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राजस्थान: 10 ज़िलों की आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का पाली में जमावड़ा, सरकार को चेताया

आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने सरकारको ये चेतावनी भी दी है कि अगर समय रहते उनकी मांगों पर विचार नहीं किया जाता, तो आने वाले चुनावी समय में वे सरकार को आईना दिखा देंगी।
Anganwadi

राजस्थान में बीते लंबे समय से आंगवाड़ी कार्यकर्ता अपने स्थाईकरण की मांग को लेकर सरकार से गुहार लगाती रही हैं। ऐसे में इस चुनावी साल के बीच ये सभी महिला कार्यकर्ता अब अपनी मांगों को लेकर सरकार से आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं।

बीते रविवार, 14 मई को पाली के बांगड़ स्टेडियम में दस जिलों की लगभग सात हज़ार कार्यकर्ता एकत्र हुईं और उन्होंने प्रदेश की अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ रोष जताया।

बता दें कि बीते अप्रैल के महीने में भी इन महिला कार्यकर्ताओं ने आंगनवाड़ी परिवार कर्मचारी संगठन के बैनर तले जैसलमेर में एक बड़ी बैठक आयोजित कर सरकार को अपनी पांच सूत्रीय मांगों का ज्ञापन सौंपा था। साथ ही सरकार को ये चेतावनी भी दी थी कि अगर समय रहते उनकी मांगों पर विचार नहीं किया जाता, तो आने वाले समय में वे सरकार को आईना दिखा देंगी। इन कार्यकर्ताओं ने राज्य की कांग्रेस सरकार पर वादाखिलाफी के आरोप भी लगाए थे।

संगठन से जुड़े रतनलाल चौधरी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि साल 2018 में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में अन्य विभागों के साथ ही सभी आंगनवाड़ी कर्मचारियों को भी नियमित करने का लिखित वादा किया था। लेकिन अब जब सत्ता में आए गहलोत सरकार को लगभग साढ़े चार साल हो गए, तो उन्होंने अन्य सभी विभागों पर विचार किया, उन्हें नियमित किया लेकिन आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की किसी ने कोई सुध नहीं ली, जो चिंता का विषय है।

रतनलाल चौधरी के मुताबिक रविवार को पाली में 10 जिलों की करीब सात हज़ार से अधिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एकत्रित हुईं और उन्होंने सरकार के समक्ष एक बार फिर अपनी स्थायीकरण की मांग को रखा। शिक्षा, चिकित्सा विभाग से लेकर महिला सशक्तिकरण तक हर क्षेत्र में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अपना योगदान दे रही हैं। इतना ही नहीं आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने कोरोना काल में भी अपनी सेवाएं लोगों तक पहुंचाई हैं, इसलिए उनका आर्थिक शोषण जल्द से जल्द बंद होना चाहिए। और जीपीएस जैसे ऑनलाइन सिस्टम के जाल से भी इन्हें मुक्ति मिलनी चाहिए।

क्या है इन आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की मांगें?

आंगनवाड़ी कर्मचारियों की पहली और सबसे जरूरी मांग है कि सभी आंगनवाड़ी सदस्य (आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी सहायिका, आंगनवाड़ी ग्राम साथिन, आंगनवाड़ी आशा सहयोगिनी) चारों वर्ग के कर्मचारियों को परमानेंट सरकारी सेवा में नियुक्त किया जाए।

रिटायरमेंट के बाद इन्हें सम्मानजनक ग्रेजुएटी राशि मिले। साथ ही हर महीने पेंशन की सुविधा भी मिले।

शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग के कैलेण्डर की छुट्टियों की तरह आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओ के लिए कैलेण्डर जारी हो। उन्हें मेडिकल, भत्ते और प्रमोशन मिले।

इसके अलावा सरकार इन्हें जब तक स्थायी नहीं करती, इन्हें प्रति महीना उचित मासिक वेतनमान दिया जाए।

गहलोत सरकार पर वादाख़िलाफ़ी का आरोप

पाली में कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आंगनवाड़ी परिवार कर्मचारी संगठन राजस्थान की प्रदेशाध्यक्ष प्यारी ने कहा कि वर्तमान समय में आंगनवाड़ी महिला कर्मचारियों के बारे में न तो उच्चाधिकारियों को चिंता है न ही सरकार को। इसलिए अब इस चुनावी साल में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को ही सरकार को नींद से जगाना होगा। क्योंकि अगर अभी भी सरकार हमारी सुध नहीं लेती तो, प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक आंगनवाड़ी केंद्र पर 4 आंगनवाड़ी कार्यकर्ता 4000 के बराबर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर तख्तापलट में कोई कसर नहीं छोडेंगी।

संगठन की वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष बबीता ने मंच से कहा कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता जो बच्चे के जन्म से लेकर 6 वर्ष तक के होने तक माँ के समान उसके लिए अपना जीवन समर्पित कर रही हैं और राज्य की योजनाओं को जनता तक पहुंचा रही हैं, राज्य सरकार उनकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है। आंगनवाड़ी कर्मचारियों को स्थायी करने और सरकारी कर्मचारी बनाने जैसी मांगें सालों से की जा रही हैं। लेकिन सरकार के आला अधिकारी और जनप्रतिनिधि वादा करने के बावजूद उनकी नहीं सुन रहे हैं। इससे उन्हें महंगाई के इस जमाने में आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। और अब ये सरकार के पास आखिरी मौका है कि वो अपने वादे को पूरा करे, नहीं तो कांग्रेस सरकार के महिला सश्कितकरण के दावे को खोखला ही समझा जाएगा।

गौरतलब है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सरकार की स्वास्थ्य एवं महिला बाल विकास योजनाओं को धरातल पर उतारने में अहम योगदान देती हैं। इन कार्यकर्ताओं के मुताबिक ये सालों से बहुत कम मानदेय पर कार्य कर रही हैं और इनके समानांतर शैक्षणिक योग्यता रखने वाले लोगों को शिक्षा समेत अन्य विभाग में नियमित कर दिया गया है। लेकिन इन्हें मात्र आठ हजार से नौ हज़ार रुपये में गुजारा करना पड़ रहा है। ऐसे में इन लोगों ने सरकार को एक बार फिर चेतावनी दी है कि अगर इनकी मांगे नहीं सुनी जातीं, तो ये आगामी विधानसभा चुनावों का बहिष्कार भी करने को तैयार हैं।

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