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सामाजिक परिवर्तन की ज़रूरत के बीच वर्गीय बाधा का सामना

ख़ासतौर पर शीर्ष राजनेताओं और सरकारी नियामकों को शीर्ष मालिकों/नियोक्ताओं के रैंक से तैयार किया जाता है। काफ़ी लंबे समय से अमेरिका में ये वर्ग संरचनाएं और विभेद सामान्य और नियमित हो गए हैं।
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मुद्रास्फीति जो संयुक्त राज्य अमेरिका को इतनी पीड़ा दे रही है वह मालिकों/नियोक्ताओं के निर्णयों के अंज़ाम से परे की बात है। बड़ी आबादी के भीतर, मालिक/नियोक्ता वर्ग (जो उस आबादी का 2-3 प्रतिशत से भी कम है) वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों को नियंत्रित करता है। उस वर्ग का प्रत्येक सदस्य यह तय करता है कि उस सदस्य द्वारा बेची जाने वाली वस्तुओं की कीमतें कब, कहाँ और कितनी बढ़ानी हैं। मालिक/नियोक्ता वर्ग अपने मूल्य निर्धारण निर्णयों में कर्मचारी वर्ग को भागीदारी से बाहर रखता है। बैंकों और अधिकांश अन्य उधार देने वाले संस्थानों में नियोक्ता इसी तरह ब्याज दरों को नियंत्रित करते हैं: "कीमतें" जो पैसे उधार देने के लिए चार्ज की जाती हैं। नियोक्ताओं में अमेरिकी लोगों का एक छोटा प्रतिशत शामिल है जबकि कर्मचारियों का विशाल बहुमत है। स्व-नियोजित नियोक्ताओं और कर्मचारियों की संख्या एक छोटा सा हिस्सा है।

कीमतें वे हैं जिनका भुगतान कर्मचारी नियोक्ताओं को करते हैं। वेतन वह है जो नियोक्ता कर्मचारियों को देते हैं। मौजूदा अमेरिकी मुद्रास्फीति के दौरान, वेतन/मजदूरी की तुलना में कीमतें काफी अधिक बढ़ीं हैं। इस प्रकार मुद्रास्फीति ने जो काम किया है, वह अमेरिकी पूंजीवाद में काफी कुछ ऐसा है कि कर्मचारियों से नियोक्ताओं को धन का पुनर्वितरण किया  है। इसलिए मूल्य और वेतन वृद्धि का संघर्ष एक वर्ग संघर्ष हैं।

कर्मचारी वर्ग को दिए जाने वाले वेतन और वेतन पर मालिक/नियोक्ता वर्ग का बहुत प्रभाव होता है। यह भी सच है, कि इन वर्गों को थोड़ा मोलभाव करना पड़ता है। लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका में केवल 10 प्रतिशत कर्मचारी/मज़दूर यूनियनों का हिस्सा है, जिसके कारण नियोक्ताओं का धन और संगठन उन्हें व्यक्तिगत वेतन और वेतन निर्धारित करने की अधिक शक्ति देता है, जिसे कर्मचारी सौदेबाजी के माध्यम से हासिल करते हैं। कर्मचारी व्यक्तिगत तौर पर नौकरी छोड़ सकते हैं, लेकिन वे शायद ही कभी अपनी वर्गीय पहचान से बच पाते हैं। छोड़ने वालों में से अधिकांश को ज़िंदा रहने के लिए किसी अन्य मालिक/नियोक्ता के तहत काम करना होता है। 

दूसरी ओर, मालिक/नियोक्ता उच्च वेतन या वेतन पर मजदूरों की मांगों का कई तरीकों से जवाब दे सकते हैं: वे काम को स्वचालित कर सकते हैं (यानि श्रमिकों की जगह मशीनों से काम ले सकते हैं), उत्पादन को स्थानांतरित कर सकते हैं (अन्य स्थानों पर जहां श्रमिक कम मजदूरी स्वीकार करते हैं), या आप्रवासियों की ओर रुख कर सकते हैं या अन्य को काम पर रख सकते हैं जो कम मजदूरी पर काम को तैयार हैं। कर्मचारियों को बुनियादी अर्थशास्त्र का सबक सिखाने के लिए नियोक्ता कुछ समय के लिए उत्पादन बंद भी कर सकते हैं। पूंजीवाद में सत्ता मालिक वर्ग के हाथों में होती है। मालिकों का वर्ग पूंजीवाद को पसंद करता है क्योंकि पूंजीवाद इसे पसंद करता है।

