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ग्राउंड रिपोर्ट : दिल्ली में दंगाइयों ने कहा, 'हम पुलिस के जवानों की सुरक्षा करने आए हैं'

उत्तर पूर्वी दिल्ली में भड़की सांप्रदायिक हिंसा में मरने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 20 पर पहुंच गई है। न्यूज़क्लिक की एक टीम ने दंगा प्रभावित इलाकों का पैदल दौरा किया। मंगलवार को करावल नगर, खजूरी, भजनपुरा, चांदबाग़, गोकलपुरी, यमुना विहार, नूर-ए-इलाही, कर्दमपुरी, कबीर नगर, मौजपुर, बाबरपुर, जाफ़राबाद और सीलमपुर में इस दौरान दिल्ली जैसी दिखी, उसका आंखों देखा हाल...
delhi violence

 "इलाके में पुलिस के जवान कम हैं। दंगाई इधर-उधर घूम रहे हैं और लोगों को धमका रहे हैं। दुकानों में तोड़फोड़ कर रहे हैं। पुलिस के साथ भी मारपीट कर रहे हैं। हम अपने घरों में असुरक्षित हैं। अब इन *** को सबक सिखाने का वक्त आ गया है। हम यहां दिल्ली पुलिस के जवानों की सुरक्षा करने और इन उपद्रवियों को सबक सिखाने आए हैं।"

यह कहना था उत्तरपूर्वी दिल्ली के खजूरी इलाके में लोहे की रॉड लेकर घूम रहे एक व्यक्ति का। धार्मिक नारे लगा रहा यह व्यक्ति इतना उग्र था कि उससे नाम पूछने की हिम्मत नहीं हुई। उल्टा उस भीड़ ने हमसे हमारा नाम पूछा और आईकार्ड भी मांग लिया। मंगलवार सुबह जब न्यूज़क्लिक की टीम वहां पहुंची तो हालात बहुत खराब थे।

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पुलिस उस भीड़ पर काबू पाने की जद्दोजेहद में लगी थी जो गलियों में घूम रही थी। भीड़ में शामिल लोग दुकानों को आग लगा रहे थे, पथराव कर रहे थे और वे स्थानीय और आने-जाने वाले लोगों के साथ मारपीट कर रहे थे। इन दंगाइयों ने अपने हाथों में हथियार, पत्थर, रॉड और तलवारें भी ली हुई थीं। कई ने हेलमेट पहन रखे थे। पुलिस ने दंगाइयों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े।

सड़कों पर क्षतिग्रस्त वाहन, ईंट और जले हुए टायर पड़े थे जो सोमवार को हुई हिंसा की गवाही दे रहे थे। साथ ही कुछ दुकानों और वाहनों से धुआं निकल रहा था जो मंगलवार को भी हिंसा होने का सबूत दे रहे थे।

उपद्रव जब कुछ शांत हुआ तो हम सीधे रास्ते से आगे चांदबाग की तरफ बढ़े। सोमवार को यहां भी खूब उपद्रव हुआ था। रास्ते में पुलिस की उपस्थिति बहुत कम थी। लोग पत्थर, रॉड और तलवार लेकर हर गली के बाहर ग्रुप में खड़े थे। वो पैदल जाने वाले लोगों के साथ बदतमीजी तो नहीं कर रहे थे लेकिन नाम वगैरह जरूर पूछ रहे थे। मोबाइल निकालने पर वीडियो और फोटो खींचने से मना कर दे रहे थे और फोन तोड़ देने की धमकी दे रहे थे।

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रास्ते में एक ही बाइक पर तीन-तीन, चार-चार लोग बैठकर समूह में निकल रहे थे और जयश्रीराम, भारत माता की जय के नारों से गलियों में खड़े लोगों का अभिवादन कर रहे थे। बीच-बीच में दिल्ली पुलिस जिंदाबाद के नारे भी लग रहे थे। हालांकि इस दौरान चांदबाग में सिर्फ एक चौराहे पर पुलिस के जवान नजर आए। वहां से गुजरते हुए माहौल बहुत डरावना लग रहा था। लोग जगह-जगह रोककर नाम पूछ रहे थे। पुलिस के बजाय ये मेन सड़क दंगाइयों के कब्जे में थी। वो जिसे जाने देना चाहते थे उसे ही आगे जाने दे रहे थे।

आगे भजनपुरा पहुंचने पर भी मंजर कुछ ऐसा ही था। गलियों में लोगों की भीड़ जमा थी। वो हाकी, डंडे, लोहे की रॉड से लैस थे। छतों पर लोग इकट्ठा थे। खिड़कियों से झांक रहे थे। हर आदमी अनजाने भय में दिखा।

