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भगत सिंह के शहादत दिवस पर साइबर अभियुक्त को “युवा आदर्श” बनाने का खेल, राज्य की जनता ने नकारा

तमिलनाडु में बिहारी मज़दूरों की पीटाई की झूठी ख़बर फैलाने के दोषी को “युवाओं का आदर्श“ बनाने की क़वायद को जनता ने नकारा!
martyrdom day

देखा जाय तो गैर भाजपा दलों के शासन वाले प्रदेशों में आये दिन होने वाले सुनियोजित राजनीतिक प्रपंचों को लेकर मीडिया की भूमिका को लेकर उठ रहे सवाल यूं ही नहीं हैं। क्योंकि जो कुछ भी तथ्य सामने आ रहे हैं उससे भी ये साफ़ तौर से प्रमाणित हो रहा है कि मेन स्ट्रीम मीडिया की सक्रियता, कहीं न कहीं से संदेह के घेरे में है।

जिसकी बानगी एक बार फिर से बिहार की राजनीति में इन दिनों खुलकर दिख रही है, कि कैसे “तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों पर कथित हमले” का फ़ेक वीडियो और अख़बारों के फ्रंट पेज खबर का असली सच उजागर होने के बावजूद मीडिया इस प्रकरण के दोषियों को “युवाओं के आदर्श” के तौर पर महिमामंडित करने की राजनीति करने में जुटी हुई है।

ये अनायास नहीं था कि जब 23 मार्च को छात्र-युवाओं और लोगों के आदर्श नायक शहीद-ए-आज़म भगत सिंह-राजगुरु-सुखदेव के शहादत दिवस के दिन जब बिहार के विभिन्न इलाकों में अनेकानेक संगठनों द्वारा ‘जन संवाद’ जैसे कार्यक्रम किये जा रहे थे। तो ठीक उसी दिन एक संगठन विशेष के प्रवक्ता के अहवान पर “बिहार बंद” कार्यक्रम के माध्यम से “साइबर फ्रॉड” के अभियुक्त को “युवाओं का आदर्श” घोषित कर उसकी रिहाई की मांग की गयी। उसकी गिरफ्तारी के लिए बिहार सरकार की खूब लानत मलामत भी की गयी।

बिहार के औरंगाबाद व जहानाबाद जिलांतर्गत कुछेक स्थानों पर हुए छिटपुट ढंग से सड़कों पर टायर जलाकर जाम किये जाने की खबरों को प्रसारित करते हुए मीडिया ने जिस अलंकृत भाषा का इस्तेमाल किया वो गौर तलब है। इसमें लिखा गया कि- “बिहार के चर्चित यूट्यूब पत्रकार की गिरफ्तारी से व्यापक लोगों में आक्रोश। जिले भर में बिहार बंद का असर देखने को मिला। औरंगाबाद के क़रीब-क़रीब सभी प्रखंडों में “सन ऑफ़ बिहार” की गिरफ़्तारी के खिलाफ लोगों ने सड़कों पर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया।”

संयोग ऐसा हुआ कि औरंगाबाद जिला के दाउद नगर अंतर्गत पंचरुखिया मोड़ पर चंद युवा टायर जलाकर सड़क जाम किया जा रहा था तो उसी दौरान भगत सिंह शहादत दिवस पर आहूत ‘जन संवाद अभियान’ के तहत जसम के सांस्कृतिक जत्थे के साथ मैं भी उनकी गाड़ी में बैठा हुआ था। सड़क जाम की स्थिति देखने-जानने के लिए गाड़ी से उतर कर जाम स्थल पर पहुंच गया। आस पास के लोगों से पूछने पर पता चला कि जाम कर रहे युवा एक जाति-विशेष (दबंग सवर्ण) और राजनितिक दल (भाजपा) के ही कार्यकर्त्ता हैं। जो उक्त साइबर अभियुक्त के एक जाति विशेष का होने कारण ही उसकी जै-जैकार कर रहे थे।

जाने क्यों स्थानीय पुलिस प्रशासन भी काफी देर बाद और अनमयस्क ढंग से वहां पहुंचकर जाम हटवाने की रस्म अदायगी करता दिखा। वैसे, पूरा बाज़ार खुला हुआ और सबकुछ अन्य दिनों की भांति सामान्य था।

लेकिन दूसरे दिन की अखबार की ख़बरों को पढ़कर मुझे काफी हैरानी हुई कि मैंने जो कुछ अपनी आंखों से देखा, उसमें तो ऐसा तो कुछ विशेष नहीं था जैसा अखबारों ने दूसरे दिन की खबर में प्रकाशित किया।

उसी दिन शाम में जन सांस्कृतिक जत्थे द्वारा पचरुखिया मोड़ पर ही आयोजित नुक्कड़ सांस्कृतिक ‘जन संवाद अभियान’ कार्यक्रम में सुबह की घटना को लेकर विरोध प्रकट किया गया। कार्यक्रम के वक्ताओं ने आरोप लगाते हुए कहा कि सावरकर-गोडसे के पूजक राजनीतिक दल की केंद्र में बैठी सरकार आज देश के तमाम शहीद नायकों की विशिष्ट ऐतिहासिक विरासत को नष्ट-भ्रष्ट कर उसकी जगह पर अपने कारिंदों को “आज का देशभक्त” बनाने पर तुली हुई है। इसी का खुला सबूत है कि आज भगत सिंह शहादत दिवस के दिन को केंद्रित कर “बिहार बंद“ के नाम पर कथित “फ़ेक न्यूज़ खेल” के एक साइबर अभियुक्त को बिहार के “युवाओं का आदर्श” बनाने की राजनीति कर जनता को गुमराह बनाने की कोशिश की गयी।

