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पड़तालः “रियल स्टोरी” के नाम पर भाजपा का प्रोपगेंडा

भाजपा और शो की होस्ट ऋचा अनिरुद्ध से एक सीधा सवाल है कि अगर उन्होंने पूरे शोध के साथ वास्तविक सच्चाई को प्रस्तुत किया है, तो वीडियो के शुरु में डिस्कलेमर क्यों?
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2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं। इसके मद्देनज़र राजनीतिक पार्टियों का कार्यक्रम जोरों पर है। इस बार के इन कार्यक्रमों की एक खास बात ये है कि इसमें सेशल मीडिया इंफलुएंशर को भी मैदान में उतार दिया गया है और ऑनलाइन मार्केटिंग के सारे पैंतरे इस्तेमाल किए जा रहे हैं। भाजपा इस मामले में सबसे आगे है। इसी सिलसिले में भाजपा ने एक नया शो लॉन्च कर दिया है, जिसका नाम है “रियल स्टोरी”। इस शो को “ज़िंदगी विद ऋचा” यूट्यूब चैनल चलाने वाली ऋचा अनिरूद्ध होस्ट कर रही हैं। रियल स्टोरी नाम के इस शो में देश के ऐसे गंभीर मुद्दे जिन पर भाजपा सरकार को जवाबदेही के लिए बाध्य किया गया, उन मुद्दों की रियल स्टोरी के नाम पर फ़ेक प्रोपगेंडा परोसा जा रहा है।

25 जुलाई को भाजपा के ऑफिशिलय ट्विटर हैंडल से “रियल स्टोरी” का  वीडियो ट्वीट किया गया। जिसमें बीबीसी पर आयकर विभाग का सर्वे, पेगासस, रफाल, महंगाई, बेरोज़गारी, भारत-चीन सीमा विवाद और सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के बारे में बात की गई। वीडियो में इन मुद्दों पर काफी विवादास्पद और भ्रामक दावे किए गये हैं। एक लेख में सब मुद्दों की पड़ताल संभव नहीं है। क्योंकि आप जानते हैं कि फ़ेक प्रोपगेंडा करने में कोई मेहनत नहीं लगती। आप कुछ भी उगल सकते हैं। लेकिन ज़िम्मेदारी और जवाबदेही के साथ मुद्दों पर तथ्यात्मक पड़ताल करने में मेहनत लगती है। बहुत सारी रिपोर्ट आदि पढ़नी पड़ती है और सघन रिसर्च करना पड़ता है। तो हम यहां पर इन सब मुद्दों पर बात नहीं कर पाएंगे, एक-एक करके ही इन मुद्दों पर बात हो सकती है, ताकि तथ्यों के साथ इस रियल स्टोरी के नाम पर फ़ेक प्रोपगेंडा का पर्दाफाश हो सके। इस लेख में हम पेगासस के बारे में रियल स्टोरी के दावे और सच्चाई के बारे में विस्तार से बात करेंगे।

भाजपा की “रियल स्टोरी” के दावे

ऋचा अनिरुद्ध ने रियल स्टोरी में पेगासस मुद्दे पर कई दावे किए हैं जिन्हें भाजपा के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया है। दो बड़े दावे इस प्रकार है।

1. सुप्रीम कोर्ट की जांच कमेटी ने कहा कि हम पेगासस की जांच करेंगे आप हमें अपने फोन दीजिए, तो कुल मिलाकर 29 लोग अपना फोन लेकर पहुंचे। उनमें से एक में भी पेगासस नहीं मिला।

2. सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने अपनी जांच के बाद कह दिया कि हमें एक भी फोन में पेगासस नहीं मिला।

3. ये विपक्ष और उसके इको सिस्टम द्वारा देश और देश की सुरक्षा एजेंसियों को बदनाम करने की साजिश थी।

