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योगीराज में न्याय: मंदिर में मत्था टेकने पर दलित युवक की पिटाई, पुलिस ने भी पीड़ित का शांतिभंग में किया चालान!

ग्राउंड रिपोर्टः "मेरे देवर को सिर्फ इसलिए पीटा गया, क्योंकि हम मुसहर हैं और सवर्ण हमें अछूत मानते हैं। हमारे नसीब में कभी जूठन आता है तो कभी वह भी नसीब नहीं होता। रामचंद्र राजगीर मिस्त्री हैं, चोर नहीं।"
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पीड़ित रामचंद्र भारती और मुसहर बस्ती के लोग

उत्तर प्रदेश के चंदौली जिला मुख्यालय के समीपवर्ती गांव बहोरिकपुर की मुसहर बस्ती में रहने वाले लोग इन दिनों ख़ौफ़ज़दा हैं। कुछ दिन पहले इसी बस्ती के एक युवक रामचंद्र भारती की कुछ ब्राह्मणों ने सिर्फ इसलिए जमकर धुनाई कर दी, क्योंकि वह गांव के काली मंदिर में अपनी बीमार भाभी शीला देवी के लिए मन्नत मांगने चला गया था। पीड़ित रामचंद्र और उसका भाई राजेश भारती जब न्याय की गुहार लगाने चंदौली थाने में पहुंचे तो मनुवाद में जकड़ी पुलिस ने दोषियों पर एक्शन लेने के बजाय दोनों को निर्दोष भाइयों को ही हवालात में ठूंस दिया। इनके पहुंचने से पहले ही आरोपित थानेदार के पास पहले से कुर्सी लगाकर बैठे थे। आरोप है कि पुलिस ने उन पर जमकर लाठियां तोड़ी और फिर दफा 151 में दोनों का चालान कर दिया।

पिछले एक पखवारे से मुसहर बस्ती के लोग पुलिस अफसरों से गुहार लगा रहे हैं। ‘न्यूज़क्लिक’ से बातचीत में रामचंद्र भारती कहते हैं, "साहब हम बहुत ख़ौफ़ में हैं। वो लोग कह रहे हैं कि अभी तो थोड़ी ही पिटाई हुई है। हाथ-पैर तोड़वा देंगे। हमारे भाई राजेश को भी धमकाया जा रहा है कि अगला नंबर तुम्हारा है। अब यहां हमें डर लगता है। यही हाल रहा तो हम गांव छोड़कर कहीं और जा बसेंगे।"

28 वर्षीय रामचंद्र भारती (महादलित) पेशे से राजगीर मिस्त्री हैं। बीते 28 अगस्त की शाम गांव के काली मंदिर में घुसकर पूजा करने पर उनकी पिटाई की गई थी। परिजनों के मुताबिक, " यह घटना उस दिन की है जब रामचंद्र के भाई राजेश की भाभी शीला देवी के पेट में अचानक दर्द उठा। वह छटपटाने लगी। शाम का वक्त था। रामचंद्र भारती काम से लौटे तो उन्होंने अपनी भाभी शीला को रोते-कराहते पाया। वह दवा लेने निकले। बहोरिकपुर गांव में दो नीम-हकीम डाक्टर है। शाम का वक्त था। दोनों नीम-हकीम अपनी क्लीनिक बंद कर घर जा चुके थे।

बहोरिकपुर का काली मंदिर

अछूत मानकर पीटा गया

रामचंद्र भारती को कुछ नहीं सूझा तो वह अपनी भाभी शीला की सलामती के लिए दुआ करने काली मंदिर पर पहुंच गए। काली मंदिर के समीप ब्राह्मणों का टोला है। रामचंद्र कहते हैं, "ब्राह्मणों के लड़कों ने हमें काली मंदिर में मत्था टेकते हुए पकड़ लिया। उन्होंने अछूत बताते हुए पहले हमें खूब गालियां दी और जब प्रतिरोध किया तो वो हमारे ऊपर गुंडों की तरह टूट पड़े। लाठी-डंडा और लात-घूसों से मारपीट शुरू कर दी गई। मैं चीखने-चिल्लाने लगा तो फर्जी आरोप गढ़ने के लिए योजनाबद्ध ढंग से उन्होंने चोर-चोर का शोर भी मचाना शुरू कर दिया। हमें इतनी बुरी तरह से पीटा गया कि दाहिना हाथ सूज गया और कोहुनी से खून रिसने लगा।"

