Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मध्य प्रदेश: खाद के लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़े किसानों की हो रही है मौत 

खाद/उर्वरक खरीदने के लिए जद्दोजहद कर रहे किसानों के दृश्य सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं
Fertilizers
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : पीटीआई

भोपाल: मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था का बुनियादी आधार कृषि है। क्योंकि यहां की 74.73 फीसदी आबादी आज भी कृषि पर निर्भर है। फिर भी यहां के किसानों को हर साल खाद/उर्वरक के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है। उनका कतारों में मरना एक नियति बन गई है।

जैसे ही खाद/उर्वरकों की कमी पैदा होती है, खासकर रबी के मौसम में, हर साल किसानों को सड़कों को जाम करन पड़ता है, कलेक्टर के कार्यालयों पर धरना देते हैं और विरोध प्रदर्शन करते हैं। अक्सर खाद/उर्वरक के लिए लंबे समय तक कतार में खड़े होने से या तो बेहोश होकर गिरने या अक्सर मरने वाले किसानों के दृश्य सोशल मीडिया पर वायरल होते रहते हैं। सरकारी मशीनरी इसे पूरा करने की कोशिश करती है। लेकिन अंत में वे किसान जो सरकारी खाद नहीं खरीद पाते हैं वे सामान्य दरों से 20-30 फीसदी अधिक पर काला बाजार से खरीदते हैं।

इस वर्ष गुना जिले के गोयलहेडा गांव के निवासी और 38 वर्षीय किसान रामप्रसाद कुशवाहा 20 नवंबर को खाद के लिए कतार में खड़े होने के दौरान बेहोश हो गए थे। दिल का दौरा पड़ने के कारण उन्हें नजदीकी अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हे मृत घोषित कर दिया गया था। उनके भतीजे माखन सिंह ने कहा, "चाचा पिछले दो दिनों से खाद के लिए दर-दर भटक रहे थे।"

कुशवाहा के तीन भाइयों को विरासत में तीन एकड़ जमीन परिवार से मिली थी और वे उसे मिलकर जोतते थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी तथा 16 और 18 साल के दो बेटे हैं।

इसी तरह तीन एकड़ जमीन के मालिक 58 वर्षीय शिवनारायण मेवाड़ा, तीन दिन की जद्दोजहद के बाद तीन बोरे खाद की रसीद मिलने के कुछ ही मिनट बाद बेहोश होकर गिर पड़े। दिल का दौरा पड़ने के कारण उन्हें भी डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया था। वे  मुख्यमंत्री के गृह जिले सीहोर के इछावर के रहने वाले थे।

मध्य प्रदेश में खरीफ सीजन में किसान सोयाबीन, धान, मक्का, बाजरा, तूर आदि उगाते हैं। रबी सीजन में गेहूं, चना, सरसों, कपास, ज्वार और सब्जियां उगाते हैं। इसके साथ ही कुछ जिलों में गन्ना, शरीफा और केला भी उगाया जाता है।

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, रबी सीजन में खाद/उर्वरकों मांग को पूरा करने के लिए किसानों को लगभग 22-23 लाख मीट्रिक टन यूरिया, 11-12 लाख मीट्रिक टन डाई-अमोनियम फॉस्फेट (यानि डीएपी) और 3-4 लाख मीट्रिक टन एनपीके (जिसे मिक्स फर्टिलाइजर भी कहते हैं) की जरूरत होती है।

रतलाम जिले के आलोट कस्बे में कांग्रेस के मौजूदा विधायक मनोज चावला पर डकैती मुक़दमा दागा हुआ है, क्योंकि 1 नवंबर को किसानों ने उनकी नेतृत्व में सरकारी भंडार से खाद लूट लिया था। 

स्थानीय लोगों का दावा है कि यूरिया वितरण केंद्र पर किसानों को घंटों इंतजार करना पड़ता है। घंटों तक चली तकनीकी गड़बड़ी के कारण, जब अधिकारी यूरिया वितरण करने में असफल रहे और कहा कि इसे ठीक करने में एक-दो दिन लग जाएंगे, तो चावला वहां पहुँचे और गोदाम का शटर खोल दिया और किसानों को इसे लूटने के लिए उकसाया।

दूसरी ओर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उर्वरक की कमी के आरोपों को खारिज करते रहे हुए चेताया, कि किसानों को गुमराह करने और अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। 

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने 16 नवम्बर को एक वीडियो के माध्यम से किसानों को संबोधित करते हुए कहा, ''राज्य में खाद की आपूर्ति पर्याप्त है। केंद्र सरकार लगातार इसकी आपूर्ति कर रही है। आप (किसानों) को जो कठिनाई हो रही है। वह कमी के कारण नहीं बल्कि वितरण प्रणाली में तकनीकी खराबी के कारण हो रही है। किसानों को उनकी जरूरत के हिसाब से खाद मिलेगी।"

उन्होंने चेतावनी दी, "उर्वरक की कमी की अफवाह फैलाकर कुछ लोग राज्य में अराजकता पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार उन लोगों से सख्ती से निपटेगी।" फिर भी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की किसान शाखा, भारतीय किसान संघ ने मंगलवार को भोपाल के मोतीलाल विज्ञान महाविद्यालय (एमवीएम) मैदान में एक रैली की।

