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सियासतः यूपी में सपा को जलाने लगी है एमपी में टिकट बंटवारे की आग

“मध्य प्रदेश चुनाव की सीटों पर फ़साद यूपी में लोकसभा सीटों के लिए अभी से दबाव बनाने का प्रयास भर है”।
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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे की आग अब समाजवादी पार्टी को जलाने लगी है। इस मुद्दे पर कांग्रेस-सपा के बीच जबर्दस्त घमासान छिड़ गया है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और यूपी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के बीच तलवारें खिंच गई हैं। आमतौर पर अखिलेश बहुत ज्यादा आक्रामक बयानबाजी नहीं करते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में सीटों के बंटवारे को लेकर छिड़ी जंग के बीच उन्होंने कांग्रेस पर करारा प्रहार किया। अजय राय पर निशाना साधते हुए यहां तक कह दिया कि, "कांग्रेस अपने ... नेताओं से हमारे खिलाफ बयान न दिलवाए।"

हालांकि 21 अक्टूबर की शाम अखिलेश के सुर नरम पड़ गए और उन्होंने कहा, "कांग्रेस साथ मांगेगी तो हम मना नहीं करेंगे।" इस बीच सपा ने अपने प्रवक्ता आईपी सिंह से कहकर उस ट्वीट को हटवा दिया, जिसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी पर विवादित टिप्पणियां थीं।

मध्य प्रदेश विधानसभा में 230 सीटें हैं, जिसके लिए 17 नवंबर 2023 को मतदान होना है। चुनाव के नतीजे  तीन दिसंबर को आएंगे। फिलहाल वहां बीजेपी की सरकार है और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री हैं। कांग्रेस अब तक 229 सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर चुकी है। सपा ने अपने 33 प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है और वह चाहती है कि कांग्रेस उन सीटों पर अपने प्रत्याशियों को हटा ले। एमपी में सपा की कोई ख़ास जमीन नहीं है। पिछला चुनाव जीतने वाला उनका इकलौता विधायक बीजेपी के खेमे में जा चुका है। इस बार बीजेपी ने उसे अपने टिकट पर दोबारा मैदान में उतारा है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को पता है कि कांग्रेस के सहयोग के बगैर वह मध्य प्रदेश में एक भी सीट जीत पाएंगे, इसकी गुंजाइश कम ही है। वह अब इंडिया गठबंधन को लेकर संशय में आ गए हैं। इसका अंदाजा उनके ताजातरीन बयान से लगाया जा सकता है। माना जा रहा है कि कांग्रेस पर हमलावर अखिलेश यादव आगे एमपी चुनाव में और भी प्रत्याशियों की सूची जारी कर सकते हैं।

दरअसल, मध्य प्रदेश में सीटों के तालमेल के मामले में अखिलेश यादव की पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से बात चल रही थी। कुछ दिन पहले सीटों के तालमेल पर सपा नेताओं की कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से रात एक बजे तक चर्चा चली। कांग्रेस सपा को छह सीटें देने के लिए तैयार थी, लेकिन अखिलेश यादव की डिमांड ज्यादा सीटों की थी। बात नहीं बनी तो कांग्रेस ने अपने 229 प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी और समाजवादी पार्टी ताकती रह गई। यहीं से कांग्रेस-सपा में तल्खी बढ़ी और दोनों दलों के नेताओं के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने यह बयान देकर विवाद को और ज्यादा गरमा दिया कि, "इंडिया गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए बना है। विधानसभा चुनाव में तालमेल का इससे कोई मतलब नहीं है।"

अखिलेश ने कहा-हमें धोखा मिला

कमलनाथ का बयान आने के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव हत्थे से उखड़ गए। दूसरे दलों को बेवकूफ बनाने का आरोप चस्पा करते हुए यहां तक कह दिया कि, "कांग्रेस ने गठबंधन में सीटें न देकर हमें धोखा दिया है। अगर हमें यह जानकारी होती कि इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस (इंडिया) विधानसभा स्तर पर गठबंधन नहीं करेगी, तो हम अपने नेताओं को न ही वार्ता के लिए भेजते और न ही उनके फोन उठाते। भविष्य में उत्तर प्रदेश व केंद्र के लिए गठबंधन की बात आएगी तो हम भी सोंचेंगे।"

