Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

शी जिनपिंग की सऊदी यात्रा का ऐतिहासिक महत्व

चूंकि चीनी राष्ट्रपति की यात्रा प्रतीकात्मकता से भरी है, जो एक बड़े भू-रणनीतिक बदलाव का कारण बन सकती है।
china
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग कथित तौर पर दिसंबर 2022 के दूसरे सप्ताह में सऊदी अरब जाने की योजना बना रहे हैं

यह रिपोर्ट कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग पार्टी कांग्रेस के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा की योजना बना रहे हैं और यह यात्रा सऊदी अरब की हो सकती है, भारी प्रतीकात्मकता से भरी हुई है। वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, इस दौरे के दिसंबर की शुरुआत में होने की संभावना है और इसकी बड़ी तैयारी चल रही है।

दैनिक अखबार ने इस बात तैयारियों में लगे लोगों का हवाला दिया कि चीनी नेता का "स्वागत बड़े धूम-धाम से होने की संभावना है" जो डोनाल्ड ट्रम्प की 2017 की यात्रा के मेल की होगी। 

इस यात्रा का मुख्य और केंद्रीय बिंदु चीनी-सऊदी तेल "गठबंधन" के भविष्य के बारे में होगा – बल्कि इसका मक़सद रूसी-सऊदी ओपेक+ जैसा गठबंधन होगा। यह दर्शाता है, कि पश्चिम एशियाई क्षेत्र में नाटकीय रूप से बदलते या बनते गठबंधन, भू-राजनीति में शी की आगामी यात्रा से बहुत कुछ निकलने वाला है और विश्व व्यवस्था पर इसका प्रभाव दूरगामी हो सकता है।

मुद्दा यह है कि चीन और सऊदी अरब दोनों प्रमुख क्षेत्रीय शक्तियां हैं और उनके द्विपक्षीय तालमेल का कोई भी ढांचा अंतरराष्ट्रीय राजनीति को काफी प्रभावित करेगा। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने आगे कहा कि, "बीजिंग और रियाद संबंधों को मबुत करना चाहते हैं और एक बहुध्रुवीय दुनिया की दृष्टि को आगे बढ़ाना चाहते हैं जहां अमेरिका अब वैश्विक व्यवस्था पर हावी नहीं है।"

निस्संदेह, यूक्रेन में युद्ध इसकी तत्काल पृष्ठभूमि है। संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए इस सब से निकालना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। एक महाशक्ति के रूप में अपनी विश्वसनीयता, अपने ट्रान्साटलांटिक नेतृत्व को कमजोर करे बिना और यहां तक कि पश्चिमी गठबंधन की प्रणाली को भविष्य में जोखिम में डाले बिना, उसके लिए युद्ध खुद को एक बड़े नुकसान का सामना किए बिना निकलना बहुत कठिन होगा। 

चीन और सऊदी अरब, दोनों ने जरूर यह निष्कर्ष निकाला होगा कि यूक्रेन युद्ध पर "द्विपक्षीय सहमति" अमेरिकी राजनीतिक अभिजात वर्ग के बीच भयंकर युद्ध से बच नहीं सकती है, जिसका मध्यावधि चुनाव खत्म होने के बाद बहुत जल्द टूटना निश्चित है। यदि रिपब्लिकन प्रतिनिधि सभा पर नियंत्रण हासिल कर लेते हैं, तो वे राष्ट्रपति बाइडेन के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने के लिए आगे बढ़ सकते हैं। 

रविवार को गाइजीययन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण का शीर्षक, ‘राजनीतिक हिंसा के लिए हालात पक्के हैं’ था: कि अमरीका गृह युद्ध के कितने करीब है? इसलिए चीन और सऊदी अरब दोनों देख पा रहे हैं कि इसके मूल में, पश्चिम एशियाई क्षेत्र में अमेरिका पीछे हट रहा है। 

शी की सऊदी अरब की यात्रा के दौरान चर्चा का एक प्रमुख विषय, "पूर्व की ओर देखो" वाली विदेश नीति की रणनीति होगी, जिसने कम से कम पिछले दशक के मध्य तक अमेरिका के पीछे हटने की आशंका जताई थी। तब 2016 में शी की सऊदी अरब की यात्रा एक ऐतिहासिक घटना थी।

