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कर्नाटक चुनाव : सैकड़ों परिवार साल में सिर्फ़ 8 महीने अपने घरों में रह सकते हैं

कृष्णा नदी के तट पर स्थित सप्तसागर गांव उन गांवों में से एक है, जहां 2019 के बाद से हर साल बाढ़ आई है।
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2019 (बाएं) और आज के दिन (दाएं) की तस्वीरें तबाही की हद को दर्शाती नज़र आती हैं

कर्नाटक के सप्तसागर गांव में अत्यधिक बारिश के कारण हर साल भयंकर बाढ़ आती है और इसके कारण मज़बूरन सैकड़ों परिवारों को चार महीने तक अपना घर छोड़ कहीं रहने जाना पड़ता है। कृष्णा नदी का पानी उनके घरों में घुस जाता है और कुछ घरों को तो पानी पूरी तरह से बहा ले जाता है।

बाढ़ के दो-तीन महीनों के बाद, गांव वालों को बाढ़ का पानी निकालने और खुद के घरों की सफाई करने में कम से कम एक महीना लगता है। उन्हे अक्सर जलभराव के कारण घरों में पैदा हुई बदबू और कीचड़ से छुटकारा पाने के लिए बड़ी कोशिश करनी पड़ती है।

कृष्णा नदी के तट पर स्थित सप्तसागर गांव और साथ ही आसपास के 15 गांव, जून और सितंबर के महीनों के बीच पड़ने वाली मूसलाधार बारिश से या तो पूरी तरह से बह जाते हैं या फिर पानी में डूब जाते हैं।

ये गांव कर्नाटक और महाराष्ट्र की सीमा पर बेलागवी जिले में स्थित हैं। बेलगावी को कर्नाटक के चीनी के कटोरे के रूप में जाना जाता है और यहां की खेती को इलाके की बहने वाली आठ नदियों द्वारा सिंचित किया जाता है। कुछ नदियां महाराष्ट्र से निकलती हैं और कृष्णा और घाटप्रभा नदियों में मिल जाती हैं। भारी बारिश के दौरान नदियां उफान पर होती हैं, जिससे पूरे जिले में अचानक बाढ़ आ जाती है।

2019 में कर्नाटक में आई बाढ़ के दौरान बेलगावी भी सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ था। जिला प्रशासन ने 2019 में कुल नुकसान 11,000 करोड़ रुपये आंका था।

सप्तसागर गांव उन गावों में से एक है, जहां 2019 के बाद से हर साल बाढ़ आई है। इसके अलावा, यहां के किसान केवल गन्ना उगाते हैं। 57 वर्षीय अप्पासाहेब गणपति कांबले होलेया समुदाय से हैं, किसान हैं और अनुसूचित जाति से है। उनके पास एक एकड़ और 17 गुंटा जमीन है, जिस पर वे गन्ना उगाते हैं। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उन्होंने कहा कि, "मैं सालाना लगभग 40,000-50,000 रुपये कमाता हूं। लेकिन बाढ़ से 3-4 लाख रुपये का नुकसान हो जाता है। बिजली कटौती से भी हमें परेशानी हो रही है। पिछले महीने हमें केवल दो घंटे बिजली मिल रही थी। इससे सिंचाई का काम बाधित होता है। मुझे बाढ़ के कारण जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर में कृषि के काम को रोकना पड़ा। पूरी फसल खराब हो गई। बाढ़ के कारण मझे अपनी चार भेड़ों से भी हाथ धोना पडा। दलितों के घर (कृष्णा) नदी के करीब स्थित हैं, इसलिए हमारे घरों में सबसे पहले बाढ़ आती है। हम जो कुछ भी सामान ले सकते हैं उसे अपने साथ ले जाते हैं और चार महीने दूसरी जगह बिताते हैं। कुछ लोग गंजी केंद्र(एक  क्षेत्र) में शरण लेते हैं।”

अप्पासाहेब कांबले (दाएं) और उनके भतीजे, रामू पुजारी (बाएं), अपने गन्ने के खेत के बीच खड़े हैं।

