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कर्नाटक चुनाव : पुराने मैसूर इलाक़े में पकड़ बनाने के लिए संघर्ष करती भाजपा

भाजपा पुराने मैसूर इलाक़े में मतदाताओं के बीच ध्रुवीकरण करने के लिए संघर्ष कर रही है; हालांकि कांग्रेस और जेडी (एस) से लाए गए नेताओं का प्रभाव देखना अभी बाक़ी है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

कर्नाटक विधानसभा चुनाव, जो कुछ ही सप्ताह की दूरी पर हैं, राजनीतिक माहौल गर्मा गया है और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सोच-समझ के लिहाज़ से रक्षात्मक दिख रही है। सत्ता पर फिर कब्जा जमाने के लिए, यह पुराने मैसूर इलाके में जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) और कांग्रेस के गढ़ों में घुसपैठ करने की कोशिश कर रही है।

यह इलाका कर्नाटक की सत्ता की राजनीति के मामले में निर्णायक बना हुआ है क्योंकि भू-स्वामी वोक्कालिगा समुदाय यहां बड़ी तादाद में रहता है, जिसका मत प्रतिशत मैसूर (11), मंड्या (7), हासन (7) कोलार (6), चिक्काबल्लापुर (5), रामनगर (4), चामराजनगर (4) और बेंगलुरु ग्रामीण (4) के आठ जिलों में 12-15 प्रतिशत है। इस इलाके और वोक्कालिगा समुदाय ने अब तक परंपरागत रूप से जेडीएस और कांग्रेस के विधायकों का समर्थन किया है, और इसलिए अब भाजपा इन दो दलों के चुनावी गढ़ में घुसपैठ करने की कोशिश कर रही है।

दिसंबर 2019 में मांड्या के केआर पेट में बीजेपी की जीत को जेडीएस के वोक्कालिगा गढ़ में पकड़ बनाने के रूप में देखा गया था। हाल ही में, मांड्या से निर्दलीय सांसद सुमलता अंबरीश के भाजपा को समर्थन देने से सबकी भौंहें तन गईं हैं क्योंकि 2019 की अंबरीश की जीत का श्रेय मुख्य रूप से कांग्रेस और किसान समूहों के समर्थन को दिया गया था।

बावजूद इसके कि कुछ ऐसी घटनाएं जो भाजपा के प्रति बने अनुकूल माहौल का संकेत दे रही हैं, लेकिन इसके विपरीत जो तथ्य है वह यह कि वोक्कालिगा समुदाय को लुभाने के जो कई विनाशकारी प्रयास किए गए, वे उल्टे पड़ते नज़र आ रहे हैं। 

पुराने मैसूर में साम्प्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश करना 


भाजपा ने नन्जे गौड़ा-उरी गौड़ा नाम के दो काल्पनिक पात्रों की मदद लेने कि कोशिश की है और प्रचारित किया कि वे टीपू सुल्तान को मारने वाले वोक्कालिगाओं में से थे, जो टीपू सुल्तान को मारने के अंग्रेजों के दावे को धूमिल करने की भी कोशिश थी। अड्डानाड सी करिअप्पा ने एक नाटक लिखा और निर्देशित किया था जिसके बाद इन पात्रों पर चर्चा हुई थी।

यह भाजपा पर तब उल्टा पड़ गया जब आदिचुनचुनगिरी मठ के वोक्कालिगा निर्मलानंद स्वामीजी ने नेताओं को इतिहास को विकृत करने से परहेज करने की चेतावनी दी।

मांड्या जिले में अखिल भारतीय किसान सभा के नेता कृष्णा गौड़ा ने इस कदम को वोक्कालिगा और मुसलमानों के बीच नफरत भड़काने का सांप्रदायिक कदम बताया है।

कृष्णा गौड़ा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "पुराने मैसूर इलाके में टीपू सुल्तान और महाराजा कृष्णराज वाडियार दोनों के शासन के तहत प्रगतिशील समाज की समृद्ध ऐतिहासिक यादें रही हैं। और इस प्रकार, यह सांप्रदायिक राजनीति को पनपने नहीं देता है।"

मुसलमानों के लिए आरक्षण खत्म करना

दूसरा कदम जो इलाके के मतदाताओं के गले नहीं उतरा, वह मुसलमानों के लिए आरक्षण को खत्म करना था।

