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झारखंड: सरकार से मांग, ‘आदिवासी समाज पर हमले बंद हों’

विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर राजधानी रांची समेत कई स्थानों पर आदिवासी संगठनों द्वारा विरोध-मार्च, बाइक रैली व कई अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।
Aadiwasi Day

झारखंड में तमाम आदिवासी संगठनों द्वारा विश्व आदिवासी दिवस को मनाते हुए मौजूदा केंद्र सरकार से मांग की गई कि "मणिपुर समेत पूरे देश में आदिवासी समाज पर हमले बंद हों।" इससे पहले गांवों समेत शहरों की मोहल्ला बैठकों के साथ-साथ मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से लगातार आह्वान किया गया कि "इस बार का आदिवासी दिवस मणिपुर में आदिवासियों पर हो रहे हमलों तथा केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित यूसीसी (सामान नागरिक संहिता) के विरोध में मनाया जाए।"

राजधानी रांची के अलावा कई स्थानों पर आदिवासी संगठनों द्वारा विरोध-मार्च, बाइक रैली व कई अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया गया जिसमें व्यापक संख्या में आदिवासी समुदायों के लोगों ने अपने पारंपरिक वेश-भूषा में नगाड़ा-मांदर आदि बजाते हुए भाग लिया।

आदिवासी अधिकार मोर्चा के संयोजकत्व में आदिवासी प्रतिवाद रैली निकाल कर सभाएं की गयीं।  प्रतिवाद रैलियों और सभाओं के माध्यम से केंद्र सरकार पर आरोप लगाया गया कि "मणिपुर में आदिवासियों पर हो रही हिंसा को रोकने में सरकार नाकाम रही है।" इसके अलावा गंभीर आरोप लगाया कि "मणिपुर में आदिवासी समुदाय के लोगों द्वारा वर्षों से संरक्षित जल, जंगल, ज़मीन व प्राकृतिक संपदाओं को छीनने की कोशिश की जा रही है।"

इसके साथ ही कुछ दिनों पहले ही संसद के मौजूदा मानसून सत्र से पास किए गए वन संरक्षण कानून को आदिवासी विरोधी बताया गया और इसे वापस लेने की मांग की। सभा के माध्यम से कहा गया कि "आनन-फानन में इस कानून को पास काराया गया है जिससे आदिवासी समाज को विशेष संरक्षण का अधिकार देने वाले ‘पेसा व पांचवी अनुसूची’ जैसे कानून स्वतः निष्प्रभावी बना दिए जाएंगे।"

इसी कड़ी में विश्व आदिवासी दिवस पर झारखंड की हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार ने भी दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव का आयोजन किया। इस महोत्सव के केंद्र में आदिवासी समाज की विशिष्टताओं, जीवन-दर्शन व कला-संस्कृति के साथ-साथ देश के सामाजिक विकास में इस समुदाय की ऐतिहासिक परंपराओं इत्यादि से परिचित कराना शामिल था।

महोत्सव की शुरुआत मणिपुर में आदिवासी समुदाय पर संगठित हिंसा का आरोप लगाते हुए इसके विरोध में एक मिनट के मौन रखा गया।

महोत्सव का उद्घाटन करते हुए दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने आदिवासी दिवस की महत्ता को रेखांकित करते हुए अपने अधिकारों के लिए जागरूक और सक्रीय होने का आह्वान किया।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आदिवासी समुदायों पर 'बढ़ते हमलों' पर गहरी चिंता जताते हुए कहा, "देश के मौजूदा शासन में हमारे आदिवासी समुदाय के लोग सबसे ज़्यादा प्रताड़ना झेलने को मजबूर हैं। अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं। मणिपुर में हज़ारों घर जलाकर सैकड़ों लोगों को मार डाला गया, महिलाओं के सम्मान के साथ सरेआम खिलवाड़ किया गया।"

"दरअसल यह सब सदियों से चले आ रहे संघर्ष का ही विस्तार है। हमें कभी नीति-निर्धारण में आने नहीं दिया गया। हमारी व्यवथा कितनी निर्दयी रही कि लाखों लोगों को अपनी भाषा-संस्कृति, अपनी पहचान और जड़ों से दूर कर दिया गया।"

देश के आदिवासी समुदायों की एकजुटता का आह्वान करते हुए कहा गया कि "आज मणिपुर में आदिवासियों पर जारी उत्पीड़न का विषय सभी राज्यों के आदिवासियों के संघर्ष का विषय बनाने की ज़रूरत है। क्योंकि आज तक सरकार जिसकी भी रही हो, आदिवासी समाज के दर्द कम करने के समुचित कार्य नहीं किये गए। देश के हर विकास की सबसे अधिक क़ीमत चुका कर विस्थापन का दंश झेल रहे इस समाज को आज तक क्या मिला, किसका विकास हुआ?”

विश्व आदिवासी दिवस पर मैदानों व सड़कों पर आयोजित कार्यक्रमों से लेकर सोशल मीडिया तक आदिवासी समाज की तकलीफों पर चर्चा देखने को मिली। तमाम माध्यमों से ये आरोप लगाया गया कि आदिवासी समाज को आज भी 'जनजाति, वनवासी, गिरिजन, वन्यजन' आदि संबोधनों से उसकी अपनी पहचान को नकार कर सामाजिक अवमानना की जा रही है। कहा गया कि "हमें अपने लिए ‘आदिवासी’ नाम छोड़कर कोई दूसरा नाम स्वीकार्य नहीं है।"

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