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भजनपुरा में हमारी मुलाकात एक व्यक्ति से होती है। वो पुलिस के जवानों के बीच पानी का बोतल बांट रहे थे। हमें भी उन्होंने पानी की बोतल पकड़ाई। उन्होंने कहा, "इस पागलपन को रोके जाने की ज़रूरत है। लोग दुकानों में तोड़फोड़ कर रहे हैं। लूटमार मची हुई है। परिवारों को यहां से निकालने की जरूरत है। हमें अपने घरों में डर लग रहा है। 1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद से उसने इस तरह की स्थिति देखी है। यह क्षेत्र हमेशा से शांतिपूर्ण रहा है। ये ऐसी सड़क है जहां इतनी भीड़ होती है कि आप दिन में ठीक से चल नहीं सकते हैं लेकिन सब खाली पड़ा है। लोगों का व्यापार बंद है। अभी तो सबको बस जान की फ़िक्र है।"

इस बीच एक गली में से हंगामा होता नजर आता है। पुलिस के जवान उधर जाते हैं। अंदर से एक आदमी आता है वो बताता है कि किसी घर को भीड़ ने घेर लिया है। पुलिस के जवान इस बीच आंसू गैस के गोले की फायरिंग करते हैं। भीड़ थोड़ी सी छट जाती हैं।

हम लोग आगे निकलते हैं। गोकलपुरी गोलचक्कर पर भी उपद्रवियों की भीड़ जमा थी। सामने मेट्रो स्टेशन के बगल किसी टायर की दुकान में आग लगा दी गई थी। वहां से काला धुआं निकल रहा था। जलते हुए टायरों की दुर्गंध और उठता धुआं काफी दूर से ही देखा जा सकता था। हालांकि इसे फोन से रिकॉर्ड करना अपने आपको खतरे में डालने वाला हो सकता है क्योंकि उपद्रवियों की भीड़ आप पर पत्थर फेंक सकती थी। आपको बता दे कि ये दिल्ली के वे इलाके थे जहां धारा 144 लगी हुई थी। इसका मतलब है कि दो या तीन से ज़्यादा लोग एक जगह मौजूद नहीं रह सकते। लेकिन उपद्रवी भीड़ की शक्ल में आराम से सड़कों पर घूम रहे थे।

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इस रास्ते से हम सीलमपुर की तरफ मुड़ गए। रास्ते में लोग डरे हुए मिलते थे। जिन्हें बहुत ही मजबूरी थी वही घर से बाहर निकल रहे थे। यमुना विहार के सामने ही कुछ समय पहले एक ट्रैक्टर को उपद्रवियों ने जलाया हुआ था। एक दमकल से उसे बुझाया जा रहा था। उससे धुआं निकल रहा था। सड़क पर पत्थर और ईंट के टुकड़े बिछे हुए थे। पुलिस की दो तीन बसें खड़ी हुई थी।

वहां से हम कर्दमपुरी के अंदर चले गए। एक निवासी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा, ‘इलाके में शायद ही कोई पुलिस की मौजूदगी है। दंगाई इधर उधर घूम रहे हैं और लोगों को धमका रहे हैं। उन्मादी समूहों ने सड़कों पर लोगों की पिटायी की और वाहनों में तोड़फोड़ की है। बीच-बीच में आसू गैस छोड़े जाने और गोली चलने की आवाज भी आ रही है।'

अल्पसंख्यकों की बहुलता वाले इस मोहल्ले में अफरा तफरी और डर का माहौल था। सारी गलियों पर लोग हथियारों के साथ लैस थे और घुसने वालों का नाम पूछ रहे थे। गोली चलने, किसी के मरने और घायल होने की अफवाह भी थोड़ी-थोड़ी देर में आ रही थी। सड़क के सामने वाले घरों से महिलाएं अपने बच्चों के साथ निकलकर सुरक्षित घरों या इलाकों में भी जाती नजर आईं।  

यहां से निकलते हुए हम मौजपुर की तरफ बढ़े। रास्ते में दोनों ही ओर के लोगों ने बताया कि वे अपने इलाकों के बाहर लड़कों को तैनात कर रहे हैं ताकि दूसरी ओर से हमला होने पर उससे निपटा जा सके। इन हिंसक घटनाओं में कई मुसलमानों के मारे जाने की अफवाहें चल रही हैं। कई हिंदुओं के घायल होने और उनके घर जलाए जाने की बातें भी जारी हैं। लेकिन कोई भी इन बातों का खंडन करने या पुष्टि करने के लिए तैयार नहीं है।

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इसी तरह हिंसा की बात पर भी लोगों के अपने अपने तर्क हैं। लोगों का कहना है हिंसा पथराव के साथ शुरू हुई थी। इस पूरे इलाके के मुसलमानों का कहना है कि हिंदू भीड़ ने हिंसा शुरू की थी, जबकि हिंदुओं का दावा है कि मुसलमानों ने पथराव शुरू किया और उन्होंने जवाबी कार्रवाई की।

