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पुतिन ने यूक्रेन में छाए युद्ध के कोहरे को हटाया

मुख्य बात यह है कि पश्चिम, यूक्रेन को रूस को निशाना बनाने वाली एक भू-राजनीतिक परियोजना के रूप में हमेशा से देखता रहा है।
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व्लादिमीर पुतिन-छवि सौजन्य: विकिमीडिया कॉमन्स

यूक्रेन के खिलाफ रूस का विशेष सैन्य अभियान अब एक नए दौर में दाखिल हो रहा है। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 19 दिसंबर को रूसी रक्षा मंत्रालय बोर्ड की एक बैठक जो राष्ट्रीय रक्षा नियंत्रण केंद्र में हुई को संबोधित करते हुए अपने ऐतिहासिक भाषण में युद्ध पर छाए कोहरे को हटा दिया और इशारा किया कि आगे युद्ध में क्या घटने की उम्मीद की जा सकती है।

इस छद्म युद्ध में रूस को बढ़त हासिल है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका एक नए नेरेटिव फिर से गढ़ने के लिए संघर्ष कर रहा है। पुतिन के लिए, यह विजय का पल है जहां उनके पास यूक्रेन में युद्ध के कोहरे का फायदा उठाने का कोई कारण नहीं है, जबकि राष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए, युद्ध का कोहरा आगे के महत्वपूर्ण चुनावों में भ्रम फैलाने के उपयोगी उद्देश्य को पूरा करता रहेगा। क्योंकि वे सत्ता में अपने लिए दूसरा कार्यकाल चाहते हैं। 

पुतिन के भाषण में उत्साहपूर्ण मूड झलक रहा था। रूसी अर्थव्यवस्था ने न केवल 2022 से पहले की अपनी गति हासिल कर ली है, बल्कि साल के अंत तक 3.5 प्रतिशत की विकास दर की ओर बढ़ रही है, जो कि इसके लाखों नागरिकों की बढ़ती आय और क्रय शक्ति और जीवन स्तर में वृद्धि को चिह्नित करती है। बेरोज़गारी अब तक के सबसे निचले स्तर पर है और रूस ने पश्चिमी प्रतिबंधों और अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में इसे अलग-थलग करने के प्रयासों को पीछे छोड़ दिया है।

पुतिन के भाषण का सार यह है कि यह एक ऐसा युद्ध है जिसे रूस ने कभी नहीं चाहा था लेकिन अमेरिका ने इसे उस पर थोप दिया था। पुतिन ने पिछले साल फरवरी में रूसी सैन्य अभियान के पांच स्पष्ट लक्ष्यों को सूचीबद्ध किया था – जिसमें रूसी आबादी की सुरक्षा; यूक्रेन का नाज़ीकरण ख़त्म करना; यूक्रेन का विसैन्यीकरण करना; कीव में एक मैत्रीपूर्ण शासन लाने का प्रयास करना; और, यूक्रेन को नाटो में शामिल न होने देना शामी था। निःसंदेह ये लक्ष्य आपस में जुड़े हैं। अमेरिका और उसके सहयोगी इसे जानते हैं, लेकिन अन्यथा दिखावा करते रहते हैं कि उनका ध्यान छद्म युद्ध में सैन्य जीत और रूस में शासन परिवर्तन पर केंद्रित है।

पुतिन का संदेश यह है कि युद्ध पर किसी भी नए पश्चिमी नेरेटिव का हश्र पिछले वाले जैसा ही होना तय है, और यह हश्र तब तक जारी रहेगा जब तक कि उन्हे एहसास न हो जाए कि रूस को सेना के दम पर हराया नहीं जा सकता है और यह तब तक लड़ेगा जब तक कि उसके वैध हितों को मान्यता नहीं दी जाती है।

मामले की जड़ यह है कि पश्चिम हमेशा से यूक्रेन को रूस को निशाना बनाने वाली एक भू-राजनीतिक परियोजना के रूप में देखता रहा है। आज, हार सामने खड़ी होने के बावजूद, पश्चिम की प्राथमिकता रूस को वाशिंगटन या ट्रान्साटलांटिक गठबंधन की ओर से किसी भी भूराजनीतिक या रणनीतिक दायित्वों को निभाए बिना रूस को युद्धविराम के लिए सहमत होने पर मजबूर करने की है - जो, वास्तव में, एक पस्त यूक्रेनी सेना के को फिर से खड़ा होने का दरवाजा खोलने जैसा है और पिछले दरवाजे से कीव के नाटो में शामिल होने का रास्ता देना है।