पेगासस जैसे गंभीर मुद्दे पर इतने बड़े दावे करके ऋचा अगले मुद्दे यानी रफाल की तरफ बढ़ गई। लेकिन क्या पेगासस की पूरी कहानी बस इतनी है? क्या सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस के मुद्दे पर केंद्र सरकार को क्लिन चिट दे दी है? सुप्रीम कोर्ट और जांच कमेटी ने जांच में केंद्र सरकार की भूमिका के बारे में क्या कहा है? क्या सचमुच पेगासस का मुद्दा एक झूठ था? असल में सुप्रीम कोर्ट की जांच कमेटी की रिपोर्ट पेगासस के बारे में क्या कहती है? राज्यसभा में पेगासस के बारे में सवालों को डिस्क्वालिफाई क्यों किया गया? क्या पेगासस का मुद्दा विपक्ष द्वारा देश को बदनाम करने की साजिश थी? इन सब सवालों के जवाब जानना जरूरी है। लेकिन भाजपा और ऋचा को शायद इन सवालों से कोई भी सरोकार नहीं है। इन सवालों के जवाब हम आपको देते हैं। सबसे पहले एक बार जान लेते हैं कि आखिर ये पेगासस का मुद्दा क्या है?

पेगासस का मुद्दा क्या है?

सबसे पहले तो हम ये जान लें कि ये महज भारत तक सीमित नहीं है बल्कि एक अंतर्राष्ट्रीय मसला है। आरोप है कि सरकारों ने इजराइली कंपनी एनएसओ द्वारा बनाए गए जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिये राजनेताओं, कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, बिजनेसमेन और अन्य वैधानिक पदों पर कार्य कर रहे लोगों के मोबाइल फोन व अन्य डिवाइस हैक करके उनकी अवैध तौर पर जासूसी की है। पेगासस का खुलासा हवा में नहीं हुआ था बल्कि इसके पीछे 10 देशों के 17 मीडिया संस्थानों के 80 पत्रकारों की सालों की मेहनत थी। जिन मोबाइल या अन्य डिवाइस पर पेगासस के हमले का शक था, उनकी कठोर फॉरेंसिक जांच की गई थी। तमाम वेरिफिकेशन और फॉरेंसिक जांच के बाद रिपोर्ट जारी की गई थी। इसके बाद पेगासस का निर्माण करने वाली कंपनी एनएसओ वैश्विक स्तर पर विवादों में घिर गई थी। विश्व के 15-16 देश सीधे तौर पर इस मुद्दे से प्रभावित हुए हैं जिनमें भारत भी एक है।

भारत में भी 174 लोगों की सूची जारी की गई थी जिन पर संभावित तौर पर पेगासस का हमला हुआ और जिनकी कथित तौर पर अवैध तरीके से जासूसी की जा रही थी। इस सूची में मानवाधिकार कार्यकर्ता, दलित कार्यकर्ता, विपक्ष के नेता, मंत्री, पत्रकार, राजनीतिक रणनीतिकार, बिजनेसमेन, संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के नाम शामिल थे। आरोप था कि सरकार अवैध तौर पर इनकी जासूसी कर रही है। गौरतलब है कि पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल आतंकवादियों आदि को पकड़ने के लिए आर्मी करती है इसका उपयोग नागरिकों की जासूसी के लिए नहीं किया जा सकता। एनएसओ ग्रुप ने बताया था कि वो इस सॉफ्टवेयर को सिर्फ सरकारों को ही बेचती है। तो एक छोटा सा परिचय है पेगासस मुद्दे का। अब “रियल स्टोरी” में किए गए भाजपा और ऋचा अनिरुद्ध के दावों की पड़ताल करते हैं।

क्या पेगासस का मु्द्दा सरकार को बदनाम करने की साजिश थी?

