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राय-शुमारी: आरएसएस के निशाने पर भारत की समूची गैर-वैदिक विरासत!, बौद्ध और सिख समुदाय पर भी हमला

"आरएसएस को असली तकलीफ़ यही है कि अशोक की परिकल्पना हिन्दू राष्ट्रवाद के खांचे में फिट नहीं बैठती है। अशोक का बौद्ध होना और बौद्ध धर्म धर्मावलंबियों का भारतीय महाद्वीप में और उससे बाहर भी प्रचार-प्रसार करना आरएसएस को गंवारा नहीं है”।
राय-शुमारी: आरएसएस के निशाने पर भारत की समूची गैर-वैदिक विरासत!, बौद्ध और सिख समुदाय पर भी हमला
बनारस स्थित सारनाथ के थाई मंदिर में दया प्रकाश सिन्हा के बयानों पर रोष का इज़हार करते बौद्ध धर्मावलंबी।

मुगल शासक औरंगजेब को निपटाने के बाद भाजपा का पितृ संगठन राष्ट्रीय सेवक संघ (आरएसएस) अब सम्राट अशोक के पीछे हाथ धोकर पड़ गया है। उसका हमला उस अशोक महान पर है, जिसका स्थापित अशोक स्तंभ भारतीय गणराज्य की निशानी है। वही अशोक जिनका चक्र तिरंगे पर भारतीय आन, बान और शान की शिनाख्त करते हैं। अपमान उस महान शासक का किया जा रहा है जिसके समय के शासन का विस्तार काफी हद तक आज के भारत का नक्शा है। भाजपा और आरएसएस पर एक बड़ा आरोप यह भी है कि उसने अपने एक विधायक को हथियार बनाकर सिख समुदाय पर हमला बोला है। यह वही समुदाय है जिसने किसान आंदोलन के बुनियादी मुद्दे पर मोदी सरकार की चूल्हें हिला दी थी।

ताजा मामला भाजपा के सांस्कृतिक मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक और आरएसएस की संस्कार भारती के दया प्रकाश सिन्हा से जुड़ा है। इन्होंने बौद्ध धर्म के सुशासन पर सवाल खड़ा करते हुए योजनाबद्ध ढंग से सम्राट अशोक पर आपत्तिजनक हमला बोला है। इन्होंने इतिहास को तोड़-मरोड़कर ऐसा नाटक लिखा कि मोदी सरकार इतनी खुश हो गई कि उसने दया प्रकाश सिन्हा पर पुरस्कारों की झड़ी लगा दी। नाटक "सम्राट अशोक" में दया प्रकाश ने जो लिखा है, सो लिखा ही है, लेकिन बीते आठ जनवरी 2022 को एक विवादित और बेहद आपत्तिजनक इंटरव्यू देकर हंगामा बरपा दिया।

"नवभारत टाइम्स" के लखनऊ संस्करण में छपे इस इंटरव्यू में पत्रकार संध्या रानी से बातचीत में दया प्रकाश सिन्हा अशोक के प्रति घृणा फैलाते नजर आते हैं।

वह कहते हैं, "अशोक के चेहरे पर त्वचा की बीमारी थी। वह बहुत ही क्रूर और बदसूरत था। उसके चेहरे पर दाग थे और वह आरंभिक जीवन में बहुत ही कामुक था। अशोक कामाशोक और चंडाशोक (क्रूर) था। कुछ स्त्रियों ने उसके प्रति घृणा दिखाई तो उसने उन्हें जला दिया। हीन भावना को छिपाने के लिए उसने अपना नाम प्रियदर्शी रख लिया। मैं जब नाटक लिखने के लिए रिसर्च कर रहा था तब आश्चर्य हुआ की अशोक और मुगल बादशाह औरंगजेब के चरित्र में बहुत समानता है। दोनों ने अपने प्रारंभिक जीवन में बहुत पाप किए थे। अपने पापों को छिपाने के लिए अशोक ने अति-धार्मिकता का सहारा लिया था। दोनों शासकों ने अपने भाई की हत्या कराई थी और पिता को कारावास में डाला। अशोक ने अपनी पत्नी को सिर्फ जला दिया था कि उसने एक बौद्ध भिक्षु का अपमान किया था।"

(दया प्रकाश सिन्हा का वह इंटरव्यू, जिसे लेकर बरपा है हंगामा।)

आरएसएस के कट्टर समर्थक दया प्रकाश यहीं नहीं रुकते। उन्होंने अपनी पुस्तक "सम्राट अशोक" में कई शर्मनाक नैरेटिव गढ़ा है। इंटरव्यू में अपनी पुस्तक के हवाले से कहते हैं, "उसने बौद्ध भिक्षुकों की हत्या कराई थी। बाद में वह धम्म अशोक बन गया। अशोक ने अपने आरंभिक जीवन के पापों को छिपाने के लिए एक पागल की तरह बौद्ध धर्म के प्रचार में धन लुटा दिया, जिसकी वजह से उसे राज्य से अपदस्थ कर कारावास में डाल दिया गया था।"