रैली कर रहे किसान, उर्वरक की कमी, अनियमित बिजली बिल, आला-अफसरों की कमी के कारण फसल के नुकसान और अन्य के लिए मुआवजे का भुगतान न करने से परेशान थे। रैली में प्रदेश भर से करीब पांच हजार किसानों ने भाग लिया।

उन्होंने किसानों की मांगों को संबोधित करने के लिए राज्य विधानसभा का विशेष सात दिवसीय सत्र बुलाने की मांग की।

रैली को संबोधित करते हुए बीकेएस के प्रदेश अध्यक्ष कमल सिंह अजाना ने कहा, “कम से कम दो किसानों की मौत खाद वक़्त पर न मिलने के कारण हुई है। बिजली की लगातार किल्लत है, फिर भी किसानों के बिल गलत आ रहे हैं। इसके अलावा, जो ट्रांसफार्मर बिजली के भार के कारण जल रहे हैं उनकी मरम्मत भी महीनों तक नहीं की जाती है।"

बीकेएस ने 25 मांगों एक ज्ञापन भी सौंपा, जिसमें भावांतर योजना को फिर से शुरू करने, ओलावृष्टि और अन्य प्राकृतिक आपदाओं में क्षतिग्रस्त फसलों का मुवावज़े का भुगतान करने, सरकार द्वारा घोषित कृषि ऋण पर ब्याज-माफी को लागू करने और जले हुए ट्रांसफार्मर को 24 घंटे के अंदर ठीक करने की मांगें शामिल है। सीएम शिकायतों को सुनने खुद धरना-स्थल पर गए। 

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, किसान कल्याण और कृषि विकास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अशोक बरनवाल ने भी उर्वरक की कमी के दावों का खंडन करते हुए दावा किया कि मध्य प्रदेश ने इसी अवधि में पिछले वर्ष की तुलना में, इस वर्ष 20 नवंबर तक 1.5 गुना खाद/उर्वरक अधिक वितरण किया है।

उन्होंने बताया कि, "हम राज्य की मांग को पूरा करने के लिए 50 फीसदी यूरिया और 90 फीसदी डीएपी का आयात करते हैं। हमने अपने 1200 वितरण केंद्रों के माध्यम से, पिछले साल के 22.34 लाख मीट्रिक टन के मुकाबले 20 नवंबर, 2022 तक 23.39 लाख मीट्रिक टन यूरिया वितरित किया है। इसी तरह, पिछले साल के 11.18 लाख के मुकाबले 13 लाख मीट्रिक टन डीएपी का वितरण किया है।"

उन्होंने कहा, "सिर्फ नवंबर में ही, सरकार ने पिछले साल के 2.93 लाख मीट्रिक टन के मुकाबले 4.02 लाख मीट्रिक टन यूरिया वितरित किया है। इसी तरह, पिछले साल के 1.90 लाख मीट्रिक टन के मुकाबले इस साल नवंबर में 2.17 लाख मीट्रिक टन डीएपी वितरित किया गया है।"

चुनौतियों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "किसानों को बुवाई के दौरान उर्वरक की जरूरत नहीं होती है। बुवाई के 15 दिन बाद और फिर 45 दिनों के बाद इसकी जरूरत होती है। लेकिन, भविष्य में किसी भी उर्वरक की कमी से बचने के लिए, वे अभी से इसका स्टॉक कर रहे हैं।"

जैसे ही उर्वरक के लिए लंबी कतारों और किसानों की मौत की खबरें सुर्खियों में आई, विपक्षी कांग्रेस और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने भी राज्य सरकार पर जमकर निशाना साधा।

कमलनाथ ने बुधवार को पत्रकारों से बात करते हुए कहा, 'मध्य प्रदेश में खाद संकट के अलावा भ्रष्टाचार व्याप्त है, बेरोजगार युवाओं की बड़ी तादाद है। जबकि मुख्यमंत्री हर दिन यह दावा करते हैं कि कोई कमी नहीं है फिर भी किसान लंबी कतारों में मर रहे हैं। 

सीपीआई (एम) के राज्य सचिव, जसविंदर सिंह ने कहा कि, कठिनाई के बावजूद, कुछ किसानों को उनकी जरूरत के अनुसार उर्वरक मिल रहा है। शेष किसान काले बाजार से 1350 रुपये के बजाय 1900 रुपये में डीएपी की बोरी खरीद रहे हैं। 51 जिलों में से मुख्यमंत्री के गृह जिले सीहोर समेत करीब 20 जिलों में किसान खाद के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा, "दो किसान लंबी कतार में खड़े होने की वजह से मर गए, पर सरकार इन्हे स्वाभाविक मौत बता रही है."

उर्वरक वितरण में कमी या देरी के प्रभाव के बारे में न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, कृषि विशेषज्ञ और किसान कांग्रेस के नेता केदार सिरोही ने बताया कि रबी सीजन की बुवाई में लगभग 20-25 दिनों की देरी हुई है, जिससे इस सीजन के उत्पादन में कुल मिलाकर 10 फीसदी की गिरावट आ सकती है। 

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

MP: Farmers Collapse After Standing in Long Queues for Fertilisers Amidst Shortage

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest