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MCD चुनाव: अवैध अतिक्रमण और पार्किंग के अभाव में सड़कों पर लगते जाम, फुटपाथ पर नहीं चलने की जगह

पार्किंग की व्यवस्था और सड़क से अवैध अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी नगर निगम की है। लेकिन इस चुनाव में कूड़े और प्रदूषण के शोर में ये मुद्दा लगभग गायब है।
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बीते कुछ सालों में दिल्ली में कार पार्किंग और अवैध अतिक्रमण की समस्या बेहद गंभीर हो चली है। दिल्ली के बाजारों में पर्याप्त कार पार्किंग ना होने की वजह से हर समय जाम जैसी समस्या बनी रहती है, तो वहीं दिल्ली की सड़कें अवैध अतिक्रमण का दंश झेल रहीं हैं, इसे कई बार दुर्घटना के कारण के तौर पर भी देखा जा सकता है। इस समस्या के चलते एक ओर आम जन अपनी दो पहिया-चार पहिया के साथ लंबे सड़के ट्रैफिक जाम में फंसे रहते हैं, तो वहीं पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ पर अब कोई जगह ही नहीं बची, उन्हें मजबूरन अपनी जान जोखिम में डालकर गाड़ियों के साथ ही चलना पड़ता है। ऐसे में जब एमसीडी चुनाव सामने हैं, तो ये कार पार्किंग और अवैध अतिक्रमण कितना बड़ा मुद्दा है, ये हमने राहगीरों से जानने की कोशिश की...

बता दें कि पार्किंग की व्यवस्था और सड़क से अवैध अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी नगर निगम की है। लेकिन राजधानी में एमसीडी पार्किंग कम होने की वजह से लोग गाड़ियों को सड़क पर ही पार्क करने को मजबूर होते है, जिसकी वजह से जाम की समस्या में इजाफा होता है। फुटपाथों पर दुकानों के बढ़ने से पैदल चलने वालों को अच्छी-खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

रेहड़ी पटरी वालों की बढ़ती संख्या के संदर्भ में यहां यह भी रेखांकित करना ज़रूरी है कि ग़रीबी और रोज़गार की समस्या इतनी भीषण है, कि आजीविका के लिए और कोई रास्ता नहीं सूझता। इन मेहनतकशों को ढंग से जगह अलॉट करने की जगह इनसे जमकर वसूली की जाती है। छोटे व्यापारियों, रेहड़ी, ठेलों वालों से बड़े पैमाने पर रकम वसूली के बावजूद उनका उत्पीड़न भी आम बात है।

यहां ध्यान रहे कि अपनी अवैध कमाई के लिए बड़े भू-माफ़िया और पार्किंग माफ़िया को बढ़ावा देनें, उन्हें पालने-पोसने का आरोप एमसीडी पर है। एमसीडी पर इसे लेकर कई घोटालों के गंभीर आरोप हैं।

दुकानों के आगे बढ़ने से फुटपाथ का रास्ता पूरी तरह से बंद

अपनी रिपोर्ट की शुरुआत हमने दिल्ली के पॉश इलाके माने जाने वाले साउथ दिल्ली के मालवीय नगर से की। जहां मेट्रो स्टेशन से निकलते ही आपको ऑटो की लंबी सी लाइन दिखाई देती है और फिर जैसे ही आप उसे पार करते हैं, आपको फुटपाथ का रास्ता पूरी तरह से बंद नज़र आएगा। स्टेशन से चंद कदमों की दूरी पर ही फैंसी और मिट्टी के आइटम बेचने वाले दुकानदारों ने पूरी फुटपाथ को घेर लिया है। फुटपाथ पर चलना तो दूर उसके ऊपर आप चढ़ भी नहीं सकते हैं।

मेट्रो स्टेशन की ओर जा रहीं नीलम से हमने इस समस्या को समझने की कोशिश की। उन्होंने बताया, “हम तो रोज़ यहीं से आते-जाते हैं, कभी-कभी रोड की गाड़ियां लगभग आपको छूकर निकलती हैं, कई बार यहां चेन और फोन की छीनाझपटी भी हो चुकी है लेकिन यहां से जाने के अलावा हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है।"

इससे आगे मालवीय नगर में ही कॉर्नर मार्केट का इलाका है, जो अक्सर आपको खचा-खच जाम से भरा मिलेगा। यहां दुकानदारों ने अपना काफी सामान दुकान के बाहर की जगह को घेर के रखा हुआ है, जिससे पार्किंग और यातायात की काफी समस्या हमेशा बनी रहती है। पुलिस और प्रशासन भी कोई कार्रवाई नहीं करता। वाहनों के जाम और हादसे यहां आम बात हो गई है।

इस मार्केट में सड़क पर कार खड़ी कर रहे अजय सिंह से हमने बातचीत की, तो उन्होंने बताया कि वो सड़क पर पार्किंग के पैसे देकर ही गाड़ी खड़ी कर रहे हैं, हालांकि ये एमसीडी की सरकारी पार्किंग नहीं है, लेकिन यहां ऐसे ही गाड़ी खड़ी करनी पड़ती है। मार्केट के अंदर जाने के लिए आपको अगर गाड़ी खड़ी करनी है, तो इन पार्किंग माफियाओं की जेब भरने के अलावा आपके पास कोई चारा नहीं है।

