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भारत में असमानता की स्थिति लोगों को अधिक संवेदनशील और ग़रीब बनाती है : रिपोर्ट

प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में परिवारों की आय बढ़ाने के लिए एक ऐसी योजना की शुरूआत का सुझाव दिया गया है जिससे उनकी आमदनी बढ़ सके। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक विशेषताओं और श्रम बाज़ार के क्षेत्रों की असमानताओं पर जानकारी इकट्ठा करती है।
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'प्रतीकात्मक फ़ोटो'

देश में असमानता की स्थिति को लेकर प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक विशेषताएं और श्रम बाज़ार की असमानताएं जनसंख्या को अधिक संवेदनशील बनाती हैं, और लोगों को कई तरह से गरीबी की ओर फिसलने को मजबूर करती हैं। इस रिपोर्ट का प्रत्येक अध्याय बुनियादी ढाँचे की क्षमता और असमानता पर प्रभाव के संदर्भ में मामलों की वर्तमान स्थिति, चिंता के विषयों, सफलताओं तथा विफलताओं की व्याख्या करता है। रिपोर्ट में साफ़ तौर पर कहा गया है कि परिवारों की आय बढ़ाने के लिए एक ऐसी योजना की शुरुआत की जाए जिससे उनकी आमदनी बढ़े।

बता दें कि हाल ही में विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 सामने आई थी, जिसमें भारत में असमानता की दर को बेहद चिंताजनक बताया गया था। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि देश के शीर्ष एक प्रतिशत लोगों के पास 22 प्रतिशत आय है, संपन्न 10 प्रतिशत लोगों के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57 प्रतिशत है। तो वहीं दूसरी ओर, 50 प्रतिशत यानी कुल आबादी के आधे लोगों के पास 13 प्रतिशत आमदनी है। सरकार ने भले ही इस रिपोर्ट को खारिज़ कर दिया हो लेकिन कोरोना महामारी की त्रासदी और आए दिन बेरोज़गार होते लोगों की कहानी कुछ और ही बयां कर रही है।

क्या है पूरा मामला?

प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद के लिए ये रिपोर्ट गुड़गांव स्थित इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पीटिटिवनेस द्वारा तैयार की है। बुधवार, 18 मई को परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय द्वारा इसे जारी किया गया। इस रिपोर्ट का उद्देश्य सरकार को देश में सामाजिक प्रगति और साझा समृद्धि के लिए सुधार की रणनीति और रोडमैप तैयार करने में मदद करना है।

यह रिपोर्ट देश में असमानता की प्रवृत्ति व गहराई के समग्र विश्लेषण को प्रदर्शित करने के लिए जारी की गई है। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक विशेषताओं और श्रम बाज़ार के क्षेत्रों की असमानताओं पर जानकारी इकट्ठा करती है। रिपोर्ट के मुताबिक इन क्षेत्रों की असमानताएं आबादी को अधिक प्रभावित कर बहुआयामी गरीबी की ओर लोगों को धकेलने को मजबूर करती हैं। यह रिपोर्ट समावेश और बहिष्कार दोनों का मापन करती है और नीतिगत बहस में योगदान देती है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यूनतम आय बढ़ाना और सार्वभौमिक बुनियादी आय शुरू करना कुछ ऐसे कदम हैं जो आय के अंतर को कम कर सकते हैं और श्रम बाजार में आय का समान वितरण कर सकते हैं। विश्व असमानता रिपोर्ट से अलग इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल अर्जित आय में शीर्ष 1% की हिस्सेदारी 6-7% है, जबकि शीर्ष 10% की कुल आय का एक तिहाई हिस्सा है।

आख़िर क्या है इस रिपोर्ट में?

