'अल्पसंख्यक अधिकार कन्वेंशन' : सभी को बराबरी के अवसर मिलने चाहिए
भारत देश का संविधान और स्थापित धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था, इसका प्रावधान देती है कि इस देश के सभी नागरिकों को उनकी नस्ल, धर्म व निष्ठा कुछ भी क्यों न हो, सभी को बराबरी के अवसर तथा लोकतांत्रिक अधिकार हासिल होने चाहिए। लेकिन “वोट की राजनीति” ने अल्पसंख्यकों और उनके सवालों को अप्रासंगिक सा बना दिया है।
कई वर्ष पूर्व भारत सरकार द्वारा गठित ‘जस्टिस सच्चर आयोग रिपोर्ट’ की अनुशंसाओं के तहत मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय की खस्ताहाल सामाजिक-आर्थिक सच्चाइयों को सामने लाकर इनकी स्थिति में सुधार लाने के लिए विशेष क़दम उठाने की ज़रूरत रेखांकित की गयी थी। लेकिन जहां पिछली केंद्र की सरकारों ने इसे ठंडे बस्ते में डाले रखा, तो मोदी सरकार ने सत्ता में काबिज़ होते ही आयोग की अनुशंसाओं को लागू करने की बजाय इसके विपरीत ही काम करते हुए “नफ़रत और बुलडोज़र की राजनीति” पर अमल करना जारी रखे हुए है। यूएपीए जैसे काले कानून का इस्तेमाल कर सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ भारी संख्या में बेगुनाह मुस्लिम युवाओं को जेलों में डालने का काम कर रही है।
11 मार्च को झारखंड की राजधानी रांची में आयोजित ‘अल्पसंख्यक अधिकार कन्वेंशन’ से उक्त मामले को मुखरता के साथ उठाया गया। प्रदेश के विभिन्न वामपंथी व सामाजिक जन संगठनों की पहल से गठित अल्पसंख्यक अधिकार समन्वय समिति के तत्वावधान में इस कन्वेंशन को आयोजन किया गया था। जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय के मुस्लिम समुदाय के अलावा ईसाई, सिख, दलित, बौद्ध व आदिवासी सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने अपनी भागीदारी निभाई।
अल्पसंख्यकों के शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, सुरक्षा के ज्वलंत सवालों के साथ-साथ राजनीतिक प्रतिनिधित्व इत्यादि सवाल इस कन्वेंशन के केंद्रीय मुद्दे थे।
रांची स्थित एसडीसी सभागार में आयोजित हुए इस कन्वेंशन की शुरुआत संविधान की प्रस्तावना के सामूहिक पाठ से हुई। कार्यक्रम के अध्यक्ष मंडल के सदस्य व झारखंड बार काउंसिल सदस्य एडवोकेट एके राशिदी ने कन्वेंशन का आधार पत्र प्रस्तुत किया। इसके माध्यम से मौजूदा केंद्र सरकार की अल्पसंख्यक विरोधी रवैये को विशेष रूप से रेखांकित किया गया कि, “सबका साथ सबका विकास” के नारे की आड़ में यह सरकार आरएसएस के घोषित एजेंडे को लागू करते हुए भारत को एक लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की जगह विभाजनकारी-फासीवादी “हिंदू राष्ट्र” के रूप में बदल देने पर आमादा है। जिसके लिए झारखंड समेत पूरे देश में अल्पसंख्यकों विशेषकर मुस्लिम और ईसाईयों पर सत्ता-नियोजित हमले तेज़ कर रखी है। जबकि देश की कुल आबादी के प्रमुख हिस्से के रूप में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग इस देश की बहुसांस्कृतिक-बहुभाषी तथा बहुधार्मिक संरचना का अविभाज्य अंग के रूप में निवास करते आये हैं।
जस्टिस सच्चर कमेटी व रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट तथा उसकी अनुशंसाओं के आलोक में देश के अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के समुचित विकास के लिए केंद्र की सरकार को पर्याप्त वित्तीय आवंटन के साथ एक ठोस कार्यक्रम सूत्रबद्ध करना चाहिए था। ताकि उन्हें आर्थिक, सामाजिक तथा शैक्षिक क्षेत्र में जिस संगठित भेदभाव का हर दिन सामना करना पड़ता है, उससे निज़ात पाया जा सके। लेकिन मोदी सरकार जो आरंभ से ही अल्पसंख्यक समुदायों के लिए हर वर्ष के बजट में अपर्याप्त राशि का आवंटन करती रही है, इस वर्ष के बजट में और भी अधिक कटौती कर दी है।
इसी संदर्भ में झारखंड की गैर भाजपा महागठबंधन की सरकार पर भी आरोप लगाते हुए कहा गया कि, हेमंत सोरेन की सरकार भी राज्य के अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति असंवेदनशील है। क्योंकि राज्य में सरकार बदलने के बावजूद भाजपा-आरएसएस द्वारा मुस्लिम व ईसाई समुदाय विरोधी सांप्रदायिक हमले, विभाजनकारी नफरती राजनीति और मॉबलिंचिंग की घटनाएं बदस्तूर जारी हैं। किसी भी मॉबलिंचिंग कांड के दोषियों को सज़ा व पीड़ितों को सही इंसाफ तथा मुआवज़ा नहीं मिल सका है। सभी बुनियादी समस्याएं दूर होना तो दूर झारखंड में राज्य अल्पसंख्यक आयोग और वक्फ़ बोर्ड के साथ-साथ राज्य अल्पसंख्यक वित्त निगम का विधिवत पुनर्गठन नहीं किया जा सका है।