कांग्रेस और सपा में घमासान यहीं नहीं रुका। सपा नेताओं ने जब आक्रामक रुख अपनाया तो कमलनाथ ने अखिलेश-वखिलेश कहते हुए उनके खिलाफ उपेक्षापूर्ण टिप्पणी कर दी। जिसके जवाब में अखिलेश ने कहा, " मैं कमलनाथ के बारे में क्या बोलूं। उनके साथ मेरे करीबी संबंध हैं। जिनके नाम में ही कमल है और क्या ही कहूं?" फिर सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. राम गोपाल यादव ने कमलनाथ के बयान पर पलटवार किया और कहा, "वह छुटभैया नेता हैं। उनके बारे में हमें कुछ नहीं कहना है।"

सत्ता के गलियारों में दखल रखने वालों का मानना है कि मध्य प्रदेश में सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर सपा और कांग्रेस के नेता एक दूसरे को अर्दब में लेना चाहते थे। इस मामले में यूपी के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय का बयान आया तो अखिलेश उखड़ गए और उन्हें ‘चिरकुट’ नेता बता दिया। इसी के बाद दोनों दलों में तनातनी बढ़ गई और सियासी घमासान तेज हो गया।

यूपी में मजबूत राष्ट्रीय दल की नुमाइंदगी करने वाले अजय राय की इमेज दबंग नेताओं में रही हैं। उन्होंने भी अखिलेश यादव पर पलटवार किया और उन्होंने बातों-बातों में यहां तक कह दिया, "अखिलेश यादव सैनिक स्कूल और ऑस्ट्रलिया से पढ़े हुए हैं, लेकिन उन्होंने अपने पिता के लिए अपमानजनक शब्द कहे थे। जो अपने पिता का सम्मान नहीं कर पाया वो मेरा क्या लिहाज करेंगे? घोसी चुनाव में कांग्रेस ने सपा का समर्थन किया और अपना कोई प्रत्याशी भी नहीं उतारा, जबकि सपा ने उत्तराखंड की बागेश्वर सीट पर हुए उप-चुनाव में अपना प्रत्याशी उतार दिया, जिसके चलते कांग्रेस पार्टी मामली वोटों से चुनाव हार गई। इससे पता चलता है कि कौन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी की मदद कर रहा है।"

"समाजवादी पार्टी मध्य प्रदेश में बहुत ज्यादा सीटें मांग रही थी, जबकि वहां उनका कहीं वजूद ही नहीं है। इंडिया गठबंधन तो आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर किया गया है। अखिलेश को जो भी गाली देनी है, वह गाली हमें दे दिया। उन्हें अपमानजनक शब्द का जो इस्तेमाल करना था, कर दिया। उनसे हाथ जोड़कर निवेदन है कि वो कांग्रेस का समर्थन करें। अगर एसपी को लगता है कि बीजेपी को जीतने से रोकना चाहिए, तो उन्हें कांग्रेस का समर्थन करना चाहिए।"

इसलिए आक्रामक हुई सपा

अजय राय का यह बयान न सिर्फ अखिलेश को नागवार गुजरा, बल्कि उनकी पार्टी के तमाम नेता तमतमा गए। सपा अध्यक्ष ने आनन-फानन में लखनऊ स्थित पार्टी कार्यालय में अपनी कोर कमेटी की बैठक बुलाई और संकेत दिया कि कांग्रेस के प्रभाव वाले लोकसभा सीटों पर पार्टी जल्द ही अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर सकती है। इसी के साथ सपा अपने प्रवक्ताओं के जरिये कांग्रेस पर हमला कराने लगी। 20 अक्टूबर को बनारस के सपा नेता मनोज धूपचंडी ने अजय राय को आरएसएस और बीजेपी के स्कूल का आदमी बताते हुए उन्हें कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। धूपचंडी ने कहा, "अखिलेश सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और अजय राय उस पार्टी के सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष हैं जिसकी यूपी में हैसियत पांचवें नंबर की है।"

