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झारखंड: अपमान नहीं झेल पाई दलित बच्ची! मौत को गले लगाया

धनबाद में भरी असेंबली में एक टीचर ने छात्रा को थप्पड़ जड़ दिया। इस घटना के बाद बच्ची इतना टूट गई कि उसने मौत को गले लगा लिया।
jharkhand

बात महज़ बिंदी लगाने की नहीं है, बात है उस बच्ची के दलित होने की, और दलित होने के कारण उसे भरी असेंबली में बेइज़्ज़त किए जाने की। लेकिन इसका नतीजा कोई नहीं जानता था, कि क्या होने वाला है? सुबह स्कूल गई तो थोड़ी देर बाद वापस भी आ गई। घर के एक कमरे में जाकर सुसाइड नोट लिखा और फिर फांसी लगा ली।

ये कहानी है समाज में बहुत बड़ी भागीदारी निभाने वाले, लेकिन अपनी जाति का दंश झेलने वाले दलित समाज के एक परिवार की। इनका गांव झारखंड के धनबाद में है। यहीं तेतुलमारी थाना क्षेत्र में एक क्षेत्र पड़ता है हनुमामगढ़ी, और इसी क्षेत्र में एक स्कूल है सेंट ज़ेवियर।

17 साल की ऊषा कुमारी बीते सोमवार यानी 10 जुलाई को रोज़ की तरह सुबह स्कूल गई, छात्रा ने बिंदी लगाई हुई थी, जो शायद टीचर को पसंद नहीं आई होगी, तो उसने गुस्से में आकर छात्रा को थप्पड़ जड़ दिया। इसके बाद की कहानी छात्रा ऊषा कुमारी ख़ुद अपने सुसाइड नोट के ज़रिए बताती हैं...

ऊषा लिखती हैं ‘’ मेरी समस्या यह है कि मैं धनबाद सेंट ज़ेवियर स्कूल की छात्रा हूं, आज स्कूल में एक शिक्षिका ने मुझे सबके सामने थप्पड़ मारा, पूरे स्कूल के बच्चों के सामने मुझे बेइज़्ज़त करके स्कूल से बाहर करवा दिया, मैं इस बेइज़्जती को सह नहीं पा रही हूं, जिसके लिए मैं खुदकुशी कर रही हूं, शिक्षिका का नाम सिंधु मैडम है, स्कूल के प्रधानाध्यापक का नाम आरके सिंह है। मेरे ख़ुदकुशी करने की वजह सिर्फ और सिर्फ सिंधु मैडम हैं। अत: आपसे निवेदन है कि आप मेरे इस समस्या पर ग़ौर करें, और मेरे मरने के बाद मैडम पर जल्द से जल्द कार्रवाई करें।‘’

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मृतका ऊषा के लिखे इस सुसाइड नोट में सीधे तौर पर स्कूल की ही सिंधु नाम की शिक्षिका को आरोपी बताया जा रहा है। जब ये मामला सामने आया तब ऊषा के पूरे परिवार और रिश्तेदारों के साथ ग्रामीणों ने स्कूल के सामने शव रखकर प्रदर्शन भी किया। इस दबाव को देखते हुए पुलिस ने स्कूल में ताला लगवा दिया है और शिक्षिका सिंधु को गिरफ्तार कर लिया है।

हमने मृतका ऊषा की मां से बात की तो उन्होंने बताया कि  ''मेरी बेटी बिंदी लगाती थी। लेकिन टीचर को देखकर उसने बिंदी फेंक दी। इसके बावजूद सबके सामने असेंबली में उसे दो थप्पड़ मारे गए। वह प्रिंसिपल के पास गई लेकिन उन्होंने भी नहीं सुनी और उसे वहां से जाने के लिए कह दिया गया। मेरी बेटी मेरे पास आई और मैंने स्कूल जाकर प्रिंसिपल से अनुरोध किया कि मैं टीचर से माफ़ी मांग लूंगी। हालांकि, हमारी बात पर ध्यान नहीं दिया गया, मैंने अपनी बेटी को समझाया, तभी वो मेरे पास से जाकर घर में एक कागज पर कुछ लिखने लगी, मैंने उससे पूछा कि क्या लिख रही हो, तब उसने मुझे कहा कि स्कूल का काम कर रही हूं। लेकिन अगले आधे घंटे बाद उसने कमरे में खुद को फांसी के फंदे से लटकाकर खत्म कर लिया।

इस मामले में हमने ऊषा की छोटी बहन से उसके परिवार के बारे में जानना चाहा, तब उसने बताया कि ‘’ मैं घर में सबसे छोटी हूं, मुझसे बड़ा मेरा भाई और सबसे बड़ी ऊषा दीदी थीं। मेरे पिता जी की मृत्यु कैंसर के कारण अगस्त 2022 में हो गई थी। जिसके बाद से मेरे सभी रिश्तेदार मेरे घर का खर्च चलाने में मदद करते थे, और पढ़ाई का पैसा भी देते थे।'’

दावा किया जा रहा है कि इस मामले में पुलिस किसी भी तरह की कार्रवाई करने से बच रही थी। परिजनों सहित दलित समाज के लोगों ने पोस्टमार्टम के बाद बॉडी मिलने पर उसे सड़क पर रखकर रास्ता जाम कर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया, देखते ही देखते घटना सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी। जिसके बाद मामला बिगड़ता देख पुलिस ने आरोपी शिक्षिका के खिलाफ आईपीसी की धारा-306/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया।  

खुदकुशी करने वाली बच्ची महज़ 17 साल की नाबालिग थी और कक्षा 10 की छात्रा थी। इसलिए मामले का संज्ञान लेने के लिए राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग भी आगे आया। इस आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने इस पर ट्वीट किया।

इस मसले पर राजनीति करने के मामले में राजनेता भी पीछे नही रहे, और भाजपा झारखंड के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने एक ट्वीट कर घटना पर सवाल उठाए।

हालांकि बाबू लाल मरांडी के इस ट्वीट में भी उनके एजेंडा का विस्तार ही नज़र आया, उन्होंने अपमान के कारण की गई इस आत्महत्या को सनातन प्रतीकों से जोड़ दिया और कहा कि ऐसे विद्यालयों को सनातन प्रतीकों से क्यों चिढ़ है?

आपको बता दें कि ‘सनातन धर्म’ का इस्तेमाल करने के पीछे बाबू लाल मरांडी का मकसद स्कूल का नाम हो सकता है। क्योंकि स्कूल का नाम सेंट ज़ेवियर है। हालांकि मरांडी शायद इस बात से अवगत नहीं है कि स्कूल का प्रिंसिपल एक सवर्ण है, और मरने बाली बच्ची दलित समाज से आती है।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कोई कितना भी इसे महज़ बिंदी लगाने के कारण शिक्षिका के गुस्से से जोड़कर देखे। लेकिन ये बात सच है कि दलितों के साथ, दलित बच्चों के साथ, बुज़ुर्गों के साथ... स्कूल, कॉलेज, मुहल्लों, गांवों और शहरों में ऐसी वारदातें कोई नई नहीं है।

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