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कोविड-19 की 'दवाई’ : पतंजलि को कुछ कठिन सवालों के जवाब देने होंगे 

इसकी कोई जानकारी नहीं है कि पतंजलि की दवाओं में कौन से ऐसे विशिष्ट घटक हैं जो वायरस के हमले का सामना कर सकते हैं। 
कोविड-19 की 'दवाई
image courtesy : Indian Express

जब पूरी दुनिया कोविड-19 से जूझ रही है और वैज्ञानिक प्रभावी दवाओं और वैक्सीन को विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं, पतंजलि आयुर्वेद, लंबे-चौड़े दावों के साथ आयुर्वेदिक दवाओं के एक पैकेज को 23 जून को दुनिया के सामने लेकर आई है और उसे कोरोना के इलाज़ के लिए ‘100 प्रतिशत प्रभावी’ बताया है। 

बताया गया है कि इस किट में ‘कोरोनिल’ और ‘स्वसारी वटी’ नामक गोलियां हैं, साथ में ’अनु तेल’ भी है। पतांजली के सह-संस्थापक रामदेव ने दावा किया कि दवा के उत्पादन में 100 से अधिक यौगिकों (तत्वों) का उपयोग किया गया है जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करेंगे। यह भी दावा किया गया है कि इन दवाओं के माध्यम से कोविड-19 के रोगियों को लेकर दो चरण के परीक्षण किए गए हैं। कथित तौर पर पहला परीक्षण, दिल्ली, अहमदाबाद और कुछ अन्य शहरों में किया गया एक नैदानिक नियंत्रण परीक्षण था। इसमें जिन 280 मरीजों को भर्ती किया गया था, उनकी "100 प्रतिशत की रिकवरी दिखाई है"। 

पतंजलि ने यह भी दावा किया कि ‘कोरोनिल’ और ‘स्वसारी वटी’ को जब किसी भी मरीज को तीन दिनों तक दिया जाता है, तो वह कोविड-19 रोगियों में 69 प्रतिशत की रिकवरी दिखाती है और जब उसे सात दिनों तक दिया जाता है, तो वह 100 प्रतिशत की रिकवरी दिखाती है।

इस बीच, आयुष मंत्रालय ने कंपनी को उत्पादों के विज्ञापन पर रोक लगाने का आदेश दे दिया है, तब तक, जब तक कि उनके द्वारा किए जा रहे दावों की पुष्टि नहीं हो जाती है। आयुष मंत्री, श्रीपद नाइक के हवाले से कहा गया है, "यह अच्छी बात है कि बाबा रामदेव ने देश को एक नई दवा दी है, लेकिन नियमों के अनुसार, इसे पहले आयुष मंत्रालय से अनुमोदन लेना होगा।“

इस संदर्भ में, पतंजलि के दावों की पुष्टि करने के लिए कुछ नीचे दिए गए सवाल और बिंदु उठाए जाने जरूरी हैं।

पहली बात, परीक्षण में भाग लेने वाले रोगियों की संख्या [280] सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण नहीं है। हम मरीजों के लक्षणों की गंभीरता के बारे में नहीं जानते हैं जो ये मरीज दिखा रहे थे। संक्रमण के कई हल्के मामलों में, मरीज़ अक्सर बिना किसी सहायता या दावा के ठीक हो जाते हैं। इसलिए इन मामलों में, इस बात को दृढ़ता से नहीं कहा जा सकता है कि मरीजों को ठीक करने वाली दवा पतंजलि की थी।

दूसरा, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च (NIMR), जयपुर, जहां ये सब परीक्षण किए गए थे, उसे 2009 में ही स्थापित किया गया और एक निजी संस्थान भी है। डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट बताती है कि संस्थान का इतिहास उसके द्वारा दवाई के परीक्षण के पूर्व अनुभव के बारे में निर्णायक रूप से कुछ नहीं कहता है। पतंजलि दवा के परीक्षण सहित संस्थान ने कुल दो बार सीटीआरआई (क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया) के साथ ड्रग ट्रायल यानि दावा की जांच के लिए अपने को पंजीकृत किया है। अन्य परीक्षण भी जून 2020 में ही पंजीकृत किए गए थे।