झगड़े को हवा देते हुए समाजवादी पार्टी के दूसरे प्रवक्ता आईपी सिंह भी मैदान में कूद पड़े और शब्दों की मर्यादा को लांघते हुए एक्स (ट्वीटर) पर विवादित बयान वायरल कर दिया, "... राहुल गांधी के सहारे कांग्रेस अपने बलबूते चली है मोदी को हराने। असंभव। जो व्यक्ति अपने भाई वरुण गांधी जी को नहीं जोड़ पाया वह झूठी मुहब्बत बांट रहा है। कांग्रेस की सात पुश्तें समाजवादी पार्टी का कुछ भी बिगाड़ नहीं पाएंगी। वैसे राहुल गांधी वंशविहीन है। ननिहाल उनके लिए मुफीद जगह है। मुलायम सिंह यादव कहते थे कांग्रेस दुश्मन नंबर एक पार्टी है। कांग्रेसी के नेता अपने आचरण से इस बात को कई बार साबित कर चुके हैं। साल 2004 से 2014 तक इस पार्टी के नेताओं ने अपने सहयोगी दलों के साथ कैसा बर्ताव किया, यह सारा हिन्दुस्तान जानता है।"

"साल 2004 में मुलायम सिंह ने 39 सीटें जीतकर भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था और वह आठ सीटों पर सिमट गई थी। इसके बाद एक दशक तक वह खड़ी नहीं हो पाई। सत्ता पर काबिज होते ही कांग्रेस ने मुलायम सिंह का उत्पीड़न शुरू कर दिया। केंद्र सरकार से राहुल गांधी ने समाजवादियों को दूर रखा। राहुल गांधी की नादानियों के चलते लालू यादव को मुसीबत झेलनी पड़ी। बाद में मोदी ने उन्हें जेल में डलवा दिया, जहां उनकी किडनी खराब हो गई। तभी से वह जीवन और मौत से जूझ रहे हैं, क्योंकि वो पिछड़े तबके के नेता है। बिना पीडीए के कांग्रेस कुछ भी नहीं कर पाएगी।"

सपा प्रवक्ता के तीखे बयान से नाराज कांग्रेस नेता पंखुड़ी पाठक और अजय राय ने कड़ी आपत्ति जताई है। पंखुड़ी ने कहा, "भारत की जनता की आवाज़, समस्त देश के नेता राहुल गांधी के ऊपर समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता द्वारा की गई इस अमर्यादित टिप्पणी से देश के करोड़ों लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं। मुझे विश्वास है अखिलेश यादव ऐसी निम्न स्तरीय बातों का समर्थन नहीं करेंगे। इस तरह के शब्दों से भाजपा को मज़बूत करने का काम कर रहे लोगों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।"

अचानक ढीले पड़े अखिलेश

कांग्रेस को दबोचने के लिए सपा हाई वोल्टेज ड्रामा करना चाहती थी, लेकिन 21 अक्टूबर 2023 की शाम अचानक समाजवादी पार्टी के मुखिया का रुख नरम हो गया। कांग्रेस का मैसेज आने के बाद आईपी सिंह ने 'एक्स' पर किया गया अपना ट्वीट हटा लिया। इंडिया गठबंधन को लेकर सपा और कांग्रेस में चल रही तनातनी के बीच बीच हरदोई में मीडिया से बात करते हुए अखिलेश यादव ने कहा, "कांग्रेस के एक बड़े नेता ने किसी के माध्यम से उनके पास संदेश भिजवाया है। वह कह रहे हैं तो बात माननी पड़ेगी। एक बात यह जोड़ना चाहता हूं कि अगर गठबंधन नहीं करना था, तो हमें क्यों बुलाया गया, हमें इसका जवाब कोई तो दे दे? मध्य प्रदेश में सपा के लोगों को टिकट के लिए पूरी रात बैठाया गया। कांग्रेस के लोग बोल सकते थे कि उन्हें सपा से गठबंधन नहीं करना है। हमें धोखे में रखा गया और हमारे साथ साजिश और षड्यंत्र शुरू कर दिया गया। वो हमसे साफ-साफ कह सकते थे कि हम अपनी तैयारी करें, जिससे बीजेपी को पराजित कर सकें। राम मनोहर लोहिया और नेताजी पहले ही कह चुके हैं कि हैं हम कांग्रेस के साथ तब आएंगे जब वह बहुत ज्यादा कमजोर हो चुकी होगी।"