कांबले अपने नुकसान की भरपाई के हकदार हैं। तालुक प्रशासन एक सर्वेक्षण करता है और इसकी एक सूची भी तैयार करता है। राजीव गांधी हाउसिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड की एक योजना के तहत, दावेदारों को उनकी संपत्तियों को हुए नुकसान की सीमा के आधार पर ए/बी/सी श्रेणी में बांटा जाता है। ए श्रेणी में रखे गए व्यक्ति 500,000 रुपये के मुआवजे के हकदार होते हैं क्योंकि उनका घर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाता है; बी श्रेणी का मतलब है कि क्षति 25 से 75 प्रतिशत के बीच होती है, और उनकी दावेदारी 300,000 रुपये की होती है। सी श्रेणी का मतलब है कि घर में पानी घुस गया है, लेकिन कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है। सी श्रेणी के दावेदार 50,000 रुपये मुआवजे के हकदार होते हैं। कांबले ने आरोप लगाया कि 'पुनः सर्वेक्षण' करने के बाद उन्हें ए से बी और फिर सी श्रेणी में डाल दिया गया। और अंत में, उन्हें अपने नुकसान के लिए कोई मुआवजा भी नहीं मिला।

पुनर्वास के लिए संघर्ष 

34 साल के रामू पुजारी ने कानून की पढ़ाई पूरी कर ली है और अब नतीजों का इंतजार कर रहे हैं। वे सप्तसागर गांव के बाहर अपने समुदाय को फिर से बसाने के लिए एक कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उन्होंने कहा कि, "हम इस बाढ़ की समस्या से खुद को छुटकारा दिलाने के लिए जिला प्रशासन से पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि जमीन उपलब्ध नहीं है। यहां तक कि जब उन्होंने जमीन की पहचान की, तो किसान (जिनके पास जमीन थी) बेचने को तैयार नहीं थे। इसलिए, हम (दलित परिवार) एक साथ आए और खुद भू-स्वामियों के पास गुहार लगाने पहुंचे। हमें एक विक्रेता मिला, जो अथानी तालुक के एक पड़ोसी गांव चिक्कट्टी गांव में 35 एकड़ जमीन देने को तैयार था। लेकिन जिला आयुक्त (डीसी) और भूमि विक्रेता, भूमि के मूल्यांकन पर एकमत नहीं हो पाए और नतीजतन कोई सौदा नहीं हुआ।

रामू पुजारी ने न्यूज़क्लिक को प्रशासन को भेजे गए अनुरोधों से संबंधित दस्तावेज़ दिखाए। उनके पास प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, बेलगावी जिला आयुक्त, अथानी तहसीलदार, चिक्कोडी सहायक आयुक्त, ग्राम पंचायत, और लक्ष्मण सावदी, अठानी विधायक उम्मीदवार, और महेश कुमथल्ली, अठानी विधायक को संबोधित किए गए पत्र हैं। हालांकि, इनमें से कोई भी उनकी मदद के लिए नहीं पहुंचा है।

रामू पुजारी ने 2019 के बाद से समुदाय द्वार लड़े गए हर संघर्ष का दस्तावेजीकरण करने का प्रयास किया है।

पुजारी ने अफसोस जताया, “अगर हम चुनाव का बहिष्कार करते तो शायद वे हमारी बात सुनी जाती। इसके बजाय, हमारे लोग विभिन्न उम्मीदवारों के लिए प्रचार करने जा रहे हैं। हमने यहां कोई सामाजिक संस्था नहीं बनाई है। हम  कुछ दोस्तों साथ आए और उन बुजुर्गों का मार्गदर्शन भी लिया जिन पर हम भरोसा करते हैं। प्रशासन ने दलित किसानों को हुए फसल के नुकसान का मुआवजा नहीं दिया है। प्रक्रिया भेदभावपूर्ण लगती है। हम मांग करते हैं कि पूरे गांव को दूसरी जगह बसाया जाए और सभी के लिए नए घर बनाए जाएं.”

उन्होंने कहा कि उनकी मांग बहुत जरूरी है क्योंकि इस इलाके में लंबे समय से समस्याएं मौजूद हैं। आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर आईडी जैसे तमाम दस्तावेज होने के बावजूद गांव के कई दलित और मुस्लिम परिवार भूमिहीन हैं। “उनमें से कुछ मंदिर की भूमि पर बैठे हुए हैं, और उन्हें नियमित रूप से मंदिर समिति के सदस्यों द्वारा जगह खाली करने को कहा जाता है। दूसरी बात यह है कि यहां के दलित समुदाय के पास खुद का कब्रिस्तान/शमशान नहीं है। पुजारी ने कहा, हमें मृत लोगों का दाह संस्कार/दफन कृष्णा नदी के तट पर करना पड़ता है।

पुजारी के भाई, माता-पिता सभी दिहाड़ी मजदूर हैं। पुजारी शादीशुदा हैं और उनके बच्चे भी हैं। उन्होंने अपने समुदाय की समाज सेवा करने के लिए एलएलबी की है।