यह कहना काफी है कि पश्चिम की रूस-विरोधी नीति को आगे बढ़ाने के लिए यूक्रेन को मोहरे के रूप में इस्तेमाल करने का बदनाम एजेंडा अभी भी मौजूद है। लेकिन मॉस्को दूसरी बार अमेरिका के जाल में नहीं फंसेगा, जो युद्ध का एक ओर जोखिम उठाना होगा जो नाटो के लिए उपयुक्त समय पर भड़क सकता है।

अप्रत्याशित रूप से, पुतिन के भाषण में किसी भी सैन्य जरूरत को पूरा करने के लिए रूस के रक्षा उद्योग को पुनर्जीवित करने पर बहुत ध्यान दिया गया है। लेकिन अपने भाषण के अंत में पुतिन ने इन परिस्थितियों में रूस के राजनीतिक-सैन्य विकल्पों पर भी चर्चा की है।

सैन्य पक्ष देखें तो, स्पष्ट रूप से, रूस यूक्रेनी सेना को एक रणनीतिक गतिरोध में धकेलने के अपने तार्किक अंत तक आकस्मिक युद्ध को आगे बढ़ाएगा, जिसका अर्थ होगा फ्रंटलाइन पर खुद की सामरिक रिकवरी करना, यूक्रेन की आर्थिक क्षमता को कम करना, सैन्य नुकसान पहुंचाना, और रूस के अपने रक्षा उद्योग को इस पैमाने पर बढ़ावा देना कि नाटो के किसी भी सैन्य साहसिक कार्य के मुकाबले बलों के संतुलन को बनाए रखा जा सके।

अंतिम विश्लेषण में, पुतिन ने जोर देकर कहा कि, रूस "विशाल ऐतिहासिक इलाकों, आबादी वाले रूसी इलाकों" को फिर पाने के लिए दृढ़ संकल्पित है, जो सोवियत काल के दौरान बोल्शेविकों ने यूक्रेन को हस्तांतरित कर दिए थे। हालाँकि, उन्होंने यूक्रेन (नीपर के पश्चिम) की "पश्चिमी भूमि" के संबंध में एक महत्वपूर्ण अंतर बताया जो द्वितीय विश्व युद्ध की विरासत है, जिन पर पोलैंड, हंगरी और रोमानिया के दावे हो सकते हैं, जो कम से कम इस मामले में नज़र आते है क्योंकि रैह की हार के बाद पोलैंड "पूर्वी जर्मन भूमि, डेंजिग कॉरिडोर और स्वयं डेंजिग" के हस्तांतरण से भी जुड़ा हुआ है।

पुतिन ने इस बात पर ध्यान दिया कि "जो लोग वहां (पश्चिमी यूक्रेन) रहते हैं - उनमें से कई, कम से कम, मैं यह निश्चित रूप से जानता हूं, 100 प्रतिशत - वे अपनी ऐतिहासिक मातृभूमि पर लौटना चाहते हैं। जिन देशों ने इन इलाको को खो दिया है, मुख्य रूप से पोलैंड, उन्हें वापस पाने का सपना देख रहे हैं।”

दिलचस्प बात यह है कि पुतिन ने यूक्रेन और उसके पूर्वी पड़ोसियों (जो सभी नाटो देश हैं) के बीच उत्पन्न होने वाले किसी भी इलाकाई विवाद से अपना पल्ला झाड़ लिया है। आगे चलकर, यह अमेरिका के लिए परेशानी का सबब बनने जा रहा है। हाल ही में, रूस के खुफिया प्रमुख सर्गेई नारीश्किन ने एक शक्तिशाली रूपक का इस्तेमाल करते हुए चेतावनी दी थी कि अमेरिका को यूक्रेन में "दूसरे वियतनाम" का सामना करना पड़ सकता है जो उसे लंबे समय तक परेशान करेगा।