रामचंद्र भारती

रामचंद्र भारती यह भी कहते हैं, "हम गुहार लगाते रहे। यह भी बताते रहे कि हम रामचंद्र हैं, कोई चोर नहीं है। फिर भी हमारे ऊपर लाठी-डंडे और लात-घूंसे चलते रहे। हमें तब तक पीटा गया, जब तक बेसुध नहीं हो गए। बाद में ब्राह्मणों ने 112 नंबर की पुलिस बुला ली और चोरी करने का झूठा इल्जाम मढ़ दिया। मौके पर पहुंची पुलिस ने दोनों पक्षों को थाने पर पहुंचने की बात कहकर चली गई। फिर हमारी बस्ती के लोग हमें उठाकर घर ले आए। हमारी हालत ऐसी नहीं थी कि रात में थाने में जा सकें। एक तरफ हम पूरी रात कराहते रहे, दूसरी तरफ हमारी भाभी शीला पेट के दर्द से छटपती रहीं। अगले दिन 29 अगस्त 2022 की सुबह करीब 10 बजे हम अपने वकील से मिलकर थाना पुलिस से शिकायत करने चंदौली जा रहे थे। फ्लाईओवर के पास चंदौली पुलिस के सिपाहियों ने हमें पकड़ लिया। हमें ढूंढते हुए भाई राजेश भारती थाने पहुंचे तो उन्हें भी हमारे साथ लाकअप में ठूंस दिया गया। जिन लोगों ने हमारे साथ मारपीट की थी, वो थाने में पुलिस इंस्पेक्टर के साथ कुर्सी पर बैठे थे। उनके सामने ही हवालात में पुलिस वालों ने हम दोनों भाइयों पर लाठियां तोड़ीं।"

राजेश भारती

दलित रामचंद्र भारती कहते हैं, "हम कामगार हैं। मेहनत-मजूरी कर कमाते-खाते हैं। हम अपनी भाभी के लिए दवा नहीं ला सके तो दुआ करने की सूझी। काली मंदिर चला गया। उम्मीद थी कि ‘देवी’ उन्हें ठीक कर देंगी। शायद मत्था टेकते समय हमें किसी ने पहचान लिया, जो गुनाह बन गया। ब्राह्मणों ने हमें अछूत मानकर बेरहमी से पीटा।"

हालांकि प्रतिवादी पक्ष के लोग इस बात से साफ़ इनकार कर रहे हैं और उनका आरोप है कि युवक शराब के नशे में था। वह चोरी की नीयत से एक व्यक्ति के घर में घुस रहा था।

बहोरिकपुर गांव में कोई यह बताने के लिए तैयार नहीं है कि रामचंद्र किसके घर में घुसने कोशिश कर रहा था? अगर वो चोरी की नीयत से घर में घुसा था तो उसी शाम इलाकाई थाने में रपट दर्ज क्यों नहीं कराई गई? डायल 112 पुलिस मौके पर पहुंची तो एक्शन क्यों नहीं लिया? अगर दोनों भाई चोर थे तो पुलिस ने उनके खिलाफ चोरी की रिपोर्ट दर्ज करे के बजाय दफा 151 में चालान क्यों किया?

एसपी को दी गई अर्जी, जिस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई

बहोरिकपुर के काली मंदिर पर मत्था टेकने पर अछूत मानकर दलित युवक को पीटे जाने के क़रीब एक पखवारा बीत जाने के बाद भी रामचंद्र भारती का परिवार ख़ौफ़ज़दा है। दलित बस्ती में न तो पुलिस का पहरा है, न ही पीड़ितों की गुहार सुनी जा रही है। रामचंद्र भारती कहते हैं, "हमने पुलिस कप्तान अंकुर अग्रवाल को तीन मर्तबा अर्जी दी गई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। दोषियों पर न कोई एक्शन हुआ और न ही जांच-पड़ताल। सिर्फ कंठी-माला पहन लेने का मतलब यह नहीं है कि वो सच बोलते हैं। हम दलित हैं तो सिर्फ झूठ ही बोलते हैं। हम गरीब हैं इसलिए कभी हमें चोर बता दिया जाता है तो कभी हमारे ऊपर नक्सली होने का इल्जाम मढ़ दिया जाता है।"

बहोरिकपुर की दलित बस्ती में ऐसे हैं मकान

सवर्णों ने गढ़े झूठे आरोप?

