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किसान आंदोलन की जीत का जश्न कैसे मना रहे हैं प्रवासी भारतीय?

किसानों की जीत का जश्न न सिर्फ भारत में मनाया गया, बल्कि विदेशों में बसने वाले भारतीय लोगों ने भी अपनी खुशी का इज़हार किया है। प्रवासी भारतीयों ने किसान आंदोलन के विजयी रूप में स्थगित होने के बाद बड़े और छोटे स्तर पर जश्न मनाया।
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Image courtesy : The Indian Express

केन्द्र सरकार द्वारा किसानों की सभी मांगें मान लिए जाने के लिखित आश्वासन के बाद संयुक्त किसान मोर्चे द्वारा आंदोलन को स्थगित कर दिया गया है, जिसे किसानों की जीत के रूप में देखा जा रहा है। इस जीत का जश्न न सिर्फ भारत में मनाया गया, बल्कि विदेशों में बसने वाले भारतीय लोगों ने भी अपनी खुशी का इज़हार किया है। प्रवासी भारतीयों ने गत 26 नवंबर को दिल्ली के बॉर्डरों पर आंदोलन के एक साल होने और आंदोलन के विजयी रूप में स्थगित होने के बाद बड़े और छोटे स्तर पर जश्न मनाया। 

प्रवासी भारतीय इसे अहंकारी सरकार पर देश के किसानों-मज़दूरों की जीत के रूप में देख रहे हैं।

कनाडा में भारतीय मूल के पत्रकार और रेडीकल देसी के सम्पादक गुरप्रीत सिंह ने अपने मीडिया संस्थान की तरफ से किसान आंदोलन की जीत की खुशी और उसके एक साल पूरे होने पर साल 2022 का एक कैलेंडर जारी किया है, जो बिल्कुल अलग तरह का कैलेंडर है। इस कैलेंडर में किसान आंदोलन से जुडी व आंदोलन में घटी घटनायों से सम्बन्धित ख़ास तरीखों का ज़िक्र किया गया है जैसे कि 13 जनवरी 2021 को लोहड़ी वाले दिन सरकार के तीनों कानूनों की प्रतियाँ जलाना, 26 जनवरी को लाल किले वाली घटना, 16 फरवरी को दिशा रवी की गिरफ़्तारी की घटना, 23 फ़रवरी को ब्रिटिश भारत में किसान आंदोलन के बड़े नेता सरदार अजीत सिंह का जन्मदिन आदि। 

गुरप्रीत सिंह बताते हैं, “किसान आंदोलन ने एक नये इतिहास का सृजन किया है। आमतौर पर कैलेंडर में आम दिनों या छुट्टियों का ज़िक्र होता है पर इस कैलेंडर की खासियत यह है कि इसमें आंदोलन के दौरान घटी घटनायों का ही ज़िक्र है यह पूरी तरह किसान आंदोलन को अर्पित है।”

गुरप्रीत आगे बताते हैं, “प्रवासी भारतीय शुरु से ही इस आंदोलन से पूरी शिद्दत के साथ जुड़े रहे हैं। लोगों ने चौराहों पर, अपनी दुकानों/होटलों और सार्वजनिक जगहों पर हाथ में किसानी झण्डे पकड़ कर आंदोलन से अपनी एकजुटता जाहिर की है। भारतीय दूतावासों के आगे भी काले कानूनों के विरुद्ध प्रदर्शन होते रहे हैं। प्रवासी भारतीय खासकर विदेशों में बसने वाले पंजाबी ज़ज्बाती तौर पर पंजाब से जुड़े होने के कारण उन्होंने इस आंदोलन के पक्ष में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। भारत सरकार द्वारा अपने दूतावासों के जरिए आंदोलन में हिस्सा लेने वाले प्रवासी भारतीयों को डराने की कोशिशें भी हुई। कभी उन्हें ‘काली सूची’ में डालने का डर दिखाया गया। कभी उनकी ओ.सी.आई. रद्द करने की बात कह कर डराया गया।

किसान आन्दोलन का समर्थन कर रहे कई प्रवासियों के मल्टीपल एंट्री वीज़ा कैंसिल कर दिए गये। आंदोलन के हिमायतीयों को डराया जाता रहा कि यदि वे किसान संघर्ष में शामिल हुए तो उन्हें भारत आने का वीजा नहीं मिलेगा। पिछले दिनों अमेरिका में रहने वाले पंजाबी दर्शन सिंह धालीवाल को दिल्ली हवाई अड्डे से वापिस मोड़ा गया क्योंकि उनके द्वारा सिंघू बार्डर पर एक लंगर चलाया गया था।”