निस्संदेह, बीजिंग तब से अमेरिका-सऊदी संबंधों में गिरावट को करीब से देख रहा है। और यह स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि हाल ही में, क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और बाइडेन के बीच तनाव को देखते हुए, सउदी चीन के साथ ऊर्जा सहयोग की योजना बना अरहा है। 

इसका मजबूत संकेत 21 अक्टूबर को सऊदी ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुलअज़ीज़ बिन सलमान बिन अब्दुलअज़ीज़ और चीन के राष्ट्रीय ऊर्जा प्रशासक झांग जियानहुआ, एक वरिष्ठ राजनेता (जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के 19वें केंद्रीय अनुशासन आयोग के सदस्य थे) के बीच आभासी बैठक थी। अमेरिकी अभिजात वर्ग द्वारा रियाद के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की धमकी और अमेरिका-सऊदी संबंधों में गहरे संकट के बीच यह बैठक हुई थी।

अप्रत्याशित रूप से, चीनी और सऊदी मंत्रियों के बीच प्रमुख मुद्दों में हुई चर्चा में से एक तेल बाजार था। सऊदी बयान के अनुसार, मंत्रियों ने "अंतर्राष्ट्रीय तेल बाजार की स्थिरता लाने के लिए एक साथ काम करने की सहमति जताई है" और "वैश्विक बाजार में स्थिरता लाने के लिए दीर्घकालिक और विश्वसनीय तेल आपूर्ति की जरूरत पर ज़ोर दिया है जो जटिल और  विभिन्न अनिश्चितताओं के कारण परिवर्तनशील अंतर्राष्ट्रीय स्थितियाँ से पैदा हुई है। क्या यह वही तर्क नहीं है जिसे कमोबेश ओपेक प्लस (रूसी-सऊदी तेल गठबंधन) कहता रहा है?

इस बीच, दोनों मंत्रियों ने उन देशों में सहयोग और संयुक्त निवेश पर भी चर्चा की, जिन्हें चीन अपनी रणनीतिक बेल्ट एंड रोड पहल के हिस्से के रूप में देखता है और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल (जिसका वाशिंगटन ने विरोध किया है) के बारे में एक समझौते को लागू करना जारी रखने के अपने इरादे को जताया है। 

निस्संदेह, मंत्रियों की बैठक वाशिंगटन को एक स्पष्ट फटकार थी, जिसके ज़रिए बाइडेन प्रशासन को यह याद दिलाना था कि सऊदी अरब के अन्य महत्वपूर्ण ऊर्जा संबंध हैं और सऊदी तेल नीति वाशिंगटन से नहीं आती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह अहि कि रियाद, बीजिंग और वाशिंगटन के बीच संतुलन की तलाश कर रहा है। "निरंकुशता और लोकतंत्र के बीच लड़ाई" के बारे में बाइडेन की खोखली बात सऊदी अरब को परेशान करेगी, लेकिन चीन का इसमें कोई वैचारिक एजेंडा नहीं है।

इसमें कहस बात यह है कि, सऊदी और चीनी मंत्रियों ने सऊदी अरब की तीन महाद्वीपों में चीनी निर्माताओं के लिए "इलाकाई केंद्र" की स्थापना के माध्यम से ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला में सहयोग को बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की है।

लब्बोलुआब यह है कि सऊदी राजनीतिक और व्यापारिक अभिजात वर्ग, चीन को एक महाशक्ति के रूप में देखते हैं और वे चीन से वैश्विक बातचीत की उम्मीद रखते हैं, उसी तरह जैसे चीन और रूस दोनों आम तौर पर दुनिया में शामिल होते हैं। सउदी को विश्वास है कि चीन के साथ उनकी "व्यापक रणनीतिक साझेदारी" (2016) यूक्रेन में रूस के युद्ध के बीच राज्य के बढ़ते भू-राजनीतिक महत्व को बढ़ाएगी, और यह रेखांकित करती है कि रियाद के पास अब और विकल्प हैं और इसलिए आगे चलकर एक संतुलन बनाया जा सकता है। 

सऊदी अरब के रूस के साथ भी घनिष्ठ संबंध हैं। एससीओ में एक पैर (पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त) के साथ, अब यह ब्रिक्स सदस्यता की मांग कर रहा है। ये बेहतर कदम हैं लेकिन ब्रिक्स प्रारूप एक वैकल्पिक मुद्रा प्रणाली पर भी काम कर रहा है, जो रियाद को आकर्षित करती है।

यह संयोग है या नहीं, अल्जीरिया और ईरान, दो अन्य प्रमुख तेल उत्पादक देश, जिनके रूस के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, ने भी इसी कारण से ब्रिक्स सदस्यता की मांग की है। तथ्य यह है कि सऊदी अरब उनके साथ जुड़ रहा है और पश्चिमी संस्थानों को बायपास करने और उनके साथ बातचीत के जोखिम को कम करने को तैयार है, और इसके बजाय अमेरिका या यूरोपीय संघ द्वारा नियंत्रित उपकरणों पर भरोसा किए बिना वित्तीय, आर्थिक और व्यापार संबंधों के संचालन के समानांतर तरीके तलाश कर रहा है। यह अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को एक बड़ा संदेश देना।

विरोधाभास यह है कि सामरिक स्वायत्तता को मजबूत करने का सऊदी अभियान तब तक कमजोर रहेगा जब तक पेट्रोडॉलर इसे पश्चिमी बैंकिंग प्रणाली से जोड़ेगा। इसलिए, सऊदी अरब के पास अमेरिकी डॉलर को "विश्व मुद्रा" (सोने की जगह) के रूप में स्थापित करने की अपनी 1971 की प्रतिबद्धता की निरंतर प्रासंगिकता और तेल में व्यापार के लिए केवल डॉलर का इस्तेमाल के संकल्प के संबंध में एक बड़ा निर्णय है - जिसमें से सभी पिछली आधी सदी के दौरान लगातार अमेरिकी प्रशासनों को कागजी मुद्रा मुद्रित करने में सक्षम बनाया, जैसा कि वे चाहते थे, धन को वैध बनाकर इसे जीवित रखें - और अंततः डॉलर को विश्व स्तर पर अमेरिकी आधिपत्य को लागू करने में अपने सबसे शक्तिशाली साधन के रूप में डॉलर को हथियार बनाया है। 

शी की सऊदी अरब की आगामी यात्रा पर रिपोर्टिंग करते हुए, द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने कहा है कि “सऊदी की रणनीतिक विदेश नीति, तेल उत्पादन को लेकर बाइडेन प्रशासन के साथ हाल के झटके से बड़ी है... हाल ही में, उनकी (चीन-सऊदी) सऊदी अरामको में हिस्सेदारी बेचने पर चर्चा के साथ तेज हो गई है, जिसमें अरामको के मूल्य निर्धारण मॉडल में युआन-मूल्यवान वायदा अनुबंध शामिल हैं, और संभवतः युआन में चीन को सऊदी तेल की कुछ बिक्री का मूल्य निर्धारण शामिल है।”

परंपरागत रूप से, चीजें धीमी गति से चल रही थीं जो सऊदी नीति में बदलाव का संकेत देती थीं। लेकिन क्राउन प्रिंस सलमान सऊदी गति को थोड़ा आराम देने की जल्दी में हैं और कठिन निर्णय ले सकते हैं, जैसा कि रूस के साथ गठबंधन में ओपेक प्लस का निर्माण गवाही देता है। इसलिए, युआन मुद्रा में तेल की बिक्री में अपने मूल्य निर्धारण का हिस्सा लेने के लिए सऊदी अरब का रास्ता बदलने की संभावना आज पहले से कहीं अधिक मजबूत है।

यदि चीजें वास्तव में इस दिशा में आगे बढ़ती हैं, तो निश्चित रूप से, एक बड़ा बदलाव हो सक ता है - एक प्रमुख भू-रणनीतिक बदलाव - औरशी की यात्रा ऐतिहासिक महत्व की घटना के रूप में आगे बढ़ सकती है।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित साक्षात्कार को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Historic Significance of Xi’s Saudi Visit

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest