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ग्राउंड रिपोर्टः भूतपूर्व सैनिकों के लिए ही रोज़गार नहीं तो अग्निवीरों के लिए मोदी सरकार कैसे खोलेगी नौकरियों का पिटारा ?

सरकार के 34 विभागों में ग्रुप ‘सी’ के कर्मचारियों की तादाद 10 लाख से अधिक है। इनमें पूर्व सैनिकों की तादाद सिर्फ 13,976 है, जो कुल नौकरियों का कुल 1.25 फीसदी है। वहीं इन 34 सरकारी विभागों में ग्रुप ‘डी’ में कुल 3,25,265 भर्तियां है, जिनमें से पूर्व सैनिक सिर्फ 8,442 हैं। अगर इन आंकड़ों को देखें तो तमाम सरकारी और गैर सरकारी विभागों में अग्निवीरों को नौकरी देने का दावा कपोल कल्पित लगता है।
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बनारस का एक कस्बा है मुनारी। यहां है एक छोटा सा बाजार, जो शाम ढलते ही गुलजार हो जाता है। इस बाजार में जब गांव-गिरांव के लोग पहुंचते हैं तो रौनक देखते बनती है। इस रौनक में चार चांद लगाते हैं एसबी सिंह स्पोट्स अकादमी के स्टूडेंट्स। वो स्टूडेंट्स जिनमें कुछ सेना में भर्ती के लिए दौड़ लगा रहे होते हैं तो कुछ एथलीट प्रतियोगिताओं में मेडल जीतने के लिए पसीना बहाते नजर आते हैं। मोदी सरकार ने जब से अग्निपथ योजना का ऐलान किया है तब से उन सभी युवाओं के चेहरों पर चिंता की लकीरें काफी गहरी हो गई हैं जो सेना में भर्ती होने का सपना संजोए हुए थे।

इंडियन आर्मी में भर्ती होकर देश की सेवा का जज्बा संजोए सूर्य प्रताप यादव भी उन युवाओं में से एक है जिसका हौसला बुरी तरह टूट गया है। सूर्य के पिता दिनेश कुमार यादव सेना में सूबेदार हैं। उनका सपना था कि बेटा भी देश की हिफाजत करे। जक्खिनी निवासी सूर्य प्रताप अपने मामा कृपा शंकर यादव (सैन्यकर्मी) के यहां रहते हुए एसबी सिंह स्पोर्ट्स अकादमी में दाखिला लेकर खुद को सेना के लिए तैयार कर रहे थे। घर में अच्छी खासी खेती है, फिर भी वह अपने पिता की तरह फौजी बनकर मिसाल कायम करना चाहता थे, लेकिन उनका हौसला अब टूट चुका है।

किशन और सूर्य प्रताप 

दुबले-पतले, गठीले शरीर वाले 20 साल के सूर्य प्रताप यादव हैरान और परेशान हैं। मुश्किल यह है कि सेना की भर्ती नहीं होगी तो जाएगा कहां? वह कहते हैं, "मैं महीनों से अपने घर नहीं जा सका ताकि रोज़ाना सुबह-शाम की दौड़ की प्रैक्टिस छूट न जाए। अब तो हमारा भविष्य ही अंधेरे में है। सेना में जाने का सपना टूट ही गया। अपने हमउम्र दोस्तों के साथ दौड़ और व्यायाम तो रोज कर रहे हैं, लेकिन दिमाग़ बिल्कुल काम नहीं कर रहा है। सूर्य इसलिए ज्यादा बेचैन है कि अग्निपथ योजना लाकर केंद्र सरकार ने उसके जैसे हजारों नौजवानों के लिए सेना में भर्ती का रास्ता पूरी तरह बंद कर दिया है।"

