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तालिबान सरकार के एक साल: अफ़ग़ानिस्तान में क्या बदला?

अफ़ग़ानिस्तान की आर्थिक स्थिति फ़िलहाल काफ़ी विकराल नज़र आ रही है। इसके लिए काफ़ी हद तक अमेरिका भी ज़िम्मेदार है। इसके अलावा महिलाओं के शोषण जैसी समस्या आज भी बरकरार है। आइए जानते हैं क्या है तालिबानी शासन के पहले साल का रिपोर्ट कार्ड।
Afghanistan
Image courtesy : NDTV

तालिबान को सत्ता पर काबिज हुए एक साल हो गया है। पिछले साल 15 अगस्त को तालिबानियों ने अशरफ ग़नी की सरकार से सत्ता छीन कर खुद को अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर काबिज कर लिया था। तालिबान ने सत्ता में आने के साथ ही तरह तरह के वायदे किए थे और भरोसा दिलाया था कि यह शासन तालिबान के पिछले शासन से अलग होगा, पिछली बार की तरह क्रूर नहीं होगा। इस बार के शासन में महिलाओं के प्रति सरकार का रवैया पिछली बार से अलग होगा और साथ ही वह “दोहा एग्रीमेंट” का पालन करेगा।

ज्ञात हो कि साल 2001 में 9/11 के हमले के बाद अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने की नीति के तहत अफ़ग़ानिस्तान के ऊपर कार्रवाई की थी। वह तब से लेकर पिछले साल तक अफ़ग़ानिस्तान में अपने सैनिकों को केंद्रित किए हुए था। इस दौरान अमेरिकी सरकार, अफ़ग़ानी सरकार को पूर्ण रूप से नियंत्रित करती थी। डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद, उन्होंने अमेरिकी सैनिकों को अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने से संबंधित नीति बनाई थी, जिसे हालिया अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी अमल किया और इसी क्रम मे बाइडेन ने अमेरिकी सैनिकों को पिछले साल अमेरिका वापस बुला लिया। अमेरिका द्वारा सैनिकों के वापस बुलाए जाने के बाद अशरफ ग़नी की सरकार को चंद दिनों के अंदर ही तलिबानियों ने सत्ता से उखाड़ फेंक, खुद को सत्ता पर बिठा लिया था।

अब सत्ता में तालिबानियों को आए हुए साल भर बीत चुका है तो आइए जानते हैं की तालिबान के इस शासन मे अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति में क्या-क्या बदलाव आया है?

महिलाओं की स्थिति पिछले शासन से बदतर स्थिति में

अगर हम हालिया सरकार में महिलाओं की स्थिति की बात करें तो यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि तालिबान 2.0 भी पिछले तालिबान शासन की ही तरह महिलाओं के साथ बर्ताव कर रहा है। सत्ता में आने के बाद उसने सबसे पहले लड़कियों को शिक्षा लेने से महरूम किया था, जो अचानक से उनके भविष्य को अधर में डालने जैसा था। उसके बाद तालिबानी प्रशासन ने सितंबर-2021 में महिलाओं से संबंधित मंत्रालय को बंद कर दिया और उसकी जगह प्रार्थना, मार्गदर्शन और सद्गुणों का प्रचार और बुराई की रोकथाम से संबंधित मंत्रालय का गठन कर दिया। यह मंत्रालय “मोरल पोलिसिंग” यानी “नैतिकता” से संबंधित विषयों पर काम करता है। जिसका अधिकतर काम महिलाओं की आजादी पर रोकथाम ही लगाना है।

महिलाओं को स्कूली शिक्षा से महरूम करने के अलावा बिना किसी मर्द साथी के यात्रा करना, पूरे शरीर को पूर्ण रूप से ढक कर घर के बाहर निकालना, महिलाओं को नौकरी करने की पाबंदी इत्यादि नए-नए कायदे और कानून तालिबान सरकार ने महिलाओं के संबंध में पारित किए हैं। सरकार के इन तमाम रवैयों को देखकर तो साफ तौर पर यही प्रतीत होता है कि यह सरकार महिलाओं के प्रति कतई संवेदनशील नहीं है।