चंदौली जिला मुख्यालय से करीब साढ़े तीन किमी दूर है बर्थरा मधुवन ग्राम पंचायत। इसी से जुड़ा है बहोरिकपुर गांव। यहां मुसहर समुदाय की चार बस्तियां हैं, जिनमें एक है बर्थरा मधुबन, दूसरी-बहोरिकपुर, तीसरी-ऊसरपुर और चौथी-जोगीवीर। इस गांव की प्रधान हैं श्रीमती उर्मिला पांडेय, मगर पंचायत का कामकाज इनके पुत्र राम प्रकाश पांडेय देखते हैं। उत्तर में ब्राह्मणों का टोला है तो दक्षिण में मुसहरान बस्ती। मुसहर बस्ती के बीचो-बीच है रामचंद्र और राजेश का घर। यहां मुसहरों की करीब 35 झोपड़िया हैं। जिन्हें सरकारी आवास मिला है उनका घर पक्का है। इस बस्ती में मुसहर समुदाय की आबादी 175 के आसपास है।

मुसहर बस्ती में राजेश की पत्नी शीला देवी अपने देवर के साथ हुई नाइंसाफी पर रोने-बिलखने लगती हैं, तब पास बैठी महिलाएं उन्हें सांत्वना देती हैं। शीला रोते हुए कहती हैं, "मेरे देवर को सिर्फ इसलिए पीटा गया, क्योंकि हम मुसहर हैं और सवर्ण हमें अछूत मानते हैं। हमारे नसीब में कभी जूठन आता है तो कभी वह भी नसीब नहीं होता। रामचंद्र राजगीर मिस्त्री हैं, चोर नहीं।"

शीला देवी

शीला कहती हैं, "लोग इल्जाम थोप रहे थे कि घटना के समय मेरे देवर ने शराब पी रखी थी, लेकिन यह पूरा सच नहीं है। उसे तो काली मंदिर के सामने ही पीटा गया जो गांव के पूर्वी छोर पर है। काली मंदिर में सात पिंडियां हैं। उसी से सटा पीपल का एक पेड़ भी है। उनका कुसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने मंदिर के पिंडियों पर मत्था रख दिया था। यह सब ब्राह्मणों को नागवार गुजरा और उन्हें पकड़कर मारपीट व गाली-गलौज शुरू कर दी। हमारे पति राजेश पास-पड़ोस के लोगों को साथ लेकर मौके पर पहुंचे तो देखा कि गुड्डू तिवारी पुत्र लल्लन तिवारी, समन तिवारी पुत्र गुड्डू तिवारी, पीयूष पांडेय पुत्र संजय पांडेय, रितेश पुत्र विजय पांडेय के अलावा विजय पांडेय पुत्र मुराहू पांडेय एकजुट होकर हमारे देवर पर लात-घूसे बरसाए जा रहे थे। गांव के कई अन्य लोग भी वहां खड़े थे। हमारे पति राजेश और मुसहर बस्ती के तमाम लोग मारपीट की घटना के चश्मदीद हैं।"

शीला की बातों को तस्दीक करते हुए गणेश कहते हैं, "शोर-शराबा सुनकर जब मौके पर पहुंचे तो हमें भी धमकाया गया। 112 नंबर की पुलिस आई तो मामला झूठा पाकर लौट गई। हम रामचंद्र को घर लाए हाथ में हल्दी-प्याज का लेप लगाकर कपड़े की पट्टी बंधी।"

बहोरिकपुर गांव सैयदराजा थाना क्षेत्र के मनराजपुर से ज्यादा दूर नहीं है। मनराजपुर वही गांव है जहां थानेदार उदय प्रताप सिंह ने बीती 01 मई 2022 को निशा यादव (गुड़िया) के साथ बर्बरता की थी। आरोप है कि थानेदार और उसके साथ कई हमराही सिपाहियों ने युवती को इस कदर पीटा कि उसकी मौत हो गई। बहोरिकपुर के रामचंद्र भारती और उसके भाई राजेश ने जिस थानेदार पर बर्बरता के साथ मारपीट करने और सवर्णों का खुला साथ देने का आरोप लगाया है वह कोई और नहीं, निशा हत्याकांड में सैयदराजा के निलंबित इंस्पेक्टर उदय प्रताप सिंह के सगे साले संतोष सिंह हैं।

दशकों पुरानी है रंजिश

अछूत मानकर मुसहर बस्ती के लोगों के साथ मारपीट और खून-खराबा बहोरिकपुर की मुसहर बस्ती के लोगों के लिए कोई नई घटना नहीं है। साल 2001 में भी काली मंदिर पर पूजा करने को लेकर ब्राह्मणों और मुसहरों के बीच विवाद हुआ था। आरोप है कि उस समय काली मंदिर के पास खेल रहे तीन साल के राहुल नामक बच्चे पर गुजराती पांडेय नामक महिला ने ईंट बरसाए थे, जिससे उसकी आंख के पास गंभीर चोट आई थी। ब्राह्मण परिवार की यह महिला मंदिर में पूजा करने पहुंची थी। मंदिर के पास दलित लड़के को देखते ही वो आपा खो बैठी थी। राहुल की उम्र अब 22 साल है। वह कहता है, "कई साल तक मुकदमा चला। हमारे ऊपर हमला करने वाली गुजराती देवी को जब सजा खौफ सताने लगा तो हमारे घर आकर रोज-रोज रोने-गिड़गिड़ाने लगीं। बाद में हमारे बाबा मान गए और उन्होंने मुकदमा उठा लिया।"

बहोरिकपुर में ब्राह्मणों और मुसहरों के बीच सबसे पहला विवाद साल 1962 में हुआ था। उस समय मुसहर समुदाय के लोग आबादी की जमीन पर झोपड़ी डालकर रह रहे थे और सवर्ण उन्हें खदेड़कर उस जमीन पर खुद कब्जा करना चाहते थे। उस समय मौके पर करीब एक एकड़ 88 डिस्मिल जमीन थी। झगड़े के बाद दोनों पक्षों के बीच दीवानी का मुकदमा चला। बाद में कोर्ट ने मुसहर समुदाय के 16 लोगों के पक्ष में फैसला सुना दिया। प्रशासन ने जब मुसहरों को कब्जा नहीं दिलाया तो उन्होंने मुकदमें में जीती गई जमीन पर खुद ही मड़ई डाल ली और कब्जा जमा लिया।

बहोरिकपुर के मुसहरों पर जुल्म-ज्यादती की एक और बड़ी घटना साल 2004 में हुई। शौच के पानी के डिब्बे को लेकर ब्राह्मणों और मुसहरों के बीच लाठियां चलीं। आरोप है कि मारपीट के इस मामले में भी पुलिस ने सवर्णों का फेवर किया। चंदौली थाना पुलिस ने मुसहर बस्ती के 19 लोगों को न सिर्फ नक्सली बताया, बल्कि फर्जी मामले में उन्हें गिरफ्तार कर बनारस के चौकाघाट जिला जेल भेज दिया। उस समय चंदौली बनारस का हिस्सा हुआ करता था। नक्सली बताकर फर्जी मामले में गिरफ्तार लोगों के मामले में उच्चस्तरीय जांच हुई तो चंदौली थाना पुलिस की कलई खुल गई। जांच में मामला झूठा पाया गया। जांच से यह भी साबित हो गया कि नक्सली हिंसा के आरोप में जिन लोगों को पकड़ा गया था वो न सिर्फ बेकुसूर थे, बल्कि नक्सलपंथ से उनका कोई सरोकार नहीं था।