मालिकों/नियोक्ताओं का वर्ग एक प्रकार की तानाशाही चलाता है। नियोक्ताओं को न तो कर्मचारी चुनते हैं और न ही वे उनके प्रति जवाबदेह होते हैं। छोटे और मध्यम मालिक/नियोक्ता ज्यादातर खुद के प्रति जवाबदेह होते हैं (और कुछ निर्णयों के संबंध में आंशिक रूप से कराधान और सरकार के नियामक विभागों के प्रति जवाबदेह होते हैं)। कॉर्पोरेट नियोक्ता- बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स- कर्मचारियों द्वारा नहीं बल्कि शेयरधारकों द्वारा चुने जाते हैं। शेयरधारक लोकतांत्रिक तरीके से (एक व्यक्ति, एक वोट) बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स का चुनाव नहीं करते हैं। बल्कि शेयरधारकों के पास जितने शेयर होते हैं उतने ही वोट होते हैं। शेयरधारक जितना अमीर होगा, उसके पास उतने ही अधिक वोट होंगे।

क्योंकि सबसे अमीर अमेरिकियों के पास शेयरों का बड़ा हिस्सा है (सबसे अमीरों में से 10 प्रतिशत के पास सभी शेयरों का 80 प्रतिशत हिस्सा है), उनके वोट मालिक/नियोक्ता चुनते हैं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पिछले दशकों में, जिनके पास सबसे अधिक संपत्ति है, वे बड़े पैमाने पर नियोक्ता वर्ग में शामिल हो गए हैं। कॉर्पोरेट बोर्डों ने अक्सर अमीर शेयरधारकों को अपने बोर्डों में जोड़ना फायदेमंद पाया है। इसी तरह, अमीर शेयरधारकों ने अक्सर अपने स्वामित्व वाले निगमों के बोर्ड में शामिल होना उपयोगी पाया है। कॉर्पोरेट निदेशकों और प्रमुख शेयरधारकों के बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते हैं; अक्सर एक ही कस्बों, शहरों और पड़ोस में रहते हैं; और अक्सर अंतर्जातीय विवाह करते हैं।

मालिक/नियोक्ता राजनेताओं को इसलिए दान देते हैं ताकि उनके प्रति टैक्स और सरकारी नियमन का जंजाल कम से कम हो। उनका "नियामक पर कब्जा" होता है’ - जब वे स्पष्ट रूप से विनियमित नियामकों को नियंत्रित करते हैं – वह पूंजीवादी का आदर्श बन जाता है। यह मूल्य निर्धारण नियमों और अन्य प्रमुख उद्यम निर्णयों को लागू करने के लिए हुकूमत के माध्यम से सामूहिक रूप से कार्य करने के लिए कर्मचारियों की सामयिक क्षमता को ऑफसेट करने का तरीका रहा है, जिन्हे अन्यथा नियोक्ता वर्ग द्वारा विशेष रूप से बनाए रखा जाता हैं। शीर्ष राजनेताओं और सरकारी नियामकों को मुख्य रूप से शीर्ष मालिकों/नियोक्ताओं के रैंक से तैयार किया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने लंबे समय से इन वर्ग संरचनाओं और विभेदों को सामान्यीकृत और नियमित किया है।

अमेरिकी गृहयुद्ध के बाद की सदी में, ब्रिटिश साम्राज्य की बढ़ती कठिनाइयों के कारण  अमेरिकी अर्थव्यवस्था और साम्राज्य के उदय से नियोक्ता वर्ग फला-फुला था। श्वेत अमेरिकियों के जीवन स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि ने नियोक्ता वर्ग को न केवल यह दावा करने के लिए प्रेरित किया कि उनका मुनाफा "सभी के लिए समृद्धि" का कारण है, बल्कि यह भी कि पूंजीवाद सबसे अच्छी संभव आर्थिक व्यवस्था है और अमेरिकी पूंजीवाद इसकी सबसे बड़ी अभिव्यक्ति थी। एडम स्मिथ के काम की एक विशेष व्याख्या के आधार पर मालिकों/नियोक्ताओं और उनके विचारकों ने "अमेरिकी असाधारणता" की धारणा का आविष्कार किया। उस व्याख्या के तर्क में कहा गया कि क्योंकि अमेरिका ने प्रत्येक मालिक/नियोक्ता के लिए उच्चतम लाभ कमाने की सुविधा प्रदान की है, इसलिए वह अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी संपत्ति और विकास हासिल करने में सक्षम थी, जैसे कि उसने इस सुखद परिणाम के लिए एक अदृश्य हाथ के रूप में काम किया था। जब मिल्टन फ्रीडमैन ने उस व्याख्या को दोहराया, तब तक अमेरिकी पूंजीवाद अपने चरम पर था। इसकी गिरावट की शुरुआत ने नियोक्ता वर्ग को एक नई और तेजी से असहज सामाजिक स्थिति में पहुंचा दिया था।