पतंजलि का कहना है कि वह इन दवाओं में आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली तुलसी, अश्वगंधा, गिलोय जैसी जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया है। ये कई आयुर्वेदिक दवाओं में उपयोग की जाने वाली सामान्य सामग्री हैं और आमतौर पर प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने में प्रभावी मानी जाती हैं। लेकिन अगर इनमें वायरल बीमारी से लड़ने वाली  कोई विशिष्ट सामग्री है, तो इसकी जानकारी अभी सामने नहीं आई है।

दुनिया भर में वैज्ञानिक प्रयासों में, एक ऐसी दवा विकसित करने की कोशिश है जिसका प्राथमिक काम या तो मानव कोशिका के अंदर कोरोना (SARS-CoV-2) वायरल प्रतिकृति को रोकने या मेजबान सेल में प्रवेश करने से पहले वायरस को निष्क्रिय करने की है। इस संदर्भ में, स्पाइक नामक प्रोटीन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह वह प्रोटीन है जो एसीई2 नामक विशिष्ट रिसेप्टर्स को बाँध सकता है, जो मानव कोशिकाओं में आसानी से उपलब्ध है।

इस बात का प्रयास किया जा रहा है कि एक ऐसे ड्रग एजेंट (दावा) का उत्पादन हो जो स्पाइक प्रोटीन के साथ हस्तक्षेप कर सकता है ताकि वायरस को मानव कोशिकाओं में प्रवेश करने के लिए सेल रिसेप्टर पर चिपके रहने में विफलता मिले। आम आयुर्वेदिक घटकों में इस संबंध की कोई वैज्ञानिक मान्यता या जानकारी नहीं है। न ही ये कोशिका के अंदर वायरल प्रतिकृति को रोकने की बात करता है। पतंजलि की दवाओं में कौन से विशिष्ट घटक वायरस के हमले का सामना कर सकते हैं, इसकी कतई कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। और क्या इन्हे कठोर अनुसंधान के माध्यम से तैयार किया गया हैं, इसकी भी कोई जानकारी नहीं है।

इन दवाओं की मदद से 100 प्रतिशत रिकवरी का दावा करने से आम जनता में अधिक भ्रम पैदा होगा जबकि लाखों लोग बीमारी से पीड़ित हैं और लाखों लोग इस कुख्यात वायरस के  संक्रमण की संभावना से ही घबराहट में हैं।

4॰ अब तक, दुनिया भर में सैकड़ों ड्रग ट्रायल (दवाओं की जांच) किए जा चुके हैं, लेकिन डब्ल्यूएचओ के अनुसार, वर्तमान में ऐसी कोई दवा नहीं आई है जो कोविड-19 को ठीक कर सके या उसकी रोकथाम कर सके। कोविड-19 वायरस के खिलाफ एक टीका ईज़ाद करने के कई प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन अभी तक कुछ भी निर्णायक हासिल नहीं हुआ है। टीके के उत्पादन की संभावना के बारे में भी काफी आशंकाएं हैं, क्योंकि कोरोना (SARS-CoV-2) वायरस एक आरएनए वायरस है और त्वरित उत्परिवर्तन से गुजरता है यानि उसमें जल्दी से बदलने की प्रवर्ती है। एचआईवी, इबोला आदि जैसे कुछ अन्य आरएनए वायरस का अनुभव बहुत आशाजनक नहीं रहा है। हमारे पास उन वाइरसों के खिलाफ कोई टीका नहीं है, और न ही हमारे पास इन्फ्लूएंजा वायरस के खिलाफ ही कोई टीका है। फिर भी, दुनिया का वैज्ञानिक समुदाय इनमें से कई वायरस के खिलाफ प्रभावी ड्रग एजेंटों को बनाने का संघर्ष कर रहा है। ऐसी स्थिति में, विज्ञापनों और लंबे दावों के साथ पतंजलि ने जिस तरह का प्रचार किया है वह एक गंभीर मुद्दा है।

पहली बात जो पतंजलि कर सकती थी, वह यह कि उन घटकों की पहचान करे जो उनकी प्रभावशीलता की पुष्टि करता हो, यदि कोई हो तो, और जो कोविड-19 के खिलाफ काम करते हों। उसके बाद ही उन घटकों को दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जो उनकी दावा या दावे की एक गंभीर कमी है।

पतंजलि दवाओं को हरी झंडी देने से पहले, उनके घटकों की कठोर वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से जांच होनी चाहिए।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

COVID-19 ‘Medicine’: Patanjali Needs to Answer Some Tough Questions

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