बकरी चरा रहे मुसहर बस्ती के 75 वर्षीय झेगुरी वनवासी कहते हैं, "आखिर हम कहां जाएंगे। हमारे पास तो शौचालय भी नहीं है। खेती के लिए जमीन भी नहीं है। हमें सवर्णों के खेत में शौच करने जाना पड़ता है। बस हम इतना चाहते हैं कि ब्राह्मण समुदाय के लोग खुद भी चैन से रहे और हमें भी चैन से जीने दें। वो हमें अछूत न मानें। गरीब जरूर हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमें अछूत समझकर मारा-पीटा जाए। हमारे बच्चों को भी पढ़ने-लिखने का हक है। गांव की पोखरी के भीटे पर हमारी झोपड़ी है तो ब्राह्मणों के मकान भी बने हैं। प्रशासन की ओर से हमें खदेड़ने के लिए नोटिसें भेजी जा रही हैं, लेकिन सवर्णों को ‘वाकओवर’ दिया जा रहा है। आखिर यह कैसी नाइंसाफी है? मुसहर समुदाय के कई लोगों की झोपड़ियां खड़ी नहीं होने दी जा रही हैं। हमारे बच्चों के साथ मारपीट और गाली-गलौज आम बात है।"

टूट रहा दलितों का हौसला

बहोरिकपुर में मुहसर समुदाय के साथ भेदभाव, ज्यादती और भ्रष्टाचार चरम पर है। मुसहर बस्ती में कई लोगों को सरकारी आवास मिला है, लेकिन उन पर छत नहीं पड़ी है। आरोप है कि बैंक के कागज पर अंगूठा लगवाकर सरकारी नुमाइंदे कई लोगों की रकम हड़प चुके हैं। श्यामरथी, मनोज और मुलायम का इल्जाम है कि उन्हें मजूरी का पैसा नहीं मिला, जिसके चलते आवास पर छत नहीं डाली जा सकी। इसी बस्ती के युवक संतोष, लक्ष्मी शंकर, रतन कुमार कहते हैं " इलाके में कहीं भी चोरी होती है तो उस वारदात में हमारी बस्ती में रहने वाले किसी न किसी शख्स का नाम जरूर जोड़ दिया जाता है। सवर्णों का जोर-जुल्म सहते-सहते हम सभी का हौसला टूटता जा रहा है। यह स्थिति तब है जब गांव के कुछ दलित युवक बीए-एमए पास कर चुके हैं।"

काली मंदिर में मत्था टेकने पर अछूत मानकर हुई दलित युवक रामचंद्र की पिटाई की वारदात के बाद से गांव में तनाव है। इलाकाई लोगों का कहना है कि ब्राह्मण और मुसहर समुदाय के बीच रंजिश दशकों पुरानी है। हालांकि ग्राम प्रधान उर्मिला पांडेय की के पुत्र राम प्रकाश पांडेय ब्राह्मण समुदाय पर लगाए जा रहे आरोपों को सिरे से नकारते हैं। वह कहते हैं, "काली मंदिर में सभी समुदाय के लोग बेख़ौफ़ जाते रहे हैं।" आख़िर 28 अगस्त को ऐसा क्या हुआ कि राजगीर युवक रामचंद्र भारती को मंदिर जाने पर पीटा गया, इस सवाल का जवाब गांव का कोई भी व्यक्ति नहीं देना चाहता है।

मुसहर बस्ती के लोगों को जितनी शिकायत रामचंद्र को पीटे जाने से है उससे कहीं ज्यादा चंदौली थाना पुलिस से है। इनकी शिकायत पर न तो एसपी अंकुर अग्रवाल ध्यान दे रहे हैं और न ही दूसरे अफसर। भाकपा माले से जुड़े एक्टिविस्ट शशिकांत सिंह घटना की निंदा करते हुए समूचे मामले को जुल्म और ज्यादती की बर्बर कार्रवाई करार देते हैं। वह कहते हैं, "वनवासी समाज का प्रतिनिधिमंडल लेकर मैं भी एसपी अंकुर अग्रवाल से मिल चुका हूं, फिर भी कोई एक्शन नहीं हुआ। योगी सरकार की पुलिस दबंगों के साथ मिलकर गरीब जनता का उत्पीड़न और मान-मर्दन करने में जुटी है। बहोरिकपुर जुल्मी सवर्णों के खिलाफ मामला दर्ज नहीं किया गया तो मुसहर समुदाय के लोग एसपी दफ्तर का घेराव करेंगे। इसकी जिम्मेदारी पुलिस कप्तान की होगी। हमें तो यही लगता है कि पुलिस कप्तान अंकुर अग्रवाल से उनके अपने थानेदार ही नहीं संभल पा रहे हैं, इसीलिए निर्दोष लोगों पर जोर-जुल्म अनवरत जारी है। दलितों पर ज्यादती बंद नहीं हुई और बहोरिकपुर के पीड़ितों को इंसाफ़ नहीं मिला तो दलित समाज सड़क पर उतरकर आंदोलन करने को बाध्य होगा।"