समूचे उत्तर भारत में हंगामा बरपाने वाले तथाकथित इतिहासकार दया प्रकाश सिन्हा ने सम्राट अशोक को अपमानित करने का खेल तभी से शुरू कर दिया था जब मोदी सरकार पहली मर्तबा सत्ता में आई थी। दिल्ली के "वाणी प्रकाशन" ने साल 2015 में दया प्रकाश सिन्हा की विवादित नाट्य पुस्तक "सम्राट अशोक" को छापा था। उसी साल दो अप्रैल को नई दिल्ली रविंद्र भवन के साहित्य अकादमी सभागार में आरएसएस के सह-सर कार्यवाहक डॉ. कृष्ण गोपाल ने इस पुस्तक का विमोचन किया था। इस मौके पर केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री डॉ. महेश चंद्र शर्मा और संस्कार भारती के अध्यक्ष विजेंद्र गुप्त भी मौजूद थे। दावा किया गया था कि यह पुस्तक ऐतिहासिक घटनाओं का सिर्फ दस्तावेज ही नहीं, मनुष्य के उजले और स्याह पक्ष को भी उद्घाटित करती है।

आरएसएस के इशारे पर भाजपा शासित राज्यों में दया प्रकाश सिन्हा की विवादित पुस्तक "सम्राट अशोक" न सिर्फ कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल  करा दी गई, बल्कि मुहिम चलाकर देश भर की तमाम लाइब्रेरियों में भी इसे पहुंचवा दिया गया। दया प्रकाश के इंटरव्यू के प्रकाशित होने के बाद बवाल और बवंडर शुरू हुआ तो सिन्हा ने अपना फोन ही स्विच आफ कर लिया। इन दिनों दया प्रकाश सिन्हा और पटना के एक युवक धनंजय कुशवाहा का एक आडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है, जिसमें सिन्हा माफी मांगते नजर आ रहे हैं। वह यह तक नहीं बता पा रहे हैं कि उन्हें किन उपलब्धियों के चलते साल 2020 में भाजपा सरकार ने पद्मश्री से नवाजा और इस साल साहित्य अकादमी का सर्वोच्च पुरस्कार दे दिया

(आरएसएस के दया प्रकाश को पद्म अलंकरण देते भारत के राष्ट्रपति।)

क्या कहते हैं इतिहासकार?

बिहार के सासाराम जिले के आरा स्थित बीकेएस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और जाने-माने इतिहासकार डा. राजेंद्र प्रसाद सिंह दया प्रकाश सिन्हा द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देते हुए कहते हैं, "राष्ट्रनायक अशोक पर इतनी हल्की टिप्पणी गुलाम भारत के नाटककारों ने भी नहीं कीजितनी दया प्रकाश ने की है। यदि मानव कल्याण के लिए धम्म कार्य पागलपन है तो फिर मानवता क्या है आरएसएस से जुड़े दया प्रकाश सिन्हा हर हाल में अशोक की छवि धूमिल करने के लिए जिम्मेदार हैं। वह अप्रामाणिक तथ्यों को अन्य स्रोतों से बिना सत्यापित किए ही कूड़े की तरह "गप्प" बटोर लाए हैं और अब साजिश करके अशोक महान की छवि धूमिल करने में जुट गए हैं। स्पष्ट सच यह है कि सम्राट अशोक के जरिए ही भारत को दुनिया भर में नैतिक विजय का गौरव हासिल हुआ। उसकी दीप्ति 2200 सालों के बाद भी धुंधली नहीं हुई है। अशोक के राज में ही एक भाषा और एक लिपि से राष्ट्रीय एकता कायम हुई। इसी काल में भारत की नैतिक विजय पश्चिमी एशियाउत्तरी अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व यूरोप से लेकर दक्षिण के राज्यों तक पहुंच गई थी। बुध और अशोक शांति व संस्कृति के सबसे बड़े प्रतीक हैं। स्वतंत्र भारत ने सारनाथ के सिंह-शीर्ष को अपने राजचिह्न के रूप में ग्रहण कर मानवता के इस महान नायक के प्रति अपनी सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है।"

(देश के जाने-माने इतिहासकार प्रो. राजेंद्र प्रसाद सिंह)

प्राख्यात इतिहासकार डा. राजेंद्र कहते हैं, "दीपवंसमहावंस और अशोकावदान जैसे परवर्ती ग्रंथों में अशोक से संबंधित अनेक गप्प हैं। हमें इनसे सजग रहने की जरूरत है। मिसाल के तौर परएक साहित्यिक गप्प यह है कि अशोक ने 99 भाइयों की हत्या की। हमें इस गप्प का अन्य स्रोतों से सत्यापन करना चाहिए, तब कोई कोई निष्कर्ष देना चाहिए। इस गप्प का हम पुरातात्विक सत्यापन करते हैं तो पता चलता है कि सम्राट अशोक ने पांचवें शिलालेख में अपने और अपने भाइयों के रनिवासों का और अपनी बहनों के निवास कक्षों का उल्लेख किया है जो पाटलिपुत्र में भी थे और बाहर के नगरों में भी। उनके कुछ भाई विभिन्न प्रांतों के वायसराय थे। इसलिए यह गप्प ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अमान्य है। ऐसी ही झूठी बातों के आधार पर सम्राट अशोक  की छवि धूमिल करने के लिए कुछेक परवर्ती ग्रंथों में "चण्ड असोक" की कपोलकल्पित अवधारणा खड़ी की गई है। इनमें सबसे आगे संस्कृत ग्रंथ "असोकावदान" है। पुरातत्त्व में "चण्ड असोक" का जिक्र कहीं नहीं मिलता है। यहां तक कि भारत के बौद्धेतर राजाओं के अभिलेखों में भी इसका जिक्र नहीं है। रुद्रदामन के जूनागढ़ शिलालेख में अशोक का उल्लेख है।

