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हरियाणा : गौरक्षा के नाम पर लूट! क्या मुस्लिम गाय नहीं पाल सकते हैं ?

"एक गाय 30 से 50 हज़ार की होती है। ये लोग हमारी 56 गाय ले गए। इन्हीं गायों का दूध बेचकर हम अपने परिवार का गुजर-बसर करते थे। अब हम क्या करें?"
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देश में बीते कुछ सालों में गौरक्षा के नाम पर सड़कों पर लोगों को प्रताड़ित किया जाना तो आम बात हो गई है लेकिन बीते 30 जून को एक नया मामला सामने आया कि कथित गौ रक्षकों ने गौरक्षा के नाम पर एक तरह की 'डकैती' को अंजाम दिया और फरीदाबाद के खोरी जमालपुर के पशुपालक किसान के घर में बंधी 50 से अधिक गाय, 17 बकरी और 6 गधे छीनकर अपने साथ ले गए। गौरक्षा के नाम पर इस तरह की कथित डकैती की घटना बेहद चौंकाने वाली है। इस घटना के चार दिन बाद बुधवार को न्यूज़क्लिक की टीम ने हरियाणा के फरीदाबाद जिले के खोरी जमालपुर गांव का दौरा किया और पीड़ित परिवार के साथ ही अन्य ग्रामीणों से मिलकर यह समझने की कोशिश की कि आखिर अब माहौल क्या है।

जब बुधवार, 4 जून को हम गांव पहुंचे तो हमने वहां लोगों में एक अजीब सा डर महसूस किया। गांव से बाहर की गाड़ी देखते ही सभी लोग चौंक गए और महिलाएं अपने बच्चों को लेकर घरों में चली गईं। इसके अलावा वहां जो पुरुष बैठे थे उनमें से भी ज़्यादातर लोग पशुधन लूट पर बात करने से बच रहे थे। जब हमने उन्हें बताया कि हम मीडिया से हैं तो उन्होंने कहा कि अभी उन्हें कोई बात नहीं करनी है, अभी समझौता चल रहा है, पहले हमें हमारी गाय मिल जाए, अभी हम सब इसी कोशिश में लगे हुए हैं। एक लंबी कोशिश के बाद कुछ लोग बात करने को राज़ी हुए लेकिन उनमे भी एक डर दिख रहा था। उन्हें ऐसा लग रहा था कि अगर कुछ बोला तो उनके लूटे गए मवेशी भी शायद न मिलें। इस घटना में बड़ी बात यह है कि पीड़ित परिवार पर भी गोकशी का मुकदमा लगाया हुआ है, इस बात से भी लोग खौफ में हैं।

क्या है पूरा मामला ?

30 जून की रात, हरियाणा के फरीदाबाद-गुरुग्राम बॉर्डर स्थित गांव खोरी जमालपुर के निवासी हाजी जमाल अली की 56 गाय और 17 बकरियों को छीने जाने का मामला सामने आया है। आपको बता दें, ये गांव अरावली की पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। इस गांव के ज़्यादातर लोग पशुपालक हैं और इसी से इनके घर का खर्चा चलता है। ये लोग साल के आठ से नौ महीने तक अपने पशुओं को अरावली की पहाड़ी पर ही रखते हैं लेकिन जब भीषण गर्मी होती है तब ये लोग अपने सभी पशुओं को नीचे लाते हैं और किसानों के खेतों में रखते हैं क्योंकि इस समय गेहूं कटाई के बाद किसानों के खेत खाली रहते हैं और ये किसान खुद इनसे आग्रह करते हैं कि वो अपने मवेशी इनके यहां बांधें क्योंकि पशुओं के मल से उन्हें प्राकृतिक खाद मिलता है। यही कारण है कि खेत मालिक इन पशुओं के लिए पीने के पानी की व्यवस्था और बाक़ी इंतज़ाम भी करते हैं। कई लोगों ने बताया कि इस काम के लिए, किसान, पशुपालकों को कुछ पैसा भी देते हैं। गांव वालों का कहना है कि ये कोई नई बात नहीं है, यहां कई पीढ़ियों से ये व्यवस्था चलती आ रही है।

30 जून की रात, मवेशियों की लूट का मामला भी इस क्रम में हुआ है। हाजी जमात अली ने अपने गांव से तीन-चार किलोमीटर दूर बाई खेड़ा गांव जो कि गुरुग्राम जिले में है, वहां के एक किसान के खेत में अपने पशुओं को रखा था। उनकी देख-रेख के लिए उनके बच्चे वहीं मौजूद थे। पिछले डेढ़ दो महीने से उनके जानवर उसी खेत में रह रहे थे लेकिन अचानक 30 जून को गले में भगवा गमछा डाले कुछ नौजवान सांप्रदायिक नारे लगाते हुए यहां आए और खेत में बंधे सभी मवेशी अपने साथ ले गए। जमात अली के परिवार के मुताबिक "ये सब बजरंग दल के लोग थे।"

जमात अली के घर पर जब हमने लोगों से बात की तो परिवार का कहना था, "हमारा तो सबकुछ चला गया। पूरे जीवन भर की कमाई थी। एक गाय 30 से 50 हज़ार की होती है। ये लोग हमारी 56 गाय ले गए। इन्हीं गायों का दूध बेचकर हम अपने परिवार का गुजर-बसर करते थे। इसके अलावा हमारे पास कोई काम नहीं है, अब हम क्या करें?"