तालिबानी सरकार के महिलाओं के प्रति इस तरह के रवैये के कारण महिलायें और लड़कियां विकराल समस्याओं से गुज़र रही हैं। पिछले एक साल के दौरान लड़कियां, लड़कों के मुकाबले अधिक रूप से अवसाद का शिकार हुई हैं। “सेव द चिल्ड्रेन” नामक एनजीओ की रिपोर्ट्स कहती है की जहां पिछले एक साल के दौरान 16% लड़के अवसाद का शिकार हुए वहीं 26% लड़कियां अवसाद का शिकार हुई हैं।

महिलाओं को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर अफ़ग़ानिस्तान पूरे विश्व में एकलौता ऐसा मुल्क है जो महिलाओं को शिक्षा से महरूम रखे हुआ है।

मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद महिलाओं की स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। हालिया सरकार उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रही है और उन्हें सामाजिक व राजनीतिक कार्यों में भागीदारी से वंचित कर रही है। महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार न देकर न केवल तालिबानी सरकार महिलाओं के साथ अन्याय कर रही है बल्कि वह अफ़ग़ाननिस्तान देश को भी सैंकड़ों साल पीछे की ओर ले जा रही है।

आज के अफगानिस्तान में, महिलाओं या लड़कियों को पढ़ने, रोजगार लेने, किसी स्थान पर शांतिपूर्वक इकट्ठा होने या यहां तक कि अपने घर से बाहर बिना किसी पुरुष अनुरक्षक के चलने का कोई अधिकार नहीं है।

तालिबानी सरकार की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को सत्ता में एक साल पूरे हो गए हैं लेकिन अभी तक तालिबानी सरकार को किसी भी देश ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार्यता प्रदान नहीं की है। हालांकि देखा जाए तो रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान और कज़ाख़स्तान जैसे देशों ने तालिबानी सरकारों को अनाधिकारिक तौर पर मान्यता दी है। हिंदुस्तान ने भी अभी तक तालिबानी सरकार को मान्यता नहीं दी है, लेकिन देखा जाए तो कुछ समय से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक स्तर पर कुछ गतिविधि देखने को मिली हैं। हिंदुस्तान काबुल स्थित अपने दूतावास को भी दुबारा से खोलने पर विचार कर रहा है। भारत ने दो महीने पहले राजनयिक उपस्थिति को एक बार फिर से काबुल में स्थापित किया था जो देश की पॉलिसी में एक नीतिगत बदलाव था।

तालिबान की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता न मिलने के कारण देश की आर्थिक स्थिति बहुत नाजुक मोड पर है। आबादी का बड़ा हिस्सा गरीबी और भुखमरी के चपेट में है। संयुक्त राष्ट्र व उससे संबंधित एजेंसियां अफ़ग़ानिस्तान के इस हालात पर बार-बार विश्व को चेता रही है, और कह रही हैं कि अगर समय रहते इस मसले पर विश्व ने नहीं सोचा तो आने वाले समय में अफ़ग़ानिस्तान एक भयावह तबाही का सामना कर सकता है।

तालिबानी सरकार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता न मिलने के कारण अफ़ग़ानी विद्यार्थी जो विदेशों में शिक्षा ग्रहण करते थे, उनका भविष्य अधर में दिख रहा है। दरअसल तालिबान के शासन में आने के बाद कोई भी देश अफ़ग़ानी छात्रों को अपने देश में पढ़ने के लिए वीजा जारी नहीं कर रहा है जिस कारण उन देशों में नए विद्यार्थियों का प्रवेश नहीं हो पा रहा है। और वहीं पहले से विदेशी विद्यालयों में प्रवेश ले रखे विद्यार्थी दोनों देशों के बीच विमान सेवा जारी न रहने के कारण उन देशों में जाने में असमर्थ हैं।