वरिष्ठ झारखंड आंदोलनकारी आदिवासी एक्टिविस्ट प्रभाकर तिर्की ने कन्वेंशन की ओर से मांग पत्र पेश किया जिसे सर्वसम्मति से पारित किया गया। इसके माध्यम से निम्न मांग की गयी की :
1) झारखंड में लगातार हो रही मॉबलिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए कारगर मॉबलिंचिंग निषेध अधिनियम अविलंब पारित किया जाए। इन कांडों के पीड़ित परिजनों को कम से कम 10 लाख रुपये मुआवज़ा राशि की गांरटी हो।
2) जस्टिस सच्चर कमेटी की रिपोर्ट व रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफ़ारिशों को मजबूती के साथ लागू किया जाए। साथ ही इसके आलोक में राज्य में आर्थिक रूप से पिछड़े मुसलमानों के लिए नौकरियों में 10% आरक्षण लागू किया जाए।
3) झारखंड में जल्द से जल्द राज्य अल्पसंख्यक आयोग, राज्य अल्पसंख्यक वित्त विकास निगम, वक्फ़ बोर्ड और उर्दू अकादमी का गठन किया जाए।
4) अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में आंगनबाड़ी केंद्र, स्वास्थ्य उपकेंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, रेफ़रल अस्पताल, मातृ सेवा केंद्र तथा स्कूल-कॉलेजों सहित सभी बुनियादी नागरिक सुविधाएं जल्द बहाल की जाए।
कन्वेंशन के अध्यक्ष मंडल में झारखंड बार काउंसिल के वरिष्ठ एडवोकेट एके राशिदी, रांची अंजुमन इस्लामिया सदर मो. हाजी मुख्तार, हॉफमैन लॉ एसोसिएट्स के फ़ादर महेंद्र पीटर तिग्गा, जेपीएससी के पूर्व सदस्य डॉ. प्रो. जे.एल. उरांव, रांची गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी सदस्य प्रो. हरविंदर बीर सिंह व जैन समाज के अजय जैन थे। संचालन एआईपीएफ़ के नदीम खान ने किया।
कन्वेंशन के मुख्य वक्ताओं में श्री अश्विनी बक्शी (वरिष्ठ अधिवक्ता, पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट), डॉ. प्रोफेसर अफ़कार अहमद (स्कूल ऑफ़ लॉ, डीजे गोयनका कॉलेज,रोहतक, हरियाणा), भंते जैनेंद्र (चैयरमैन, बौद्धिस्ट सोसाईटी ऑफ़ इंडिया), डॉ. अली इमाम खान (पूर्व प्राचार्य, पीके रॉय मेमोरियल कॉलेज, धनबाद), वरिष्ठ आदिवासी एक्टिविस्ट एवं झारखंड आंदोलनकारी प्रभाकर तिर्की, मौलाना तहजीबुल हसन रिज़वी (हेड,शिया समुदाय झारखंड), मुमताज़ खान (झारखंड आंदोलनकारी मोर्चा), वरिष्ठ आदिवासी आंदोलनकारी व पत्रकार रतन तिर्की, भुनेश्वर प्रसाद मेहता (पूर्व सांसद,सीपीआई), भाकपा माले के राज्यसचिव मनोज भक्त, सीपीएम के समीर दास, रिसालदार बाबा दरगाह रांची के महासचिव मो. फारूक, दलित चिंतक एक्टिविस्ट रामदेव विश्वबंधु व शिव बालक पासवान, डॉ. विजय कुमार पीयूष (प्राचार्य,एबीएम जमशेदपुर) इत्यादि ने प्रमुख रूप से अपने विचार प्रकट किए।
कई वक्ताओं ने भाजपा विरोधी व खुद को धर्मनिरपेक्ष कहलाने वाले राजनीतिक दलों के सतही रवैये पर व्यंग्य करते हुए कहा कि सामान्यतया ये सभी दल व उनके नेता अल्पसंख्यक मुद्दों के नाम पर फ़क़त कब्रिस्तान की चहारदीवारी निर्माण और हज़ जाने जैसे मसलों को ही उठाने की रस्मअदायगी करते रहते हैं। चुनावों में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को महज “वोट बैंक “ की राजनीति समझने की परिपाटी का बोलबाला, इन समुदायों को बिलकुल अप्रासंगिक बना दे रहा है।
सनद यह भी रहे कि चंद दिनों पहले झारखंड विधान सभा के बजट सत्र को संबोधित करते हुए भाकपा माले विधायक विनोद सिंह ने भी अल्पसंख्यक समुदाय के उक्त ज्वलंत सवालों को उठाए हुए हेमंत सोरेन की सरकार से सदन में सवाल-जवाब किया था।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि मौजूदा हालात में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर लगातार चौतरफा हमले बढ़े हैं। जिससे निपटने और काबू पाने में केंद्र की भाजपा सरकार के साथ-साथ राज्यों की गैर भाजपा सरकारों का भी उपेक्षापूर्ण रवैया संकटों को गहरा बना रहा है। ऐसे में अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर केंद्रित नागरिक कन्वेंशनों का आयोजन समाज के साथ-साथ सरकारों को भी जवाबदेह बनाने में सहायक हो सकता हैं। साथ ही अल्पसंख्यक समुदायों के अंदर भी आपसी एकजुटता को बल प्रदान करनेवाला साझा प्रयास बन सकता है।
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