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समाज की बेटी को न्याय दिलाने के लिए योगी से टकराए सफ़ाई कर्मचारी

पहली बार है जब सफ़ाई कर्मचारी अपने समाज की बेटी के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं। रैली धरना कर रहे हैं। कैंडल मार्च कर रहे हैं।
समाज की बेटी को न्याय दिलाने के लिए योगी से टकराए सफ़ाई कर्मचारी

अभी तक आमतौर पर सफ़ाई कर्मचारी नगर पालिका, नगर निगम से अपनी मांगें मनवाने के लिए सड़क पर उतरा करते थे। हड़तालें किया करते थे। पर पहली बार है जब सफ़ाई कर्मचारी अपने समाज की बेटी के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं। रैली धरना कर रहे हैं। कैंडल मार्च कर रहे हैं। जिला अधिकारी से लेकर राष्ट्रपति तक ज्ञापन दे रहे हैं। और निर्भय होकर कह रहे हैं कि जब तक हमारे समाज की बेटी को न्याय नहीं मिल जाता तब तक हम अपना धरना-प्रदर्शन जारी रखेंगे।

इन संगठनों ने ऐलान किया है कि अगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हमारे समाज के बेटी के साथ न्याय नहीं करेंगे। उसके कातिलों को सज़ा नहीं दिलाएंगे तब तक हम अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे। सफ़ाई व्यवस्था को ठप कर देंगे।

अधिकतर सफ़ाई कर्मचारियों के सामाजिक संगठनों का कहना है कि हाथरस प्रकरण को योगी जी डाइवर्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें जातिगत हिंसा भड़काने का षड्यंत्र  बता रहे हैं। कुछ ऐसी एजेंसियों के नाम ले रहे हैं जो इस प्रकरण के बहाने सुनियोजित दंगों की साजिश रच रही हैं। उनका कहना है कि इसके लिए विदेशों से  इस्लामिक फण्ड आ रहा है। वे ऐसा आरोप लगा रहे हैं और हमें भी दिग्भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं। पर हम ‘पीडिता के लिए न्याय’ की अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।

सरकार का जातिवादी नज़रिया

सफ़ाई कर्मचारियों का आरोप है कि चूंकि पीडिता के आरोपी उच्च कही जाने वाली ठाकुर जाति के हैं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं ठाकुर हैं इसलिए वे अप्रत्यक्ष रूप से आरोपियों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। उनका कहना है कि हाथरस में धारा 144 लगती है फिर भी 12 गाँव के उच्च जाति के लोग आरोपियों को बचाने के लिए हजारों की संख्या में इकट्ठे होकर महापंचायत करते हैं। धारा 144 के उल्लंघन करने पर कानून के रक्षक उन पर कोई कार्रवाई नहीं करते बल्कि पुलिस उनको रोकने की बजाय उनका संरक्षण करती है। पंचायत के लोग अपनी जाति के आरोपियों को निर्दोष बताते हैं। भाजपा के कुछ कार्यकर्ता पीड़िता के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं तो भाजपा के विधायक स्तर के लोग भी बलात्कारों को रोकने के लिए लड़कियों के लिए मां-बाप द्वारा अच्छे संस्कार देने की बात कह रहे हैं।

कांग्रेस और भीम आर्मी के साथ-साथ सफ़ाई कर्मचारी संगठन भी यह मांग कर रहे हैं कि यूपी के मुख्यमंत्री ने संवाद से समस्याओं को हल करने की बात कही तो क्या वे पीड़ित परिवार की बात सुनेंगे? हाथरस के डीएम पर कार्रवाई कब करेंगे? पीड़िता के परिवार को धमकाने वाला डीएम कुर्सी पर क्यों बैठा है? न्यायिक जांच के आदेश कब देंगे?

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सफ़ाई कर्मचारियों ने दिखाई एकजुटता 

उत्तर प्रदेश सफ़ाई मजदूर संघ के जिलाध्यक्ष बाबू लाल कौशल ने कहा कि हमें एकता बनाए रखनी है। जितने भी वाल्मीकि समाज के संगठन हैं, वह सब एक मंच पर आकर दोषियों को फांसी दिलाने के लिए संघर्ष करें।

उत्तर प्रदेश में ही कई जिलों जैसे आगरा, रामपुर, अलीगढ आदि में दलित लड़की के प्रति होने वाली हैवानियत के विरोध में सफ़ाई कर्मचारियों ने हड़ताल की और सफ़ाई का काम ठप किया। इसके अलावा अन्य राज्यों जैसे दिल्ली, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ आदि कई राज्यों में सफ़ाई कार्य ठप करने की घोषणा की गई।

रामपुर में हाथरस प्रकरण को लेकर भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज एवं उत्तर प्रदेश सफ़ाई संघ के आह्वान पर सफ़ाई कर्मचारियों ने शहर में सफ़ाई कार्य ठप कर प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने दोषियों को फांसी की सजा दिलाने की मांग की। भारतीय वाल्मीकि धर्म सभा (भावाधस) के राष्ट्रीय प्रमुख वीरेश भीम अनार्य ने कहा कि वाल्मीकि समाज का आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच, पीड़ित परिवार को एक करोड़ रुपये की मदद और हाथरस के डीएम, एसपी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं हो जाती।

