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पृथ्वी को हरा-भरा बनाना ही जीवन बचाने का  रास्ता हो सकता है 

जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी पर इसका प्रभाव केवल पर्यावरणीय तबाही नहीं है, बल्कि यह एक प्रणालीगत संकट भी है और इसे संबोधित किए बिना भविष्य में कोई समाधान नहीं हो सकता है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार: ग्लोबल फ़ॉरेस्ट वॉच

22 अप्रैल, 2023 को तीन महत्वपूर्ण दिवस पड़े: पृथ्वी दिवस, ईद उल फितर और लेनिन की जयंती। ये तीनों तारीख़ हमारे ग्रह पृथ्वी की चल रही विकासवादी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण हैं।

संयुक्त राष्ट्र ने 1970 में पृथ्वी दिवस मनाना शुरू किया था और इस बार 53वां दिवस मनाया  गया है।

वर्ष 2023 की थीम 'हमारे ग्रह में निवेश करें' है, एक ऐसा कार्यकर्म जो 'पृथ्वी दिवस' से जुड़े कार्यक्रमों में सालाना रूप से भाग लेने के लिए सरकारों, संस्थानों, व्यवसायों और एक अरब से अधिक लोगों पर ध्यान केंद्रित करता है। नारा है कि, ‘हर कोई हर चीज़ के लिए जिम्मेदार है, और सब जिम्मेदार है।’

Earthday.org की अध्यक्ष कैथलीन रोजर्स ने "हरित क्रांति" और दुनिया में आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का आह्वान किया है। मानव जाति को समृद्ध और न्यायसंगत भविष्य देने के लिए हरित अर्थव्यवस्था ही एकमात्र ज़रिया है।

हरित अर्थव्यवस्था के बेहतरीन स्वरूप को हासिल करने के लिए सुझाए गए तरीके इस प्रकार हैं:

इसके लिए व्यवसायों, अन्वेषकों, निवेशकों और वित्तीय बाजारों को हरित नवाचार और अभ्यास किया जाना चाहिए। यह माना जाता है कि आर्थिक क्रांतियों के समान, "निजी क्षेत्र में वह क्षमता है कि बड़े पैमाने और गति के साथ सबसे महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।"

सरकारों को नागरिकों, व्यवसायों और संस्थानों को जनता के हितों को आगे बढ़ाने और एक न्यायसंगत और टिकाऊ वैश्विक आर्थिक प्रणाली के लिए ढांचा तैयार करने और नवाचार करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। जो हरित ऊर्जा आदि पर महत्वाकांक्षी कार्रवाई होगी। व्यक्तिगत नागरिकों को मतदाताओं और उपभोक्ताओं के रूप में स्थायी समाधान पर जोर देना चाहिए।

मामूली सी बात और त्रुटिपूर्ण समझ

विषय की भाषा और शब्दावली और वांछित परिणामों में एक अंतर्निहित विरोधाभास है और इसलिए ऐसी प्रक्रियाएं और हस्तक्षेप न तो चाहत भरे परिणाम लाते हैं और न ही कोई बड़ा व्यवधान लाने में सक्षम होते हैं।

"हर कोई सबके के लिए जिम्मेदार है, और हर कोई जवाबदेह", कुछ ऐसा ही नारा है जैसे प्रदूषक उपभोक्ता को प्रदूषण को साफ करने के लिए कहा जा रहा है, जो कि पृथ्वी ग्रह को हुए भारी नुकसान के लिए जिम्मेदार पारिस्थितिकी तंत्र का एक हिस्सा है। जबकि, हम जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन में सबसे कम विकसित देशों और यहां तक कि विकासशील देशों की भूमिका न्यूनतम है, हालांकि वे दुनिया में अपने 'विकसित देशों' की तुलना में अधिक चुनौतियों का सामना करते हैं और अधिक असुरक्षित हैं। फिर सभी को समान रूप से जिम्मेदार कैसे बनाया जा सकता है?

