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पटना: नए श्रम कोड की वापसी समेत कई मांगों को लेकर मज़दूरों का ‘महापड़ाव’

मज़दूर यूनियन के नेताओं ने नए श्रम कोड को मज़दूर विरोधी बताते हुए इसे वापस लेने की मांग की, साथ ही बेरोज़गारी व महंगाई के मुद्दे पर सरकार को घेरा।
AICCTU

कल यानी 9 अगस्त, 2023 को मज़दूर संगठनों के आह्वान पर पटना में ऐक्टू व अन्य ट्रेड यूनियन से जुड़े मज़दूरों ने हज़ारों की संख्या में भाग लेकर देशव्यापी मज़दूर महापड़ाव का आयोजन किया। इस महापड़ाव का आह्वान ऐक्टू समेत देश के अन्य ट्रेड यूनियनों, एटक, सीटू, इंटक, सेवा, एचएमएस, एआईयूटीयूसी, यूटीयूसी, टीयूसीसी आदि ने किया।

मज़दूर नेताओं ने, विधान सभा मुख्य द्वार के समक्ष स्थित शहीद स्मारक पर 1942 के अमर शहीदों को श्रद्धांजलि दी और माल्यार्पण किया, इसके बाद महापड़ाव सभा की शुरुआत हुई।

इससे पहले पटना समेत बिहार के अलग-अलग ज़िलों से बड़ी संख्या में ऐक्टू, एटक सहित अन्य ट्रेड यूनियनों से जुड़े मज़दूरों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। इनमें ज़्यादातर असंगठित क्षेत्र के निर्माण मज़दूर जैसे आशा, रसोइया, आंगनवाड़ी कर्मी, टेपो, ई- रिक्शा चालक, रात्रि प्रहरी संघ आदि शामिल हुए।

यहां मौजूद मज़दूरों ने अपने हाथों में तमाम मांगों से संबंधित प्ले-कार्ड लेकर सरकार को घेरने की कोशिश की। इसके अलावा मज़दूर संगठनों ने मोदी सरकार पर आरोप लगाते हुए कई मांगें उठाईं:

* निजीकरण पर रोक लगाई जाए।

* सभी स्कीम वर्करो समेत संविदा, मानदेय व आउटसोर्स कर्मियों को नियमित किया जाए।

* रिकॉर्ड महंगाई व बेरोज़गारी पर काबू पाने के क़दम उठाए जाएं।

* मज़दूरों विरोधी 4 श्रम कोड रद्द किया जाए।

ऐक्टू राज्य अध्यक्ष श्यामलाल प्रसाद, एटक के गजनफर नवाब, इंटक के चंद्रप्रकाश सिंह, सीटू के गणेश शंकर सिंह, एआईयूटीयूसी की अनामिका कुमारी, यूटीयूसी के वीरेंद्र ठाकुर, टीयूसीसी के अनिल शर्मा, सेवा की माधुरी सिन्हा आदि ने संयुक्त रूप से मज़दूर महापड़ाव सभा की अध्यक्षता की और सभा को संबोधित किया।

आरएन ठाकुर, रणविजय कुमार और शशि यादव समेत कई मज़दूर नेताओं ने मोदी सरकार की आलोचना की। नेताओं ने मोदी सरकार को 2024 के चुनावों में शिकस्त देने का भी आह्वान किया। नेताओं ने आरोप लगाते हुए कहा कि "मोदी सरकार पूंजीपतियों के लिए काम कर रही है। लगातार सरकारी संपत्ति का निजीकरण कर लोगों को बेरोज़गार किया जा रहा है। सरकार ने नई स्थायी नियुक्ति को बंद कर दिया व 4 श्रम कोड लागू कर मज़दूरों के कानूनी व संवैधानिक अधिकारों पर प्रहार किया।"

मज़दूर नेताओं ने आरोप लगाते हुए कहा, "मज़दूरों को कंपनियों का गुलाम बनाने की कोशिश की जा रही है। बेरोज़गारी व महंगाई भी अपने चरम पर है।"

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