यहाँ यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि सोशल मीडिया पर भी किसान आंदोलन को प्रवासी भारतीयों द्वारा बड़े स्तर पर समर्थन मिलता रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता डॉक्टर दर्शनपाल का कहना है कि संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाड़ा व अन्य देशों में प्रवासी भारतीयों द्वारा किसान आंदोलन का खुलकर समर्थन किया गया। पिछले कई महीनों से प्रवासी भारतीय अपने स्तर पर खुद ही रैलियां और रोष-प्रदर्शन करते रहे हैं। हाल ही में मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भी कृषि कानूनों के विरोध में मोदी को काले झंडे दिखाए गए थे।

अमेरिका में किसान आंदोलन के हिमायती डॉक्टर सुरेंद्र गिल बताते हैं, “जब मोदी अमेरिका यात्रा पर आए तो 16 सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं ने साझे तौर पर मोदी के विरुद्ध और आंदोलन के पक्ष में प्रदर्शन किया था। हम किसानों के हक में भारतीय दूतावास के सामने प्रदर्शन करते रहे हैं और लम्बे समय से व्हाइट हाउस के सामने सांकेतिक प्रदर्शन करते रहे हैं। हर रोज़ हमारे पांच लोग किसानी झंडे व तख्तियां लेकर व्हाइट हाउस के सामने खड़े हो जाते थे। हमारे इस तरह करने से किसानों की आवाज़ पूरी दुनिया में पहुँचने में आसानी हुयी और इस सब के चलते हमारे देश के नेताओं ने भी बहरी भारतीय हकूमत को भारतीय किसानों के मुद्दे हल करने के लिए गुहार लगाई। आज जब भारतीय सरकार को किसानों के आगे झुकना पड़ा तो इस की खुशी हमें दूर बैठे लोगों को क्यों न हो? इस खुशी में अनेक धार्मिक स्थानों पर भगवान के शुकराने के लिए अरदासे हो रही हैं। अमेरिका में भी भंगड़े पाए गये। मुझे लगता है कि यह आंदोलन भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद को मजबूत करेगा अब लोगों में तानाशाह नेताओं के विरुद्ध बोलने की हिम्मत पैदा होगी।”

जब हमने सुरेंदर गिल से पूछा कि भारत के मीडिया का बड़ा हिस्सा तो यह प्रचार कर रहा है कि विदेशों में किसान आंदोलन को हिमायत करने वाले सभी खालिस्तानी हैं तो वह हंस कर कहते हैं, “वो कौन सा झूठ है जो भारत के गोदी मीडिया ने नहीं बोला। खालिस्तानीयों का एक छोटा सा हिस्सा हो सकता है पर बड़ी गिनती में किसान संघर्ष के पक्ष में खड़े वो लोग थे जिन्हें अपने पुराने देश और उस देश के लोगों से मुहब्बत है। हमारे प्रदर्शनों में एक भी अलगाववादी झंडा नहीं था न ही ऐसा करने की इजाजत थी सिर्फ किसानी झंडा और किसानी मांगें थीं हमारी”

कनाडा के मैनीटोबा में `इंडियन फ़ार्मर्स एंड वर्कर्स स्पोर्ट्स` ग्रुप ने भी किसान संघर्ष की जीत के जश्नों को धूम धाम से मनाया है। कनाडा के एडमिनटन के पत्रकार कुलमीत सिंह संघा जानकारी देते है, “किसान संघर्ष की जीत का जश्न न सिर्फ प्रवासी भारतीयों ने ही बल्कि कनाडा के गौरे लोगों ने भी साथ आकर मनाया। ढोल धमाके से जहाँ खुशीयाँ मनाई गयीं वहीं 700 से ऊपर शहीद हुए किसानों को भी याद किया गया।”

आस्ट्रेलिया के सिडनी में रहने वाले सीनियर सिटीजन मनजीत सिंह तो खुशी में फुले नहीं समा रहे थे। वे अपनी खुशी को शब्दों में बयान करते हुए वह कहते हैं, “इस संघर्ष की जीत एक नई सुबह की ओर इशारा करती है। मुझे लगता है यह आंदोलन हमें हकों के लिए लड़ना सिखा कर गया है। आंदोलन ने हमें सबक दिया है कि हुक्मरान कितना भी ज़ालिम क्यों न हो पर उस को लोगों के आगे एक न एक दिन झुकना ही पड़ता है। किसान आंदोलन ने लोगों में साम्प्रदायिक सद्भावना पैदा की है और सभी हुकूमती साजिशों को फेल किया है। इस आंदोलन ने एक बार फिर दुनिया को पंजाब की क्रांतिकारी विरासत के दर्शन करवाये हैं।”

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