आईपीसीसी की रिपोर्ट ज़ोर देकर हस्तक्षेप की जरूरत की ओर इशारा कर रही है। लेकिन इसे  जलवायु न्याय समझ के साथ किया जाना चाहिए।

सबसे पहले, रिपोर्टें औद्योगिक काल के बाद के कार्बन उत्सर्जन के भयावह स्तर की ओर इशारा करती हैं। इन उत्सर्जनों के कारण तापमान में वृद्धि हुई है। चूंकि कई सीओपी (पार्टियों का सम्मेलन), विशेष रूप से पेरिस में हुए सीओपी15, का लक्ष्य पूर्व-औद्योगिक स्तर पर 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि की अनुमति नहीं देना है।

एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि पिछले तीन से चार दशकों के भीतर ही दुनिया के मानव निर्मित वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का आधा उत्सर्जन हुआ है। और इस अवधि में, विश्व-ऐतिहासिक उत्सर्जन (ऊर्जा और सीमेंट) का लगभग 33 प्रतिशत पैदा करने वाली 20 बड़ी कंपनियाँ अभी भी काम पर हैं और यहां तक कि जीवाश्म ईंधन आदि के लिए सब्सिडी भी हड़प रही हैं।

तो यह सामान्य जवाबदेही या सबकी जबावदेही कैसे हो सकती है?

1758-2020 के बीच, CO2 उत्सर्जन 0.01 बिलियन मीट्रिक टन से बढ़कर 34.07 बिलियन मीट्रिक टन हो गया है। दूसरा, खतरा जो सामने खड़ा या वे प्रक्रियाएँ जिनमें यह खतरा पृथ्वी ग्रह को प्रभावित कर रहा है, उसके तीन प्रमुख कारण हैं:

क॰ जैव विविधता हानि: लगभग 66 मिलियन वर्ष पहले क्रेटेशियस के विलुप्त होने के बाद से जैव विविधता की हानि इतनी तेजी से हुई है जो कभी (वैज्ञानिकों के अनुसार) दर्ज़ नहीं की  गई है। यह चिंता का विषय क्यों है? केवल इसलिए कि जैव विविधता और हम मनुष्यों के बीच पूर्ण एकीकरण है। जैसा कि वे कहते हैं, अगर मधुमक्खियां चली गईं, तो हम जल्द ही विलुप्त हो जाएंगे, हालांकि वर्तमान क्रम के कुछ पेन-पुशर वैज्ञानिक कह सकते हैं: "चिंता न करें, हम रोबोटिक मधुमक्खियां पैदा कर सकते हैं।" जो अपने आप में हास्यास्पद तर्क है!

ख़. भूमि के इस्तेमाल के पैटर्न: भूमि इस्तेमाल के पैटर्न में बदलाव और जैव विविधता के नुकसान के बीच एक मजबूत अंतर्संबंध है। औद्योगिक और रियल एस्टेट विकास के लिए भूमि इस्तेमाल के पैटर्न में बदलाव भी पानी की कमी का कारण बन रहा है। न्यूनकारी जलवायु परिवर्तन सिद्धांत समस्या को बहुत संकीर्ण लेंस से देखते हैं। और उस कवायद में, वे जलवायु परिवर्तन के सार को खो देते हैं, यानी, लुटेरी पूंजी की दुनिया जो लाभ बढ़ाने का  काम करती है, इस प्रकार पर्यावरण और प्रकृति को नकारती है। उदाहरण के लिए, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में किए जा रहे परिवर्तन, जहां अचल संपत्ति के विकास के लिए भू-इस्तेमाल परिवर्तन प्रस्तावित है, या लक्षद्वीप में बनाए गए नए कानून, सभी बड़े पैमाने पर भू-इस्तेमाल परिवर्तन की ओर इशारा करते हैं।

ग॰ नाइट्रोजन का बढ़ता स्तर: नाइट्रोजन उर्वरकों आदि के ज़रिए बड़ी मात्रा में जल निकायों और मिट्टी को प्रदूषित कर रहा है, इस प्रकार ऑक्सीजन में कमी का खतरा है। एक बार जब पृथ्वी के महासागरों के बड़े हिस्से में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है तो पानी जहरीला बन जाता है, तो इससे कई प्रजातियां विलुप्ति हो सकती है। वैज्ञानिक ऐसी घटना की चेतावनी दे रहे हैं। इसलिए यह सब प्रणालीगत विफलताओं से जुड़ा हुआ है।

वैकल्पिक मॉडल

चूँकि जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी ग्रह पर इसका प्रभाव केवल एक पर्यावरणीय तबाही नहीं है, बल्कि यह एक प्रणालीगत संकट भी है और इसे संबोधित किए बिना कोई भविष्य नहीं हो सकता है।

क़ुदरत को कमोडिटीकरण और पूंजी विनियोग का क्षेत्र मानने के मौजूदा मॉडल को निरस्त करना होगा। साथ ही तकनीकी समाधान वाले सुझाए गए मॉडल भी कोई समाधान पेश नहीं करते हैं।