ऋचा अनिरुद्ध और भाजपा पेगासस के इर्द-गिर्द एक कांसपिरेसी थ्योरी गढ़ रहे हैं। जबकि सच्चाई ये है कि पेगासस का मामला सरकार को बदनाम करने की कोशिश नहीं बल्कि नागरिक अधिकारों और देश की सुरक्षा से जुड़ा एक बहुत गंभीर मामला है। ये भाजपा सरकार को बदनाम करने की कोई साजिश नहीं थी बल्कि एक गंभीर मामला था। जिसने पूरी दुनिया में हलचल पैदा कर दी थी। दुनिया भर में संसदों में ये मामला गूंज रहा था और दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियां हरकत में थीं।

उदहारण स्वरूप नवंबर 2021 में अमेरिका में बाइडन प्रशासन ने पेगासस निर्माता इजराइली कंपनी NSO को प्रतिबंधित सूची यानी ब्लैकलिस्ट  में डाल दिया था। 23 नवंबर 2021 को एपल कंपनी ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें जानकारी दी गई कि एपल कंपनी ने जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस के द्वारा राज्य प्रायोजित दुरुपयोग को रोकने के लिए एनएसओ ग्रुप पर मुकदमा दायर किया है। वाट्सएप के सीइओ ने एनएसओ ग्रुप के खिलाफ मुकदमा दायर किया था।

इसके अलावा हमें पेगासस के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की राय भी सुननी चाहिए। जब सुप्रीम कोर्ट में पेगासस मामले पर याचिकाएं दायर की गईं तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि “याचिकाकर्ताओं ने जो दस्तावेज़, रिपोर्ट और सामग्री प्रस्तुत की है उसे दरकिनार नहीं किया जा सकता। इसमें सिटिज़न लैब जैसे प्रतिष्ठित संस्थान की रिपोर्ट है, विशेषज्ञों के एफिडेविट हैं, भारी मात्रा में बहुत सारे संदर्भ हैं, दुनियाभर के प्रतिष्ठित न्यूज संस्थानों की क्रॉस वेरिफाइड रिपोर्ट हैं और कई देशों की अधिकारिक प्रतिक्रियाएं भी हैं।”

ये तमाम घटनाएं बताती हैं कि पेगासस का मामला कोई विपक्ष की साजिश नहीं थी बल्कि भारत समेत पूरी दुनिया के स्तर पर एक गंभीर मामला था। इसे सरकार को बदनाम करने के लिए विपक्ष की साजिश कहना एक बचकानी हरकत है।

क्या किसी भी मोबाइल या अन्य डिवाइस में पेगासस नहीं पाया गया?

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए 27 अक्तूबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की एक जांच कमेटी का गठन किया था। जिसमें पूर्व चीफ जस्टिस एनवी रमना, सूर्य कांत और हिमा कोहली शामिल थे। इसके अलावा तीन सदस्यों की एक तकनीकी जांच कमेटी का भी गठन किया गया था। कमेटी ने 25 अगस्त 2022 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट को सिक्रेट रखा गया है और महज रिपोर्ट के कुछ अंश ही सार्वजनिक किए गए हैं। कोर्ट में रिपोर्ट के कुछ अंश पढ़े गए और उसके बाद रिपोर्ट को फिर से सील करके रिकॉर्ड में रख दिया गया। इसीलिए रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट और सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है।

26 अगस्त  2022 को टाइम्स ऑफ इंडिया ने रिपोर्ट के सार्वजनिक किए गए हिस्सों को छापा था। जिसके अनुसार जांच कमेटी को जांच के लिए 29 डिवाइस मिले जिनमें से 22 में पेगासस सहित कोई भी मालवेयर नहीं पाया गया। जबकि 5 डिवाइस में मालवेयर पाया गया। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि पर्याप्त डेटा उपलब्ध ना होने के कारण ये नहीं कहा जा सकता है कि ये पेगासस है या नहीं। यानी पांच डिवाइस में पाए गए मालवेयर के बारे में कमेटी की रिपोर्ट में अस्पष्टता है। रिपोर्ट स्पष्ट तौर पर कह रही है कि ये पेगासस हो भी सकता है और नहीं भी।