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मौजपुर में पुलिस और उपद्रवियों के बीच में झड़प होने की खबर आई। लोगों ने हमें सीधे जाने से मना किया। हमने गलियों के बीच से निकलकर एक ऑटो ले लिया। जिसने हमें मौजपुर के बगल से निकाल दिया। ऑटो ड्राइवर से जब हम इलाके में हो रही हिंसा के बारे में पूछते हैं तो वे कहते हैं, 'इस पूरे इलाके में पुलिस प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं है। अगर पुलिस है भी तो उपद्रव रोकने के लिए नहीं है। अगर वह उपद्रव रोकना चाहती तो अभी तक उस पर रोक लग गई होती। ऐसा लग रहा है कि सरकार ने हम लोगों को लड़ने और मरने के लिए छोड़ दिया है। यह पता नहीं कब खत्म होगा।'

इसी बीच शाहदरा से मौजपुर जाने वाले सड़क पर एक जींस की दुकान में आग लगी हुई दिखी। कई दुकानों के बीच में से चुनकर एक दुकान को आग लगा दी गई थी। पुलिस के जवान और दमकलकर्मी आग बुझाने में लगे हुए थे। बाबरपुर इलाके के बिल्कुल नजदीक इस जगह पर भी लोग सड़कों पर दिखे।

यहीं पर हमारी मुलाकात सुलेमान से हुई। वे कहते हैं, "दोनों समुदायों के ज़्यादातर लोग हिंसा नहीं चाह रहे हैं लेकिन अभी सब कुछ उपद्रवियों के क़ब्ज़े में हैं। नेता दंगा करवाने के लिए तो आ जाते हैं लेकिन दंगा खत्म करवाने नहीं आते हैं। हमें अब यह समझने की जरूरत है। अभी तक किसी भी पार्टी का कोई नेता इस इलाके में नहीं आया है। अगर नेता लोग आएंगे और अपने लोगों से शांति की अपील करेंगे तो इसका असर पड़ेगा। लेकिन बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी समेत सभी दलों के नेताओं ने इस इलाके की जनता को अकेला छोड़ दिया है।"

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यहां से पैदल पैदल ही हम जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास पहुंचते हैं। तब तक शाम के करीब छह बज चुके होते हैं। यहां पर बड़ी संख्या में महिलाएं मेट्रो स्टेशन के नीचे बैठे हुई होती हैं। यहां पर बड़ी संख्या में पुलिस के जवान पेट्रोलिंग करने नजर आते हैं। साथ में हजारों की संख्या में लोग सड़क पर मौजूद होते हैं।

अभी इस पूरे इलाके में हिंसा रुकी हुई है लेकिन चिंता और डर का माहौल बना हुआ है।भीड़ चारो तरफ घूम रही है लेकिन पुलिस कई जगहों से गायब है। मेट्रो स्टेशन बंद थे। अगर कोई भी फोन से फोटो लेने की कोशिश करता दिख जाता है तो भीड़ तुरंत उन्हें डराती है, हमला करने की कोशिश करती है और फोटो को डिलीट करवाती है। भीड़ ने कई लोगों के फोन को भी तोड़ दिया है।

फिलहाल पुलिस प्रशासन और राजनीतिक दलों की अनुपस्थिति में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिया गया आदेश उम्मीद जगा रहा है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने आधी रात को सुनवाई कर पुलिस को, संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर पूर्वोत्तर दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा में घायल हुए लोगों को सुरक्षित निकाल कर सरकारी अस्पतालों में ले जाने और उनका तत्काल उपचार सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।  न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर के आवास पर मंगलवार देर रात साढ़े 12 बजे यह विशेष सुनवाई शुरू हुई।

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न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर को एक वकील ने घायलों को छोटे अस्पतालों से जीटीबी अस्पताल ना ले जा पाने की विकट परिस्थितियों के बारे में बताया था, जिसके बाद देर रात को यह सुनवाई हुई।

न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर और न्यायमूर्ति अनूप जे. भंभानी की पीठ ने पुलिस को इस व्यवस्था के लिए सभी संसाधनों का इस्तेमाल करने का आदेश दिया। साथ ही पीठ ने यह भी व्यवस्था दी कि अगर उसके आदेश के बावजूद, घायलों का दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल में तत्काल इलाज ना हो सके तो उन्हें लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल या मौलाना आजाद या किसी अन्य अस्पताल ले जाया जाए। व्यवस्था देते हुए पीठ ने कहा कि जीटीबी और एलएनजेपी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षकों को भी इस आदेश की जानकारी दी जाए।

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आपको बता दें कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून को लेकर भड़की साम्प्रदायिक हिंसा में मरने वाले लोगों की संख्या बढ़कर बुधवार को 20 पर पहुंच गई है। जीटीबी अस्पताल के अधिकारियों ने यह जानकारी दी। मंगलवार को मरने वाले लोगों की संख्या 13 बताई गई थी।

 

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