"धम्म अशोक" का उल्लेख पुरातत्त्व में मिलता है। सारनाथ के संग्रहालय में कुमार देवी का अभिलेख है, जो गहड़वाल नरेश गोविंदचंद्र की पत्नी और काशीराज जयचंद्र की दादी थीं। 12वीं सदी के इस अभिलेख में सम्राट अशोक को "धर्माशोक" कहा गया है। इस प्रकार हम देखते हैं कि पुरातत्व में कल्याणकारी अशोक और धम्म अशोक के पुख्ता सबूत मिलते हैं। पुरातात्विक सबूत के तौर पर "चण्ड असोक" की कपोलकल्पित अवधारणा की पुष्टि कहीं नहीं होती है।"

डा. राजेंद्र यह भी बताते हैं, "असोकावदान मूलत: "दिव्यावदान" नामक मिथक कथाओं के एक वृहद् संग्रह का अंग है। इसमें अशोक से जुड़ीं अनेक कपोलकल्पित कथाएं हैं। इसमें अशोक के पूर्व जन्म की कथा भी है। इसी ग्रंथ में अशोक की कुरूपता की आड़ में अंतःपुर की स्त्रियों को जलाए जाने का जिक्र हैजबकि स्त्रियों के हित के लिए अशोक ने बकायदा विभाग स्थापित किया था। जैसा कि हम जानते हैं कि अशोक को उनके अभिलेखों में "पियदस्सी " कहा गया है। पियदस्सी का मतलब हैजो देखने में सुंदर हो। ऐसे भी सम्राट अशोक की प्राचीन नक्काशी और मूर्तियां मिली हैं। कहीं भी अशोक के कुरूप होने का चित्रण नहीं है। इसके विपरीत गुइमेत म्यूजियम (पेरिस) में अशोक  की रखी नक्काशी अपनी कद-काठी में प्रभावशाली और मनोहारी है।"

अशोक का राजपद के प्रतिमान बड़े ऊंचे थे। वे हर समय और हर जगह जनता की आवाज सुनने के लिए तैयार थे। उन्होंने संपूर्ण प्रजा को अपनी संतान बताया है क्योंकि वह प्रजावत्सल सम्राट थे। आज जो अत्यंत विकसित देश दुनिया के अल्प-विकसित और अविकसित देशों की सार्वजनिक कल्याण के लिए मदद करते हैंवह अशोक की देन है। भारत ने पहले अशोक राज में ही अंतरराष्ट्रीय जगत में सार्वजनिक जन-कल्याण के कार्यक्रम चलाए। यूनान के जिस सिकंदर ने हमारे पंजाब में खून की होली खेली थीउसी यूनान में सम्राट अशोक ने बस दो ही पीढ़ी बाद दवाइयां बंटवाई थी। अशोक ने न सिर्फ मानवाधिकार के लिए, बल्कि जीव-संरक्षण तक की बात चलाई थी। यहीं से "जियो और जीने दो" का सिद्धांत तैयार हुआ है। अशोक के राज में व्यवहार की समानता थी और सभी पर बिना भेदभाव के एक ही कानून लागू था। खुद सम्राट अशोक ने जन कल्याण के लिए बाग लगवाएकुएं खुदवाए और विश्राम गृह बनवाए। पशुओं के लिए चिकित्सालय बनवाने वाले वे विश्व के पहले सम्राट हैं। भारत में सम्राट अशोक को लेकर अनेक नाटक लिखे गए हैं। चंद्रराज भंडारी ने "सम्राट अशोक" (1923) नामक नाटक लिखा तो लक्ष्मीनारायण मिश्र ने "अशोक" (1926) नाम से नाटक की रचना की। दशरथ ओझा का विख्यात नाटक "प्रियदर्शी सम्राट अशोक " साल 1935 में प्रकाशित हुआ था।"

 

(फेसबुक पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल की टिप्पणी।)

आरएसएस ने क्यों फैलाया बितंडा?

