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यूरोपियन यूनियन की अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ा रही हैं

यूरोपियन यूनियन के "ख़तरनाक प्रतिबंधों" में आपका स्वागत है। क्या यूरोपीय लोगों के पास इतना भी समझने की सामान्य बुद्धि नहीं है कि उन्हें आख़िर क्या मिल रहा है?
EU
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (बाएं), रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु के साथ एक बैठक की जिसमें यूक्रेन में सेना के कमांडरों के प्रस्तावों "आक्रामक अभियानों के बारे में",  बातचीत हुई, मास्को, 4 जुलाई, 2022

1 जुलाई को व्हाइट हाउस में, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक चौंकाने वाला बयान दिया  कि "यह विचार कि हम एक स्विच दबा कर गैस के दाम कम करने में सक्षम होने जा रहे हैं,  निकट भविष्य में ऐसा संभव नहीं है।"

अमेरिकी गैस निर्यातकों ने इस कमी को पूरा करने के लिए पहल दिखाई है क्योंकि यूरोप ने रूसी गैस से मुह मोड लिया है। फाइनेंशियल टाइम्स ने हाल ही में रिपोर्ट किया था कि "अमेरिका के तरलीकृत प्राकृतिक गैस उत्पादकों ने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कई सौदों की घोषणा की है क्योंकि उद्योग उस कमी को पूरा करना चाहता है जिसने यूरोप को बढ़ते ऊर्जा संकट को बढ़ा दिया है।"

सौदे इतने आकर्षक हैं कि अमेरिका के प्रमुख गैस निर्यातक चेनियर ने एक ऐसी परियोजना को आगे बढ़ा दिया है जिसने निवेश बढ़ाने का निर्णय लिया है जिसके तहत वह 2025 के अंत तक अपनी क्षमता को 20 प्रतिशत से अधिक बढ़ा देगा, जो लंबी अवधि के आपूर्ति सौदों के तहत अमेरिका की खरीद में इजाफ़ा करेगा। अमेरिकी उत्पादक, यूरोपीय संघ को आपूर्ति बढ़ाने के लिए संयंत्रों को लगातार चला रहे हैं।

यूरोप के लिए बड़े गैस आपूर्तिकर्ता के मामले में अमेरिका पहली बार रूस से आगे निकल गया है। हालांकि अमेरिका से एलएनजी रूस से पाइपलाइन गैस की तुलना में बहुत अधिक कीमत पर यूरोप को बेची जा रही है, लेकिन अब यूरोपीय संघ के देशों के पास कोई विकल्प नहीं है।

नॉर्ड स्ट्रीम के माध्यम से केवल 40 प्रतिशत क्षमता की रूसी आपूर्ति, और 11-21 जुलाई को वार्षिक रखरखाव के तहत डिलीवरी पूरी तरह से रोक दी गई है, इससे यूरोप में निकट अवधि में रूसी गैस आपूर्ति का द्रष्टिकोण धूमिल लग रहा है।

जर्मनी ने इस बड़े जोखिम की चेतावनी दी है कि रखरखाव के काम के बाद नॉर्ड स्ट्रीम से गैस मिलना बिल्कुल असंभव हो सकता है। किसी भी स्थित को लें, आज यूरोप को रूसी आपूर्ति का रिकॉर्ड निचले स्तर पर है और एसएंडपी ग्लोबल के अनुसार "तीसरी तिमाही में यह संकटग्रस्त रहने की स्थिति में है"।

जर्मनी एक बड़े आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहा है। जर्मन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियनों के प्रमुख नेता ने इस सप्ताह के अंत में कहा था कि, "गैस की कमी के कारण पूरा उद्योग हमेशा के लिए ढहने के खतरे में आ गया हैं - विशेष रूप से, रसायन, कांच बनाने और एल्यूमीनियम उद्योग, और प्रमुख मोटर वाहन क्षेत्र जो प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं।” भारी बेरोजगारी बढ़ने की संभावना है। जब जर्मनी छींकता है, तो निश्चित रूप से, यूरोप को ठंड लग जाती है - न केवल यूरोज़ोन बल्कि ब्रेक्सिट के बाद के ब्रिटेन में भी यही स्थिति है।

यूरोपीयन यूनियन के "नरक वाले प्रतिबंधों" में आपका स्वागत है। अमेरिका ने सचमुच में यूरोपीय लोगों को यूक्रेन संकट में डाल दिया है। यूक्रेन के रूसी आक्रमण के क्रम में उन महत्वपूर्ण महीनों में विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कितनी बार यूरोप की यात्रा की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि क्रेमलिन के साथ किसी भी सार्थक वार्ता का द्वार बंद रहे! और अमेरिकी ऊर्जा कंपनियां आज यूरोपियों को गैस बेचकर अप्रत्याशित लाभ कमा रही हैं। क्या यूरोपीय लोगों के पास यह महसूस करने की सामान्य बुद्धि नहीं होगी कि उन्हे इस सब से क्या मिला?