उदाहरण के लिए जीवाश्म ईंधन से इलेक्ट्रिक वाहनों पर जाना शहरी अभिजात्य घटना से ज्यादा कुछ नहीं है। भारत जैसे देश में जहां 80 प्रतिशत ऊर्जा थर्मल से पैदा होती है उतनी ही ऊर्जा खपत करने वाले इलेक्ट्रिक वाहन ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाएंगे।

वैकल्पिक मॉडलों को क़ुदरत के साथ योजना' पर ध्यान देना चाहिए, जिसे इयान मैकहार्ग ने 1960 में लिखा था। शमन और अनुकूलन क्षमता दोनों रणनीतियों को सुनिश्चित करने के लिए योजना सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है। वे महत्वपूर्ण क्षेत्र जहां योजना के वैकल्पिक  प्रतिमान की आवश्यकता है:

• शहर की योजना जलवायु के हिसाब से की जानी चाहिए और लोगों को योजना प्रक्रिया का हिस्सा होना चाहिए। पूंजी-गहन प्रौद्योगिकियों पर जोर देने वाले सलाहकारों द्वारा निर्देशित और डिजाइन किए गए शहरों की योजना बनाने वाले विकास प्राधिकरणों जैसे पैरास्टेटल्स के बजाय, लोगों को प्रक्रिया का मजबूत हिस्सा बनाया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए बिल्डिंग टाइपोलॉजी को ग्लास कैपिटल या बड़े उद्योगों द्वारा निर्देशित नहीं किया जाना चाहिए। नई टाइपोलॉजी कूलिंग और हीटिंग दोनों के लिए अधिक ऊर्जा की खपत करती हैं और जलवायु के अनुकूल नहीं हैं।

• कचरे का प्रबंधन। यह एक अन्य क्षेत्र है जिसे प्राथमिकता देने की जरूरत है। कचरा-प्रबंधन को केवल शहर या स्थानीय निकायों की 'क्षमता बढ़ाने' के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। जिस तरह का कचरा पैदा हो रहा है वह शहरी सरकारों के प्रबंधन के दायरे से बाहर है। लेह में कचरे के ऑडिट के दौरान, हमने पाया कि 10 सबसे बड़े प्रदूषकों में से आठ बहुराष्ट्रीय निगम हैं और 70 प्रतिशत कचरा न तो रिसाइकिल करने योग्य है और न ही बायोडिग्रेडेबल है। ईपीआर (एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर्स रिस्पॉन्सिबिलिटी) के प्रावधानों को सख्त और उन्हे लागू कराने के लिए उन पर फिर से विचार किया जाना चाहिए। व्यवहारिक परिवर्तन केवल एक व्यक्तिपरक विशेषता के रूप में नागरिकों तक ही सीमित नहीं है, इसमें विनिर्माण क्षेत्र को भी शामिल किया जाना चाहिए।

• गतिशीलता एक अन्य प्रमुख क्षेत्र है जिसे प्राथमिकता देने की जरूरत है। बड़े फ्लाईओवर के निर्माण के बजाय, सार्वजनिक परिवहन एक स्थायी प्रणाली के मामले में सर्वोत्तम है। लोगों की गतिशीलता को बढ़ना चाहिए न कि कारों की।

तीन तारीखों पर वापस लौटते हुए यह कहना उचित होगा कि हम लेनिन की जयंती को फिर से मनाएं, जिन्होंने मार्क्सवाद को और विकसित किया था। वास्तव में, यह मार्क्स ही थे जिन्होंने निम्नलिखित रोचक समीकरण प्रस्तुत किया था:

अन्याय के विरुद्ध संघर्ष=मनुष्यवाद के लिए संघर्ष=प्राकृतिकता के लिए संघर्ष है

मार्क्स, मनुष्यों और क़ुदरत के बीच एक सचेत "एकता" स्थापित करते हैं और यह सुनिश्चित किया कि समाज का भविष्य एक केंद्रीय कार्य था। यदि मार्क्स बाद में, पर्यावरण विनाश को पूंजीवाद के साथ बढ़ते अंतर्विरोध के रूप में संकल्पित कर पाए, तो दास-कैपिटल में उनकी पारिस्थितिक आलोचना आंशिक रूप से मानव-प्रकृति संबंधों के आधुनिक विखंडन में उनकी पहले की अंतर्दृष्टि से उत्पन्न होती है।

इसी तरह, एक महीने लंबे चले रोज़ो के बाद ईद का त्योहार पृथ्वी ग्रह को बचाने के काम में खुद को फिर से समर्पित करने का एक शुरुवाती बिंदु हो सकता है।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

Restitution, not Restoration, is the Way Forward

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