अफ़ग़ानिस्तान पहले से आर्थिक बदहाली से गुज़र रहा

वर्तमान समय में अगर हम अफ़ग़ानिस्तान की आर्थिक स्थिति की बात करें तो वह बहुत हद तक चरमराई हुई है या यूं कहें की ढह गई है तो गलत नहीं होगा। दरअसल अफ़ग़ानिस्तान के सत्ता संभालने के बाद अभी तक अंतर्राष्ट्रीय स्तर से किसी भी तरह की आर्थिक मदद नहीं मिल पाई है और इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार पर भी तमाम देशों ने प्रतिबंध लगा रखा है।

ज्ञात हो की अफ़ग़ानिस्तान पिछले पांच दशक से भी ज़्यादा से लगातार युद्ध व आतंकवाद का शिकार रहा है और जिस कारण वहाँ की अर्थव्यवस्था नष्ट सी हो गई है। और इसी कारण वह अपनी अर्थव्यवस्था के लिए पिछले कई दशकों से दूसरे देशों के अनुदान व सहयोग पर ही निर्भर है। तालिबानी सत्ता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता न मिलने के कारण आर्थिक लेनदेन भी प्रतिबंधित हो रखा है जिस कारण भी वहाँ की अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय बाजार से भी कोई सहायता नहीं मिल पा रही है।

यह देश अभी भी आतंकवाद की चपेट में है, पिछले एक सालों के अंदर भी हमे मस्जिदों, मदरसों के अलावा अलपसंख्यकों के धार्मिक संस्थानों पर आपराधिक घटनाए देखने को मिली हैं, जिस कारण भी यह देश आर्थिक व राजनीतिक रूप से स्थिर नहीं हो पाया है।

इन तमाम कारणों से हम यह भरसक अंदाजा लगा सकते हैं कि इन वजहों से देश की आर्थिक हालात कितने बदतर होंगे। अफ़ग़ानिस्तान की हालिया आर्थिक स्थिति को देखें तो यह दक्षिणी एशिया के देशों में सबसे अधिक बुरे स्तर से गुज़र रही है।

इस आर्थिक अस्थिरता का एक बड़ा कारण अगर वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो वह अमेरिका ही है। दरअसल पिछले 20 वर्षों में अफ़ग़ानिस्तान पर अपने अप्रत्यक्ष शासन के दौरान अमेरिका ने वहाँ की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के बजाय उसे पीछे की ही ओर धकेला है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के नाम पर अफ़ग़ानिस्तान के ऊपर शासन तो किया लेकिन उसकी आर्थिक अस्थिरता दूर करने के लिए आंतरिक रूप से अफ़ग़ानिस्तान को ज़रा भी मजबूत नहीं किया। यह एक बड़ा कारण है की आज अफ़ग़ानिस्तान आर्थिक अस्थिरता से इस कदर जूझ रहा है।

तालिबान के सत्ता में आने के बाद अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान की आर्थिक मदद और वहाँ के आम नागरिक जो आज भुखमरी की चपेट में है की मदद करने के बजाए अफ़ग़ानिस्तान के 9.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर जो अमेरिका के अंदर जमा थे उसे भी पिछले वर्ष प्रतिबंधित कर लिया। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अमेरिकी सरकार का अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था व वहाँ के आम नागरिकों की समस्या से कोई सरोकार है, जबकि इस हालिया संकट के पीछे बहुत तक वह खुद जिम्मेदार है।

आतंकवाद के खिलाफ लड़ने वाली “लड़ाई” के नाम पर अमेरिका ने कैसे अफ़ग़ानिस्तान को सैकड़ों साल पीछे कर दिया और कैसे इस लड़ाई के कारण लाखों लोगों को अनगिनत दुख और पीड़ा पहुंची, इसकी व्याख्या बहुत लंबी है। लेकिन अब जब वह खुद उस “लड़ाई” के ऊपर जीतने का दावा कर रहा है तब क्या उसे उस “लड़ाई” के कारण अफ़ग़ानिस्तान पर जो चोटें और जख्म आई हैं, उसपर मरहम-पट्टी नहीं लगाने की जरूरत नहीं है?