पिछले एक साल से सेना में भर्ती के लिए लगातार तैयारी कर रहे सूर्य प्रताप को अग्निपथ योजना में खोट ही खोट नजर आता है। दो भाइयों में अपने पिता के बड़े बेटे सूर्य कहते हैं, "मैं अब कहीं का नहीं रहूंगा। मेरा सपना था देशसेवा का,  जो टूटकर बिखर गया। अभी दो-तीन साल का वक्त है। हमारी कोशिश बीएसएफ अथवा यूपी पुलिस में भर्ती होने की होगी। मम्मी-पापा सब उम्मीद करते थे कि मैं भी देश भक्त कहलाऊं। परिवार की जिम्मेदारी उठाऊं, लेकिन सरकार ने हमारी हसरतों को पूरा होने के क़रीब लाकर तोड़ दिया। यह सिर्फ हमारी कहानी नहीं, बल्कि मेरे जैसे लाखों नौजवानों की है।"

टूटे हौसलों से दुश्मनों का मुकाबला

मुनारी में दौड़ की प्रैक्टिस कर रहे गोसाईपुर मोहांव के किशन कुमार का हौसला भी दरक गया है। इनके पिता मजूरी करते हैं, तब चलता है घर-परिवार। मुश्किल के दौर से गुजर रहे किशन कुमार सिर्फ इसलिए सेना में भर्ती होना चाहते थे, ताकि वह अपने छोटे भाई प्रीतम (10) को अच्छी तालीम दिला सकें। 17 वर्षीय किशन कहते हैं, "हमारे घर की माली हालत ठीक नहीं है। पिता के पास पैसे नहीं कि वह हमें ऊंची शिक्षा दिला सकें। जैसे ही अग्निपथ योजना में भर्ती शुरू होगी, हम लाइन में लग जाएंगे। अगिनवीर बनने के अलावा हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है। सपने सिर्फ हमारे ही नहीं टूटे, हमारे जैसे तमाम नौजवानों के भी चकनाचूर हुए हैं। इस योजना के आने के बाद बहुत से नौजवानों ने दौड़ लगानी बंद कर दी है।

बड़ा सवाल यह है, ‘चार साल, उसके बाद फिर बेरोजगार।‘ हमने तो अपनी जुबां बंद कर ली है, लेकिन कितने लोगों पर पहरा बैठाएंगे। हमारे कई साथी सेना में भर्ती के लिए साल 2019 से प्रैक्टिस कर रहे थे, जिनमें कुछ 21 साल के हैं और कुछ की उम्र 23 साल पार कर गई है। इंडियन आर्मी ने कोरोना के समय सभी इम्तिहान करा लिए थे। सिर्फ लिखित परीक्षा बाकी थी। मेडिकल और फ़िज़िकल पास करके सेना में जाने की उम्मीद संजोए नौजवानों को तब बड़ा धक्का लगा जब सरकार ने यह परीक्षा ही रद कर दी।"

पूर्वांचल के युवाओं के लिए सेना में भर्ती का सबसे बड़ा केंद्र बनारस है। नवंबर 2021 में मेडिकल और फिज़िकल टेस्ट पास करने वाले संजय और राहुल कहते हैं, "जितनी खुशी सेना की दोनों परीक्षाएं पास करने के समय हुई थी, उससे हजार गुना ज्यादा इन्हें दुख और निराशा भर्ती निरस्त होने के बाद हुई है। दोनो नौजवान कहते हैं, "सरकार हमारे साथ क्रूर मज़ाक़ कर रही है। हमने सालों से प्रैक्टिस की। अपना बदन गलाया। मेडिकल पास किया और सरकारी नुमाइंदों वातानुकूलित कमरों में बैठकर हमें अग्निपथ पर चलने का फैसला सुना दिया।"

बनारस के ग्रामीण इलाकों के बड़े-बड़े मैदान गर्मी के मौसम में सुबह चार बजे से ही गुलज़ार हो जाते थे। साथ ही वह सड़कें भी जिन पर बड़े वाहन नहीं चला करते थे। अब उन सभी रास्तों पर सन्नाटा पसरा है। इन्हीं में एक है चिरईगांव प्रखंड के मंगरहुआ गांव का ब्रह्म ग्राउंड। यहां कोई कोच नहीं, फिर भी सैकड़ों नौजवान हर रोज सुबह-शाम रेस लगाते दिख जाते थे, लेकिन अब वहां वीरानी है और सन्नाटा है। यह वही ग्राउंड है जहां से हर साल 50-60 नौजवान सेना व पुलिस-पीएसी में भर्ती होते रहे हैं। कुछ रोज पहले तक इसी ग्राउंड में अनुशासित ढंग से कतारबद्ध होकर पसीने से तर-बतर नौजवान दौड़ की प्रैक्टिस किया करते थे। इन्हीं नौजवानों में अइली गांव के अभिषेक यादव भी थे, जिन्हें पुख्ता यकीन था कि सेना में जब भी भर्ती होगी, उन्हें कोई रोक नहीं पाएगा, लेकिन उनके ख्वाब चकनाचूर हो गए।  

करीब 11 मर्तबा सेना की रेस में पास होने वाले अभिषेक अब मायूस हैं। इन्हें नहीं लगता कि अग्निपथ योजना से इनका भविष्य संवार पाएगी। केंद्र सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए वह कहते हैं, "चार साल कदम-ताल करने के बाद नौजवान क्या करेगा?  जिन 25 फीसदी लोगों को सेना में रिटेन करने की बात कही जा रही है वह ऐसे लोग होंगे जो सैन्य अफसरों की चापलूसी में सारी ताकत झोंक देंगे। बाकी 75 फ़ीसदी नौजवान गांव में लौटकर क्या करेंगे? ऐसे अभ्यर्थियों के लिए राज्य सरकार की नौकरियों में लो-कटऑफ़ की व्यवस्था होनी चाहिए। अन्यथा चार साल बाद बेरोजगार नौजवान सड़कों पर क्या करेंगे, इसके निहितार्थ अभी निकाले जा सकते हैं।"

खौफजदां हैं नौजवान

अग्निपथ योजना के विरोध में पिछले दिनों पूर्वांचल के कई जिलों में हुई तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाओं के बाद इलाकाई पुलिस ने उन सभी नौजवानों पर शिकंजा कस दिया है जो सेना में भर्ती के लिए खेल के मैदान और सड़कों पर दौड़ लगा रहे थे। बनारस के चोलापुर में स्टूडेंट्स को सेना में भर्ती की ट्रेनिंग देने वाले एक अकादमी के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया है। आरोप है कि बनारस के कैंट स्टेशन पर तोड़फोड़ करने वालों में इस अकादमी के कुछ स्टूडेंट्स भी शामिल थे। नाम न छापने की शर्त पर एक नौजवान ने "न्यूजक्लिक" से कहा, "सेना में भर्ती की तैयारियां करने वाले नौजवानों के घरों पर पुलिस रेड डाल रही है। फर्जी मामलों में जेल में डालने के लिए धमकियां दी जा रही हैं। युवाओं को लगातार डराया-धमकाया जा रहा है।"

पूर्वांचल में ताजातरीन स्थिति यह है कि ज्यादातर नौजवानों ने सेना में भर्ती के लिए सालों से कर रहे अभ्यास बंद कर दिया है। साथ ही खेल के उन मैदानों में भी जाना छोड़ दिया है,जहां से उन्हें फौज में जाने का गलियारा मिल सकता था। मगरहुआ के युवक आशीष पाल ने कहते हैं, "पुलिस की धमकियों से आजिज आकर हमने अभ्यास छोड़ दिया है। पिछले चार साल से हम सेना में भर्ती के लिए तैयारी कर रहे थे। एनसीसी ‘सी’ सर्टिफीकेट के लिए इम्तिहान दे रखा है। इंटर में 81 फीसदी मार्क्स है। फिर भी हम लाचार हैं। जैसा राजा कहेगा, वैसा प्रजा को कहना ही होगा। पुलिस में नहीं जाएंगे तो अग्निवीर बनेंगे। आखिर हमारे तीन छोटे भाइयों की परवरिश भला कौन करेगा? "