आरएसएस के संस्कार मोर्चा के मुखिया दया प्रकाश सिन्हा के ताजा इंटव्यू को लेकर जो बखेड़ा खड़ा हुआ है उससे उत्तर भारत में बौद्ध धर्मावलंबी और प्रबुद्ध तबके के लोग आहत हैं। इन्हें लगता है कि भाजपा अब नया और फर्जी इतिहास गढ़ रही है। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल कहते हैं, "शर्मनाक इंटरव्यू देने के बाद पद्मश्री दया प्रकाश सिन्हा ने अपना फेसबुक प्रोफाइल डिएक्टीवेट कर लिया है। केंद्र सरकार उसका पद्मश्री और साहित्य अकादमी सम्मान वापस ले और उसे तमाम सरकारी संस्थाओं से हटाए। वह ऐसा लेखक है जो अपनी बात तर्क के साथ डिफेंड भी नहीं कर पा रहा है। उसने दुनिया के उस महान शख्सियत को कलंकित करने की कोशिश की है जिसके स्तंभ को समूचा भारत अपने माथे से चिपकाए हुए घूमता है। इसके खिलाफ तो देशद्रोह का मामला बनता है।"

इलाहाबाद हाईकोर्ट की तेज-तर्रार अधिवक्ता महिमा कुशवाहा कहती हैं, "भाजपा और आरएसएस ने जानबूझकर नया नैरेटिव गढ़ा है। वो सोचते हैं कि ज्यादा विरोध होगा को माफी मानकर निकल जाएंगे। अन्यथा उनका नैरेटिव खड़ा हो जाएगा। ये लोग महीन तरीके से जनता के दिमाग में फर्जी कहानियां डाल देते हैं। अब दूसरे वर्गों के इतिहाकार भी निकलकर सामने आ रहे हैं। दया प्रकाश जैसे नासमझ आदमी को बड़ा अवार्ड देकर महिमामंडन करना अवार्ड का अपमान है। इनसे पद्मश्री जैसे सभी अवार्ड छीन लेना चाहिए। उन्होंने अपने इंटरव्यू में यह यह दिखाने की कोशिश की है कि वो इतिहास के बड़े जानकार हैं। दया प्रकाश ने अपनी पुस्तक में पहले तमाम आपत्तिजनक बातें लिखी और अब इंटरव्यू के जरिए देश भर फर्जी ज्ञान परोस डाला।"

 

गुस्से में सारनाथ के बौद्ध

बनारस का सारनाथ बौद्ध धर्मावलंबियों की आस्था का बड़ा केंद्र है। यहां दुनिया के हर देश के बौद्ध भिक्षुक रहते हैं। इनके कई मंदिर और शिक्षण संस्थाएं हैं। सारनाथ के थाई मंदिर परिसर में धर्म चक्र विहार बुद्ध मंदिर के विहाराधिपति डा. भदन्त स्वरूपानंद महाथेरो की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में सम्राट अशोक के खिलाफ अपमानजक टिप्पणी किए जाने पर नाराजगी जताते हुए इस कृत्य की कड़ी निंदा की गई। इस मौके पर भंते पेमा जिन्पा, पेमा तेनक्याड, कोंछींग, राडडोल आदि ने कहा, "सम्राट अशोक की तुलना औरंगजेब से करना शर्मनाक और निंदनीय है। दुनिया में सिर्फ सम्राट अशोक ही ऐसा राजा था जो बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद देवता की तरह जनमानस में लोकप्रिय हुआ। आज भी बौद्ध धर्म में भेदभाव, जातिवाद, ऊंचनीच के लिए कोई जगह नहीं है।"

(धर्मचक्र विहार बुद्ध सारनाथ के विहाराधिपति डॉ. भदंत स्वरूपानंद।)

डॉ. भदन्त स्वरूपानंद ने "न्यूज़क्लिक" से कहा, "जब से भाजपा सरकार सत्ता में आई है तब से सम्राट अशोक के प्रतीक चिन्हों को मिटाने का काम कर रही है। पहले भारतीय नोटों से अशोक स्तंभ हटाया गया और अब उसे मिटाने के लिए सुनियोजित साजिशें रची जा रही हैं। दुनिया के महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन तक मानते थे कि अगर कोई धर्म है जो आधुनिक वैज्ञानिक जरूरतों का सामना कर सकता है तो वह बौद्ध धर्म होगा।"

धर्म चक्र बौद्ध विहार के प्रबंधक संजय कुमार कहते हैं, "देश में जब भी कहीं चुनाव आता है तो भाजपा और आरएसएस के लोग हिन्दुत्व का नैरेटिव को खाद-पानी देना शुरू कर देते हैं। चुनाव खत्म होते ही मनु की वर्ण व्यवस्था लागू कराने में जुट जाते हैं। भाजपाइयों के दोहरे चरित्र का ही नतीजा है कि जब कभी कोई छोटी जाति का आदमी मंदिरों में चला जाता है तो मंदिरों और मूर्तियों की धुलाई की जाने लगती है। आरएसएस ने अपने प्यादे से ऐसा बावेला खड़ा कराया है ताकि समाज को बांटाकर भाजपा सियासी मुनाफा कूट सके।"

वाराणसी के पत्रकार पवन कुमार मौर्य कहते हैं"आरएसएस के सियासी औजार बने दया प्रकाश सिन्हा पर हमें दया आती है। शायद इन्हें पता ही नहीं है कि बौद्धग्रंथ महावंश के मुताबिक मौर्य एक आजाद वंश था। संस्कृत साहित्य के इतिहास”  के पृष्ठ संख्या -143 पर लेखक मैक्समूलर और रायल एशियाटिक सोसाईटी जनरल” के पृष्ठ संख्या 680 पर लेखक कनिंघम लिखते हैं कि चन्द्रगुप्त मौर्य से भी पहले मौर्यवंश की सत्ता थी।” 