खाद्य सुरक्षा जैसी समस्या

तालिबान के सत्ता में आने के बाद जो सबसे बड़ी समस्या का उन्हें सामना करना पड़ रहा है वह है खाद्य सुरक्षा से संबंधित समस्या। दरअसल तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद अफ़ग़ानिस्तान में खाने-पीने व आम जरूरत की लगभग तमाम चीजों के लिए संघर्ष करता हुआ दिख रहा है। वजह वही जिसका हमने आर्थिक हालात को लेकर ऊपर जिक्र किया है।

कुछ महीने पहले सोशल मीडिया व मीडिया रिपोर्ट्स पर अफ़ग़ानिस्तान से अपलोड किए वीडियोज़ में हमने देखा था की कैसे वहाँ के आम नागरिक एक सामान्य सी ब्रेड के लिए परेशान हो रहे हैं।

विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) की माने तो अफ़ग़ानिस्तान की आधी आबादी “आपातकालीन खाद्य असुरक्षा” स्तर के या तो स्तर-3 संकट या स्तर-4 के दायरे में हैं। इसके अलावा डब्ल्यूएफपी ने जून 2022 में जारी अपनी रिपोर्ट में बताया था की अफ़ग़ानिस्तान के कई प्रांत में हजारों बच्चे स्तर-5 यानी की विनाशकारी स्तर पर भी पहुँच गए हैं, जो अकाल का पूर्व संकेतक होता है।

ह्यूमन राइट्स वॉच एनजीओ के अनुसार पिछले एक साल के अंदर अफ़ग़ानिस्तान की आबादी का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा किसी न किसी तरह की खाद्य सुरक्षा संकट से प्रभावित हुआ है। भुखमरी व गरीबी बढ़ने के साथ वहाँ बच्चों को काम पर भेजना व भोजन करने के अंतराल को बढ़ाने जैसी समस्या देखने को मिलने लगी हैं। इसके अलावा खाद्य संकट के कारण वहाँ के लाखों बच्चे गंभीर रूप से कुपोषण का भी शिकार हो रहे हैं, जिस कारण उनके स्वास्थ्य पर काफी घहरा प्रभाव देखने को मिल रहा है।

तालिबान के शासन के पहले साल में आलोचना की कोई जगह देखने को नहीं मिली

तालिबान के पहले साल के शासन में सरकार ने देश में किसी भी तरह के विरोध-प्रदर्शन की इजाज़त नहीं दी है। मीडिया रिपोर्ट्स में हमें, आलोचकों एवं कथित विरोधियों को मनमाने ढंग से हिरासत में लेने, उनके खिलाफ कार्रवाई करने व उनकी हत्या कर देने जैसी घटनाए अक्सर देखने को मिल जाती हैं।

आलोचकों के ऊपर प्रतिबंध लगाने के क्रम में ही तालिबान ने सत्ता में आने के बाद मीडिया पर भी शिकंजा कस लिया था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अफगानिस्तान में पिछले एक साल में, लगभग 70 प्रतिशत मीडिया आउटलेट स्थायी रूप से बंद कर दिए गए हैं और शेष गंभीर खतरे और अत्यधिक स्तर की सेंसरशिप के तहत काम कर रहे हैं। तालिबानी प्रशासन ने पिछले एक साल के शासन के दौरान मीडिया मे सरकार के खिलाफ आलोचना करने वाले पत्रकारों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की है।

