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मलियाना नरसंहार : “नहीं मिला न्याय, जाएंगे हाई कोर्ट”

पीड़ितों के वकील का आरोप है कि कोर्ट ने गवाहों के बयानों को सुने बिना और पोस्टमॉर्टम को प्रमाणित करने वाले सबूतों की अनदेखी कर आरोपियों को बरी कर दिया।
Maliyana
फाइल फ़ोटो।

लखनऊ : इकरामुद्दीन (57) मलियाना के नरसंहार की उस भयावह रात को याद करते हुए कहते हैं कि मेरे जीजा की पीएसी के लोगों द्वारा हत्या कर दी गई। उनका घर जला दिया गया जिसमें उनके चार बच्चे जिंदा जल गए। अगले दिन उनके राख हो चुके शवों को एक साथ कब्र में दफ़्न कर दिया गया।

मेरठ कोर्ट का फैसला सुनकर उनकी आंखों में आंसू आ गए जब उन्हें पता चला कि सबूतों के अभाव में 39 आरोपियों को बरी कर दिया गया।

इकरामुद्दीन न्यूज़क्लिक से बात करते हुए पूछते हैं कि हम इंसाफ के लिए कहां जाएं? इस मामले में कभी न्याय नहीं मिलेगा। इंसाफ की उम्मीद में मेरी आधी जिंदगी गुजर गई और बाकी की आधी जिंदगी आरोपियों को छुट्टा घूमते हुए देखने में बीतेगी।

अतिरिक्त जिला जज लखविंदर सूद ने दोनों तरफ की दलीलें सुनने के बाद पर्याप्त सबूतों के अभाव में 39 आरोपियों को बरी करने का आदेश दिया।

इकरामुद्दीन ने न्यूज़क्लिक को बताया, “1987 में मेरी आंखों के सामने जो कुछ हुआ मैंने कोर्ट के समक्ष रखा। ये साक्ष्य एक वर्ष से भी अधिक समय से 2009 से 2010 तक रहे। मैं अपने बयान दर्ज कराने के लिए कोर्ट में 58 बार गया। मैं कभी गैर-हाजिर नहीं रहा। मुझे आज भी उन घरों के नाम याद है जिन्हें जलाया गया और जिन्हें मारा गया और वो सब मैंने कोर्ट मे बताया।” उन्होंने आगे बताया, “अभी जब कोर्ट की कार्रवाई चल रही थी तब तक हमें उम्मीद थी की देर-सबेर हमें इंसाफ मिलेगा लेकिन आरोपियों के बरी होने की खबर चौंकाने वाली है।”

पिछले 36 वर्षों में मामले की कार्रवाई 800 बार स्थगित हुई और 61 गवाहों मे से सिर्फ 14 गवाहों के बयान ही रिकॉर्ड किए गए। यह सब फास्ट ट्रैक कोर्ट में हुआ। पीड़ितों की तरफ से केस लड़ रहे वकील अलाउद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि वो उच्च न्यायलय में मामले को ले जाएंगे।

वकील ने न्यूज़क्लिक से कहा, “कोर्ट में कार्रवाई जारी थी कि चौंकाने वाला आदेश आया। कोर्ट के समक्ष 36 पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और घायलों के मेडिकल डॉक्यूमेंट थे पर सुनवाई के दौरान 34 पोस्टमॉर्टम पर विचार नहीं किया गया और आरोपियों को CrPC की धारा 313 के अंतर्गत (अभियुक्त के विरूद्ध प्रस्तुत साक्ष्य की व्याख्या करने के लिए अभियुक्त की परीक्षा करने की न्यायालय की शक्ति) जांच नहीं की गई। कम से कम 16 गवाहों को कोर्ट से हटा दिया गया। उन्होंने बताया कि उस दिन ऐसा तो कुछ जरूर हुआ जो की एक ही समुदाय के 70 लोगों की हत्या कर दी गई।

मलियाना दंगों की रिपोर्ट करने वाले जाने-माने पत्रकार कुर्बान अली ने न्यूज़क्लिक को बताया,“यह पूरी तरह से न्याय का हनन है कि सभी गवाहों के बयान दर्ज नहीं किए जाने के बावजूद इस नृशंस हत्या के दोषियों को छोड़ किया गया है।”

कुर्बान ने इलाहबाद उच्च न्यायलय में एक पुनर्जांच की याचिका दाखिल करते हुए इस मामले की विशेष जांच टीम(एसआईटी) से जांच कराने और पीएसी की इस हत्याकांड में भूमिका की जांच करने तथा हाशिमपुरा मामले की तर्ज पर मुआवजे की मांग करते हुए आगे कहा, “याचिका का निस्तारण करते हुए ऐसे फैसला सुना दिया गया जैसे कि मामला “फाइनल स्टेज” में हो।”

उन्होंने दावा किया कि, “सभी गवाहों के बयान दर्ज नहीं किए गए। उच्च न्यायालय में याचिका करने वाले मोहम्मद इस्माइल और मेरे बयान अभी भी रिकॉर्ड होने बाकी है। उस दिन उनके परिवार के 11 सदस्य मारे गए थे।”

क्या है मलियाना का पूरा मामला

23 मई 1987 को, सैकड़ों स्थानीय लोग, मुख्य रूप से हिंदू प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (PAC) के एक विशाल दल के साथ, मेरठ के मलियाना गांव में बंदूक और तलवार के साथ दाखिल हुए। बस्ती से बाहर निकलने के पांचों रास्ते ब्लॉक कर दिए गए ताकि कोई बाहर न निकल पाए और फिर कत्लेआम किया गया जिसमें 72 लोगों की जान गई।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार चारों तरफ मौत का आलम था किसी को बख्शा नहीं गया। यहां तक कि महिलाओं और बच्चों को भी नहीं छोड़ा गया। यह मामला मेरठ के सेसन कोर्ट में पिछले 35 सालों से चल रहा था। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, मुख्यबिंदु हटा दिए गए हैं जिसमें प्रथम सूचना रिपोर्ट(FIR) भी शामिल है। 800 से अधिक बार तारीखें दी गईं। आखिरी सुनवाई 5 साल पहले हुई।

गौरतलब है कि इलाहबाद उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज गुरसरण लाल श्रीवास्तव की देख-रेख में एक समिति गठित की गयी जिसके माध्यम से याचिकाकर्ताओं की रिपोर्ट एक साल बाद सबमिट की गई। फिर भी सरकार इसे पब्लिक डोमेन में नहीं लाई।

सलीम सिद्दीकी मलियाना निवासी और इस भयंकर घटना के प्रत्यक्षदर्शी कहते हैं रमजान का महीना था जब पुलिस जिसमें पीएसी के अधिकारी भी शामिल थे उन्होंने इलाके को चारों ओर से घेर लिया था। शराब के नशे में धुत दंगाइयों ने घरों में प्रवेश किया और तेज हथियारों और डंडों के साथ परिवारों पर हमला कर दिया और घरों में आग लगा दी थी। उन्होंने कहा, “ मुसलमान युवाओं को घरों से घसीट कर बाहर लाया गया और एक खाली स्थान पर इकठ्ठा किया गया वहां पर पीएसी जवानों ने उन्हें निर्दयता पूर्वक पीटना शुरू कर दिया था।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट में पढने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

UP: 39 Accused Acquitted In Maliyana Massacre Due to Lack of Evidence

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