महात्मा बुद्ध के दिवंगत (487 ईसा पूर्व) होने पर पिप्पली वन के मौर्यों ने भी कुशिनारा (गोरखपुर) के मल्लों के पास एक संदेश भेजा था कि आप लोग भी क्षत्रिय हैं और हम भी क्षत्रिय हैं। इसीलिए हमें भी भगवान् बुद्ध के शरीर का भाग प्राप्त करने का अधिकार है। राजपूताना गजेटियर और टॉड राजस्थान के लेखों में भी मौर्य, वृषल नहींबल्कि क्षत्रिय वंशी प्रमाणित होते हैं। पवन कहते हैं, मौर्य शब्द, मौर से बना है। जब इस वंश के लोग यूरोप और इंग्लैण्ड में गएवहां पर भी मौर कहलाए। भाजपा और आरएसएस के नए पैतरे से उत्तर भारत में मौर्य-कुशवाहा (कोईरी) वंश से जुड़ी 18 उप जातियां काफी दुखी और कुपित हैं। यह वो जातियां हैं जो पिछले आठ सालों से भाजपा को वोट देती आ रही हैं। आरएसएस ने जो नया नैरेटिव गढ़ा है उसका खामियाजा भाजपा को यूपी चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।" 

लेखक दया प्रकाश का इंटरव्यू ऐसे समय आया है जब यूपी में चुनाव की डुगडुगी बज चुकी है। उनके वक्तव्य से यूपी में मौर्य-कुशवाहा, शाक्य-सैनी, मुराव-काछी समेत वो सभी जातियां भाजपा से नाराज़ हैं जो पिछले कई चुनावों में कमल के फूल पर ठप्पा लगाती रही हैं। पूर्वांचल में मौर्य-कुशवाहा के अलावा कुर्मी व दलित वर्ग से जुड़ी जातियों की बौद्ध धर्म में अगाध श्रद्धा है। यूपी में मौर्य-कुशवाहा की सभी उप जातियों को मिला दिया जाए तो अकेले इनकी आबादी 14 फीसदी के आसपास है। अशोक और बुद्ध कुर्मी और गंगवार जातियों के भी पूज्यनीय हैं। यूपी में इनकी आबादी भी सरकार बनाने और बिगाड़ने की हैसियत रखती है। सम्राट अशोक मौर्य पर आपत्तिजनक टिप्पणी से संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर के अनुयायी बेहद आहत हैं और इस चुनाव में भाजपा को सबक सिखाने की रणनीति तैयार कर रहे हैं।

(दया प्रकाश की टिप्पणी पर राजद का ट्विट।)

आरएसएस के लिए काम करने वाले दया प्रकाश सिन्हा के इंटरव्यू के बाद जनता दल (यू) समेत कई सियासी दलों ने कड़ी भर्त्सना की है। बिहार में भाजपा की सहयोगी पार्टी जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने ताबड़तोड़ कई ट्विट कर आरएसएस पर जवाबी हमला बोला है। ललन सिंह ने लिखा है, "बृहत अखंड भारत के एकमात्र चक्रवर्ती सम्राट प्रियदर्शी अशोक मौर्य का स्वर्णिम काल मानवता और लोकसमता के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। वह भारत के अमिट प्रतीक थे। उनके इतिहास के साथ कोई खिलवाड़ करे, सच्चा भारतीय इसे कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे। अशोक महान के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति किसी सम्मान के लायक नहीं है। लेखक का पद्मश्री और साहित्य अकादमी समेत अवार्ड रद हो। साथ ही भाजपा इन्हें पार्टी और संगठन से निष्कासित करे।"

 लंबे समय से हो रहे हमले

पिछले कुछ सालों के घटनाक्रम पर गौर करें तो सम्राट अशोक और बौद्ध धर्मावलंबियों पर हमले लंबे समय से किए जा रहे हैं। नवंबर 2017 में भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने लखनऊ के साहित्य महोत्सव में यह विवादित बयान देकर तहलका मचा दिया था कि अशोक के तलवार छोड़ने के बाद से ही भारत में विदेशी आक्रमण शुरू हुआतो वो महान कैसे हो गए? उन्होंने नया नैरेटिव यह गढ़ दिया कि चंद्रगुप्त मौर्य महान थे और अशोक की महानता केवल ब्रिटिश इतिहास के आधार पर हमने पढ़ी है। राजा चंद्रगुप्त मौर्य पिछड़ी जाति से आते थे और ब्राह्मणों की सलाह पर उन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों को रोका और एक महान राष्ट्र की स्थापना की। 

इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए रक्षामत्री राजनाथ सिंह ने 20 जुलाई 2018 को संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य पर अपमानजक टिप्पणी कर दी। राजनाथ ने उनके बारे में यहां तक कह दिया था कि वो भेड़-बकरी चराते थे। राजनाथ के इस बयान पर वाराणसी,  चंदौली, सोनभद्र, अमेठी समेत यूपी के कई इलाकों में मौर्य समाज के लोगों ने विरोध प्रदर्शन कर अपने रोष का इजहार किया था। 