गौरतलब हो की तालिबान ने सत्ता में आने के बाद अफ़गान वासियों से वायदा किया था की पिछली सरकार व अमेरिकी प्रशासन का साथ देने वाले अफ़ग़ानी को संयुक्त रूप से माफी दी जाएगी और उनके ऊपर किसी तरह की दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। लेकिन सत्ता ग्रहण करने के बाद से ही तालिबानी प्रशासन व उसके लड़ाकों ने तालिबान के आलोचकों व साथ न देने वालों के खिलाफ बदले की भावना से कठोरतम कार्रवाई की है। तालिबानी प्रशासन ने अमेरिकी सरकार व उनके सैनिकों के साथ देने वालों के खिलाफ बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के दंडात्मक कार्रवाई की, जिसमें सैंकड़ों लोगों की जान गई है। हालांकि तालिबानी सरकार की इस नीति की निंदा होने पर उसने इस तरह की कार्रवाई पर बहुत हद तक रोक लगाई है।

तालिबान सरकार में आलोचना की कोई जगह नहीं है इसका उदाहरण पिछले दिनों देखने को मिला। दरअसल 13 अगस्त को तालिबानी सरकार द्वारा महिलाओं के प्रति जारी रवैयों के खिलाफ वहाँ की महिलाओं ने काबुल में एक विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया था। जिसमें महिलाओं ने तालिबानी सरकार के खिलाफ नाराजगी व्यक्त की और शासन को महिलाओं के प्रति कठोर रुख को ठीक करने की मांग उठाई। महिलाओं ने शिक्षा, रोजगार, व भुखमरी दूर करने के लिए इस प्रदर्शन का आयोजन किया था, गौरतलब है कि तालिबानी सरकार में किसी भी तरह के विरोध-प्रदर्शन की इजाज़त नहीं है और ऐसे में इन महिलाओं द्वारा प्रदर्शन अपने आप में एक एतेहासिक कृत्य था। हालांकि इस प्रदर्शन को तालिबानी प्रशासन द्वारा कुछ ही देर में कुचल दिया गया और महिलाओं को बंदूकों के पिछले हिस्से से मारा-पीटा गया।

क्या हालिया तालिबान के शासन में पिछले तालिबानी शासन के मुकाबले कुछ बदलाव आया है?

ऊपर विश्लेषित किए गए तमाम विषयों के अलावा एक महत्वपूर्ण विषय हम सब के मन में उभरता है और वह है कि- हालिया तालिबान पिछले तालिबान से कितना भिन्न है और वह अपने पिछले स्वरूप से कुछ अलग है या उसका स्वरूप ज्यों का त्यों है? इस सवाल के जवाब में रिपोर्ट्स खंगालने व अफ़ग़ानी छात्रों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से बात करने पर यही निष्कर्ष निकलता है की पिछले एक साल के शासन के दौरान कुछ मसलों को छोड़कर, लगभग हर मसलों पर हालिया तालिबानी शासन ने पिछले शासन जैसा ही बर्ताव किया है। चाहे वह महिलाओं के अधिकार और शिक्षा से संबंधित विषय हो या लोगों को लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित करने की नीति हो। पिछले एक साल के दौरान बिना न्यायिक प्रक्रिया के लोगों के हत्या से संबंधित घटनाए और महिलाओं के अधिकारों को प्रतिबंधित करने जैसे कानून इत्यादि हमें देखने को मिल रहे हैं। इसके अलावा उसकी धर्म की नीति को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं, पिछले एक साल के शासन में तालिबान की धर्म की नीति भी पिछले शासन से मेल खाती है।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या आने वाले समय में तालिबान की नीति में कोई बदलाव देखने को मिलेगा या फिर यह अभी की ही तरह ज्यों की त्यों बनी रहेगी। इसके अलावा एक और सवाल यह उठता है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तालिबानी सरकार को कब स्वीकार्यता मिलेगी, ताकि तालिबान को आर्थिक मोर्चे पर अनुदान और सहयोग मिल सके और अफ़ग़ानिस्तान के आम नागरिकों की हालत बेहतर हो सके।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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