुखिया फारूक अब्दुल्ला और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के बाद महात्मा गांधी के पौत्र और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी ने भी राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनने के विपक्ष के ऑफर को ठुकरा दिया था।

आपको बता दें राष्ट्रपति चुनाव में 25 जुलाई का भी अपना एक महत्व है, यही कारण है कि चुने गए राष्ट्रपति 25 जुलाई को ही शपथ लेते हैं। दरअसल नीलम संजीव रेड्‌डी ने देश के 9वें राष्ट्रपति के तौर पर 25 जुलाई 1977 को शपथ ली थी। तब से हर बार 25 जुलाई को ही नए राष्ट्रपति कार्यभार संभालते आए हैं। रेड्‌डी के बाद ज्ञानी जैल सिंह, आर वेंकटरमन, शंकरदयाल शर्मा, केआर नारायणन, एपीजे अब्दुल कलाम, प्रतिभा पाटिल, प्रणब मुखर्जी और रामनाथ कोविंद 25 जुलाई को शपथ ले चुके हैं।

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