भाजपा को कितना नफ़ा-नुक़सान

मौर्य-कुशवाहा समुदाय की सियासत में गहरी दखल रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं, "अगर साल 1931 की जातीय जनगणना को आधार बनाया जाए तो यह कहा जा सकता है कि यूपी में मौर्यकुशवाहाशाक्यसैनी समाज की सम्मिलित आबादी 14 फीसदी के आसपास होगी। ऐतिहासिक रूप से अपने को भगवान बुद्धसम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य और महान सम्राट अशोक से जोड़ने वाला यह समाज आज पिछड़ों में आखिरी पायदान पर है। आर्थिक रूप से कृषि पर निर्भर रहने वाला यह समाज अब धीरे-धीरे व्यवसाय और व्यापार में भी अपनी पहुंच और पहचान बनाने की कोशिश कर रहा है।

खास बात यह है कि इस समाज ने बीसवीं शताब्दी में अज्ञानता और अशिक्षा के खिलाफ निर्णायक संघर्ष किया और गलत परंपराओं व कुरीतियों के खिलाफ मुखर होकर उसका विरोध किया है। शिक्षाऔर सम्मान के लिए मुहिम भी छेड़ी है। तर्क और विवेक पर आधारित समाज के बदलाव की सकारात्मक पहल की है। सब कुछ नियति पर न छोड़कर अन्यायजुर्म और अत्याचार का सशक्त प्रतिरोध किया है। लखनऊ और इसके आसपास पूर्वांचल तक मौर्य समुदाय प्रभावी स्थिति में है, वहीं बुंदेलखंड में कुशवाहा समाज का बाहुल्य है। एटाबदायूंमैनपुरीइटावा और इसके आसपास जनपदों में शाक्य समुदाय के लोग काफी प्रभावी है। सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और इसके आसपास के जिलों में सैनी समाज काफी संपन्न स्थिति में हैं।"

विनय कहते हैं, "मौर्यकुशवाहाशाक्यसैनी समाज के प्रमुख राजनीतिज्ञों में पडरौना (कुशीनगर) से तीसरी बार विधायक स्वामी प्रसाद मौर्य का नाम आता है। भाजपा और आरएसएस की अराजक नीतियों से क्षुब्ध होकर 11 जनवरी 2022 को उन्होंने श्रमसेवायोजन एवं समन्वय विभाग के कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और समाजवादी पार्टी के साथ जा रहे हैं। पांच बार विधायक और छह मर्तबा कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ले चुके स्वामी प्रसाद, यूपी विधानसभा में तीन बार नेता प्रतिपक्ष भी रहे। अटकलें लगाई जा रही हैं कि इनके साथी डा. धर्म  सिंह सैनी भी भाजपा को अलविदा कह सकते हैं।

योगी सरकार में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य अपने समाज के ऐसे पहले नेता हैं जो उप मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे, लेकिन अबकी इनकी बिरादरी के लोग साथ छोड़ते नजर आ रहे हैं। बसपा सरकार में सबसे ताकतवर मंत्री रहे बांदा निवासी बाबू सिंह कुशवाहा फिलहाल हाशिए पर दिख रहे हैं। आबादी के अनुपात में मौर्य समुदाय का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। दूसरी ओर, आरएसएस ने सम्राट अशोक को लेकर जो नया नैरेटिव गढ़ने और गप्प फैले की कोशिश की है, उसका विपरीत असर हो सकता है। बौद्ध धर्म में गहरी आस्था रखने वाले मौर्य समाज के नाराज लोग विधानसभा चुनाव में भाजपा को तगड़ी चोट दे सकते हैं।"

 

कौन है दया प्रकाश?

कथित नाटककार दय़ा प्रकाश सिन्हा यूपी कैडर के पीएसीएस अफसर रहे। बताया जाता है कि कुछ सतही किताबों से मनगढ़ंत कहानियां और किस्से लेकर कई नाटक रच डाले। नए-नए फर्जी नैरेटिव गढ़ने में माहिर होने की वजह से आरएसएस ने इन्हें आगे बढ़ाया। काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं, "पूर्वाग्रही चश्मे से देखने वाला आदमी ही सम्राट अशोक के बारे में ऐसा गप्प लिख सकता है। अशोक की छवि धूमिल करने का गंदा काम भारत में पिछले दो दशकों से चल रहा है। यह काम ऐसे इतिहास दृष्टि को झुठलाने का कुत्सित प्रयास है जिसका नजरिया वैज्ञानिक और तथ्यों पर आधारित है। जिस काल की बात करते हुए अशोक के चरित्र को परिभाषित को करने का कार्य किया गया है वह काल तो विशाल साम्राज्य और सुशासन पद्धति का काल था। उस दौर में भारत को सोने की चिड़िया कहा गया।"