बिहार विधान सभा का जारी बजट-सत्र भी “तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों पर हमले” का फ़ेक मुद्दा उछालकर सोशल मीडिया व मीडिया के जरिये “सनसनी राजनीति” प्रकरण को लेकर काफी सरगर्मी भरा रहा। जिसमें कई बार महागठबंधन दलों के अन्य विधायकों ने एकजुट प्रतिवाद किया। भाकपा माले विधायकों ने तो विधान सभा परिसर में "फ़र्ज़ी वीडियो के जरिये देश के संघीय ढांचे को तोड़ने, क्षेत्रवादी उन्माद भड़काने और प्रवासी बिहारी मजदूरों को दहशत में लाने के जिम्मेवार भाजपाइयों शर्म करो, सदन के अंदर प्रवासी बिहारी मजदूरों पर हमले का फ़र्ज़ी वीडियो दिखने वाले भाजपा नेता विजय कुमार सिन्हा माफ़ी मांगो! जैसे नारे लिखे प्रतिवाद-पोस्टर प्रदर्शित करते हुए भाजपा व उसके नेताओं से जवाब मांगे। इसी संदर्भ में विधान सभा अध्यक्ष से मिलकर उन्हें ज्ञापन भी दिया है।

केंद्रीय से लेकर प्रदेश भाजपा के किसी भी नेता-प्रवक्ता ने इसका जवाब देने का साहस नहीं दिखाया। वहीँ बात बात पर हर दिन महागठबंधन सरकार और उसके नेताओं पर तीखी टिका-टिप्पणी करने वाले भाजपा के महारथी प्रवक्ताओं ने भी इस मामले में लगातार चुप्पी साध रखी है।

सोशल मीडिया में भी इस पूरे प्रकरण को लेकर काफी घमासान मचा हुआ है, जिसमें भाजपा “सोशल मीडिया-साइबर सेल द्वारा ‘तमिलनाडु प्रकरण” के साथ साथ आये दिन तरह तरह के फ़ेक ख़बरों को प्रसारित कर नफ़रत-उन्माद की कोशिशों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही है। बावजूद इसके इस प्रकरण में उक्त साइबर अभियुक्त के पक्ष में ध्रुवीकरण करने की सुनियोजित कुचक्र बदस्तूर जारी ही है। सोशल मीडिया में लगातार ऐसे वीडियो जारी किये जा रहे हैं जिसमें उक्त साइबर अभियुक्त द्वारा कहा जा रहा है कि उसने बिहार के युवाओं का सवाल उठाया तो महागठबंधन की सरकार घबराकर उसे झूठे आरोप में गिरफ्तार कर रखा है।

दूसरी ओर बिहार सरकार के आर्थिक अपराध शाखा (इओयू) की ओर से भी हर दिन मीडिया अपडेट जारी किया जा रहा है। जिसमें कथित अभियुक्त यूट्यूबर मनीष कश्यप से पूछताछ इत्यादि का ब्यौरा दिया जा रहा है। ताज़ा अपडेट के अनुसार एक और संदिग्ध नागेश को भी इओयू ने उक्त फर्जी वीडियो बनाने से लेकर उसे सोशल मीडिया पर अपलोड करने में मनीष का प्रमुख सहयोगी होने के कई सबूत मिलने के बाद उसे भी गिरफ्तार कर लिया है। यह भी जानने की कोशिश की जा रही है कि फर्जी वीडियो वायरल कर दो राज्यों के बीच अशांति फ़ैलाने के पीछे का उद्देश्य क्या था? यह भी जानने की कोशिश की जा रही है कि इस कारनामे के पीछे किन किन लोगों ने साथ दिया है और कौन कौन लोग संपर्क में हैं।

मनीष कश्यप और उसके यूट्यूब चैनल से जुड़े खातों की गहन जांच करने पर मिले सबूत के बाद आधे दर्जन कोचिंग संस्थानों को भी नोटिस जारी किया गया। फिलाहल पूछताछ व जांच की प्रक्रिया लगातार जारी है।

गौरतलब है अपने विपक्ष के खिलाफ हमेशा आक्रामक रहने वाली भाजपा व उसके नेता-प्रवक्तागण पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए हैं। लेकिन दूसरी ओर, मनीष कश्यप को आज का नया भगत सिंह के तौर पर स्थापित करने कि हर कवायद भी पूरी रफ़्तार में जारी है। राहत की बात है कि अब तक प्राप्त जानकारियों के अनुसार बिहार प्रदेश की बहुसंख्य जनता ने इस मामले को लेकर भाजपा और मीडिया दोनों को ही सवालों के कठघरे में खड़ा कर रखा है। वे पूछते हैं कि सोशल मीडिया-मीडिया के जरिये फ़र्ज़ी ख़बरों का राजनीतिक कारोबार कब तक? 

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