भाजपा सरकार को लताड़ते हुए गौड़ा ने कहा कि, "मुसलमानों को सामाजिक रूप से पिछड़ा माना जाता था, इसलिए महाराजा कृष्णराज वाडियार चतुर्थ के शासन के दौरान 1918 में मिलर आयोग के ज़रिए और बाद में 1994 में मुख्यमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने आरक्षण का प्रावधान किया था। वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों को सशक्त बनाने के लिए मुसलमानों के लिए आरक्षण ख़त्म करने से भाजपा को कोई चुनावी लाभ नहीं मिलेगा।"

हम्पी विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और एक राजनीतिक टिप्पणीकार डॉ. टीआर चंद्रशेखर का कहना है कि जेडीएस की भीतरी कलह और भाजपा की अप्रभावी उपस्थिति के कारण त्रिकोणीय लड़ाई नहीं दिखाई पड़ती है और लगता है पुराने मैसूर इलाके में स्थिति कांग्रेस के पक्ष में है। 

चंद्रशेखर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "परंपरागत रूप से, इस इलाके में जेडीएस का दबदबा रहा है, लेकिन अब बड़े पैमाने पर वोक्कालिगा समुदाय की भावनाएं लगता है जेडीएस के बजाय कांग्रेस की ओर झुक गई हैं। इसके अलावा, समुदाय के कई लोग कांग्रेस को एक प्रमुख शक्ति मानते हैं। हाइपरलोकल ध्रुवीकरण का मुकाबला करने के मामले में भाजपा को कांग्रेस ही टक्कर दे सकती है। भाजपा इस इलाके में पहले की तरह अपने प्रदर्शन को नहीं दोहरा सकती है।"

पुराने मैसूर इलाके की संख्यात्मक शक्ति को उलटने की रणनीति

पुराना मैसूर इलाका जिसमें वोक्कालिगा समुदाय प्रमुख शक्ति है वह अपनी 48 सीटों के कारण सरकार के भाग्य का फैसला करने की ताक़त रखता है। 2018 में, जेडीएस ने 25 सीटें; कांग्रेस ने 16, भाजपा ने पांच और दो सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी।

2019 में, जब भाजपा ने कांग्रेस और जेडीएस में दल-बदल कराया, और जिन नेताओं को उसने अपने भीतर लिया था, वे ज्यादातर वोक्कालिगा थे, जो अंततः इस इलाके को सत्ता की कुंजी मानते थे।

2018 में एक अंक में जीती गई सीट को ध्यान में रखते हुए, बीजेपी ने 31 दिसंबर, 2022 को मांड्या में 2023 के विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र अपनी पहली राजनीतिक रैली का लक्ष्य रखा था, जिसे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संबोधित किया था, जिसमें अधिक सीटें जीतने के इरादे का संकेत दिया गया था।

इसी तरह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 नवंबर को केम्पेगौड़ा की 108 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया, जो एक वोक्कालिगा आइकन थे, जिन्होंने 16 वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य पर शासन किया था और उन्हें बेंगलुरु की स्थापना का श्रेय दिया जाता है। यह सब  समुदाय के भीतर सहानुभूति पाने के लिए किया गया था।

मैसूर विश्वविद्यालय में कला विभाग के डीन प्रो. मुजफ्फर असदी कहते हैं, बीजेपी के प्रयास मैसूर हृदयभूमि और वोक्कालिगा के मानस में प्रभाव पैदा करने में विफल रहे हैं।

असदी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "बीजेपी और हिंदुत्व की ताकतों के राजनीतिक आविष्कार जैसे इतिहास को विकृत करना, मुसलमानों का आरक्षण ख़त्म करना एक स्वाभाविक मौत है। इसके अलावा, मुस्लिम समुदाय की तरफ से कोई भी प्रतिक्रिया न होने के कारण ध्रुवीकरण नहीं हो पाया है। और इसलिए पुराने मैसूर इलाके को सांप्रदायिक बनाने का प्रयास बुरी तरह विफल रहा है।"

असदी के अनुसार, इस क्षेत्र का मुस्लिम समुदाय कांग्रेस का समर्थन करेगा जो पारंपरिक रूप से गौड़ा के समर्थक हैं, लेकिन वे एचडी कुमारस्वामी पर ज्यादा भरोसा नहीं करते हैं क्योंकि उनकी सीएम बनने की महत्वाकांक्षाओं में भाजपा भी शामिल हो सकती है।

लेखक, एक स्वतंत्र परकार हैं।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

Karnataka Elections: BJP Struggling to Intrude Old Mysuru Region

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