पुलिस की सफ़ाई

चंदौली सदर थाने के इंस्पेक्टर संतोष सिंह रामचंद्र और उसके भाई को ही कसूरवार मान रहे हैं। वह मीडिया से कहते हैं, "मुसहर समुदाय शराबी युवक नशे में एक ब्राह्मण के घर में घुस रहा था। इस बात पर विवाद हुआ। मंदिर में पूजा-पाठ वाला कोई मामला नहीं है। सब गढ़ी और झूठी बातें हैं। यह रंजिश का मामला है। जिस जमीन पर मुसहर बसे हैं उसपर पहले ब्राह्मणों का कब्ज़ा था। फैसला बनवासी समाज के हक़ में गया, तभी से दोनों पक्षों में रंजिश चल रही है। जांच-पड़ताल कराई जा रही है। अगर दलित युवक के साथ जानबूझकर जुल्म-ज्यादती की गई होगी तो पुलिस सख्त एक्शन लेगी।"

दलितों को लेकर ठीक नहीं मानसिकता

बहोरिकपुर गांव में मुसहर समुदाय के लोगों के साथ हुई ज्यादती की पड़ताल में जुटीं मौजूद मानवाधिकार जन निगरानी समिति (पीवीसीएचआर) की एक्टिविस्ट छाया और ज्योति ने न्यूज़क्लिक से कहा, "मुसहर समुदाय के लोगों के साथ जुल्म-ज्यादती सालों से होती आ रही है। हमें पता चला कि मुसहर समुदाय के युवक को मंदिर में पूजा करने पर अछूत मानकर पीटा गया है और उन्हें उन्हें पूजा करने से रोका जा रहा है, तो पड़ताल करने आ गए। मुसहर समुदाय के लोगों ने हमें भेदभाव और छुआछूत की ढेर सारी शिकायतें दर्ज कराई हैं। सरकारी आवास के आवंटन और निर्माण में गजब की हेराफेरी नजर आती है। भ्रष्टाचार का आलम तो यह है कि जिन दलितों को सरकारी अवास मिला है, पर शौचालय गायब है। जिनके शौचालय बनवाए भी गए हैं, उसमें सिर्फ दो फीट की पिट बनाई गई है। ज्यादातर लोगों के आवास के दरवाजे लगे ही नहीं। कुछ के लगे तो वो इतना घटिया थे कि आंधी में उड़ गए। इसी तरह का शौचालय रिंकू पत्नी अनिल का भी है, जिनके दो बेटे सौ फीसदी विकलांग हैं और जिंदा लाश की तरह पालीथिन से ढंके कमरे में जानवरों की मनिंद रहते हैं।"

मुसहर बस्ती के पोस्ट ग्रेजुएट पास युवक रतन कुमार कहते हैं, "हमारे समुदाय में हर किसी को शिकायत है कि जब चुनाव आता है तभी हमें हिन्दू समझा जाता है। तब भाजपा के नेता भी आते हैं और विपक्ष के लोग भी। प्रचार पाने के लिए उस समय वो हमारे घरों की रोटियां तक खाने से परहेज नहीं करते। चुनाव खत्म होते ही हम अछूत हो जाते हैं। तब हमें न हिन्दू माना जाता है, न कोई हमारे घर का पानी पीने हिम्मत जुटाता है। सवर्णों के कुएं पर हम आज भी पानी नहीं भर सकते। खेतों में काम के समय पीने के लिए पानी भी ऊपर से दिया जाता है। उनके घरों में हमारे लिए अलग प्लेटें हैं। मंदिर में सामूहिक पूजा के समय प्रसाद भी हमें कागज की प्लेटों में दिया जाता है। वो हमारे बच्चों को दुत्कारते हैं। इसलिए वे उधर नहीं जाते। कई बार मेरे दिमाग में आता है कि मैं ये गांव छोड़कर चला जाऊं।"