"आरएसएस  को असली तकलीफ यही है कि अशोक की परिकल्पना हिन्दू राष्ट्रवाद के खांचे में फिट नहीं बैठती है। अशोक का बौद्ध होना और बौद्ध धर्म धर्मावलंबियों का भारतीय महाद्वीप में और उससे बाहर भी प्रचार-प्रसार करना आरएसएस को गंवारा नहीं है। इतिहास इस बात का गवाह है कि कालांतर में हिन्दूवादियों ने बौद्ध धर्म के मठों और मंदिरों को ध्वस्त किया है। वह दिक्कत इन्हें आज तक है। इस तरह की सोच वाली ताकतें अंबेडकर से दो बातों से नाराज रहती हैं। उनकी नाराजगी की वजह उनका दलित और अछूत होना, दूसरा उनका अपने समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर लेना और दलितों का यह आह्वान करना कि हिन्दू धर्म के बाड़े से बाहर निकलो। बौद्ध स्वीकर करो, क्योंकि वहीं समानता है। ये बातें दक्षिणपंथियों को हमेशा टीसती रहती हैं।"

प्रदीप कहते हैं, "यह सोचना गलत नहीं होगा कि इसी वजह से एक ऐसे इतिहास और साहित्य का लेखन हो रहा है जिसमें दूसरे धर्मों की बड़ी हस्तियों को बौना किया जाए। जगजाहिर है कि संस्कार भारती नामक कथित सांस्कृतिक संस्था की बागडोर नागपुर से संचालित होती है, उसके वो दया प्रकाश सिन्हा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। ऐसे लोगों के व्यक्तित्व को ऊंचा उठाने के लिए तमाम राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जाता रहा है। इसका विश्लेषण किया जाए तो जिन कार्यों के लिए इन्हें पद्श्री और साहित्य अकादमी का सर्वोच्च सम्मान दिया गया, उसके काबिल वह हैं ही नहीं। ये ऐसे कलाकार हैं जिन्हें मालूम ही नहीं, उन्हें ये पुरस्कार क्यों दे दिए गए? "

(न्यूज़क्लिक से बातचीत करते बनारस के साहित्यकार रामजी यादव।)

साहित्यकार रामजी यादव कहते हैं, " किसी के रूप से काम का आकलन करना मूर्खाता की पराकाष्ठा है। अशोक के बारे में जो कथाएं दिव्यदान और अन्य जगहों पर प्रचलित हैं, उसमें उसमें कहा जाता है कि वह बहुत उग्र था। लेकिन उसने ऐसा समतामूलक समाज बनाने के प्रयास में किया जो बुद्ध का सपना था। सौभाग्य था कि बुद्ध को अशोक जैसा शिष्य ढाई सौ साल बाद मिला कि उनके सारे निशान, चीजें, शिक्षाएं, ग्रंथ, स्थान, शिखाएं और त्रिपिटक बच गए। बुद्ध ने उन्हें सांस्थानिक रूप दिया। भारत अशोक के नाम से जाना जाता है। यह कहना कि अशोक क्रूर था, यह उनका गहरा अपमान है। यह दया सिन्हा की बेवकूफी का सबसे बड़ा उदाहरण है। यह भाजपा और आरएसएस का प्रायोजित प्रोपगंडा है। दया प्रकाश सिन्हा का कोई वैचारिक महत्व और व्यक्तित्व नहीं है। वह अशोक के बहाने चर्चित हो गया। हमें लगता है कि आरएसएस हिन्दुत्व के पिच पर गप्पबाजी का गेंद डालकर दूसरे धर्मावलंबियों को खेलने पर मजबूर कर रहा है। दया जैसे छुटभैयों से उद्वेलित होने की जरूरत नहीं है। मौर्य समाज अगर गुस्सा है और अगर वह भाजपा में हैं तो उन्हें देखना चाहिए कि अशोक की पूरी परंपरा को नष्ट करने पर कौन लोग तुले हुए हैं। जिन पीढ़ियों का भविष्य अंधेरे में जा रहा है, वहां से उन्हें निकलने और यह भी सोचने की जरूरत है कि वो भाजपा में क्यों रहें और उनकी तरजुमानी क्यों करें? शर्मनाक बात यह है कि भाजपा और आरएसएस पर भरोसा मौर्य जाति के लोग ही कर रहे हैं, जिन्हें साफतौर पर पता है कि ये लोग सम्राट अशोक और बुद्ध को अपमानित करने के लिए प्रायोजित प्रोपगंडा खड़ा कर रहे हैं। भाजपा के बाड़े से मौर्य समाज को निकलने और अपना नया रहबर बनाने की जरूरत है।

बन सकता है इमोशनल मुद्दा

गोरखपुर के स्वतंत्र पत्रकार अजय कुशवाहा कहते हैं"आरएसएस के प्यादे के रूप में काम करने वाले दया प्रकाश ने बैठे-बैठे विपक्षी दलों को बड़ा मुद्दा थमा दिया है। यूपी में विपक्षी दल अगर इसे इमोशनल मुद्दा बनाकर उठाना शुरू कर दें तो भाजपा का बैंड बज जाएगा। किसी के पूर्वज का कोई अपमान करेगा तो वह समाज गुस्सा होगा ही। एक फिल्म में किसी समाज के खिलाफ कुछ भी अनर्गल दिखाता है तो बवाल हो जाता है। यहां पर विश्व विख्यात सम्राट के खिलाफ बेहूदी टिप्पणी की गई है। चुनाव के वक्त में भाजपा और आरएसएस को किसी मजबूत समाज के धैर्य की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए।"

