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झारखंड: JSSC CGL परीक्षा का ‘पेपर लीक’, सोरेन सरकार पर उठे सवाल!

यह कोई पहली दफ़ा नहीं है जब इस तरह से किसी बड़ी परीक्षा का पेपर लीक हुआ हो। इससे पहले भी झारखंड में ऐसे मामले सामने आए हैं।
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झारखंड में सियासी हलचल के बीच झारखंड कर्मचारी चयन आयोग यानी JSSC की ओर से आयोजित जनरल ग्रेजुएट लेवल कंबाइंड कॉम्पिटिटिव एग्जाम का पेपर रविवार, 28 जनवरी को कथित तौर पर लीक हो गया। आनन-फानन में आयोग ने पेपर रद्द करने का फैसला तो कर लिया लेकिन उम्मीदवारों और प्रदेश के हज़ारों युवाओं के लंबे इंतजार और उम्मीदों पर एक बार फिर पानी जरूर फिर गया।

बता दें कि JSSC CGL की परीक्षा पहले भी कई बार टाली जा चुकी है। ऐसे में अभ्यर्थी काफी समय से इस परीक्षा के शुरू होने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन पहले ही दिन 'पेपर लीक' होने से उनका भविष्य एक बार फिर अंधेरे में चला गया है। हालांकि यह कोई पहली दफा नहीं है जब इस तरह से किसी बड़ी परीक्षा का पेपर लीक हुआ हो। इससे पहले भी झारखंड में पिछले वर्ष ही इसकी डिप्लोमा प्रतियोगिता परीक्षा के प्रश्न पत्र भी लीक हो गए थे।

क्या है पूरा मामला?

खबर लिखते वक्त झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से सोमवार, 29 जनवरी को उनके दिल्ली आवास पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम पूछताछ कर रही है। वहीं दूसरी ओर फरवरी के आगामी सप्ताह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की कई रैलियां भी प्रदेश में प्रस्तावित हैं। इन सब के बीच बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को इस JSSC CGL पेपर लीक मामले ने राज्य में एक नया मुद्दा दे दिया है। बाबूलाल मरांडी ने कथित तौर पर इस पेपर लीक की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है।

मीडिया में जारी एक बयान में बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि "राज्य सरकार द्वारा आयोजित ये परीक्षा भ्रष्टाचार के दायरे में आ गई है। इस मामले की जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए। झारखंड सरकार युवाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है। पूरी परीक्षा में भ्रष्टाचार की बू आ रही है। कानूनी कार्रवाई में फंसने के डर से युवा इस परीक्षा में हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज नहीं उठा पा रहे हैं।"

ध्यान रहे कि लगातार पेपर लीक के मामले सामने आने के बाद हाल ही में झारखंड सरकार ने प्रतियोगिता परीक्षा में कदाचार रोकने के लिए कड़ा कानून लागू किया है। इसके तहत प्रश्न पत्र लीक करने तथा इसमें संलिप्त पाए जाने पर जेल की सजा से लेकर भारी जुर्माना का प्रावधान किया गया है। आयोग ने पिछले दिनों उक्त कानून का हवाला देते हुए सभी को सचेत भी किया था। इसके बाद भी प्रश्न पत्र लीक होने पर सवाल उठ रहे हैं। रविवार को अभ्यर्थियों ने इसे लेकर परीक्षा केंद्रों पर हंगामा भी किया।

ध्यान रहे कि इस परीक्षा के जरिए राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में 2025 पदों पर नियुक्ति की जानी है। इसके लिए साढ़े छह लाख अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था।

अभ्यर्थियों की भारी संख्या की वजह से दो तिथियों 28 जनवरी और 4 फरवरी को परीक्षा की तिथि तय की गई थी। पहली तिथि यानी 28 जनवरी को राज्य भर के 735 केंद्रों पर तीन अलग-अलग पत्रों की परीक्षा तीन पालियों में ली गई, जिसमें करीब तीन लाख अभ्यर्थी शामिल हुए थे।

मामले ने तूल तब पकड़ा जब अभ्यर्थियों ने इस परीक्षा के सामान्य अध्ययन के प्रश्न पत्र लीक होने की आशंका जताई। उनका कहना था कि इसके कुछ प्रश्नों के उत्तर वाट्सएप पर परीक्षा से पहले ही वायरल हो रहे थे। बाद में परीक्षा होने के बाद पता चला कि ये उत्तर पूछे गए प्रश्नों से ही संबंधित थे। परीक्षा खत्म होने के बाद शाम में अभ्यर्थियों ने स्टेट लाइब्रेरी के पास जमा होकर इसके विरोध में प्रदर्शन भी किया।

बार-बार पेपर लीक नौजवानों के भविष्य से खिलवाड़!

कई परीक्षार्थियों ने न्यूज़क्लिक को फोन पर बताया कि पेपर तीन में कुल 150 सवाल थे। जिसमें झारखंड राज्य से जुड़े 40, मैथ से 20, रीजनिंग से 20, जीके/जीएस से 30, साइंस से 20 और कंप्यूटर से कुल 20 सवाल थे। इसमें जनरल स्टडी का पेपर लीक होने की आशंका है। ऐसा आरोप लगाया जा रहा है कि कुल 50 प्रतिशत से ज्यादा सवाल परीक्षा से पहले ही लीक गए थे।

कई उम्मीदवारों का कहना है कि ये बार-बार परीक्षा पेपर लीक उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ है और सरकार को इसका जवाब देना चाहिए कि जब इतनी कड़ी सुरक्षा होती है, लाखों रुपए इसमें खर्च होते हैं, तो फिर ये पेपर लीक कैसे हो जाते हैं। जो भी उम्मीदवार दूर-दराज से पेपर देने आते हैं, उनके किराए और रहने का पूरा खर्चा बर्बाद हो जाता है, आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है।

गौरतलब है कि पेपर लीक की कहानी किसी एक राज्य की नहीं है। उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान समेत कई राज्यों में अब ये आम समस्या बन चुकी है। ऐसा नहीं है कि सरकारें इसे लेकर गंभीरता नहीं दिखा रहीं, लेकिन बावजूद इसके पेपर लीक रोकने के उनके प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। ऐसे में नीयत और नीति दोनों में एक साफ फर्क नज़र आता है, जिसके जवाब ये युवा उम्मीदवार सालों से तलाश रहे हैं।

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