लोकसभा में बीते दिनों गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा ने देश में दलितों के प्रति होने वाले अपराधों का आंकड़ा रखा था, जिसमें योगी आदित्यनाथ का यूपी पहले पायदान पर रहा। आंकड़ों के मुताबिक, साल 2018 से साल 2020 के बीच दलित और आदिवासियों के खिलाफ आपराधिक मामले बढ़े हैं। 2018 में दलितों के खिलाफ 42,793 आपराधिक मामले सामने आए थे तो साल 2020 ये मामले 50 हजार पहुंच गए। साल 2020 में 12,714 मामले अकेले यूपी में थे, जिसमें पूर्वांचल अव्वल रहा। पिछले दो सालों के आंकड़ों का खुलासा नहीं हो सका है। जो आंकड़े पेश किए गए हैं उनमें दलितों के साथ मौखिक क्रूरता से लेकर बलात्कार तक के मामले शामिल हैं।

मानसिकता बदलने की चुनौती

आईपीएफ की राज्य कार्यसमिति के सदस्य अजय राय कहते हैं, "ऐतिहासिक और सामाजिक मानसिकता, जो एक दशक पहले डाइल्यूट हो गई थी वह भाजपा शासन में एक बार फिर से सक्रिय हो गई है। छोटी-छोटी बातों में दलितों की पिटाई और हत्याएं हो रही हैं। इससे कहीं ज्यादा तो ऐसे मामले होते है जिनकी सुनवाई ही नहीं होती है। कुछ राजनीतिक दल, खासकर सत्ताधारी पार्टी के लोग यह सोच कर चलते हैं कि उन्हें दलित वोट नहीं करते हैं। ऐसे में उनसे वह लोग उस स्तर से जुड़ाव नहीं रख पाते हैं। यूपी में सामंतवाद पूरी तरह हावी है। महिलाओं के सम्मान में, बीजेपी मैदान में का नारा उछालने वाली डबल इंजन की सरकार में दलितों, गरीब महिलाओं और उनके बच्चों के लिए सुकून से रहने के लिए कोई भी जगह नहीं बची है।"

अजय राय यह भी कहते हैं, "चंदौली में गरीब और दलित वर्ग के लोगों को थाना पुलिस में न्याय नहीं मिलता। हमें याद है कि राम मंदिर बनाने के लिए चंदौली से बहुत से दलित और आदिवासी भी अयोध्या गए थे। जब वही दलित वापस अपने गांव आए तो उन्हें मंदिरों में घुसने तक नहीं दिया गया। शहरों में जाति-आधारित इमारतें हैं, लेकिन गांवों में स्थिति बदतर है। उच्च जाति वाला अपने से नीची जाति के लोगों को नीची निगाह से देखता है। आर्थिक कारणों और भेदभाव के चलते बच्चे बड़ी संख्या दलित बच्चे प्राइमरी स्कूल से आगे नहीं पढ़ पाते हैं। इसके चलते वो आरक्षण के फायदे से भी महरूम हैं। छूत-अछूत की समस्या पूर्वांचल में सबसे विकट है। इस इलाके से सामंती सोच वाले राजा तो चले गए, लेकिन उनकी सोच जीवित अब तक जिंदा है। हिंदू एकता के नाम पर भाजपा के लोग दलितों को साथ तो ले आए, लेकिन उनकी जिंदगी बदलने की कोशिश नहीं की। पुलिसिया जुल्म-ज्यादती को झेल रहे चंदौली में दलित समाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती उनके प्रति मानसिकता बदलने की है।"

सभी फोटोः विजय विनीत

(बनारस स्थित लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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