अखिलेश यहीं नहीं रुके। इशारों में पूर्व सीएम कमलनाथ और अजय राय पर प्रहार करते हुए कहा, "कुछ लोग बुजुर्ग होते हैं और उन पर काम का लोड ज्यादा होता है। कई बार कुछ तल्ख बातें निकल जाती हैं। सियासत में यह नई बात नहीं है। हर कोई जानता है कि जो लोग खिसियाते हैं, वह गलत होते हैं। जो लोग अपनी कमी छुपाना चाहते हैं, वह इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करते हैं। मैं जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूं कि मैं भी कभी गुस्से में होता हूं तो भगवान मुझे इतनी ताकत दें कि किसी के पिता और मां-बहन पर टिप्पणी नहीं करूं। एक बार मुख्यमंत्री जी ने भी ऐसी बात कही थी तब हमने उन्हें संस्कारों की याद दिलाई थी।" इस बीच अखिलेश ने बीजेपी पर भी निशाना साधा और कहा, "देश के गृहमंत्री विपक्ष को कमजोर करने के लिए प्रोपेगेंडा फैला रहे हैं। मैं उनका जवाब नहीं देना चाहता। जानता हूं कि वह बहुत जल्द खिसिया जाते हैं और किसी भी सीमा तक चले जाते हैं।"

सपा-कांग्रेस में छिड़े घमासान के बीच बीजेपी भी कूद गई। प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने सपा मुखिया पर तंज कसते हुए कहा, "अखिलेश यादव को कुछ भी कहने का अधिकार नहीं है। जिस पार्टी की सरकार में महिलाओं के बारे में गलत बातें बोली जाती हैं, कारसेवकों पर गोलियां चलवाई जाती हैं, सत्ता में आने पर जिस पार्टी के नेता गुंडागर्दी की सभी सरहदें लांघ जाते हैं, उनके किसी तरह की मर्यादा की उम्मीद नहीं की जा सकती है। सियासत में भाषाई मर्यादा बनी रहनी चाहिए।" मौका देखकर यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य एमपी के पूर्व सीएम कमलनाथ को नसीहत देने लगे। कमलनाथ पर निशाना साधते हुए उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा-"समाजवादी पार्टी के मुखिया हैं अखिलेश यादव। उनको ‘अखिलेश-वखिलेश’ कहना उचित नहीं है। उनका नाम सम्मान से लिया जाना चाहिए।" 

राहुल-प्रियंका से मिलते तो बात बन जाती

कांग्रेस और सपा के बीच छिड़ी जुबानी जंग की हकीकत जानने के लिए न्यूज़क्लिक ने सियासत के जानकारों से बात की। बनारस के दैनिक अखबार "जनवार्ता" के संपादक डा. राजकुमार सिंह कहते हैं, "अखिलेश समझदार नेता हैं। उन्हें एमपी में सीट चाहिए थी तो सीधे राहुल अथवा प्रियंका गांधी से बात करनी चाहिए थी। वह उन नेताओं से बात करने लगे जो अपने लोगों को ही टिकट नहीं दिला पाए। कांग्रेस में प्रत्याशियों का निर्णय कोई अकेला आदमी नहीं करता। अंतिम फैसला वर्किंग कमेटी करती है। कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि इंडिया गठबंधन साल 2024 के लोकसभा के आम चुनाव के लिए हुआ है, असेंबली चुनाव के लिए नहीं। अखिलेश अभी तक कांग्रेस को हलके में ले रहे हैं। कांग्रेस में वन मैन शो वाली स्थिति नहीं है। अखिलेश ने कांग्रेस को अंडर इस्टीमेट किया। वो कांग्रेस को अर्दब में लेना चाहते थे। वह अजय राय जैसे वरिष्ठ नेता के खिलाफ अपमानजक टिप्पणी करके ट्रैक से उतर गए। अजय राय खुद में मजबूत और धुरंधर नेता हैं। पूर्वांचल में भूमिहार और पश्चिम में त्यागी समुदाय उन्हें खुला समर्थन दे रहा है। भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस जिस मजबूती के साथ अपना जनाधार बढ़ा रही है उस सियासत को समझने पाने में बजाय अखिलेश बचपना दिखा रहे हैं। यह स्थिति सपा सुखद नहीं मानी जा सकती है।"