1970 के दशक से, अमेरिकी पूंजीवाद ने कर्मचारी वर्ग को स्थिर औसत वास्तविक मजदूरी दी है। उत्पादकता बढ़ने, और वेतन में ठहराव का मतलब, बढ़ता उत्पादन मुख्य रूप से बढ़ता  मुनाफ़ाथा जिसे मालिकों/नियोक्ताओं ने अर्जित किया। इसी अवधि के दौरान उपभोक्ता ऋण का विस्फोट हुआ और इस स्थिति ने संभवतः अमेरिकी पूंजीवाद को दुर्घटनाग्रस्त कर दिया था (जैसा कि पूंजीवादी दुनिया के आसपास ऐसी स्थितियों ने अक्सर किया है)। वेतन में ठहराव से बढ़ते मुनाफे को आंशिक रूप से उन कर्मचारियों को वापस किया गया, जिन्होंने घर और कार खरीदने, क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने और महंगी उच्च शिक्षा का खर्च उठाने के लिए उधार लिया था। वे केवल इतना बड़ा ऋण भार उठाकर ही यह सब वहन करने में सक्षम थे। बढ़ते कर्ज की बुनियाद पर ही कर्मचारियों के जीवन स्तर में वृद्धि ("अमेरिकी सपने" की तलाश) हो सकती है। इसके बाद से कर्मचारियों ने न केवल अपने तत्काल नियोक्ताओं के लिए मुनाफा कमाया बल्कि उन वित्तीय नियोक्ताओं के लिए भी ब्याज पैदा किया जिनसे उन्होंने उधार लिया था। संयुक्त राज्य अमेरिका ने मालिक/नियोक्ता वर्ग के पक्ष में आय और धन की तेजी से बढ़ती असमानता की अवधि में प्रवेश किया।

बढ़ते घरेलू ऋण तेजी से महंगे होते गए और चिंताजनक हो गए क्योंकि वास्तविक मजदूरी में ठहराव उन्हें अस्थिरता के करीब ले आया। इसके कारण अंततः क्रेडिट सिस्टम ध्वस्त हो गया, और 2008/2009 की महान मंदी शुरू हो गई। धन के बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान के अलावा, ग्रेट मंदी ने रिकॉर्ड कम ब्याज दरों में नीतिगत बदलाव की प्रतिक्रिया देखी। इसने बड़े पैमाने पर पुराने और नए ऋणों के लिए न्यूनतम ब्याज का प्रावधान किया। न केवल महान मंदी से निपटने और उससे आगे निकलने के लिए सस्ते ऋण की सख्त जरूरत थी, बल्कि 2008 के बाद की गिरावट के लिए अमेरिकी पूंजीवाद के असाधारण विकास से उपजा बड़े कर्ज़ के संक्रमण के प्रभाव को कम के लिए भी यह जरूरी था।

अंतर्निहित वेतन ठहराव और बढ़ती असमानता ने पूँजीवाद पर बहुत अधिक प्रश्न खड़े किए। पहले यह सब नहीं बोला जा सकता था। यहां तक कि 2011 में ऑक्युपाई वॉल स्ट्रीट आंदोलन में भी एक स्पष्ट, पूंजीवाद विरोधी बात कहने की हिम्मत नहीं हुई थ्जि। लेकिन सीनेटर बर्नी सैंडर्स के अभियानों ने समाजवाद की प्रोफ़ाइल को बड़ी रफ्तार और तेज़ी से बढ़ाया। उभरती हुई चेतना बर्नी के उदारवादी समाजवाद के समर्थन की तुलना में अधिक पूंजीवाद विरोधी थी। पिछले कुछ वर्षों में, पूंजीवाद दैनिक स्वीकार्य विमर्श के दायरे में लौट आया है, जैसा कि शीत युद्ध से पहले था, हालांकि यह इसके समर्थकों की तुलना में इसके आलोचकों के लिए अधिक महत्व वाली बात थी। 

