मुद्दा : मंदिर नहीं जनविरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ एक होने की ज़रूरत
6 दिसम्बर ऐसा दिन है, जिसको अलग-अलग रूप में याद किया जाता है। 6 दिसम्बर, 1956 को बाबा साहब अम्बेडकर का निधन हुआ था, तो 6 दिसम्बर, 1992 को आरएसएस के नेतृत्व में बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया गया था। उसके बाद भारत के प्रगतिशील, न्याय-पसंद लोग 6 दिसम्बर को काला दिवस के रूप में मनाते हैं। आरएसएस और उसके तमाम अनुष्ठानिक संगठन विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी), बजरंग दल, बीजेपी जैसी पर्टियां/संगठन इसको शौर्य दिवस के रूप में मनाते हैं। वहीं अम्बेडकरवादी और सामाजिक संगठन 6 दिसम्बर को बाबा साहेब के परिनिर्वाण दिवस के रूप में याद करते हैं।
मुझे बचपन की वे बातें याद है, जब 1991 में एक तरफ नई आर्थिक नीति का संसद से सड़क तक वामपंथी और अन्य संगठनों की तरफ से विरोध किया जा रहा था। नई आर्थिक नीति और डंकल प्रस्ताव का विरोध मैंने अपने गांव मे नुक्कड़ नाटक के द्वारा देखा था। उससे पहले 1990 में लालकृष्ण अडवाणी देश भर में ‘राम मंदिर निर्माण’ को लेकर रथ यात्रा पर निकले थे। अडवाणी की रथ यात्रा मुख्य शहरों और राजधानियों में जा रही थी, जहां से उसको बड़े पैमाने पर मीडिया कवरेज मिल रहा था और आम लोगों तक ‘राम मंदिर’ की बात पहुंच रही थी। इससे देश में एक साम्प्रदायिक माहौल बनाया गया और लोगों की भाईचारा को कमोजर किया गया।
आरएसएस ने अपने मकसद में कामयाब होता देख अपने अनुष्ठानिक संगठनों के माध्यम से गांव स्तर तक रथ यात्रा निकाली। रथ पर राम मंदिर की डिजाइन की हुई फोटो और उसके सामने हाथ में धनुष-बाण लिये क्रोधित मुद्रा में राम का चित्र लगा होता था। 91 में जब नई आर्थिक नीति का विरोध हो रहा था उसी समय राम मंदिर की भी चर्चा हो रही थी। हर गांव से ‘राम शिला’ (एक ईंट) और हर घर से पैसे के रूप में चंदा की मांग की गई थी। भारत के अलावा मन्दिर के नाम पर विदेशों में बसे भारतीयों से भी चंदा लिया गया। जिस पर 9 साल पहले हिन्दू महासभा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और विश्व हिन्दू परिषद को पत्र लिखकर आरोप लगाया गया कि 1990 के दशक में मिले राम मंदिर के 1,400 करोड़ रुपये (उस समय 1 डॉलर लगभग 17 रू. का था और आज 83 रू. का है यानी आज के समय करीब 6,800 करोड़ रू.) और सोने की ईंट, विश्व हिन्दू परिषद ने डकार लिया। इस पत्र का जबाब मोदी और मोहन भागवत ने नहीं दिया।
वीएचपी के नेता अशोक सिंघल ने पत्र का जवाब देते हुए लिखा कि 1989 में 8.25 करोड़ रू. मिले थे। वो सभी पैसा पांच साल पहले मंदिर के खंभे तराशने में खत्म हो गया हैं। इसी तरह के आरोप निर्मोही अखाड़े के सीताराम ने लगाए है कि ‘‘वीएचपी ने मंदिर निर्माण के लिए लोगों से चंदे के रूप में पैसे लिए। मन्दिर के बजाय इन पैसों का इस्तेमाल अपनी इमारतें बनाने में किया।’’
17 नवम्बर, 2019 को विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय महासचिव मिलिंद परांडे ने कहा कि वीएचपी ने 1989 में न तो राममंदिर के लिए चंदा लिया था और ना ही वह अब चंदा ले रही है। 15 जनवरी से 27 फरवरी 2021 तक 9 लाख कार्यकर्ताओं द्वारा राम मंदिर निर्माण के लिए जनसंपर्क के माध्यम से करीब 5,000 करोड़ रू. और 4 कुंतल चांदी और सोना मिला है। मंदिर निर्माण पर हो रहे खर्च के बाद भी 3,500 करोड़ रू. मंदिर के कई खातों में जमा है।
आरएसएस के संगठनों ने 1990 के दशक में राम मन्दिर को लेकर अभियान चलाया और नई आर्थिक नीति के आन्दोलन से लोगों का ध्यान भटकाने का काम किया। आज जब देश गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है और लोग बेरोजगारी, महंगाई से परेशान हैं तो उनको ‘बंटोगे तो कटोगे’, ‘एक हैं तो सेफ हैं’ नारे के साथ उनका ध्यान भटकाया जा रहा है।
भारत पर सितम्बर 2023 तक कुल कर्ज 205 लाख करोड रू. का हो गया है जो कि 2014 में 55 लाख करोड़ रू. का था। बेरोजगारी दर 8 प्रतिशत के करीब है, महंगाई में लगातार उछाल हो रहा है। इन सबसे भारत की जनता परेशान है।