इस रिपोर्ट के दो हिस्से हैं। पहला आर्थिक पहलू और दूसरा सामाजिक-आर्थिक पहलू। रिपोर्ट उन पांच अहम क्षेत्रों पर ध्यान देती है, जो असमानता की प्रवृत्ति और अनुभव को प्रभावित करते हैं। इनमें, आय का वितरण व श्रम बाजार गतिशीलता, स्वास्थ्य, शिक्षा और पारिवारिक विशेषताएं शामिल हैं। यह रिपोर्ट आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, राष्ट्रीय परिवार, स्वास्थ्य सर्वे सहित कई अन्य सर्वेक्षण से हासिल किए गए आंकड़ों पर आधारित है। रिपोर्ट में असमानता की मौजूदा स्थिति, चिंता के क्षेत्र, अवसंरचनात्मक क्षमताओं में सफलता व असफलताओं के साथ-साथ असमानता पर प्रभाव डालने वाले अलग-अलग विषयों पर कई अध्याय शामिल हैं।

रिपोर्ट देश में मौजूद अलग-अलग वंचनाओं पर समग्र विश्लेषण को पेश कर असमता की अवधारणा को विस्तार देती है। रिपोर्ट आबादी के समग्र विकास और कल्याण को प्रभावित करने वाले कारकों को चिन्हित करती है। यह अध्ययन भिन्न वर्गों, लिंग और क्षेत्रों को समाहित करता है और बताता है कि कैसे असमानता हमारे समाज को प्रभावित करती है।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि तीन वर्षों यानी 2017-18, 2018-19 और 2019-20 तक, देश की कुल आय में शीर्ष 1 प्रतिशत आबादी का हिस्सा 6.14 प्रतिशत से बढ़कर 6.82 प्रतिशत हो गया है। जबकि शीर्ष 10 प्रतिशत की आय हिस्सेदारी 2017-18 में 35.18 प्रतिशत से घटकर 2019-20 में 32.52 प्रतिशत रह गई है। नीचे के 10 प्रतिशत ने लगभग 1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा तक समान पहुँच और लंबी अवधि के विकास के साथ अधिक नौकरियों का सृजन गरीबों को ऊपर उठाने के लिए अहम है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, 'सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार को सामाजिक सेवाओं और सामाजिक क्षेत्र के लिए ख़र्च का अधिक प्रतिशत आवंटित करना चाहिए ताकि सबसे कमजोर आबादी को अचानक झटके के लिए लचीला बनाया जा सके और गरीबी में उनके फिसलने को रोका जा सके।'

असमानता की स्थिति सुधारने के सुझाव

आर्थिक हालात सुधारने के लिए इस रिपोर्ट में कई अहम सुझाव भी दिए गए हैं। इसमें शहरी बेरोजगारों के लिए एक गारंटीकृत रोजगार योजना शुरू करने और यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम लागू करने की बात कही गई है। यानी कुलमिलाकर देखें तो रिपोर्ट में साफ़ तौर पर कहा गया है कि परिवारों की आय बढ़ाने के लिए एक ऐसी योजना की शुरुआती की जाए जिससे उनकी आमदनी बढ़े।

इसके साथ ही सामाजिक क्षेत्र के लिए और धन आवंटित करने की सिफ़ारिश भी की गई है ताकि असमानता को दूर किया जा सके। देश में आय के असमान वितरण का हवाला देते हुए रिपोर्ट में न्यूनतम आय को बढ़ाने और सामाजिक क्षेत्र पर सरकारी खर्च बढ़ाने के लिए कदम उठाने की भी सिफारिश की गई ताकि कमजोर वर्गों को अचानक झटके से बचाया जा सके और गरीबी में उनको फिसलने से रोका जा सके।

गौरतलब है कि कोविड-19 महामारी के दौरन यह देखा गया कि निजीकरण की होड़ में सरकार के पास आर्थिक झटके से निपटने के लिए पर्याप्त पूंजी या उपाय नहीं थे। लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए दर-बदर भटक रहे थे। ऐसे में असमानता पर उपलब्ध जानकारी, जिसे यह रिपोर्ट सामने लाती है, वह रणनीतियां बनाने, सामाजिक विकास और साझा खुशहाली के लिए रोडमैप तैयार करने में मददगार साबित हो सकती हैं। कुछ सुझाव जैसे- आय का वर्गीकरण; जिससे संबंधित वर्ग की जानकारी भी मिलती है, सार्वभौमिक बुनियादी आय, नौकरियों के सृजन, खासतौर पर उच्च शिक्षित लोगों के लिए और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए बजट बढ़ाने का सुझाव कुछ ठोस बदलाव भी ला सकते हैं बशर्ते इनका ठीक से क्रियान्वयन हो और सरकार इसे समय रहते गंभीरता से ले।

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