पेगासस जांच के बारे केंद्र सरकार का रवैया

सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस और अवैध जासूसी के मुद्दे पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। लेकिन केंद्र सरकार ने अपने एफिडेविट में कोई भी संतुष्टीपूर्ण जवाब नहीं दिया। केंद्र सरकार ने अपने एफिडेविट में उस किसी भी आरोप का जवाब नहीं दिया था जो याचिककर्ताओं ने केंद्र सरकार पर लगाए थे। केंद्र सरकार का जवाब था कि ये देश की सुरक्षा से संबंधित मामला है और इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। सरकार के इस रवैये पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि केंद्र सरकार जांच में सहयोग नहीं कर रही है।

कोर्ट ने कहा था कि हम ये भलीभांति समझते हैं कि देश की सुरक्षा से संबंधित जानकारियों और सूचनाओं को सांझा नहीं किया जा सकता है। लेकिन सरकार को इसे एफिडेविट पर साबित करना होगा। राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ लेकर सरकार हर बार ऐसे पल्ला नहीं झाड़ सकती। सरकार को ऑन रिकॉर्ड एफिडेविट के माध्यम से केस के बारे में स्पष्टता से तथ्य रखने के पर्याप्त मौके दिए गए हैं लेकिन सरकार की तरफ से कोई संतुष्ट जवाब नहीं आ रहा है।

बात सिर्फ इतनी ही नहीं है बल्कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा गठित की गई जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में केंद्र सरकार पर ये आरोप लगाया है कि मोबाइल व अन्य उपकरणों की जांच के संबंध में सरकार ने कोई सहयोग नहीं किया है। जांच में सरकार का रवैया सहयोगपूर्ण नहीं रहा है।

ये बताता है कि पेगासस की जांच को लेकर केंद्र सरकार कितनी गंभीर थी और केंद्र सरकार का रवैया क्या था। सुप्रीम कोर्ट और जांच कमेटी ने ऑन रिकॉर्ड ये कहा है कि केंद्र सरकार ने सहयोग नहीं किया।

क्या सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को क्लिन चिट दे दी है

ऋचा अनिरुद्ध और भाजपा पेगासस के मामले पर इस तरह से प्रचार कर रहे हैं, जैसे सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को क्लिन चिट दे दी है। जबकि सच्चाई ये नहीं है। सच्चाई ये है कि मामले की सुनवाई अभी भी होनी है और केस का स्टेटस “पेंडिंग” है। केस नंबर 314 वर्ष 2021, डायरी नंबर 16884-2021, मनोहर लाल शर्मा बनाम भारत संघ। इस केस का स्टेटस आप सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट परदेख सकते हैं। केस अभी विचाराधीन है।

डिस्कलेमर की आड़ में जवाबदेही से पल्ला झाड़ रही है भाजपा

भाजपा और ऋचा अनिरुद्ध से एक सीधा सवाल है कि अगर उन्होंने पूरे शोध के साथ वास्तविक सच्चाई को प्रस्तुत किया है, तो वीडियो के शुरु में डिस्कलेमर क्यों? शो का नाम “रियल स्टोरी” और वीडियो से पहले डिस्कलेमर। ऐसा कैसे चलेगा ऋचा जी। असल में इस शो के निर्माता अपने ही शो में प्रस्तुत किए गए तथ्यों को “डिसओन” कर रहे हैं और उनसे पल्ला झाड़ रहे हैं। वीडियो के शुरु में सबसे पहले डिस्कलेमर आता है जिसमें लिखा है कि “निर्माता वीडियो में मौजूद जानकारी की सटीकता, सामग्री, पूर्णता, वैधता या विश्वसनीयता के लिए कोई ज़िम्मेदारी और दायित्व स्वीकार नहीं करता है।”

कायदे से इस डिस्कलेमर के बाद ये शो इतना भी डिजर्व नहीं करता है कि इसकी विश्वसनीयता पर चर्चा की जाए। लेकिन लोग फ़ेक प्रोपगेंडा को तथ्य मान लेते है, इसलिए इसका पर्दाफाश ज़रूरी है। भाजपा डिस्कलेमर डाल कर जवाबदेही से बच सकती है लेकिन जनता इसके दुष्प्रचार से नहीं बच पाएगी। इसलिए पर्दापाश जरूरी है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)

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