अब बाइडेन ने गैस संकट से हाथ धो लिया है। उन्होंने 30 जून को मैड्रिड में एक संवाददाता सम्मेलन में बड़ी बेरहमी के साथ कहा था कि तेल की कीमतों पर ऐसा प्रीमियम "जब तक संभव है, तब तक जारी रहेगा, इसलिए कि रूस वास्तव में यूक्रेन को हरा नहीं सकता और यूक्रेन से आगे नहीं बढ़ सकता है। यह दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण स्थिति है। यहाँ हम हैं। हमारे पास नाटो क्यों है?"

बाइडेन तथ्यों के विपरीत की कहानी कह रहे हैं, कि रूस के खिलाफ प्रतिबंध अंततः काम करने वाले हैं और यूक्रेन में एक लंबा युद्ध रूस की कृत्यों को पूर्ववत करेगा। अमेरिकी का विचार  यह है कि यदि आप रूसी अर्थव्यवस्था के हुड के नीचे देखते हैं, तो यह एक उद्यमशीलता बंकर भावना विकसित करने और प्रतिबंधों को बेअसर करने के नए व्यापार मॉडल अपनाने के लिए पर्याप्त लचीला और संसाधनपूर्ण नहीं हो सकता है। बाइडेन का मानना है कि रूसी अर्थव्यवस्था औद्योगिक माफियाओं की चपेट में है जो बहुत नई बात नहीं हैं और इसलिए, पश्चिमी प्रतिबंधों को देखते हुए रूस के सामने बहुत अधिक विकल्प नहीं हैं।

मैड्रिड में बाइडेन ने कहा: "यूक्रेन युद्ध का रूस पर जो प्रभाव पड़ा है, उसे देखें ... उन्होंने (रूसियों) ने अपनी अर्थव्यवस्था के संदर्भ में 15 साल का लाभ खो दिया है ... वे कर भी नहीं  सकते हैं - आप जानते हैं, जो हो रहा है - उन्हें तेल उत्पादन बनाए रखने में परेशानी होने वाली है क्योंकि उनके पास ऐसा करने की तकनीक नहीं है। उन्हें अमेरिकी तकनीक की जरूरत है। और वे अपनी हथियार प्रणालियों और उनकी कुछ सैन्य प्रणालियों के मामले में भी ऐसी ही स्थिति में हैं। इसलिए वे इस सब के लिए, बहुत भारी कीमत चुका रहे हैं।"

लेकिन अगर ऐसा है भी, इससे यूरोपीय लोगों को कैसे मदद मिलती है? दूसरी ओर, युद्ध के संबंध में राष्ट्रपति पुतिन का रणनीतिक विचार बहुत अधिक पटरी पर है। लुहान्स्क पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करने में रूसी सेना ने निर्विवाद प्रगति की है। सोमवार को पुतिन ने सेना कमांडरों के "आक्रामक अभियान" शुरू करने के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है। युद्ध के पांच महीनों के बाद, यूक्रेन हार की ओर देख रहा है और रूसी सेना के जनरलों को यह पता है।

रूस बिना तैयारी के यूक्रेन में नहीं भटक रहा है। जाहिर है, इसने युद्ध से पहले और बाद में अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए एहतियाती कदम उठाए हैं। और यह रूसी अर्थव्यवस्था के मामले में "नई सामान्य" बात है। परिस्थितियों के हिसाब से वाशिंगटन के विकल्प काफी सीमित हैं। मूल रूप से, पश्चिमी प्रतिबंध रूसी व्यवहार के कारणों को संबोधित नहीं कर रहे हैं, और इसलिए, उनका बर्बाद होना तय हैं क्योंकि वे समस्या को हल करने में विफल हैं।

यह माना जा सकता है कि नवंबर के मध्यावधि चुनावों के करीब पुतिन के पास बाइडेन के लिए कुछ बुरा आश्चर्य है। बाइडेन निष्ठुरता से मानता है कि वह स्थिति में सभी चरों को नियंत्रित कर सकता है। शाडेनफ्रूड कभी भी राज्य-कला का कोई तर्कसंगत आधार नहीं है।

क्रीमिया की सीमा से लगे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण खेरसॉन क्षेत्र ने सोमवार को रूस के कैलिनिनग्राद क्षेत्र के पहले उप प्रधान मंत्री के साथ एक नई सरकार बनाई, जिसमें कैबिनेट में  रूसी नागरिकों के प्रतिनिधि शामिल थे। अब जबकि हिमार्स (HIMARS) मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम, बाइडेन के वादे के विपरीत, रूसी शहरों को नष्ट कर रहा है, इससे रूस की तरफ से कुछ बड़ी जवाबी कार्रवाई की उम्मीद है।

डोनबास के अलावा, खार्कोव और ओडेसा पर कब्ज़ा करने के लिए रूस आक्रामक अभियानों का मार्ग फिर से तैयार कर रहा है। प्रभावशाली क्रेमलिन राजनेता और ड्यूमा व्याचेस्लाव वोलोडिन के अध्यक्ष ने मंगलवार को कहा कि,

“कुछ लोग पूछ रहे हैं कि हमारा लक्ष्य क्या है और यह सब कब खत्म होगा। यह तब समाप्त होगा जब हमारे शांतिपूर्ण शहर और कस्बे पर गोलाबारी बंद होगी। वे जो कर रहे हैं वह हमारे सैनिकों को लुगांस्क और डोनेट्स्क गणराज्य (डोनबास) की सीमाओं पर नहीं रुकने पर मजबूर कर रहे है क्योंकि हमले (रूसी क्षेत्रों पर) खार्कोव और यूक्रेन के अन्य क्षेत्रों से किए जा रहे हैं।

बाइडेन कब तक सोचते रहेंगे कि यूरोपीय रूस के साथ एक लंबी छद्म युद्ध में शामिल होना चाहेगा? बिल्ड ने रविवार को बताया कि 75 प्रतिशत जर्मन उत्तरदाताओं ने हाल की कीमतों में बढ़ोतरी को भारी बोझ के रूप में देखा है, जबकि 50 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें लगता है कि उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो रही है; रूसी गैस की आपूर्ति कम होने और यूरोपीय संघ में बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण हर दूसरे जर्मन को इस आने वाली सर्दियों में हीटिंग की कमी का डर है।

फिर भी, बाइडेन का कहना है कि युद्ध "जितना समय लगेगा" तब तक चलेगा और ईंधन की कमी "जब तक ऐसी स्थिति है" जारी रहेगी। यूरोपीय अर्थव्यवस्था के 2022 की दूसरी छमाही के दौरान संकुचन शुरू होने की उम्मीद है और मंदी कम से कम 2023 की गर्मियों तक जारी रह सकती है।

अमेरिकी निवेश बैंक, जेपी मॉर्गन चेस के विश्लेषकों ने पिछले हफ्ते कहा था कि अगर रूस जवाबी कार्रवाई में उत्पादन में कटौती का इस्तेमाल करता है तो रूस भी "स्ट्रेटोस्फेरिक" तेल की कीमत में वृद्धि कर सकता है। इनका मानना है कि, "वैश्विक तेल बाजार में आई जकड़न रूस के पक्ष में है।" विश्लेषकों ने लिखा है कि अगर रूस प्रति दिन 5 मिलियन बैरल उत्पादन में कटौती करता है तो कीमतें तिगुनी से अधिक यानि 380 प्रति डॉलर बैरल हो सकती हैं।

इस मामले में पिछले हफ्ते पुतिन का फरमान कुछ अशुभ संदेश देता है - क्रेमलिन रूस के सुदूर पूर्व में मौजूद सखालिन-2 तेल और गैस परियोजना का पूरा नियंत्रण अपने हाथ में ले रहा है। राज्य के स्वामित्व वाली गज़प्रोम के पास परियोजना में 50 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी है और इसके विदेशी भागीदारों में शेल (27.5 प्रतिशत), मित्सुई (12.5 प्रतिशत), और मित्सुबिशी (10 प्रतिशत) की हिस्सेदारी शामिल है। डिक्री में कहा गया है कि गज़प्रोम अपनी बहुमत हिस्सेदारी रखेगा, लेकिन उसने विदेशी निवेशकों से कहा है कि एक महीने के भीतर नई बनाई गई फर्म में रूसी सरकार से अपनी हिस्सेदारी पर बात करें, अन्यथा बाहर हो जाए। सरकार तय करेगी कि किस अनुरोध को मंजूरी दी जानी या नहीं।

एमके भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

मूल रूप से अग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

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