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मणिपुर हिंसा: केंद्र और राज्य सरकार की भूमिका पर सवाल, आक्रोश प्रदर्शनों का दौर जारी

मणिपुर में जारी आदिवासी समुदाय व महिलाओं के साथ हो रही हैवानियत और बर्बरता के ख़िलाफ़ न्याय पसंद नागरिक समाज के साथ साथ आदिवासी समुदाय के आक्रोश-प्रदर्शनों का सिलसिला निरंतर जारी है।
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“केंद्र में उनकी सरकार, मणिपुर में भी उनकी ही सरकार फिर कौन है जिम्मेवार?” ये सवाल, देश के विभिन्न इलाकों की भांति झारखंड प्रदेश की सड़कों पर जारी आक्रोश-प्रतिवादों से लगातार उठाया जा रहा है। साथ ही इस हैवानियत काण्ड पर भाजपा के केन्द्रीय आदिवासी मंत्री और प्रदेश भाजपा के आदिवासी चेहरा बाबूलाल मरांडी समेत सभी आदिवासी विधायक-सांसदों से पूछा जा रहा है कि- आदिवासी समाज की महिलाओं पर हो रही बर्बरता पर वे चुप क्यों हैं? इतना ही नहीं देश के सर्वोच्च पद पर एक आदिवासी महिला को बिठाने के श्रेय लेनेवाली भाजपा समेत महामहिम की चुप्पी पर भी सवाल उठाया जा रहा है।

विगत कई दिनों से मणिपुर में जारी आदिवासी समुदाय व महिलाओं के साथ हो रही हैवानियत और बर्बरता के ख़िलाफ़ न्याय पसंद नागरिक समाज के साथ साथ आदिवासी समुदाय के आक्रोश-प्रदर्शनों का सिलसिला निरंतर जारी है।

22 जुलाई को राज्य के मुख्यमंत्री ने राष्ट्रपति को विशेष पत्र लिखकर तत्काल हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है। पत्र में लिखा है कि आप ही अंतिम उम्मीद हैं। मणिपुर और देश के सामने संकट की इस घड़ी में हम आपको आशा और प्रेरणा के अंतिम स्रोत के रूप में देखते हैं। इस कठिन समय में आप ही लोगों को रौशनी दिखा सकती है। इस विकट परिस्थिति में आगे का रास्ता दिखाने, न्याय सुनिश्चित करने और मणिपुर की शांति व सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए क़दम उठाने की अपील करता हूँ। हमें अपने आदिवासी भाइयों बहनों पर हो रहे बर्बर को रोकना होगा। मणिपुर आज जल रहा है उसे देश की ओर से मरहम की ज़रूरत है। किसी नाम विशेष का उल्लेख करते हुए यह भी कहा है कि कुछ निहित स्वार्थों की वजह से मौन समर्थन के साथ, जातीय हिंसा बेरोक टोक जारी है।

इसके पहले 21 जुलाई को मीडिया संबोधन में गहरी पीड़ा के साथ क्षोभ भरे लहजे में कह डाला कि- एक ओर, दुनिया में घूम घूम कर भारत को विश्व गुरु बनाने का दावा किया जा रहा और यहाँ देश में हर तरफ एक अराजकता की स्थिति बनी हुई है। मणिपुर में जारी भयावह हिंसा की स्थितियों का सबूत- आदिवासी महिला को लेकर ऐसा दृश्य देखने को मिला है वो बयान नहीं किया जा सकता। यह घटना देश के इतिहास में एक काला अध्याय है। मणिपुर में घटनाएं लगातार जारी हैं। इससे पहले भी उस क्षेत्र में दो राज्य लड़ चुके हैं, आगे भी हम किससे-किससे, दोस्त-रिश्तेदारों तक से कब और कहाँ भीड़ पड़ेंगे, किसी को अता पता नहीं है। मणिपुर में हिंसा लगातार जारी है फिर भी हम विदेशों में अपना भव्य स्वागत करा रहें हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लिए जाने के बाद देश के प्रधानमंत्री मणिपुर जलने के 79 दिनों के बाद, संसद का सत्र शुरू होने के पहले अपनी चुप्पी तोड़ते हैं। तब भी वे क्या बोलते हैं, देश के साथ साथ पूरी दुनिया ने भी सुना है।