रोहित कुमार

डुबकिया इलाके के पूरनपट्टी गांव के 17 वर्षीय रोहित कुमार अपने तीन भाइयों में बीच के हैं। घर में सिर्फ दस बिस्वा खेती की जमीन है। वह कहते हैं, "सरकार ने हमारे जैसे लाखों नौजवानों को संकट में डाल दिया है। हम बचपन से सेना में जाने के लिए तैयारी कर रहे थे। अब पुलिस खेल के मैदान से युवाओं को भगा रही है। ऐसे में हमारे भाग्य से दरवाजे कैसे खुलेंगे? " मगरहुआ ब्रम्ह मैदान में दौड़ लगाने वाले चाहे अनिल यादव हों या फिर रवि पटेल। सभी का मुंह लटका हुआ है। हर किसी के मन में पुलिसिया कार्रवाई का खौफ और चेहरों पर उदासी है। तनाव का आलम यह है कि अधिसंख्य नौजवान मीडिया से बात करने और तस्वीरें खिंचवाने तक के लिए भी तैयार नहीं हैं।"

अनिल यादव

बनारस के ऐढ़े गांव के करीब रिंग रोड के किनारे नौजवानों को फिजिकल ट्रेनिंग देने वाली संस्था बम-बम स्पोट्स एंड डिफेंस एकेडमी के डिप्टी डायरेक्टर राज कुमार पटेल कहते हैं, "पुलिस हमारे यहां भी आ धमकी थी। कई दिनों तक जांच-पड़ताल हुई। हमसे यह तक लिखवा लिया कि उनकी एकेडमी में ट्रेनिंग लेने वाला कोई नौजवान हिंसा में शामिल पाया गया तो संस्था के खिलाफ सख्त एक्शन होगा। पिछले दो साल से हम अकादमी चला रहे हैं और हमारे 50 से अधिक स्टूडेंट्स फोर्स में नौकरी पा चुके हैं। कई लड़के और लड़कियों ने राष्ट्रीय स्पर्धाओं में मेडल जीते हैं। अग्निपथ योजना आने के बाद से ज्यादातर युवक मायूस हैं। बहुतों ने अकादमी छोड़ दी है।"

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस ने सिर्फ आगरा में नौजवानों को फिजिकल ट्रेनिंग देने वाले 160 से अधिक कोचिंग संचालकों को नोटिस जारी किया है। इन सभी पर युवाओं को प्रदर्शन के लिए भड़काने का आरोप है। पुलिस की तरफ से भेजे गए नोटिस से उनमें खलबली मच गई है। अग्निपथ के विरोध को दबाने के लिए पूर्वांचल में पुलिस जिस तरह के तौर-तरीकों का इस्तेमाल कर रही है, वैसा हथकंडा आपातकाल के समय भी नहीं अपनाया गया था। थोक में नौजवानों के खिलाफ रपटें दर्ज कर पुलिस तमाम निर्दोष युवाओं का करियार बर्बाद करने में जुट गई है।

ताजा मामला बनारस के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हास्टल में रहने वाले बीएससी आनर्स मैथमेटिक्स प्रथम वर्ष के द्वितीय सेमेस्टर के छात्र विपिन कुमार का है। पुलिस ने अग्निपथ योजना के विरोध में इस छात्र के खिलाफ तोड़फोड़ और आगजनी का मुकदमा अलीगढ़ के टप्पल थाने दर्ज किया है। हैरत की बात यह है कि घटना वाले दिन 17 जून को वह बीएचयू के ब्रोचा हॉस्टल के मेस में खाना खा रहा था। इस छात्र को पकड़ने के लिए पुलिस दबिश दे रही है और उसका पूरा परिवार काफी चिंतित है। किसी को यह समझ नहीं आ रहा है कि आखिर पुलिस ने ऐसा क्यों किया?

छात्र विपिन कुमार अलीगढ़ के टप्पल थाना क्षेत्र के घघौली गांव का रहने वाला है और बीएचयू के ब्रोचा हॉस्टल के कमरा नंबर 221 में रहकर वह पढ़ाई कर रहा है। चीफ प्राक्टर प्रोफेसर अभिमन्यु सिंह ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, "अलीगढ़ पुलिस जिस घटना में विपिन की तलाश कर रही है उस दिन वह हास्टल में मौजूद था। हास्टल के मेस में लगातार भोजन करने और क्लास के अटेंडेंस रजिस्टर में भी आरोपित छात्र की हाजिरी लगी हुई है।"

भाजपा के सांसद सांसद वरुण गांधी भी अग्निपथ योजना का विरोध करने वाले छात्रों के समर्थन और बीएचयू के निर्दोष छात्र विपिन कुमार सरीखे नौजवानों के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा है, "यूपी सरकार मुकदमे की धमकी से डरा रही है, जिससे बातचीत के रास्ते बंद होंगे। कोई नई योजना लागू करने से पहले रिक्त पड़े लाखों पदों को भरने के लिए सरकार छात्रों से ब्लूप्रिंट साझा करे। यही वक्त की सबसे बड़ी मांग है।"

सांसद वरुण गांधी ने इस बाबत अपना एक वीडियो भी साझा किया है, जिसमें वह छात्रों के हित की बात करते नजर आ रहे हैं। वह वीडियो में कहते हैं, "हर दिन सरकार अनेकों घोषणाएं कर रही है, जो हैरान करने वाली हैं। जब प्रशासन खुद युवाओं के आंदोलन को खत्म करने पर आमादा है, तो यह कौन सुनिश्चित करेगा कि एफआईआर का गलत इस्तेमाल निर्दोषों को फंसाकर आंदोलन को दबाने के लिए नहीं किया जाएगा? सरकार को युवाओं से बात करनी चाहिए। युवाओं के अपने तर्क हैं जो सरकारी आंकड़ों पर आधारित है। आंकड़े पूर्व सैनिकों के प्रति सरकार की उदासीनता का परिचय देते हैं।"

पूर्वांचल के देशभक्ति का जुनून

उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल ऐसा इलाका है, जहां अमूमन हर गांव में कोई न कोई नौजवान फौज में नौकरी जरूर करता है। गाजीपुर से तकरीबन 40 किमी दूर गहमर ऐसा गांव है जिसकी पहचान है देशभक्ति का जुनून। इस गांव के हर घर में फौजियों की तस्वीरें, वर्दियां और सेना के मेडल अलमारियों में सजे दिखते हैं। यहां प्रचलन है कि गहमर में जब तक लड़कों की सेना में भर्ती नहीं होती, उनकी शादी नहीं होती है। करीब आठ वर्ग मील में फैला एशिया का यह सबसे बड़ा गांव 22 टोलों में बंटा हुआ है। बनारस से गहमर जाने में सिर्फ दो घंटे ही लगते हैं। नीरज कहते हैं, "हमारे गांव की हर मां की कोख से बच्चा फौजी बनकर पैदा होता रहा है। हमारी धरती ने देश को 15 हजार से ज्यादा जवान दिया है, जिनमें सैनिक से लेकर कर्नल तक शामिल हैं। अग्निपथ योजना के ऐलान के बाद सबसे ज्यादा मनहूसियत इसी गांव में फैली है। युवाओं को लगता है कि सेना में भर्ती के उनके मंसूबे अब पूरे नहीं हो सकेंगे।

