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कानपुर हिंसा: पुलिस की एकतरफ़ा कार्रवाई व “ख़ुफ़िया विभाग” की नाकामी 

“अगर भाजपा अपने नेता नवीन कुमार जिंदल और नूपुर शर्मा के विरुद्ध स्वयं कार्रवाई करती, तो मुस्लिम समुदाय सड़क पर प्रदर्शन करने कभी नहीं आता। हलांकि बताया जा रहा है कि कानपुर में स्थिति अब सामान्य है, लेकिन पुलिस द्वारा दी जा रही दबिशों से मुस्लिम इलाकों में अब भी दहशत का माहौल है।”
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कानपुर में हुई  सांप्रदायिक हिंसा के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस  लगातार सवालों के घेरे में हैं। पुलिस पर एकतरफ़ा कार्रवाई के आरोप लग रहे हैं। इसके अलावा घटना को “ख़ुफ़िया विभाग” की नाकामी भी माना जा रहा है।

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेताओं द्वारा दिये गए “विवादास्पद बयान” और सरकार द्वारा अपने नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई न करना, कानपुर में 3 जून को कानून एवं व्यवस्था का प्रश्न बन गया था।

सांप्रदायिक दृष्टिकोण से संवेदनशील शहर कानपुर में दो समुदाय आमने-सामने आ गए। जमकर पथराव हुआ, पेट्रोल बम और गोली चलने की खबरें भी प्राप्त हुईं। लेकिन पुलिस हिंसा को घंटों तक नहीं रोक सकी। 

एक तरफ हिंसा हो रही थी और दूसरी तरफ इसी कानपुर (ग्रामीण) में राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे। कहा जा रहा है कि हिंसा के दौरान भी बीजेपी के एक नेता भड़काऊ पोस्ट सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे थे।

स्थानीय लोगों का कहना है कि हिंसा के दौरान पुलिस द्वारा पथराव के कथित वीडियो भी सामने आये। इतना सब होने के बाद जब प्रदेश पुलिस हरकत में आई तो सीधा “बुलडोज़र” की धमकी भी दी गई। ज़िला प्रशासन ने काफी मशक्कत के बाद हिंसा को काबू में कर लिया गया। लेकिन जब पुलिस ने कार्रवाई शुरू करी तो “पक्षपातपूर्ण” रवैया के आरोप के घेरे में आ गई। 

मुस्लिम समुदाय आरोप लगा रहा है कि मुक़दमों से लेकर गिरफ्तारियां ज़्यादातर उनके समुदाय के लोगों की हो रही हैं। प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) ने भी पुलिस पर पक्षपातपूर्ण रवैया का आरोप लगा दिया। नागरिक समाज का भी मानना है कि अभी तक हुई करवाई  “भेदभावपूर्ण” लग रही है। 

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड, शहर काज़ी, सपा से लेकर सामाजिक संगठन रिहाई मंच तक सभी ने पुलिस करवाई को “असंतोषजनक” बता रहे हैं। प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक भी मानते हैं कि हिंसा स्थानीय प्रशासन की “विफलता” का परिणाम है।

हिंसक तनाव को लेकर पीयूसीएल, रिहाई मंच, ऑल इंडिया लायर्स कौंसिल ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में जांच की मांग की है। पुलिस द्वारा करीब 40 आरोपियों का पोस्टर भी जारी किया है। इस संगठनों का कहना है आरोपियों के नाम पर शहर भर में लगाए गए पोस्टर नागरिक अधिकारों-निजता की धज्जियां उड़ा रहे हैं। 

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा के विवादास्पद बयान के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा, के बाद हो रही करवाई को भेदभावपूर्ण बताया है । 

इस्लाम के पैग़म्बर हजरत मोहम्मद साहब पर अपमानजनक टिप्पणी करने वाले बीजेपी नेताओं को पार्टी से निलंबित किए जाने को मुस्लिम बोर्ड पर्याप्त नहीं मान रहा है। बोर्ड के महासचिव खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने एक बयान में कहा है कि सत्ताधारी बीजेपी के नेताओं ने पैग़म्बर हजरत मोहम्मद साहब पर अप्पतिजनक टिप्पणी कर न सिर्फ मुसलमानों को तकलीफ पहुंचाई है बल्कि विश्व स्तर पर देश की प्रतिष्ठा को भी ठेस पहुंचाई है। 

खालिद सैफुल्लाह रहमानी के अनुसार ऐसे में जघन्य अपराध  करने वालों को पार्टी से निलंबित करना निश्चित रूप से एक अच्छा क़दम है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। बोर्ड मांग कर रही है कि ऐसे कुकृत्य करने वालों को कठोर दंड दिया जाए और कानूनी कार्यवाही की जाए। 

उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुआ कहा कि कानपुर हिंसा “ख़ुफ़िया विभाग” की नाकामी है। उन्होंने कहा कि “जब शहर में प्रदर्शन के लिए पोस्टर लग रहे थे और पेट्रोल बम बन रहे थे, उस समय “ख़ुफ़िया विभाग” क्या कर रहा था?”