इस बीच घर की एक महिला हमारे लिए पानी लेकर आईं और उदासी भी आवाज़ में कहा, "हम अभी तो आपको चाय के लिए भी नहीं पूछ सकते क्योंकि गायों की छिन जाने के बाद हमारे पास इतना भी दूध नहीं है कि चाय बना सकें। यह घटना तब हुई जब हमारे घर में शादी थी और हम सभी लोग अपनी बेटी की शादी की तैयारियां कर रहे थे। दो जुलाई को हमारी बेटी की शादी थी लेकिन एक जुलाई को सब कुछ बदल गया। इससे पहले परिवार में खुशी का माहौल था। इस घटना के बाद हमने बेटी की शादी तो की लेकिन अच्छे से घर से विदा नहीं कर पाए। न कोई रिश्तेदार आया, न बारात। हम चुपचाप अपनी बेटी को उसके ससुराल में ले गए और वहीं उसका निकाह पढ़ा दिया। उसके विदाई के सारे सामान भी घर में ही रखे हैं। हम अपनी बेटी की शादी भी ढंग से नहीं कर पाए और डर के कारण हमने बारात को भी नहीं बुलाया।"

क्या मुसलमान गाय नहीं रख सकता?

जमात अली के घर के बाहर बैठे अन्य ग्रामीणों में से एक ने बातचीत के दौरान सवाल पूछते हुए कहा कि "क्या अब देश में मुसलमान गाय नहीं पाल सकता है?" शहज़ाद जो जमात अली के छोटे भाई है, उन्होंने कहा, "हम पीढ़ियों से यही काम करते आए हैं। उन्होंने दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों के गौहत्या के सवाल पर कहा, "हमने आज तक कभी कोई गाय या भैंस नहीं काटी है क्योंकि हम उनका उतना ही सम्मान करते हैं जितना कोई हिंदू भाई।"

शहज़ाद ने कहा, "ये गौहत्या के नाम पर लूट और आतंक कर रहे हैं, इससे हमें बेहद तकलीफ होती है। आज हमारी पूरी उम्र निकल गई लेकिन कभी हमें ये नहीं पता चला कि हम हिंदू हैं या मुसलमान। यहां आस-पास लगभग 10 से 12 गांव हैं जहां शादी से लेकर बाक़ी सभी कामों में हिंदू-मुस्लिम एक साथ रहते हैं। हमारी शादियों में कभी नोनवेज (मांस) नहीं बना क्योंकि हमारे आधे मेहमान हिंदू ही होते हैं। यहां 36 बिरादरी हैं और सब में बहुत भाईचारा है। ये ऐसी पहली घटना है। नौजवान लड़कों को कुछ दल वाले भड़का रहे हैं। हम तो कहते हैं कि आप कोई भी दल बनाओ लेकिन इंसानियत तो मत छोड़ो।

घटना के बाद दोबारा भाईचारा कायम करने की कोशिश जारी

शहज़ाद ने कहा, "हम कोई हल्ला-गुल्ला नहीं चाहते हैं। हम चाहते हैं कि हमारी सभी 36 बिरादरियों में भाईचारा बना रहे। इस घटना के बाद से सब लोग समझौता करा रहे हैं। सभी ज़िम्मेदार लोग बैठक कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि हमारे पशु भी हमें मिल जाए और शांति बनी रहे। समाज और सभी बिरादरी के लोग इस कोशिश में लगे हुए हैं।"

जब हमने उनसे पूछा कि क्या समझौते के साथ न्याय ज़रूरी नहीं है? इस पर उन्होंने कहा, "देखिए बात जितनी बढ़ाएंगे उतनी बढ़ेगी। सब अपने ही हैं, कुछ बाहर वाले थे जो हमारे बच्चों को हमसे लड़ाना चाहते हैं लेकिन हम चाहते हैं कि जो हमारा नुकसान हुआ है वो मिल जाए बाक़ी सब जैसे रहते थे वैसे ही रहें।"

हम बाई खेड़ा (जिस गांव में उन्होंने अपने मवेशी बांधे थे) भी गए। उस गांव की हिंदू आबादी ने एक बात तो मानी कि ये गलत हुआ है, ऐसा नहीं होना चाहिए था। नाम न बताने की शर्त पर एक किसान ने कहा, "बात सही है, ये हमारे यहां पशु बांधते हैं। कभी कोई गलत काम नहीं किया। हमारे घरों में सभी का आना-जाना है। सभी में भाईचारा है, ये कुछ नए बच्चे हैं जो ये गलत काम कर रहे हैं।"