वरिष्ठ पत्रकार डा. राजकुमार यह भी कहते हैं, "सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव कद्दावर नेता हैं। वह छोटी-छोटी बातों पर तैश में नहीं आते। कोई बड़ा कारण जरूर है, जिससे वह उखड़े हुए हैं। बहुत दिनों से सुनगुन चल रहा था कि कांग्रेस बसपा के साथ गठबंधन करने पर बात कर रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती चाहती है कि कांग्रेस सपा को छोड़कर आरएलडी और उनके साथ तालमेल करे। कांग्रेस सभी दलों को साथ लेकर यूपी में चुनाव लड़ना चाहती है, जिसके चलते वह सभी से समान दूरी बनाए हुए है। अखिलेश को संयम बरतना चाहिए। सपा प्रवक्ताओं ने राहुल के खिलाफ जो शर्मनाक बयान दिया है उसके गंभीर नतीजे सामने आ सकते हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सपा को छोड़कर बीएसपी व रालोद से तालमेल करती है तो समाजवादी पार्टी यूपी में एक भी सीट जीत पाएगी, इसकी गुंजाइश कम है।"

"जहां तक मध्य प्रदेश की बात है तो वहां कांग्रेस बीजेपी से भी मजबूत पार्टी है। कांग्रेस यह नहीं चाहती कि कोई क्षेत्रीय दल वहां पनपे। अच्छे आचरण नहीं करने की वजह से बीजेपी सपा के माथे पर आरोप जड़ती रही है। अखिलेश के चिरकुट वाले बयान के बाद सपा प्रवक्ताओं द्वारा अभद्र भाषा में किए गए ट्वीट ने उनके पुराने चरित्र को जगजाहिर कर दिया है। राजनीति में जो लोग भाषा पर संयम नहीं रखते, उन्हें उसका खामियाजा जरूर भुगतना पड़ता है। सियासत में कोई किसी का स्थायी दुश्मन नहीं होता है। सत्ता के लिए बीजेपी पीडीपी से गठजोड़ कर सकती है तो कभी भी किसी के साथ तालमेल हो सकता है। राजनीतिक दलों को सभी के लिए अपने दरवाजे हमेशा खुले रहने चाहिए।"

एमपी बहाना है, यूपी निशाना है

यूपी की राजनीति की समय-समय पर गहरी पड़ताल करते रहने वाले पूर्वांचल की माटी से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक अमरेंद्र राय सपा-कांग्रेस के बीच उपजे मतभेदों पर सटीक जवाब देते हैं। वह कहते हैं, "सपा-कांग्रेस के बीच सारा फसाद एमपी की सीटों को लेकर है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वहां छह-सात सीटें ऐसी हैं जहां सपा मजबूती से लड़ती रही है, लेकिन ये पुरानी बातें हैं। सपा को लग रहा था कि कांग्रेस उन्हें इतनी सीटें दे देंगी। कांग्रेस नहीं चाहती है कि सपा एमपी में घुसे और चुनाव जीतने के बाद उसके विधायक बिक जाएं। कांग्रेस चुप्पी साधे रही। इस बीच दबाव बनाने के लिए अखिलेश ने एमपी में अपने 33 प्रत्याशी घोषित कर दिए। एमपी की कमान कमलनाथ के हाथ में है। उन्होंने सपा प्रत्याशियों को बुलाया और बात की। उनकी सूची लेकर अपने पास रख ली, लेकिन बोला कुछ भी नहीं।"