नगर निगम अलीगढ़ में 30 सितम्बर 2020 को सफ़ाई काम बंद हड़ताल की की गई थी।

दिल्ली में लोग बड़ी संख्या में जंतर-मंतर पर इकट्ठे हुए और पीड़िता के लिए न्याय की मांग की। कई राज्यों में जिलाधिकारियों को राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन सौंपें गए। अनेक जगह कैंडल मार्च किया गया और नारे लगाए गए।

इस बार वाल्मीकि समाज के बहुत से संगठनों ने अपना विरोध प्रदर्शन किया है। भीम आर्मी ने भी आगे आकर पहल की है। वाल्मीकि समाज ने पहली बार इस तरह की एकता दिखाई है। निश्चित रूप से यह सकारात्मक पहल है।

वाल्मीकि समाज के लोगों से बातचीत करने पर ज्यादातर लोगों का यही कहना था कि मामला फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में चला कर अपराधियों को फांसी के फंदे पर लटका दिया जाना चाहिए। दिल्ली की निर्भया की तरह मामले को वर्षों तक नहीं खींचा जाना चाहिए।

जाति का खेल सारा

दूसरी ओर हाथरस गैंगरेप कांड की शिकार पीड़िता के परिवार के खिलाफ अब आरोपी पक्ष भी एकजुट होने लगा है। आरोपियों के पक्ष में गांव बघना में सवर्ण समाज के लोगों ने इकट्ठा होकर पंचायत की है। इस पंचायत में 12 गांवों से हजारों की संख्या में लोग एकत्र हुए।

इन सभी ने सीधे तौर पर आरोपियों को निर्दोष बताते हुए प्रकरण की सीबीआई जांच सहित नार्को टेस्ट की मांग की है। वहीं पंचायत में इकट्ठे हुए लोगों ने हाथरस गैंगरेप पीड़िता के भाई पर ही उसकी हत्या का आरोप लगाया है। सवर्णों के नेता राजबीर पहलवान ने तो यहाँ तक कहा कि संदीप के अलावा जिन तीन लड़कों को आरोपित किया गया है वे तो पीडिता के साथ घटना के समय मौजूद ही नहीं थे।

हाथरस के डीएम प्रवीण कुमार के रवैये को भी इसी जातिवादी नज़रिये से देखा जा रहा है। आरोप है कि डीएम ने सरेआम पीड़ितों को धमकाया कि तुम अपने बयान बदल लो। उनका यह वीडियो बहुत वायरल हुआ जिसमें वह कहते सुने जा सकते हैं कि ये मीडिया वाले तो आज हैं कल चले जायेंगे।

लेकिन मुख्यमंत्री ऐसे डीएम के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लेते। इसलिए ये संदेह होता है कि मुख्यमंत्री ऐसे अधिकारियों के बचाव कर रहे हैं। साथ ही ये बात और पुख़्ता होती है कि हाथरस में सबकुछ मुख्यमंत्री के आदेश पर ही हो रहा था।

मीडिया की जातिवादी मानसिकता

शुरुआती दौर में मुख्यधारा का मीडिया भी ख़ामोश रहा। क्योंकि अपराधी ठाकुर जाति के थे और पीड़िता अनुसूचित जाति की। वह उच्च कहे जाने वाली जाति की निर्भया नहीं थी। मेनस्ट्रीम मीडिया ने भी अपना जातिवाद दिखा दिया। बाद में जब सोशल मीडिया के माध्यम से मामले ने तूल पकड़ा तब उसे भी इस मामले की कवरेज देनी पड़ी। यह मीडिया ही था जिसने 2012 में निर्भया के साथ हुई बर्बर हैवानियत के लिए लोगों को इतना संवेदित और आंदोलित कर दिया था कि पूरे देश के लोग निर्भया के लिए न्याय मांगने को एक साथ खड़े हो गए थे। उस समय निर्भया किसी जाति विशेष की बेटी नहीं बल्कि देश की बेटी थी। यहां पीड़िता का नाम और जाति दोनों उजागर कर दी गईं। इस वजह से जातिवादी मानसिकता के लोगों का समर्थन पीडिता को नहीं मिला।

लोकतान्त्रिक और प्रगतिशील संगठनों की पहल

हाथरस प्रकरण पर सकारात्मक पहलू यह है कि इसमें सिर्फ सफ़ाई कर्मचारी ही नहीं बल्कि अनेक दलित और गैर दलित संगठन पीड़िता के न्याय के लिए आगे आए हैं। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दे को हाई लाइट किया है और सरकार पर दबाव बनाया है। उन्होंने जगह-जगह कैंडल मार्च किया। जुलूस निकाला। ज्ञापन दिए। पीड़िता के लिए न्याय की मांग की। दोषियों को सज़ा देने की मांग की। धरना-प्रदर्शन किया। मीडिया का ध्यान आकर्षित किया। इस बर्बर हैवानियत के खिलाफ छात्र-छात्राए यानी युवा वर्ग आगे आया। इससे सफ़ाई कर्मचारियों की हिम्मत और हौसला बढ़ा कि अन्याय के खिलाफ इस लड़ाई में वे अकेले नहीं हैं। निश्चित रूप से मानवतावादी इन संगठनों की पहल सराहनीय है।

(लेखक सफ़ाई कामचारी आंदोलन से जुड़े हैं। विचार निजी हैं।)

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