57 वर्षीय अज़हर जो मज़दूरी करते हैं, उन्होंने कहा, "इस पूरे इलाक़े में कोई फैक्ट्री नहीं है इसलिए जिसके पास ज़मीन है वो खेतों में काम कर रहे हैं और जिनके पास पशु हैं वो दूध का काम कर रहे हैं। हालांकि पहले और भी ज़्यादा पशुपालक थे लेकिन बच्चे इन कामों से बच रहे हैं।"

आपको बता दें, ये गांव जंगल और पहाड़ों के बीच स्थित है। यहां स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार जैसी मूलभूत सुविधाओं का भी भारी अभाव है। यहां के ज़्यादातर लोग खेती और पशुपालन पर ही निर्भर हैं। यहां के कुछ परिवार ऐसे हैं जिनके पास 60 से अधिक गाय और भैंस हैं और ये उनका दूध बेचकर ही अपना गुज़ारा करते हैं। जमालपुर के ही एक अन्य पशुपालक ने हमें बताया कि उसके पास 50 दुधारू गाय हैं। हालांकि इस घटना के बाद से वो भी चिंतित हैं और उन्होंने अपने जानवर खेत से निकाल कर वापस पहाड़ पर चढ़ा लिए हैं। गांव में लोग गधे भी रखते हैं क्योंकि गधों का इस्तेमाल वो दूध को पहाड़ से नीचे लाने और पानी या खाने को ऊपर चढ़ाने के लिए करते हैं। कथित गौ रक्षक टोली पर गाय के साथ बकरी और गधे उठा ले जाने के आरोप हैं।

क्या कर रहा है प्रशासन?

हाजी जमात अली पर 30 जून को कथित गौ रक्षकों ने गुरुग्राम में गौतस्करी का केस दर्ज कर दिया था। इस मामले में सोहना गुरुग्राम के एसीपी नवीन सिंधू ने मीडिया से बातचीत में कहा कि जमात अली के खिलाफ गौ तस्करी का मुकदमा दर्ज हुआ है। केस दर्ज होने के दो दिन बाद उन्होंने अपनी शिकायत दी। जबकि पुलिस ने बिट्टू बजरंगी और अन्य लोगों पर धार्मिक उन्माद फैलाने को लेकर नामजद मुकदमा भी दर्ज किया है।

हालांकि पुलिस कार्रवाई के बीच दोनों पक्षों में समझौते की प्रक्रिया भी चल रही है। इसमें गांवों के सरपंच और ज़िम्मेदार लोग बैठक कर रहे हैं।

इस पूरे घटनाक्रम में एक तरफ पीड़ित परिवार है जो सहमा हुआ दिख रहा हैं जबकि दूसरी तरफ आरोपी हैं जिनमें किसी भी तरह का कोई डर नहीं दिख रहा। फरीदाबाद के बजरंग दल के नेता और इस मामले में आरोपी पंकज जैन ने न्यूज़क्लिक से फोन पर बातचीत में माना था कि वो अपने साथियों के साथ पशु लेकर आए थे क्योंकि उन्हें वहां गौहत्या किए जाने की सूचना मिली थी। उन्हें इस घटना को लेकर कोई भी पश्चाताप नहीं है। हालांकि जब हमने उनसे मिलने की कोशिश की तो उन्होंने फोन नहीं उठाया।

हरियाणा में बजरंग दल और अन्य संगठनों के हौसले बुलंद

बजरंग दल एक हिंदू संगठन है जो विश्व हिंदू परिषद की युवा शाखा है। विनय कटियार ने 1984 में इसकी स्थापना की थी। गौरतलब है कि 1992 के बाबरी विध्वंस के लिए बजरंग दल ने बड़ी संख्या में लोग जमा किये थे।

हरियाणा सरकार ने साल 2015 में गोसंवर्धन एवं संरक्षण क़ानून लागू किया था। इस क़ानून को मजबूत बनाने के लिए 2021 में गौरक्षा टास्कफोर्स का गठन किया गया था। इसके तहत गौरक्षा दल बना जिसमें सरकार के साथ ग़ैर सरकारी लोग भी हैं। यह गौरक्षा दल इलाक़े में गौ तस्करी, गौ हत्या की घटनाओं को ट्रैक करता है और पुलिस को सूचित करता है।

इस क़ानून की आड़ में ही बीते कुछ सालों में हरियाणा में गाय के नाम पर हिंसा बढ़ी है। अक्सर आरोप लगते हैं कि इसकी मदद लेकर हिंदू संगठन मुसलमानों को प्रताड़ित करते हैं। कई मामलों में तो इन कथित गौरक्षकों पर हत्या का भी आरोप लगा है। खोरी जमालपुर की घटना को देखें तो पहले सड़कों तक इनका खौफ था लेकिन अब ये लोग गांवों और घरों में रखे पशुओं को भी उठाने लगे हैं। हालांकि इस तरह की घटना को धर्म और गौरक्षा के नाम अंजाम दिया जा रहा है लेकिन इसकी प्रकृति किसी डकैती से कम नहीं है।
 

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