अवैध कब्ज़ों के चलते ज़रूरी सेवाएं हो रही बाधित

मालवीय नगर के हौजरानी, जहाँपनाह और खिड़की एक्सटेंशन रोड पर दुकानों के अवैध कब्ज़ों और रेहड़ी ठेलों से पूरा रोड इतना जाम रहता है की आपात स्थिति में आवगमन मुश्किल हो जाता है। होटल, ढाबे, फैक्ट्री और छोटी-छोटी गालियों की वजह से एम्बुलेंस व फायर ब्रिगेड की गाड़ियां आसानी से अंदर तक नहीं आ सकती हैं।

हौजरानी में रहने वाले अब्दुल हमें बताते हैं कि एक बार उनकी गली में आग लग गई थी, लेकिन संकरा रास्ता होने की वजह से फायर बिग्रेड की गाड़ी कॉलोनी में नहीं आ सकी। किसी तरह से स्थानीय निवासियों ने ही ख़ुद रेत-मिट्टी डाल कर आग बुझाई। फायर ब्रिगेड की गाड़ी मेन रोड से ही वापस चली गयी। इसी तरह किसी को कोई इमरजेंसी हो तो आसानी से एंबुलेंस भी घर तक नहीं आ पाती। अब्दुल के मुताबिक ये इलाका फायर, इमरजेंसी, एक्सीडेंट जैसी आपदा के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं है।

सिर्फ मालवीय नगर ही नहीं देश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एम्स के आगे भी आपको अवैध अतिक्रमण के चलते अक्सर जाम की समस्या से दो-चार होना पड़ता है। एम्स के पास में ही यूसुफ सराय का मार्केट है, जहां तमाम दुकानें और रेहड़ियों का अंबार है। यहां सड़क पर ही आपको जहां-तहां गाड़ियां खड़ी मिल जाएंगी तो वहीं फुटपाथ पर दुकानदारों का अवैध कब्जा आम बात है। कई बार आलम ये होता है कि यहां बस के स्टैंड पर खड़े होने तक की जगह नहीं होती, बस भी दूर से ही निकल जाती है।

यहां मार्केट में डिस्पेंसरी की दुकान चलाने वाले एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर हमें बताया कि यहां कई बार कार्रवाई होती है, लेकिन कुछ पैसे देकर मामला सैटेल कर लिया जाता है। वो आगे कहते हैं कि यहां कब्जे की चिंता किसी को नहीं है, क्योंकि मरीज़ों और उनके घर वालों को रेहड़ियों से सस्ते में खाना-पानी मिल जाता है, पुलिस भी अपना पेट भर लेती है, फिर भला किसको क्या दिक्कत होगी। रही बात पार्किंग की तो ये दिल्ली की किसी एक सड़क का हाल नहीं है, हर जगह एमसीडी की देख-रेख में माफिया एक्टिव हैं और अपना जाल फैलाए हुए हैं।

दिल्ली के बड़े बाज़ारों का बुरा हाल

इसी तरह करोल बाग की बैंक स्ट्रीट में 4115 वर्ग मीटर में स्थित स्कूल की जमीन को एमसीडी द्वारा पार्किंग माफियाओं को बेच दिए जाने पर इसी साल जनवरी में खूब बहस हुई थी। उन दिनों एमसीडी के चुनाव नहीं थे तो यह कोई खास मुद्दा नहीं बन पाया। यही हाल एशिया की सबसे बड़ी मार्केट नेहरू प्लेस और दिल्ली के अन्य बड़े बाजार जैसे लाजपत नगर मार्केट, सरोजिनी, पुल प्रहलादपुर, सदर का भी है। यहां पार्किंग एक बहुत बड़ी समस्या है, जो इन इलाकों में भयंकर जाम का एक बड़ा कारण भी है। जीटी करनाल रोड पर मजनू के टीले से आप कभी गुजरें तो 50-100 गाड़ियां सड़क पर खड़ी मिलेगी। तीस हजारी कोर्ट के बाहर ऐसे ही गाड़ियों की कतार खड़ी होती है। एक आदमी कैसे समझे कि जिस पार्किंग की वजह से वह जाम का शिकार हो रहा है, वह पार्किंग वैध या अवैध?

