ग्राउंड रिपोर्ट: यमुना खादर में सैलाब से आफ़त, लोगों ने बयां किया अपना दर्द
एक तरफ दिल्ली से नोएडा की तरफ जा रही गाड़ियां रेंग रही थीं तो वहीं दूसरी तरफ यमुना नदी उफान पर थी। कालिंदी कुंज मेट्रो स्टेशन के बाद मेट्रो की रफ़्तार धीमी हो चुकी थी, यमुना के मटमैले पानी को देखकर लग रहा था यमुना दिल्ली में तबाही मचाने को बेताब है। दिल्ली के पुराने लोगों ने बताया कि इससे पहले 1978 में ऐसा मंजर दिखा था।
बढ़ते जलस्तर ने बढ़ाई चिंता
बताया जा रहा है कि पुराने रेलवे पुल पर जलस्तर 208 के पार पहुंच गया है, जिसके और बढ़ने की संभावना है। दिल्ली के निचले इलाकों में पानी घुस चुका है।
मयूर विहार एक्सटेंशन मेट्रो स्टेशन से उतरते ही विस्थापित लोगों की भीड़ दिखाई देती है, यहां कई दिशाओं में जाते फ्लाईओवर पर पॉलिथीन शीट से झुग्गी बनाकर रह रहे लोग सामान हटा रहे थे, हमने वजह जाननी चाही तो एक महिला ने जवाब दिया कि ''पहले नीचे वाले फ्लाईओवर पर रह रहे थे लेकिन पुलिस वालों ने कहा है कि पानी का स्तर बढ़ रहा है इसलिए यहां से भी खाली करके आगे बढ़ जाओ''...हम कुछ और आगे बढ़े तो एक डूबा गांव दिखा जहां बंधे मवेशी बेतहाशा चिल्ला रहे थे, जानवरों की ये आवाज़ दिल दहला रही थी, एक मंदिर की छत पर कुछ लोग दिखाई दिए जिनसे हमने पूछा कि ''आप अब तक यहां से क्यों नहीं निकले'' तो जवाब मिला ''हमारे जानवर अब भी यहां फंसे हैं।''
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सामान निकाले की जुगत में लगे लोग
कुछ लोगों ने केले के तनों को काट कर एक नाव बना रखी थी जिस पर गाय का चारा और घर का सामान रखा था। पूरा गांव डूब चुका था लेकिन कुछ ऊंचाई पर बने मंदिर पर लोगों ने अपना सामान रखा था। वे किसी तरह उसे निकालने की जुगत में लगे थे। एक तरफ पानी का स्तर बढ़ रहा था दूसरी तरफ लोग अपने घरों से अब भी सामान निकालने की कोशिश में जुटे थे।
NDRF ने संभाला मोर्चा
दिल्ली पुलिस, सिविल डिफेंस के साथ ही NDRF ( National Disaster Response Force ) के लोग हर तरफ दिखाई दे रहे थे। NDRF की रेस्क्यू टीम दो बोट में लोगों को लेकर पहुंची, जिसमें ज्यादातर औरतें और बच्चे थे। तभी एक परेशान बुजुर्ग को NDRF के अधिकारी से गुज़ारिश करते देखा, पूछताछ में पता चला कि बुजुर्ग के कुछ रिश्तेदार गांव में फंसे हैं।
बाढ़ में फंसे बच्चों और महिलाओं को बचा कर लाई NDRF की टीम
''अचानक ही पानी बढ़ गया''
यमुना खादर इलाके के नंगली राजापुर गांव के रहने वाले इन बुजुर्ग ने बताया कि उनके पांच-छह लोग और क़रीब 15 भैंस बाढ़ के पानी में फंसी हैं, वे बताते हैं कि "बुधवार रात को अचानक ही पानी बढ़ा, इसलिए जानवरों को निकालने का मौक़ा नहीं मिला''...वे आगे कहते हैं, ''खेतों में सब्जियां बोई थी सब बर्बाद हो गई, इससे पहले भी बाढ़ आती थी लेकिन वो ऐसा था कि सुबह पानी चढ़ा और शाम तक उतर जाता था लेकिन इस बार लगातार पानी बढ़ता जा रहा है।
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''गोताखोरों को पैसे देकर मवेशी निकलवा रहे हैं''
वहीं एक और शख़्स राम अवध मिले वे बताते हैं, ''कम से कम 50 से 60 लोग अंदर फंसे हैं जो मंदिर की छत पर चढ़े हुए हैं। ये पानी अचानक बढ़ा है। हमें अंदाज़ा नहीं था कि इतना पानी बढ़ जाएगा, हम लोग खेती-बाड़ी वाले लोग हैं, दोबारा सब शुरू करने में एक साल लग जाएगा। हमारी अब भी 70 भैंसे फंसी है, यहां कुछ गोताखोर हैं जो पैसे लेकर हमारी भैंस निकाल रहे हैं, हमारी मजबूरी है हम पैसे देकर उन्हें निकलवाना चाहते हैं क्या करें।''
''पानी बढ़ रहा है''
हमने वहां मौजूद NDRF के एक अफसर वीर प्रताप से बातचीत की। उन्होंने बताया कि ''पहली ट्रिप पर हमने 20 लोगों को निकाला है और दूसरी बार फिर जा रहे हैं, पानी बढ़ रहा है। वैसे तो हमने रात में ही काफी लोगों को निकाल लिया था लेकिन जो लोग अब भी फंसे हैं हम उनको भी निकाल रहे हैं।''
फ्लाईओवर के नीचे ली पनाह