साथ ही, पूंजीवाद विरोध ने पूंजीवाद की परिभाषाओं में बदलाव को भी उकसाया है। 20वीं शताब्दी के दौरान, पूंजीवाद निजी संपत्ति और बाजार था, जबकि समाजवाद और साम्यवाद सार्वजनिक संपत्ति और केंद्रीय योजना थे। 1970 और 1980 के दशक के बाद- सोवियत संघ का पतन और अमेरिकी पूंजीवाद की ऊपर-चर्चित गिरावट के बाद-परिभाषाएं बदल गईं थीं। निश्चित रूप से, पूंजीवाद अधिक निकटता से जुड़ा हुआ है, उद्यमों के नियोक्ता-कर्मचारी द्विभाजित संगठन के साथ, जिनके पास उनका स्वामित्व है और जो संसाधनों और उत्पादों के वितरण बाजार या योजना के माध्यम से हुआ है। समाजवाद भी इसी तरह एक मालिक और योजनाकार के रूप में, हुकूमत में एक मैक्रोइकॉनॉमिक फोकस से एक माइक्रोइकॉनॉमिक्स फोकस के बजाय मज़दूर सहकारी समितियों की तर्ज पर उद्यमों के एक अलग, लोकतांत्रिक संगठन पर स्थानांतरित हो गया है।

ये बदलाव एक बदलती जन चेतना को दर्शाते हैं जो मालिकों/नियोक्ताओं को एक वर्ग के रूप में उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों के लिए सामाजिक रूप से जिम्मेदार ठहराते हैं। जीवाश्म ईंधन और अन्य नियोक्ताओं को उनके निर्णयों के लिए लक्षित करने में पर्यावरण आंदोलन विशेष रूप से महत्वपूर्ण था। #मीटू आंदोलन ने कार्यस्थल और उसके बाहर यौन दुराचार के खिलाफ अधिक जवाबदेही लाने में मदद की। वर्तमान में मालिक/नियोक्ता वर्ग और पूंजीवाद के भीतर इसका प्रभुत्व अधिक से अधिक प्रगतिशील सामाजिक परिवर्तन चाहने वालों का लक्ष्य बन गया है। पूंजीवाद के पीड़ितों और आलोचकों के लिए, बात राजनीतिक और सरकारी नेताओं पर नहीं थमती है, बल्कि नियोक्ता वर्ग पर रुकती है जिन्हे अब कठपुतली के रूप में देखा जाता है।

पूंजीवाद के बाद क्या आता है - इसके आलोचक अपने लक्ष्यों के रूप में क्या दावा करते हैं – हुकूमत बनाम निजी संपत्ति या नियोजन बनाम बाजार का मामला कम हैं। बल्कि अब यह कार्यस्थल के लोकतंत्रीकरण का मामला है जिसे आलोचक, सामाजिक आलोचकों की पीढ़ियों द्वारा दिए महत्वपूर्ण तत्व के रूप में उद्धृत करते हैं। उद्यमों का लोकतंत्रीकरण - समान समुदायों में उनका परिवर्तन - एक लोकतांत्रिक समाज के अस्तित्व और बने रहने के लिए आवश्यक समझा जाता है। पूंजीवाद का परिभाषित वर्ग संघर्ष हमेशा नियोक्ता और कर्मचारी वर्गों के बीच रहा है। और कर्मचारी की जीत कार्यस्थलों (कारखानों, कार्यालयों और दुकानों) के उस द्विभाजित संगठन को समाप्त करती है जो पूंजीवाद के वर्ग संरचनाओं और संघर्षों को आधार और परिभाषित करता है। इस प्रकार, कर्मचारी वर्ग की जीत अंततः वास्तव में उन सभी द्विभाजित वर्ग संरचनाओं (स्वामी/दास और स्वामी/दास) के अनुक्रम को खत्म कर सकती है।

रिचर्ड डी. वोल्फ मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय, एमहर्स्ट में अर्थशास्त्र के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं, और न्यू यॉर्क में न्यू स्कूल विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय मामलों में स्नातक कार्यक्रम में अतिथि प्रोफेसर हैं। वोल्फ का साप्ताहिक शो, "इकोनॉमिक अपडेट", 100 से अधिक रेडियो स्टेशनों का सिंडिकेटेड है और फ्री स्पीच टीवी के माध्यम से 55 मिलियन टीवी रिसीवर्स तक जाता है।

यह लेख को स्वतंत्र मीडिया संस्थान की एक परियोजना, इकोनॉमी फॉर ऑल द्वारा तैयार किया गया था।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

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