यही कारण है कि विश्व खुशहाली दिवस में लगातार भारत नीचे की तरफ जा रहा है। इसकी रिपोर्ट पर नजर डाला जाये तो 2024 में भारत 143 देशों में 126 वें स्थान पर था, जबकि 2013 में 111 वें, 2015 में 117 वें और 2016 में 118 वें स्थान पर भारत था।
इसी कारण देश में आत्महत्या करने वाले बेरोजगारों, कारोबारियों, छात्रों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। भारत में 2022 में 1,70,924 लोगों ने आत्महत्या की, यानी प्रत्येक घंटा 19 से ज्यादा लोग ने अपनी जीवन लीला समाप्त करने पर मजबूर हुए। आत्महत्या कोई भी व्यक्ति हाताशा में करता है। सरकार द्वारा अपनाई गई नई आर्थिक नीति का दुष्परिणाम है कि लोगों में हताशा बढ़ रही है और सरकार उसी पॉलिसी पर आगे बढ़ते जा रही है, जिससे दिनों-दिन हाताशा और आत्महत्याओं की संख्या भी बढ़ रही है। सरकार इसी सच्चाई को छुपाने के लिए ‘बंटोगे तो कटोगे' और ‘एक हो तो सेफ हो’ के नारे लगाकर अपनी नकामयाबियों को छुपाना चाहती है। यह और दुखद हो जाता है, जब इस देश के साधु-संत भी इसी तरह की बात को दुहराते हैं। जिन लोगों को काम समाज में अमन-प्रेम-शांति-सद्भावना देने के लिए जाना जाता था, आज वो छद्म वेशधारी होकर समाज में जहर घोलने का काम कर रहे हैं।
इसी तरह 6 दिसम्बर, 2024 को मैंने शहादरा इलाके में देखा कि बाबरी मस्जिद विध्वसं की 32 वीं वर्षगांठ ‘संतों’ के मागदर्शन में मनाई जा रही है, जिसका मुख्य बैनर था-‘हिन्दू एकजुटता संकल्प दिवस’ इस मंच पर दर्जनों लोग (पुरूष-महिला) ‘संत’ के वेश-भूषा में मंच पर बैठे थे और एक व्यक्ति सामाज में जहर घोलने वाला भाषण दे रहा था। वह बता रहा था कि 100 गज के जिस प्लाट में एक हिन्दू रहता था आज वहां फ्लैट बन गया और 72 टोपीधारी बंग्लादेशी, रोहिंग्या व जेहादी रहने लगे हैं। आगे कहते हैं कि इस देश को आईएएस और आईपीएस चलाते हैं जब इन जेहादियों, रोहिंग्या के बच्चे पढ़ लिख कर आईएएस, आईपीएस बन जायेंगे तो देश का क्या होगा? वह चुनावी माहौल को देखते हुए इसके लिए हिन्दू केजरीवाल को ही दोषी ठहरा रहे थे। वह सज्जन इस बात से चिंतित नहीं थे कि बढ़ती महंगाई और महंगी होती शिक्षा के कारण लोग अपने बच्चे को सही शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं। उनको फ्री और अच्छी शिक्षा मिले, उसके लिए बात नहीं कर रहे थे। वह बात कर रहे थे कि दूसरे कौम के बच्चों को कैसे पढ़ने से रोका जाये। वह बात कर रहे थे कि कैसे हिन्दू देवी-देवताओं के हाथ में हथियार है। यानी वह समाज में शांति की जगह सभी के हाथों में हथियार देखने के उतावले हो रहे थे।
आज भी 1990 की पुनरावृति की जा रही है। 1991 में पूंजीपतियों-साम्राज्यवादियों को लाभ पहुंचाने के लिए ‘नई आर्थिक नीति’ लागू की गई और लोगों के गुस्से को साम्प्रदायिक तनाव में विभाजित कर दिया गया। नई आर्थिक नीति के तहत देश के संसाधनों को कुछ लोगों के हाथों में दे दिया गया, लोगों से नौकरियां छीनी गईं और शिक्षा को महंगी कर लोगों को अच्छी शिक्षा लेने से वंचित किया जा रहा है। अब पूंजीवादियों-साम्राज्यवादियों का संकट बढ़ रहा है और लोगों में निराशा, गुस्सा फूट रहा है तो फिर से आरएसएस और उसके अनुष्ठानिक संगठन आगे आकर लोगों को गलत नारों के साथ आपस में लड़वाने का काम कर रहे हैं। भारत की जनता को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के लिए और इनके निजीकरण के खिलाफ एक होना चाहिए, बंटना नहीं चाहिए। लोगों को इस नारे पर एक होना चाहिए कि ‘‘हर हाथ को काम दो, काम बराबर दाम दो’, सभी को शिक्षा और रोजगार दो। तभी इस देश की जनता सेफ रहेगी और आपस में मार-काट नहीं होगी। हम एक हां नई आर्थिक नीति, उदारीकरण, भूमंडलीकरण, निजीकरण के खिलाफ, हम एक हों साम्प्रदायिक शक्तियों के खिलाफ, जो समाज में हमारे और हमारे बच्चों के अन्दर जहर घोल रहे हैं। हमें इन सब के खिलाफ एक होना होगा, तभी हमारा भविष्य सुरक्षित रहेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं. विचार व्यक्तिगत हैं.)
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