सैलाब का पानी सड़क को छू रहा था, हम अक्षरधाम मंदिर की तरफ बढ़े तो वहां भी यमुना का पानी हिलोरे मार रहा था। न्यू अशोक नगर से अक्षरधाम मेट्रो स्टेशन के बीच साथ-साथ चल रहे फ्लाईओवर के नीचे जहां तक नज़र जा रही थी सिर्फ लोग ही लोग नज़र आ रहे थे, ये वो लोग थे जो यमुना खादर में बसे गांव में रह थे और इस इलाके में खेती ( ख़ासकर सब्जियां ) और गाय भैंस पाल कर गुज़र बसर कर रहे थे, लेकिन यमुना में बढ़े जलस्तर की वजह से इन्हें अपने घरों को छोड़कर फ्लाईओवर के नीचे पनाह लेनी पड़ी। लोगों के मुताबिक क़रीब पांच से सात किलोमीटर तक लोगों ने यूं ही सड़क किनारे या फिर फ्लाईओवर के नीचे पनाह ली है।
सरकार की तरफ से बाढ़ पीड़ितों के लिए लगाए गए टेंट
लोग ज़्यादा हैं इंतज़ाम कम
सरकार की तरफ से कुछ टेंट लगाए गए हैं लेकिन लोगों की संख्या ज़्यादा है और टेंट कम, ऐसे में लोगों ने फ्लाईओवर के नीचे ही रस्सियों से घेर कर अपने-अपने इलाकों का विभाजन कर लिया है। यहां हमें शारदा मिलीं जो अपने सोलर पैनल को चार्ज कर रहीं थीं, उन्होंने बताया कि रात को यहां बिजली नहीं होती बहुत दिक्कत होती है इसलिए घर से निकलते वक़्त किसी तरह जो सोलर पैनल निकाल लाई थी, उसे ही चार्ज करके रात को एक बल्ब जला लेती हूं''...वो लगातार आसमान पर नज़र बनाए हुए हैं कहती हैं कि "बस बारिश नहीं होनी चाहिए वर्ना हम कहां जाएंगे कुछ पता नहीं।''
''सब्जियों की तैयार फसल डूब गई''
इसी फ्लाईओवर के नीचे बैठा एक परिवार मिला। पांच लोगों के इस परिवार के बेटे ने बताया, "घर का सारा सामान रह गया, जिस चारपाई पर बैठे हैं ये भी ख़रीद कर लाए हैं, यहीं जो खाने-पीने को मिल रहा है उसी से गुज़ारा कर रहे हैं पर यहां कब तक रहेंगे ये चिंता सता रही है।" परिवार की बुजुर्ग बताती हैं कि ''हमारी तोरी और भिंडी की फसल तैयार थी सब डूब गई।''
लंगर की व्यवस्था
बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए दोपहर का खाना लेकर पहुंचे कुछ NGO भी दिखे, साथ ही दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की तरफ से भी लंगर के माध्यम से दिन में दो वक़्त का खाना उपलब्ध करवाया जा रहा है।
''छूट गया ATM और डॉक्यूमेंट''
कई ऐसे नाराज़ विस्थापित भी मिले जिनका कहना था कि ''कोई इंतज़ाम नहीं है बस हमें यहां छोड़ दिया गया है''...वहीं एक परिवार बहुत बुरे हालात में दिख रहा था, पिता रो रहे थे जबकि उनके बगल में ही क़रीब चार महीने का एक बच्चा सो रहा था। हमने उसके पिता से पूछा कि वे क्यों रो रहे हैं तो उन्होंने कहा कि "पुलिस वालों ने हमें मार के भगाया है, हमारे सारे डॉक्यूमेंट छूट गए बताइए अब हमारा क्या होगा, वहीं उनके साथ बैठे एक और नाराज़ शख़्स ने भी यही शिकायत करते हुए कहा कि ''हम लोगों के पास एक भी पैसा नहीं है। हमारा एटीएम कार्ड तक वहीं रह गया है।"
मवेशियों के साथ सड़क पर पड़े ज़्यादातर लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि अपने खाने के लिए रोटी का जुगाड़ करें या फिर मवेशियों के लिए चारे का इंतज़ाम करें? उमस भरे मौसम में लगातार बहते पसीने के बीच कई लोग सोते मिले, परिवार के दूसरे लोगों ने बताया कि रात का कोई भरोसा नहीं इसलिए दिन में ही सो लेते हैं, रात भर जाग कर रखवाली करते हैं।
दिल्ली के विकास की निशानी बयां करते फ्लाईओवर पर हम खड़े थे, सामने से सरपट दौड़ती मेट्रो आ-जा रही थी लेकिन इन सबके बीच हमें ग़रीबों की डूबती झुग्गियां, उनकी गौशालाएं और मंदिर नज़र आ रहे थे।
जिस वक़्त हम ग्राउंड रिपोर्ट के लिए घर से निकल रहे थे, ख़बरें चल रहीं थीं कि प्रधानमंत्री फ्रांस दौरे पर निकले, इस यात्रा से देश का मान बढ़ेगा, बेशक इससे देश का मान बढ़ेगा लेकिन फ्लाईओवर के नीचे चार महीने के बच्चे को लिए बैठे उस पिता के लिए इस वक़्त क्या ज़्यादा मायने रखता है, यह सोचने की ज़रूरत है।
दिल्ली के हालात, तस्वीरों में:
फ्लाईओवर के नीचे रह रहे बाढ़ प्रभावित लोग
फ्लाईओवर पर पनाह लेने वाले लोग
बाढ़ में डूबे घर
बाढ़ में घिरे एक छत पर लोग
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