अमरेंद्र कहते हैं, "सपा को पता है कि कांग्रेस के समर्थन के बगैर एमपी में किसी भी सीट पर चुनाव जीत पाना आसान नहीं है। कांग्रेस पर दबाव बनाने के लिए अखिलेश यादव ने लखनऊ में दो मर्तबा प्रेस कांफ्रेंस की। उन्होंने मीडिया में कई ऐसी बचकानी बातें कह दी जैसा कोई नहीं करता। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय का गुनाह सिर्फ इतना था कि उन्होंने अखिलेश की बातों का काउंटर किया। अखिलेश यादव क्षेत्रीय दल सपा के अध्यक्ष हैं तो अजय राय यूपी जैसे प्रदेश में कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष हैं। कांग्रेस की कई राज्यों में सरकारें हैं और आगामी चुनाव के बाद उसकी स्थिति और भी ज्यादा मजबूत होने के आसार हैं।"

"मध्य प्रदेश चुनाव की सीटों पर फसाद यूपी में लोकसभा सीटों के लिए अभी से दबाव बनाने का प्रयास भर है। यूपी में गठबंधन को लेकर कांग्रेस के पास दो स्थितियां हैं। आरएलडी और कांग्रेस चाहती है कि मायावती को इंडिया गठबंधन में शामिल हों। मायावती भी चाहती हैं कि इंडिया गठबंधन के साथ समझौता हो, क्योंकि उनके दसों सांसद यह चिंता जता चुके हैं कि अगर वो अलग से लड़ते हैं तो कोई सीट नहीं जीत पाएंगे। इन बातों से मायावती भी वाकिफ हैं, क्योंकि साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा सिर्फ एक ही सीट जीत पाई थी। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा का सपा से तालमेल हुआ तो बड़ी पार्टी होने के बावजूद सपा सिर्फ पांच सीट ही जीत पाई। जो सीटें जीती वह सभी अखिलेश के पारिवारिक लोगों की थीं। गठबंधन का ज्यादा फायदा मायावती को हुआ और उनके दस सांसद चुनाव जीत गए। साल 2019 में बसपा थोड़ी मजबूत स्थिति में थी और अब तो उसकी हालत बहुत ज्यादा कमजोर हो गई है।"

नहीं झुके अखिलेश तो साफ हो जाएगी सपा

आंकड़ों का खाका खींचते हुए अमरेंद्र कहते हैं, "यूपी में पहले बसपा का वोट 20 फीसदी हुआ करता था जो खिसक कर अब 13 फीसदी पर आ गया है। बसपा से जुड़े नेताओं का मानना है कि मौजूदा हालात में उनकी पार्टी अकेले लड़ेंगी तो वोट प्रतिशत घटकर 7 से 8 फीसदी पर पहुंच जाएगा। अगर बसपा का कांग्रेस, सपा, आरएलडी से समझौता हो गया तो मायावती फिर अपना खोया हुआ जनाधार वापस पा जाएंगी। वह इंडिया गठबंधन में शामिल होने के लिए छटपटा रही  हैं, लेकिन उन्हें ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स का खौफ भी सता रहा है। उम्मीद की जा रही है कि वह अपने जन्मदिन पर पत्ते खोल सकती हैं, तब तक लोकसभा के आम चुनाव बहुत करीब आ चुके होंगे। खौफ फैलाने वाली जांच एजेंसियां भी बहुत ज्यादा प्रभावी नहीं रह जाएंगी। तब मायावती के विचार बदलेंगे और समझौते की बात पर आगे बढ़ेगी। मायावती के रिश्ते अखिलेश से ज्यादा खराब हो गए हैं, इसलिए वह यह नहीं सोच पा रही हैं कि सपा के साथ मिलकर अगला लोकसभा चुनाव लड़ा जा सकता है। बसपा भले ही यह घोषणा कर रही हो कि हम अकेले चुनाव लड़ेंगे, लेकिन वह अंदरखाने आरएलडी और कांग्रेस के संपर्क में है। वह चाहती हैं कि और कुछ न हो तो कम से कम आरएलडी, बसपा व कांग्रेस से मिलकर चुनाव लड़ें। अगर कोई ऐसा रास्ता निकलता है कि जिसमें सपा भी शामिल हो जाए तो मायावती को और भी ज्यादा खुशी होगी।"