कुशवाहा यह भी कहते हैं, "हाल में डेकोरम तोड़कर मोदी सरकार ने दया प्रकाश को साहित्य अकादमी का सम्मान दे दिया। नाटककारों को पहले संगीत नाटक अकादमी का सम्मान दिया जाता था। इस बार उन्हें नाटकों पर साहित्य का सबसे बड़ा सम्मान दे दिया गया, क्योंकि दया प्रकाश ने अशोक की हिन्दुत्व विरोधी छवि बनाने में अहम भूमिका निभाई। अशोक ने भारत को वह पहचान दी जो पहचान हड़प्पा और मोहन जोदड़ो के खंडहर भी नहीं देते हैं।"

बनारस के ख्यातिलब्ध गाइड और बौद्ध धर्मावलंबी अशोक आनंद कहते हैं, "अशोक को कभी नहीं मिटाया जा सकता है। वह ऐसे शासक थे जिनका दिल हर प्राणी के लिए धड़कता था। भारत का संविधान इसलिए श्रेष्ठतम संविधान बन गया, क्योंकि उसमें डा. अंबेडकर ने अशोक महान की राज्य नीति को बेहतरीन ढंग से निरूपित किया। जापान, कोरिया, भूटान को देखिए। इन देशों में बुद्ध के वैज्ञानिक विचारों की रोशनी है, इसलिए वो तरक्की करते चले गए। बौद्ध अनुयायी और प्रबुद्ध लोग भाजपा और आरएसएस के छिपे हुए उस प्रछन्न मकसद को सूंघ रहे हैं, जहां से स्वार्थ और धर्मांधता की दुर्गंध आ रही है। दया प्रकाश सिन्हा के इंटरव्यू से बौद्ध धर्मावलंबी गहराई तक आहत हुए हैं। इसका खामियाजा भाजपा को प्रत्यक्ष रूप से यूपी के विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है।"

सिख समुदाय पर भी वार

भाजपा और आरएसएस के निशाने पर सिर्फ बौद्ध धर्मावलंबी ही नहीं, सिख भी आ गए हैं। जिस दिन लखनऊ के "नवभारत टाइम्स" में दया प्रकाश सिन्हा का विवादित इंटरव्यू छपा, ठीक उसी दिन आठ जनवरी 2022 को कानपुर के भाजपा विधायक अभिजीत सिंह सांगा के अधिकृत ट्विटर हैंडल से एक धमकी भरा ट्वीट हुआ, जिसमें उन्होंने लिखा था कि इंदिरा गांधी समझने की भूल न करना-नरेंद्र दामोदर दास मोदी नाम है। लिखने को कागज और पढ़ने को इतिहास नहीं मिलेगा। इस ट्विट के आने के बाद सिख समुदाय में भूचाल आ गया। सिख समाज का कहना था कि विधायक सांगा ने अपने ट्वीट से सिख दंगा पीड़ितों के जख्मों को हरा कर दिया है। इस मामले ने जब तूल पकड़ा तो अभिजीत सिंह बचाव की मुद्रा में दंडवत हो गए। पहले ट्वीट डिलीट किया और बाद में खुद को निर्दोष बताते हुए सफाई दी कि उनका एक-एक शब्द कांग्रेस के खिलाफ था। सांगा के बार-बार सफाई देने के बावजूद समूचे यूपी में सिख समुदाय के लोग खफा हैं और इस बयान के पीछे भाजपा व आरएसएस का दिमाग बता रहे हैं। चुनाव नजदीक है तो सांगा के निलंबन की मांग जोर पकड़ती जा रही है। गुरुद्वारा बन्नो साहिबजीटी रोड के प्रबंध समिति के सदस्य कंवलजीत सिंह मानू ने कहा है"जब मुगल और अंग्रेज इतिहास सिख समुदाय को नहीं मिटा सके और सिंघु बॉर्डर के आंदोलन पर सत्ताधीशों को माफी मांगनी पड़ी तो विधायक सांगा की धमकी से सिख समाज डरने वाला नहीं है।"

उत्तर प्रदेश पंजाब अकादमी के उपाध्यक्ष गुरविंदर सिंह छाबड़ा कहते हैं"सांगा ने माफी मांग ली है तो अब विरोध कर सिख समाज को विघटित करने का काम नहीं होना चाहिए।" भाजपा विधायक के विवादित बयान पर लोकतांत्रिक जनता दल के अध्यक्ष प्रदीप यादव और आदर्श लोकदल के अध्यक्ष शाकिर अली ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी राजनीतिक साजिश के तहत इस तह का काम करती है और उसका सियासी फायदा उठाना चाहती है। भाजपा विधायक के माफी मांगने भर से उनके पाप नहीं धुल जाएंगे। उन्होंने सिख समुदाय पर कीचड़ उछाला है, जिसका असर यूपी ही नहीं, हरियाणा और पंजाब तक जाएगा।

सभी फ़ोटो सौजन्य: विजय विनीत

(बनारस स्थित लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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