इलाके में पहली बड़ी बाढ़ 2005 में आई थी। पुजारी ने कहा कि सप्तसागर गांव के 366 दलित परिवार बाढ़ से प्रभावित हुए थे। उनके पास 2019 के आंकड़े नहीं हैं, लेकिन उन्होंने अनुमान लगाया कि यह पहले से अधिक होना चाहिए। अपने छोटे से कार्यालय में उनके पास उनके मुद्दे से संबंधित कई फाइलें थीं। प्रशासन को लिखे गए पत्र, तबाही की तस्वीरें, प्रभावित परिवारों की सूची आदि इसमें शामिल हैं। वह हर उस चीज का दस्तावेजीकरण कर रहे है जो पुनर्वास प्रक्रिया में मदद कर सकती है।

शक्तिशाली कृष्णा नदी के चारों ओर तूफान से पहले की शांति।

गंजी केंद्र में जीवन

अधेड़ उम्र की महिला महादेवी रामप्पा सप्तसागर गांव में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करती हैं। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, उन्होंने गंजी केंद्र में बिताए समय को याद किया। यह केंद्र बाढ़ के दौरान राहत शिविर के रूप में काम करता है। यहां शरण लेने वालों को एक चटाई और एक गद्दा मिलता है। वहीं खाने के पैकेट भी पहुंचाए जाते हैं। वे कहती हैं कि,  “पिछले साल, हम एक महीने तक गंजी केंद्र में रहे। वहां के हालात ठीक नहीं हैं। न तो बाथरूम हैं और न ही शौचालय। पीने के साफ पानी की कोई सुविधा भी नहीं है। महिलाएं सहित सभी लोग नदी के किनारे खुले में शौच करने को विवश हैं। हमें नहाना होता है तो हम नदी में चले जाते हैं, जबकि अन्य साड़ी पकड़कर घेरा बना कर नहाती हैं। गंजी केंद्र के अंदर, कोई भी भोजन के लिए लाइन में नहीं लगता है। हर कोई खाने की तरफ दौड़ता है और पैकेट हड़पने की कोशिश करता है।

महादेवी रामप्पा (बाएं से दूसरी) और उनके समुदाय की महिलाएं संकट के अंत की उम्मीद कर रही हैं।

उन्होंने बताया कि, महिलाओं को दैनिक मजदूरी के नाम पर प्रति दिन मात्र 200 रुपये मिलते हैं। अगर वे आधा दिन काम करती हैं, तो कमाई 120 रुपये होती है। लेकिन मजदूरी समय पर नहीं मिलती है। वे सभी राजनीतिक दलों से नाखुश हैं क्योंकि किसी ने भी उनकी आवास समस्या का समाधान नहीं किया है।

उनका गांव अथानी निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है, और वर्तमान विधायक भाजपा के महेश कुमाथल्ली हैं। उन्होंने मूल रूप से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था और लक्ष्मण सावदी (तत्कालीन भाजपा) को 2,331 मतों के अंतर से हराया था। एक साल बाद, उन्होंने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया और भाजपा के टिकट पर उपचुनाव लड़ा। इस बार, सावदी ने कांग्रेस की तरफ रुख किया है और अथानी सीट पर वे कुमाथल्ली से भिड़ेंगे।

सप्तसागर गांव के अधिकांश दलित परिवारों के पास जमीन का मालिकाना हक नहीं है। इससे उनकी समस्या और बढ़ जाती है क्योंकि उनके पास बेचने के लिए कोई संपत्ति नहीं है। बाढ़ के कारण 2005 के बाद दूसरी बड़ी तबाही 2019 में हुई थी। तब से हर मानसून में बाढ़ आती है। हर साल, बाढ़ के कारण गांव के निवासी अपनी संपत्ति खो देते हैं, जो बाढ़ में बह जाती है या क्षतिग्रस्त हो जाती है। इस साल मानसून का मौसम राज्य विधानसभा चुनाव के एक महीने बाद आएगा। लोगों के बुरे दिन फिर से वापस आ सकते हैं – और फिर कई महीनों तक उन्हे उसी अस्वछ/खराब केंद्र के अंदर रहना पड़ेगा, वह भी बिना किसी एकांत, स्वच्छ पेयजल या शौचालय के रहना होगा।

मूल अंग्रेजी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Karnataka Elections: Hundreds of Families can Live in Their Homes for Only 8 Months in a Year

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