जैसा कि पुतिन ने कहा, और जिसका सार इस प्रकार है: “इतिहास सब को उनकी औकात बता देगा। हम (मास्को) हस्तक्षेप नहीं करेंगे, लेकिन जो हमारा है उसे हम नहीं छोड़ेंगे। हर किसी को इसके बारे में पता होना चाहिए – यूक्रेन, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में उन लोगों को जो रूस के खिलाफ आक्रामक बने हुए हैं। अगर वे बातचीत चाहते हैं तो उन्हें ऐसा करने दिया जाएगा। लेकिन हम इसे अपने हितों के आधार पर ही करेंगे।”

पुतिन ने निष्कर्ष अपर आते हुए कहा कि यदि अंतिम लक्ष्य सैन्य कौशल ही है, तो यह दर्शाता है कि रूस क्यों एक मजबूत अर्थव्यवस्था और बहु-जातीय लोगों के समर्थन के साथ  "मजबूत है, विश्वसनीय है, अच्छी तरह से सुसज्जित और उचित रूप से प्रेरित सशस्त्र बलों" के साथ तैयार क्यों है।”

आने वाले महीनों में रूसी सैन्य अभियानों के पश्चिम एमिन नीपर की ओर बढ़ने की प्रबल संभावना है, जो पिछले साल रूसी संघ में शामिल हुए चार नए इलाकों - लुहान्स्क, डोनेट्स्क, ज़ापोरोज़िया और खेरसॉन से भी आगे है। यदि कोई समाधान न नहीं होता है तो रूस यूक्रेन के उन दक्षिणी इलाकों को एकतरफा "मुक्त" करने का विकल्प चुन सकता है जो ऐतिहासिक रूप से रूस का हिस्सा थे, जिसमें संभवतः ओडेसा और संपूर्ण काला सागर तट, या डोनबास इलाके के उत्तर में खार्कोव शामिल होंगे।

रूस उम्मीद कर रहा है कि निकट भविष्य में यूक्रेनी सेना की युद्ध क्षमताएं तेजी से कम हो जाएंगी और नई भर्तियां मिलने में पहले से ही कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। कहने का मतलब यह है कि, आने वाले सालों के दौरान, यूक्रेनी सेना के भारी नुकसान और पश्चिमी सहायता में गिरावट के कारण मोर्चे पर बलों का संतुलन बदल जाएगा, और, कुछ बिंदु पर आकार, यूक्रेन की सुरक्षा चरमराने लगेगी।

सैन्य अभियानों में रूस की हालिया बढ़त - जैसे, सोलेडर, अर्टोमोव्स्क (बखमुत), अवदीवका, मैरींका, आदि - पहले से ही दोनों सेनाओं के बीच बलों के संतुलन में बदलाव की गवाही दे रहे हैं। यह बदलाव और तेज होगा क्योंकि रूस का सैन्य-औद्योगिक गठजोड़ बेहतर ढंग से काम कर रहा है और रूस बड़े पैमाने पर नए प्रकार के हथियारों को तैनात कर रहा है, जैसे कि ग्लाइडिंग विमानन बम, जिसने संघर्ष में रूसी वायु सेना की भूमिका को बदल दिया है।

हर दिन दर्जनों भारी हवाई बम गिराए जाते हैं और इसी तरह, आधुनिक बैराज गोला-बारूद और सटीक-निर्देशित गोला-बारूद सहित कुछ अन्य प्रणालियों के इस्तेमाल में वृद्धि हुई है। टी-90एम टैंक और नए प्रकार के हल्के बख्तरबंद वाहन भी युद्ध के मैदान में दिखाई दिए हैं।

इसकी तुलना में, यूक्रेन को पश्चिम की सीमित उत्पादन क्षमताओं के कारण हथियारों की आपूर्ति में कमी का सामना करना पड़ रहा है, जहां निकट अवधि में औद्योगिक पैमाने पर स्थायी उत्पादन वृद्धि संभव नहीं है। इस बीच, मध्य पूर्व (पश्चिम एशिया) संकट और ताइवान के आसपास तनाव अमेरिका के लिए प्रमुख ध्यान हटाने वाले बन गए हैं।

इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, अगले साल के अंत तक यूक्रेन के खिलाफ बलों के संतुलन में एक निर्णायक बदलाव पूरी तरह से संभव है, जिससे रूस की शर्तों पर संघर्ष का अंत हो जाएगा या हो सकता है।

एमके भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार निजी हैं। 

साभार: इंडियन पंचलाइन

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