सरोजनी मार्केट के बाहर की चाट का ठेला लगाने वाले एक व्यक्ति हमें बताते हैं कि सरकारी लोग यहां हर हफ्ते वसूली के लिए आते हैं, सबके ठेले के हिसाब से रेट फिक्स है। हर बार एक अधिकारी के जाने के बाद दूसरा अधिकारी भी वसूली को आ जाता है और जो नहीं पैसा देते उनका ठेला, साइकिल या खाने का सामान उठाकर ले जाते हैं। यही हाल यहां सामान बेचने वालों का भी है, पकड़े गए तो पूरा सामान जब्त करवा दो या पैसे देकर बच जाओ।

चाट वाले भईया ये भी कहते हैं कि यहां ठेला लगाना उनकी मजबूरी है, क्योंकि यहां भीड़ के चलते कमाई अच्छी हो जाती है। कहीं और भी उन्हें पैसे तो देने ही पड़ेंगे फिर अगर काई न हो, तो ऐसे में उनका दोनों ओर से घाटा है। वो ये कहते हुए जरा भी नहीं हिचकते कि एमसीडी वाले सबसे अधिक भ्रष्ट हैं, उनका डंडा गरीबों पर ही चलता है। वो ये भी बताते हैं कि सरोजनी मार्केट के पूरे अतिक्रमण और अवैध पार्किंग की खबर अफसरों को है, लेकिन अगर वो ये सब हटा देंगे तो अपनी जेबे कैसे भरेंगे।

खैर, ये तो कुछ जाने-माने पॉश इलाकों की बात हुई। जाम और अवैध अतिक्रमण के मामले में तो पुरानी दिल्ली सबसे ज्यादा फेमस है। यहां बाजारों में संकरी गलियां, अवैध निर्माण, अतिक्रमण और तारों के मकड़जाल फैला हुआ है। यहां की पूरी व्यवस्था एक तरह से गड़बड़ है। इस मार्केट के बीच से रास्ता बनाकर इसे थोड़ा आसान करने की कोशिश जरूर की गई है लेकिन हालात अभी भी कुछ खास नहीं बदले। भागीरथ पैलेस मार्केट, कूचा महाजनी, कूचा नटवा, नई सड़क, जोगीवाड़ा, मालीवाड़ा, चावड़ी बाजार, कश्मीरी गेट व सदर बाजार समेत कई बाजारों में आग लगने और जर्जर इमारतों के गिरने का डर हमेशा बना रहता है। साथ ही इन बाजारों में आग से बचाव का साधन नहीं है।

एमसीडी के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर हमें बताया कि अवैध पार्किंग या अतिक्रमण का मामला उतना सीधा नहीं है, जितना देखने में लगता है। अधिकारी के मुताबिक जब किसी जगह पर एक बार अतिक्रमण हो जाता है, तो उसे हटाना आसान नहीं है। लोगों का विरोध तो होता ही है, साथ ही कुछ लोगों की कमाई भी रूक जाती है। इसके अलावा कई बार कर्मचारियों और अधिकारियों को इस दौरान भीड़ के गुस्से और मार-पीट का भी शिकार होना पड़ा है। इसलिए इस अतिक्रमण से कमाई तो आसान है, लेकिन इसे हटाना नहीं।

पार्किंग के मुद्दे पर अधिकारी कहते हैं कि दिल्ली में पार्किंग की जगहें वैसे भी गाड़ियों की तुलना में कम हैं, ये शहर जब बसा तो इतने गाड़ियों की परिकल्पना नहीं हुई थी। साथ ही कई जगह मेट्रो, सीवर लाइन, गैस पाइप लाइन और विकास के अलग-अलग काम भी चल रहे होते हैं जिसके चलते रास्ते छोटे हो जाते है और जाम लगने लगता है। वो खुले तौर पर कहते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं कि यहां पार्किंग माफियाओं को कुछ लोगों ने बढ़ावा दे रखा है, लेकिन इसे समझने के लिए आपको निगम के काम और विभिन्न नेक्सेस को समझना होगा, जो इतना आसान नहीं है, फिर कोई भी पार्टी सत्ता में क्यों न आ जाए।

एक अनुमान के मुताबिक देश में सबसे अधिक गाड़ियां दिल्ली शहर में ही हैं, लेकिन इनमें दो पहिया वाहन सबसे अधिक है। जहां तक कारों की बात है तो दिल्ली में जगह के अनुपात में मुंबई से पांच गुना कम कार सड़कों पर हैं। फिर भी दिल्ली में आये दिन जाम की समस्या रहती है। इसका सबसे बड़ा कारण है कारों के लिए पार्किंग का अभाव। मुंबई या पुणे जैसे शहरों में जहां अपार्टमेन्ट कल्चर है वहां कारों की पार्किंग बिल्डिंग के भीतर ही बनायी जाती है लेकिन दिल्ली में कार खड़ी करने के लिए अधिकांश सड़कों का सहारा ही लिया जाता है।

गौरतलब है कि दुनिया के बीस बड़े शहरों में आईबीएम ने पार्किंग के मुद्दे पर एक सर्वेक्षण किया था, जिसमें पार्किंग को लेकर दिल्ली को दुनिया का सबसे खराब शहर माना गया था, जहां पार्किंग के मुद्दे पर सबसे अधिक बहस होती है। इस सर्वेक्षण में नैरोबी और मिलान जैसे शहर दिल्ली के भी पीछे ही खड़े थे। ऐसे में अब इस एमसीडी चुनाव में पार्टियां अवैध अतिक्रमण और पार्किंग की समस्या निराकरण को लेकर भी कई दावे और वादे कर रही हैं। लेकिन वास्तव में इस समस्या का हल निकलेगा ये कहना मुश्किल है।

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