"कांग्रेस चाहती है कि सपा, बसपा और आरएलडी इंडिया गठबंधन में शामिल हो जाएं, ताकि यूपी में बीजेपी को आसानी से हराया जा सके। भाजपा को मात देने के लिए उसे सपा का साथ चाहिए। कांग्रेस इस व्यापक दृष्टिकोण पर काम कर रही है। राहुल गांधी की देश जोड़ो यात्रा के बाद अल्पसंख्यक समुदाय कांग्रेस से खासतौर पर जुड़ाव महसूस कर रहा है। यह बात अखिलेश और सपा नेताओं को चिंता में डाले हुए है। अभी तक सपा ही मुस्लिम वोटों की एकमात्र चैंपियन थी। कांग्रेस के मजबूती से उभरने और जनहित के तमाम मुद्दों पर अखिलेश यादव के चुप्पी साधने से मुस्लिम समुदाय धीरे-धीरे सपा से दूरी बनाने लगा है। अखिलेश को यह भी डर सता रहा है कि अगर कांग्रेस ने बसपा से गठजोड़ किया तो मुस्लिम वोट सपा को छोड़कर बसपा-कांग्रेस गठबंधन के साथ जा सकता है। ऐसे में समाजवादी पार्टी को साल 2019 में जीती पांच सीटें भी बरकरार रख पाना कठिन हो जाएगा।"

वरिष्ठ पत्रकार अमरेंद्र कहते  हैं, "सपा मुखिया अखिलेश यादव पुरानी सोच पर कायम है कि कांग्रेस यूपी में सिर्फ ढाई फीसदी वोटों वाली पार्टी रह गई है। अखिलेश को एहसास है कि स्थितियां अब पहले जैसी नहीं हैं। राहुल गांधी की उभरी नई छवि के चलते यूपी में आम वोटरों में कांग्रेस के प्रति रुझान बढ़ा है। अखिलेश कांग्रेस को ज्यादा सीटें नहीं देना चाहते हैं, जबकि उन्हें इस बात का डर भी सता रहा है कि बदली परिस्थितियों में कांग्रेस उनके साथ मजबूती से बारगेनिंग करेगी। कांग्रेस को लगता है कि उसकी छवि 2009 वाली स्थिति में पहुंच गई है। उस समय कांग्रेस यूपी की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। वही माहौल कांग्रेस के लिए फिर से बन गया है। अगर सपा, बसपा, आरएलडी और कांग्रेस से समझौता नहीं करेंगे और समझता कांग्रेस, आरएलडी व बसपा का होता है तो तीनों दल मिलकर बीजेपी को भले नहीं हरा पाएं, लेकिन अपनी सीटें काफी हद तक बढ़ा ले जाएंगे। घाटे में रहेगी तो सिर्फ समाजवादी पार्टी। अगर सपा इंडिया गठबंधन में शामिल होती है तो सभी फायदे में रहेंगे और बीजेपी को हराना काफी हद तक आसान हो जाएगा।"

"अखिलेश की अभी तक सोच यह है कि अगर यूपी में सपा, कांग्रेस और आरएलडी मिलकर चुनाव लड़ेंगे तो तीन-चार सीटें रालोद को देंगे। सात-आठ सीटें कांग्रेस के खाते में जाएंगी और बाकी सभी सीटों पर अकेले सपा और अन्य दल लड़ेंगे। हाल में हुए सभी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार है। कार्नाटक में कांग्रेस ने बीजेपी को बुरी तरह से धोया है। बाकी जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, उनमें भी कांग्रेस की स्थिति बहुत मजबूत मानी जा रही है। अभी तक जितने भी सर्वे आए हैं उसमें यह बात तस्दीक हो चुकी है। इसीलिए कांग्रेस अभी यूपी और अन्य राज्यों में सीटों के बंटवारे को लेकर बात नहीं कर रही है। अखिलेश को पता है कि पांचों राज्यों में बेहतर प्रदर्शन के बाद कांग्रेस उसी आधार पर यूपी में सीटों की डिमांड करेगी। तब कांग्रेस की डिमांड पूरी करना अखिलेश यादव की मजबूरी होगी। डिमांड पूरी नहीं करेंगे तो बसपा, कांग्रेस और आरएलडी एक होकर चुनाव लड़ेंगे और उसका सबसे बड़ा खामियाजा अखिलेश को भुगतना होगा।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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