गहमर गांव के रहने वाले लेफ्टिनेंट कर्नल रामबचन सिंह के बेटे अशोक कुमार कहते हैं, " आर्मी की हार्डकोर प्रैक्टिस में शामिल होने वाली सभी तरह की सुविधाएं यहां मौजूद हैं। गहमर में पहले हर साल सेना की टीम बच्चों से मिलने आती थी, लेकिन यह सिलसिला पिछले तीन साल से बंद है। सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे गांव के लड़के जिस वीर शहीद अब्दुल हमीद को हीरो मानते रहे हैं, उनके अरमान भी धुल गए।"

कशमकश में पूर्व सैनिक

पूर्वांचल के सिर्फ नौजवान ही नहीं, वो फौजी भी कशमकश में हैं जो रिटायर होने के बाद नौकरी की उम्मीद में सालों से अपने घरों पर बैठे हुए हैं। सिर्फ बनारस के जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास विभाग के पास करीब 7000 हजार पूर्व सैनिकों की अर्जियां पड़ी हैं, जिन्हें नौकरी की दरकार है। इनमें ऐसे दावेदारों की तादाद सैकड़ों में है जो ओवरएज हो गए हैं। बनारस में सैनिक कल्याण निगम रिटायर्ड फौजियों को अनुबंध पर नौकरी दिलाता है, जिनकी संख्या गिनी-चुनी होती है। कुछ फौजी और उनके आश्रित जैम (जीईएम) पोर्टल के जरिए नौकरी के लिए आवेदन करते हैं तो कुछ केंद्रीय कर्मचारी कल्याण निगम में अर्जी लगाकर बैठे हैं। स्थायी नौकरी की कौन कहे, पूर्व सैनिकों को संविदा पर भी नौकरियां नहीं मिल रही हैं।

इंडियन आर्मी के हवलदार पद से रिटायर अशोक कुमार कैंट इलाके में रहते हैं। इनके पिता राम विलास राम भी सेना में सूबेदार थे। पिछले छह सालों से अशोक संविदा पर जिला सैनिक कल्याण बोर्ड में वाहन चालक के पद पर काम कर रहे हैं। इन्हें जैम (जीईएम) पोर्टल के मार्फत नौकरी मिली है। वह बताते हैं, "साल 2021 में स्टेट बैंक आफ इंडिया में गार्ड के लिए दस वैकेंसी आई थी। सैकड़ों पूर्व सैनिकों का रेला इन पदों को पाने के लिए दौड़ पड़ा। नजीजा, ज्यादातर लोगों के हाथ निराशा ही लगी, जिनमें एक अभ्यर्थी मैं भी था।"

अशोक कुमार कहते हैं, "जब पूर्व सैनिकों को ही नौकरी नहीं मिल पा रही है तो अग्निपथ योजना के लोग कहां खपाए जाएंगे? चार साल की नौकरी के बाद रिटायर होने वालों को नौकरी देने के दावे में सच्चाई कम है। जब पूर्व सैनिकों के लिए ही पक्की नौकरी के दरवाजे बंद हैं तो अग्निवीर कहां नौकरी पाएंगे। यहां तो पहले से ही एक अनार, सौ बीमार वाली स्थिति है।"

इंडियान आर्मी से रिटायर होने वालों में कुछ ही लोग भाग्यशाली हैं जिन्हें स्थायी नौकरी मिल पाई है। एमसीईआरए-2 पद से साल 2002 में रिटायर होने वाले बनारस के करखियांव गांव के बलिराज राम बनारस के उप जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास अधिकारी पद पर तैनात हैं। वह कहते हैं, "अगर आप हर तरह का गोल कर पाने में सक्षम है, तभी सेना से लौटने के बाद नौकरी मिल पाना संभव है।"

आंकड़ों के मुताबिक सरकार के 34 विभागों में ग्रुप ‘सी’ के कर्मचारियों की तादाद 10 लाख से अधिक है। इनमें पूर्व सैनिकों की तादाद सिर्फ 13,976 है, जो कुल नौकरियों का कुल 1.25 फीसदी है। वहीं इन 34 सरकारी विभागों में ग्रुप ‘डी’ में कुल 3,25,265 भर्तियां है, जिनमें से पूर्व सैनिक सिर्फ 8,442 हैं। अगर इन आंकड़ों को देखें तो तमाम सरकारी और गैर सरकारी विभागों में अग्निवीरों को नौकरी देने का दावा कपोल कल्पित लगता है।

अग्निवीरों के रिटयरमेंट के बाद नौकरी देने के सवाल पर बनारस के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कई बड़े सवाल खड़ा करते हैं। वह कहते हैं, "अग्निपथ योजना में नौकरी दने के लिए सरकार अगर सचमुच गंभीर है तो पहले वह यह भी बताए कि देश में एक करोड़ से भी अधिक सरकारी पद क्यों खाली हैं? युवाओं ने यही सवाल देश के उद्यमियों से भी किया है, लेकिन उनकी भी बोलती बंद है। सच तो यह है कि सरकारी खजाना खाली है। भाजपा सरकार ने देश को खोखला कर दिया है। देश की इकोनामी को डूब गई है। वो असली बात बता नहीं रहे हैं। माली तौर पर सरकार की औकात नहीं है कि सेना में पुरानी प्रक्रिया के तहत रेगुलर भर्ती कर सकें। नई स्कीम ठेका प्रथा वाली स्कीम है जो कई अन्य सरकारी विभागों में चल रही है।"

प्रदीप यह भी कहते हैं, "अगिनपथ स्कीम से उन नौजवानों के सपने टूटे हैं जो देश की सेवा के साथ ही सेना की गौरवपूर्ण वर्दी पहनने का ख्वाब लेकर पसीना बहाने में जुटे थे। दो साल पहले फिजिकल टेस्ट हुआ, जिसमें हजारों नौजवानों ने टेस्ट पास किया। कोरोना के समय में सरकार की ओर से कहा गया कि हालात सामान्य होते ही रिटेन टेस्ट होगा। कुछ माह पहले संदेश आया था कि जल्द ही परीक्षा होगी। परीक्षा की कौन कहे, नई स्कीम आ गई कि पुरानी भर्ती की प्रक्रिया खत्म और अग्निपथ स्कीम शुरू। इसकी चपेट में सारे नौजवान आ गए। खासकर उन्हें दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है जो ओवर एज हो गए हैं। 23 के बजाय 24 हो गई है उम्र। वो निराशा और कुंठा के शिकार हो गए हैं। खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। उनका ही आक्रोश सड़कों पर सामने आ रहा है। सरकार और सरकारी पार्टी का यह कहना एकदम गलत है कि इन्हें विपक्ष भड़का रहा है। विपक्ष में तो खुद ही दम नहीं है। अगिनवीरों का आंदोलन स्वत-स्फूर्त है। यह पहला मौका है जब सवर्ण नौजवानों के बीच नरेंद्र मोदी की करिश्माई छवि दरकी है। भाजपा का यह आधारभूत वोट था जिसकी नाराजगी, उनके मां-बाप से होते हुए पूरे सवर्ण समाज में फैल गई है। "

चौकीदार बनाने वाली स्कीम?

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप को लगता है कि यह समूची स्कीम देश के कारपोरेट घरानों और भाजपा दफ्तरों के लिए चौकीदार मुहैया कराने की स्कीम है। यह बात इससे भी साबित हो जाती है कि इस स्कीम के पक्ष में देश के कई कारपोरेट सामने आकर बयान दे रहे हैं और सरकार के इस स्कीम के कसीदे पढ़ रहे हैं। कारपोरेट घरानों को सेना की भर्ती प्रक्रिया से क्या लेना-देना। हकीकत यह है कि सेना में निम्न मध्यमवर्गीय और दलित व पिछड़े किसानों के बच्चे ही भर्ती में सबसे आगे रहते हैं। एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है जिससे यह कहा जा सके कि कारपोरेट घरानों के साहबजादों ने सेना में जवान की भर्ती के लिए कभी आवेदन किया हो। यही हालत देश के शीर्ष राजनेताओं के परिवार की भी है। ऐसे में हैरत की बात यह है कि जिनका सेना में भर्ती से कोई लेना-देना नहीं, वो इसके पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हैं। देश में सचमुच अगर कोई सुधार लाना है तो दुनिया के अन्य कई मुल्कों की तरह यहां भी सेना में कुछ समय के लिए हर नागरिक की सेवा अनिवार्य कर दी जाए। भारत 150 करोड़ लोगों का मुल्क है। अगर यह सुधार लागू हो जाता है तो दुनिया की सबसे बड़ी सेना खुद ही तैयार हो जाएगी। तब इनकी स्थिति पुलिस और होमगार्ड्स जैसे हो जाएगी। होमगार्डे से जिस तरह थानों में खटनी कराई जाती है, वैसे ही अग्निपथ के जवानों से भी सेना के अफसर कराएंगे। चार साल बाद इनका भविष्य अंधकार में हो जाएगा। शादी करेंगे, कारोबार करेंगे या घर चलाएंगे। इस बात के खतरे और आशंकाएं ज्यादा है कि चार साल की सेवा के बाद कुछ नौजवान गलत रास्ते पर भी जा सकते हैं।"

"सरकार को यह समझने की जरूरत है कि सेना में भर्ती होना महज एक देशभक्ति और देश सेवा का मामला नहीं है। उसके साथ यह एक नौजवान के रोजगार और रोजी-रोटी का भी अवसर होता है। जिन घरों से कोई नौजवान सेना में भर्ती हो जाता है उसके परिवार की उनसे बहुत उम्मीदें जुड़ जाती हैं। उसके सिर पर देश के साथ-साथ पारिवारिक जिम्मेदारियों का भी बोझ लाद दिया जाता है। जिनके घर महज झोपड़ी होती है, वह एक मकान बनवाने की कोशिश करते हैं। जिनके घर में तीन-चार अविवाहित लड़कियां होती हैं, उनके शादी करने की जिम्मेदारी इन युवाओं पर ही होती है। घर में छोटा भाई या बच्चे पढ़ रहे होते हैं तो उनके पढ़ाई का खर्च भी वहन करना पड़ता है और उस नौजवान का खुद का भी कुछ सपना होता है जो देश की सेवा के साथ कमाये गए पैसों से अपनी आवश्यकता को पूरा करना चाहता है।"

अग्निपथ योजना के दुष्परिणामों पर कई और भी गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। बड़ा सवाल यह भी है कि सरकार चार साल के लिए फौज में सिपाही बहाल कर रही है और पांचवें साल अगर लड़ाई छिड़ गई तो वह क्या करेगी?  क्या किसी देश की फौज ऐसे ही चलती है? सेना अगर देश का गौरव है तो चार साल के लिए ठेके पर उठाने का मतलब क्या है?  जिनके पास बिस्सा भर जमीन और रहने के लिए घर तक नहीं है, वह महज 12 लाख में क्या कर सकता है? 25-26 साल की उम्र नौजवान की शादी करने की होती है। ऐसे में क्या वह भूतपूर्व सैनिक कहा जा सकेगा? नौकरी करने के बाद भी वह सामान्य जीवन जी सकेगा? चार साल में रिटायर होने के बाद अग्निवीर क्या 12 लाख में अपने बच्चों को अच्छी मेडिकल या इंजीनियरिंग की शिक्षा दे पाएगा? क्या वह अपने घर में छोटी बहनों की शादी कर पाएगा? क्या वह अपने परिवार के लिए एक मकान बनवा पाएगा? जिस हिंसा के लिए सरकार नौजवानों की घेराबंदी कर रही है, सरकार उन्हें अपनी अग्निपथ स्कीम क्यों समझा नहीं पा रही है। यह स्थिति तब है जब इस योजना को लाने के लिए मोदी सरकार को पिछले दो साल से तैयारी करनी पड़ रही थी।

(बनारस स्थित विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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