गत 21 जुलाई से जारी आक्रोश प्रदर्शनों का सिलसिला राजधानी रांची समेत पूरे प्रदेश में लगातार जारी है। जिसमें विभिन्न आदिवासी समूह- सामाजिक संगठनों के साथ साथ सभी वामपंथी दल- गैर भाजपा विपक्षी दल व जनसंगठनों के अलावा महिला अधिकारों के लिए आवाज़ उठानेवाले महिला संगठनों के सदस्य सड़कों पर प्रधानमंत्री-गृह मंत्री व मणिपुर के मुख्यमंत्री के पुतले जलाकर आक्रोश प्रदर्शित कर रहें हैं।

मणिपुर में जारी एकतरफा हिंसा और बर्बरता को रोकने में विफल मणिपुर के मुख्यमंत्री के साथ साथ देश के गृह मंत्री से इस्तीफे की मांग की जारी है। मणिपुर में जारी हिंसा को सत्ता संरक्षित करार देते हुए गृह मंत्री पर यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि- जब जब अमित शाह वहाँ जा रहें हैं, उत्पाति-उन्मादी समूह संगठित होकर बेलगाम हैवानियत कर रहें हैं।

आदिवासी संघर्ष मोर्चा और झारखंड ऐपवा ने केंद्र की भाजपा सरकार पर खुला आरोप लगया है कि- देश में जब से भाजपा की सरकार सत्ता में काबिज़ हुई है, महिला-दलित-अल्पसंख्यक और आदिवासी विरोधी हिन्दू धार्मंधता भरी मानसिकता हर समुदाय पर आक्रामक हो उठी है। मणिपुर में जारी सत्ता संरक्षित हिंसा-बर्बरता उसी का सबूत है। जो संघ-ब्रिगेड की हिंसा की संस्कृति के खौफनाक चेहरे को उजागर करता है।

मणिपुर बर्बरता कांड से आक्रोशित महिलायें तो यहाँ तक आरोप लगा रहीं हैं कि- भाजपा का “बेटी बचाओ नारा” की असलियत “बेटी जलाओ” के रूप में खुलकर सामने आ रही है। क्योंकि घर (देश) के अन्दर बेटियाँ उन्मादी समूह द्वारा सरेआम निर्वस्त्र करके घुमाते हुए सामूहिक दरिंदगी का शिकार बनायी जा रहीं हैं और देश के प्रधानमंत्री विदेश दौरा करके “हँसते हुई छवि” में अपना स्वागत करा रहें हैं।

सभी प्रतिवाद प्रदर्शनों द्वारा एक स्वर से मणिपुर में जारी सत्ता संरक्षित हिंसा-बर्बरता पर तत्काल रोक लगाने और दोषियों को गिरफ्तार कर कड़ी सज़ा देने की मांग की जा रही है। विशेष जोर देकर यह भी कहा जा रहा है कि- घटनाओं का प्रत्यक्ष वीडियो वायरल लगातार हो रहा है, “अज्ञात भीड़” के नाम पर दोषियों को बचाने की हर कोशिश का पर्दाफ़ाश और विरोध हो!

निस्संदेह, इस दौर की ये भयावह विडंबना ही कही जायेगी कि पूरी दुनिया में “विश्व गुरु” की छवि को शर्मसार कर देने वाले भाजपा शासित मध्यप्रदेश में घटित पेशाब-काण्ड और उसपर लीपापोती की सत्ता- क्षुद्रता से व्यथित लोग अभी उबरे भी नहीं थे कि मणिपुर में शासन-सत्ता की खुली नाकामी की शह से किये जा रहे बर्बर काण्ड सबों के दिल दिमाग को झकझोर रहें है।

मणिपुर में जारी बर्बरता और महिलाओं के साथ क्रूर हैवानियत कांडों के खिलाफ देश के व्यापक नागरिक समाज और लोकतंत्र पसंद शक्तियों का विरोध बढ़ता जा रहा है। विगत कई दिनों से वहां जारी संगठित हिंसा-क्रूरता और अत्याचार को रोकने में विफ़ल केंद्र व राज्य की भाजपा सरकारों और “डबल इंजन की सरकार” की भूमिका को लेकर हर ओर से उठ रहे सवालों का शोर बढ़ता ही जा रहा है। जिसे देश के अन्य प्रदेशों में हो रही घटनाओं का हवाला देकर, जायज़ ठहराने का कोई भी कृत्य, किसी भी सभ्य समाज के लिए भीषण आत्मघाती ही साबित होगा।

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