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हरियाणा: 17 अगस्त तक बढ़ी आशा वर्कर्स की हड़ताल, बोलीं ‘मजबूरी में उठाया क़दम’

आशा वर्कर्स का कहना है कि यदि अब भी शासन-प्रशासन इनकी मांगों की अनदेखी करता है, तो ये हड़ताल और लंबी चल सकती है।
asha workers

हरियाणा में पिछले तीन दिनों से जारी आशा वर्कर्स की हड़ताल अब एक सप्ताह और यानी 17 अगस्त तक बढ़ गई है। प्रदेश की आशा कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार और स्वास्थ्य विभाग लगातार उनकी मांगों की अनदेखी कर रहा है। आरोप है कि बीते 8 अगस्त से हड़ताल पर गईं इन आशाकर्मियों की कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही, न ही अब तक शासन-प्रशासन से किसी ने इनसे कोई मुलाकात ही की है। इनका ये भी कहना है कि राज्यभर की 20 हज़ार आशा वर्कर्स सरकार की वादाखिलाफी से परेशान होकर मजबूरी में हड़ताल पर बैठी हैं।

बता दें कि ये हड़ताल मानदेय बढ़ोतरी समेत कई अन्य मांगों को लेकर की जा रही है, जिसे लेकर प्रदेश की आशा वर्कर्स लंबे समय से प्रदर्शन और संघर्ष करती आ रही हैं। इनके मुताबिक, "यदि अब भी शासन-प्रशासन हमारी मांगों की अनदेखी करता है, तो ये हड़ताल और लंबी चल सकती है। और इन सब के चलते स्वास्थ्य विभाग में जो भी दिक्कतें आएंगी, अकेली सरकार ही उसकी ज़िम्मेदार होगी।"

"कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही"

आशा वर्कर यूनियन के बैनर तले होने वाली इस हड़ताल में राज्य के सभी जिलों की आशा वर्कर्स हिस्सा ले रही हैं और इस दौरान कई संबंधित अधिकारियों को ज्ञापन भी सौंपें गए हैं। इससे पहले भी इन आशा वर्कर्स ने अपनी मांगों और समस्याओं को लेकर बार-बार स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारियों और सरकार को पत्र लिखा है, लेकिन आरोप है कि अभी तक इनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई है।

ज्ञात हो कि अभी हाल ही में केंद्रीय मज़दूर संगठन 'सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीआईटीयू)' से जुड़ी आशा वर्कर्स यूनियन-हरियाणा ने अपनी मांगों को लेकर कई प्रदर्शन किए हैं, जिसके चलते इन वर्कर्स का आरोप है कि "इन्हें नौकरी से निकाले जाने संबंधी नोटिस दिए जा रहे हैं और कई वर्कर्स की छटनी भी की गई है। बावजूद इसके आशा वर्कर्स अपने संघर्ष को जारी रखे हुए हैं।"

"मर्ज़ी से नहीं, मजबूरी में इस हड़ताल को आगे बढ़ाया"

यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष सुरेखा न्यूज़क्लिक से कहती हैं, "आशा कार्यकर्ताओं ने मर्ज़ी से नहीं, बल्कि मजबूरी में इस हड़ताल को आगे बढ़ाया है। स्वास्थ्य विभाग की तमाम योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर आम जनता के बीच लागू करने का महत्वपूर्ण काम आशा वर्कर्स करती हैं, लेकिन हमारी मांगों पर कोई सुध लेने वाला नहीं है, कोई इस पर सुनवाई करने वाला नहीं है। इसलिए हमें इस आंदोलन को और आगे बढ़ाना पड़ा।"

सुरेखा आगे बताती हैं कि "प्रदेश में अभी भी 2018 से मिलने वाला पुराना इंसेंटिव जारी है, जबकि काम और महंगाई कई गुना बढ़ गई है। राज्य स्वास्थ्य विभाग बिना किसी आधार के कह रहा है कि आशा वर्कर्स को प्रति माह 19 हज़ार का मानदेय मिलता है, लेकिन सच्चाई तो ये है कि एक आशा कार्यकर्ता को हर महीने चार हज़ार रूपये और कुछ इंसेंटिव मिलते हैं। सभी भत्ते मिलाकर कुल आठ से नौ हज़ार के आस-पास मानदेय मिलता है, जो आज की महंगाई के हिसाब से काफी कम है। इसके अलावा इन कार्यकर्ताओं के ढ़ाई से तीन हज़ार रूपये मीटिंग और फैसिलिटेटर के यहां आने-जाने में खर्च हो जाते हैं। ऐसे में ये क्या खाएं और क्या बचाएं।"

क्या हैं आशा वर्कर्स की प्रमुख मांगें?

  • आशा वर्कर्स के मानदेय में बढ़ोतरी हो और उन्हें पक्का किया जाए।
  • मानदेय और प्रोत्साहन राशियों को महंगाई भत्ते के साथ जोड़ा जाए।
  • पीएफ और रिटायरमेंट सहित सभी सामाजिक सुरक्षा लाभ मिले।
  • अनुभव और योग्यता के आधार पर पदोन्नति हो।
  • सभी आशा सेंटर पर बुनियादी ज़रूरत की चीज़ों के साथ बैठने की व्यवस्था हो।
  • मीटिंग, फैसिलिटेटर विज़िट के लिए अतिरिक्त पैसा मिले।
  • किराया भत्ता, ड्रेस और बाकी ज़रूरतों के लिए उचित राशि मिले।

आशा वर्कर्स की मानें, तो "उन्हें बिना मानदेय दिए ऑनलाइन काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। पहले उन्हें सिर्फ स्वास्थ्य विभाग के कार्य सौंपे गए थे लेकिन अब नशाखोरी और पुलिस के अन्य विभागों के सर्वे भी उन्हीं से करवाए जा रहे हैं। उन्हें न तो कोई अवकाश मिलता है और न ही किसी तरह की कोई सुविधा। ऐसे में एक ओर उनके काम का बोझ बढ़ गया है, वहीं दूसरी ओर मना करने पर नौकरी से निकालने की धमकी दी जा रही है जिसके चलते ये कार्यकर्ता मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो रही हैं।"

आशा वर्कर्स यूनियन का कहना है कि “27 दिसंबर 2022 को जब प्रदेश भर की हज़ारों आशा वर्कर्स ने अपनी मांगों व समस्याओं को लेकर प्रदर्शन किया था, तब उच्च अधिकारियों की ओर से आशा वर्कर्स यूनियन के प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया गया था कि विधानसभा सत्र समाप्त होते ही स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज समेत तमाम उच्च अधिकारियों के साथ यूनियन के प्रतिनिधिमंडल की बैठक कराई जाएगी और समस्याओं का समाधान किया जाएगा। परंतु 6 महीने बीत जाने के बाद भी यह मीटिंग नहीं हो पाई है। यानी ये आशाकर्मियों के साथ आश्वासन के नाम पर एक धोखा किया गया था।”

ध्यान रहे कि हरियाणा में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में कई कर्मचारी संगठन, युवा, महिलाएं, और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सरकार के ख़िलाफ़ पहले ही मोर्चा खोले हुए हैं। सभी सरकार पर अनदेखी और वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे हैं। ऐसे में खट्टर सरकार के लिए आशा वर्कर्स की हड़ताल निश्चित तौर पर एक नई चुनौती होगी।

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