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सरकार समय पर कार्रवाई करती तो बच जाती लोगों की जानः संसदीय समिति

कोरोना की दूसरी लहर ने लाखों जानें ले ली थीं। हालांकि सरकारें अपनी नाकामियों पर अब भी पर्दा डाले घूम रही हैं, लेकिन केंद्रीय कार्यसमिति की एक रिपोर्ट ने सरकार की कई नाकामियों को उजागर कर दिया है।
सरकार समय पर कार्रवाई करती तो बच जाती लोगों की जानः संसदीय समिति
Image courtesy : AajTak

कोरोना की दूसरी लहर में सरकारों ने जो नाकामियों के आयाम गढ़े थे, वो अब धीरे-धीरे उजागर होने लगे हैं। वैक्सीन की कालाबाज़ारी, ऑक्सीजन के ख़रीद-फ़रोख़्त में दलाली, अस्पतालों में सिर्फ़ वीआईपी लोगों का इलाज और आम लोगों द्वारा भुगती गई सारी विपदाएं अब सामने आने लगी है।

किस को नहीं याद होगा कि कैसे उत्तर प्रदेश के भीतर गंगा में लाशें ऐसे तैर रहीं थीं, जैसे मछलियों का झुंड हो, शवदाह गृहों में कई किलोमीटर लंबी लाइनें लगाई जा रही थीं, प्रवासी मज़दूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया था। ऑक्सीजन की कमी के कारण लोग सड़कों पर, घरों में, अस्पताल के सामने दम तोड़ रहे थे।

इन सबके बावजूद जब सरकार से संसद में सवाल किया गया तो पता चला कि ऑक्सीजन की कोई कमी ही नहीं थी, यानी सरकार की मानें तो अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी ही नहीं थी।

ख़ैर, यही सरकार है जिसने अपनी नाकामियों को छिपाते हुए चुनावों में ये कहकर वोट लिया कि हमने वैक्सीन बनाई और मुफ़ में बांट दी, लेकिन ये नहीं बताया कि जो लाखों लोगों की मौत हो गई उसका ज़िम्मेदार कौन है।

सरकार बताए न बताए लेकिन संसदीय कार्यसमिति की एक रिपोर्ट ने सरकारों की नाकामियों को ज़रूर सामने ला दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति इस बात से नाख़ुश है कि कई राज्य दूसरी लहर के दौरान उत्पन्न हुई अनिश्चितताओं और आपात स्वास्थ्य स्थितियों से निपटने में असमर्थ रहे, जिसके चलते पांच लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई।

दरअसल इस रिपोर्ट को समिति ने सोमवार यानी 12 सितंबर को राज्यसभा में पेश किया था और ये समिति की 137वीं रिपोर्ट है। इसमें कहा गया कि दूसरी लहर में निस्संदेह संक्रमण और मौत के मामलों में वृद्धि, अस्पतालों में ऑक्सीजन और बिस्तर की कमी, दवाओं और अन्य अहम चीजों की आपूर्ति का अभाव, आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में व्यवधान, ऑक्सीजन सिलेंडर व दवाओं की जमाखोरी और कालाबाज़ारी आदि चीज़ें देखी गईं।

रिपोर्ट में कहा गया कि यदि सरकार शुरुआत में ही विषाणु के अधिक संक्रामित होने की पहचान कर पाती और उसे रोकने के लिए सही योजना बना लेती तो नतीजे कम गंभीर होते और कई लोगों की जान बच जाती।

समिति ने ये भी बताया कि कोरोना महामारी से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले देशों में भारत भी एक रहा। देश की बड़ी जनसंख्या के कारण महामारी के दौरान बड़ी चुनौती पेश आई। समिति ने कहा कि लचर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी के कारण देश में ज़बरदस्त दबाव देखा गया। रिपोर्ट के मुताबिक़, सरकार कोरोना महामारी और इसकी लहरें कितनी ज़ोखिम भरी होंगी, इसका सही अंदाज़ा नहीं लगा पाई। समिति ने कहा कि पहली लहर के बाद जब कोरोना के मामलों में गिरावट आई थी, तभी दूसरी लहर की ख़बरें भी आने लगीं थीं, ऐसे में सरकार को धैर्यपूर्वक नहीं बैठ जाना चाहिए था, यानी दूसरी लहर को रोकने के लिए सरकार को कोशिश जारी रखनी चाहिए थीं।

समिति ने ये भी कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से राज्यों को सतर्कता बनाए रखने के लिए निर्देश दिए थे, इसके बावजूद लापरवाही बरती गई। ऐसे में लापरवाही बरतने वाले दोषियों को चिन्हित कर सज़ा देना बहुत ज़रूरी है।

भले ही समिति की रिपोर्ट राज्यों को टारगेट कर रही हो, लेकिन सही मायने में जब 2019 के आख़िर में कोरोना को पहचान लिया गया था, तब ही केंद्र सरकार को कई बड़ा निर्णय लेना चाहिए था, इसके अलावा कोरोना महामारी की शुरुआत होने के बाद सरकारों के कई ऐसे फ़ैसले हुए जिसने कोरोना महामारी को मास तक महुंचने में भी मदद की। इनमें सबसे बड़ा उदाहरण प्रवासी मज़दूरों को भूखे-प्यासे पैदल चलकर अपने-अपने गांव जाने पर मजबूर करना था।

इसके अलावा ये बात जगज़ाहिर है कि कोरोना की दूसरी लहर में सबसे ज़्यादा मौतें ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई थीं। हालांकि इस बात की ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार ने बहुत आसानी से राज्यों पर छोड़ दी थी।

इस मसले को लेकर राज्यसभा में कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने सरकार से जब सवाल पूछा कि क्या ये सच है कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से बड़ी संख्या में मरीज़ों की मौत हुई। इस पर सरकार की ओर से स्वास्थ्य राज्य मंत्री डॉक्टर भारती प्रवीण पवार ने लिखित जवाब में कहा कि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है। उनकी ओर से कोरोना से हुई मौत की सूचना दी जाती है, लेकिन इसमें ऑक्सीजन की कमी से किसी मौत की सूचना नहीं है।

यानी जब चुनाव आएंगे तब वैक्सीन लगाने का सारा श्रेय केंद्र सरकार लेगी और जब नुक़सान की बात हो तब राज्य का सहारा लेकर आसानी से बच निकलेगी। हालांकि ऑक्सीजन से हुई मौतों की सच्चाई इन दो उदाहरणों से ही सच साबित हो जाती है।

दिल्ली के बत्रा हॉस्पिटल ने हाईकोर्ट को बताया कि उनके यहां ऑक्सीजन की कमी से 12 मरीज़ों की मौत हो गई है। हॉस्पिटल के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर सुधांशु बनकटा ने कोर्ट में कहा कि उनके यहां ऑक्सीजन ख़त्म हो गई थी। समय पर नई सप्लाई नहीं मिलने से मरीज़ों की जान चली गई।

कर्नाटक हाईकोर्ट की बनाई एक कमेटी ने पाया कि दूसरी लहर के दौरान चामराजनगर के ज़िला अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से 36 लोगों की मौत हो गई। हालांकि उप मुख्यमंत्री सीएन अश्वथ नारायण ने इस रिपोर्ट के आंकड़े से इनकार किया और कहा कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल के आख़िरी दिनों में आगरा से आई एक तस्‍वीर ने सबको हिलाकर रख दिया। 43 साल की रेणु सिंघल अपने कोविड संक्रमित पति को ऑटो में लेकर एसएन मेडिकल कॉलेज पहुंची थीं। ऑक्सीजन कहीं थी नहीं तो रेणु अपने मुंह से पति को सांस देने की कोशिश करती रही। लाख जतन के बावजूद वह पति की जान नहीं बचा पाईं। पति को मुंह से ऑक्सीजन देते रेणु की तस्वीर ने देश के लोगों में एक अजीब सा ख़ौफ़ पैदा कर दिया था।

ऑक्सीजन नहीं मिल पाने के कारण हुई मौत कोई अकेला मामला नहीं है। न जाने कितने लोगों ने तो ऑक्सीजन की कमी से रास्ते में ही दम तोड़ दिया, वहीं न जाने कितने लोग अपने घर से नहीं निकल पाए। कितने ही परिवार सिर्फ़ इसलिए अपनों को नहीं बचा पाए क्योंकि ऑक्सीजन का सिलेंडर 50-50 हज़ार का बिक रहा था। और अब सरकार कहती है कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई, तो इसे क्या समझा जाए।

बात सिर्फ़ ऑक्सीजन की कमी तक ही सीमित नहीं है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में जो जमाखोरी और कालाबाज़ारी का ज़िक्र किया है, उसने भी लोगों की मौत में अपना अहम योगदान निभाया है। इन सबके बावजूद आश्चर्य तब होता है जब सरकारें लोगों की मौत को भी तमाशा बनाकर अपनी राजनीति को और मज़बूत करने में जुटी रहती हैं।

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