विक्रम सिंह आगे कहते हैं कि ऐसे संवेदनशील मामलों में पुलिस को दोनों पक्षों और वहां मौजूद पुलिस (जो वीडियो में भी दिख रहा हो) से पूछताछ कर 24 घंटे के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश कर देनी चाहिए। पूर्व पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने कहा कि अगर पुलिस एकतरफ़ा करवाई करती है तो उसका “इकबाल” ख़त्म हो जायेगा, जिसका खामियाज़ा उसको बाद में उठाना पड़ सकता है। 

बता दें कि वहीं कानपुर के शहर क़ाज़ी ने भी कहा है कि पुलिस की एकतरफ़ा करवाई से मुस्लिम समुदाय में असंतोष का माहौल है। शहर क़ाज़ी अब्दुल कुद्दुस हादी ने कहा की अगर पुलिस ने घरों पर “बुलडोज़र” चलाया तो इसका विरोध किया जायेगा। 

बता दें  कि घटना के बाद प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (कानून एवं व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने कहा था कि आरोपियों की संपत्ति को ज़ब्त किया जायेगा और उन पर बुलडोज़र चलाया जायेगा।  

कुद्दुस हादी ने कहा है कि अगर एकतरफ़ा करवाई नहीं रुकी तो वह पुलिस कमिश्नर विजय सिंह मीना से इस बारे में बात करेंगे। शहर क़ाज़ी ने दावा किया कि घटना के जो वीडियो सामने आये हैं, उन में हिन्दू पक्ष भी हिंसा करते दिख रहा है, लेकिन उसके ख़िलाफ़ कोई करवाई नहीं की जा रही है। 

वहीं रिहाई मंच ने भी पुलिस करवाई पर सवाल उठाये हैं। रिहाई मंच के राजीव यादव ने न्यूज़क्लिक से कहा है कि कानपुर में मुस्लिम बाहुल्य इलाकों को छावनी बना दिया गया है।  जबकि हिन्दू इलाकों में ऐसा कुछ नहीं है।

यादव कहते हैं कि खुफिया तंत्र और पुलिस प्रशासन ने अपनी नाकामी को छिपाने के लिए मुस्लिम समुदाय के लोगों की गिरफ्तारियां कर रही हैं। साथ ही बदले की कार्रवाई के तहत गैंगेस्टर, एनएसए, बुलडोजर चलाने की धमकियां दी जा रही हैं। 

जबकि हिंसा के बाद पुलिस ने स्वयं घटना के बाद जारी बयान में, हिंसा दो समुदाय के बीच का टकराव बताया था। रिहाई मंच का कहना है कि हिंसा के वायरल हुए वीडियो में दोनों समुदाय के लोगों को एक दूसरे पर पत्थरबाज़ी करते देखा जा सकता है। इसके अलावा पुलिस भी दंगाइयों के साथ पत्थर चलाती नज़र आ रही है।

ऑल इंडिया लायर्स कौंसिल के महामंत्री शरफुद्दीन अहमद कहते हैं कि पूरा घटनाक्रम संदिग्ध और न्यायिक अवधारणाओं के विपरीत है, इसलिए इसकी माननीय उच्च न्यायालय के सिटिंग जस्टिस की निगरानी में स्वतंत्र जांच एजेंसी की एसआईटी बनाकर निष्पक्ष विवेचना कराई जाए।  

पुलिस ने चौतरफ़ा दबाव के बीच, हिंसा के चौथे दीन, सत्तारूढ़ दल के नेता हर्षित श्रीवास्तव को मंगलवार गिरफ्तार किया है। बताया जा रहा है कि हर्षित बीजेपी युवा मोर्चा का पूर्व जिला मंत्री है। उसने सोशल मीडिया पर एक आपत्तिजनक पोस्ट किया था, जिसके बाद शहर का माहौल एक बार फिर गर्म हो गया था।

पुलिस द्वारा इस मामले में हिंसा के दूसरे दिन 3 मुक़दमे दर्ज किये गए हैं। एक मुक़दमे में अज्ञात भीड़ को आरोपी बनाया गया है।  घटना के अगले दिन यानी 4 जून को हुए दूसरे मुक़दमे में 19 लोगों के ख़िलाफ़ नामज़द और 350 अज्ञात लोगों के विरुद्ध मामला दर्ज हुआ है।

कानपुर के बेकनगंज में हुई हिंसा के तीसरे मुक़दमे में पुलिस ने 36 लोगों को आरोपी बनाया है। दिलचस्प बात यह है कि दोनों मुक़दमों में लगभग सभी आरोपी मुस्लिम समुदाय से हैं।  

उधर यह मामला सियासी रंग भी लेने लगा है। प्रमुख विपक्षी पार्टी सपा ने आरोप लगाया है कि कानपुर मामले में योगी आदित्यनाथ सरकार मुसलमानों के ख़िलाफ़ एकतरफ़ा करवाई कर रही है। पार्टी के प्रवक्ता अमीक जामेई ने कहा है कि अगर नूपुर और जिंदल को जेल भेज दिया जाता तो कानपुर का आपसी सौहार्द ख़राब नहीं होता।  

जामेई ने आरोप लगाया कि जो भगवा पहने पुलिस की तरफ खड़े हिंसा कर रहे थे, वह बीजेपी के कार्यकर्ता थे। उनका पूछना है कि इन कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई कब होगी? उन्होंने कहा राजधर्म यह है कि हर किसी के साथ न्याय किया जाये।  

मुस्लिम समाज का आरोप है कि अगर (बीजेपी) सरकार अपने नेता नवीन कुमार जिंदल और नूपुर शर्मा के विरुद्ध स्वयं कार्रवाई करती, तो मुस्लिम समुदाय सड़क पर प्रदर्शन करने कभी नहीं आता। हलांकि बताया जा रहा है कि कानपुर में अब स्थिती सामान्य है, लेकिन पुलिस द्वारा दी जा रही दबिशों से मुस्लिम इलाकों में दहशत का माहौल है। 

जब न्यूज़क्लिक ने कमिश्नर मीना से इन आरोपों के बारे में मालूम करने के लिए मंगलवार को संपर्क किया तो वह  टिप्पणी के लिए मौजूद नहीं थे। पुलिस सूत्रों के अनुसार अभी तक करीब 50 आरोपियों की गिरफ्तारियां हुई हैं। 

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