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वाम विमर्श: क्यों ज़रूरी हैं प्रेमचंद

वाम प्रकाशन हर महीने एक किताब चर्चा का आयोजन करते हैंI इस बार यह चर्चा थी ‘कुछ और अलगू, कुछ और जुम्मन’ किताब पर जिसमें प्रेमचंद की वे कहानियां संकलित हैं, जो हिंदू और मुस्लिम कट्टरपंथ पर कड़ा प्रहार करती हैं।

‘कुछ और अलगू, कुछ और जुम्मन’ किताब में प्रेमचंद बताते हैं कि सांप्रदायिकता किस तरह समाज को खोखला बना देती है। इस चर्चा में वाम प्रकाशन की ओर से संजय कुंदन ने डॉ. प्रेम तिवारी से बात कीI डॉ. तिवारी हिंदी के वरिष्ठ आलोचक हैं। कथा साहित्य में उनकी गहरी रुचि है। वे दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर और जनवादी लेखक संघ, दिल्ली के सचिव भी हैं।

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