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राजस्थान: बालमुकुंद आचार्य क्या हिजाब मामले को फिर से हवा देना चाहते हैं?

हिजाब का मुद्दा साल 2022 में उस वक्त पहली बार सुर्खियों में आया था जब कर्नाटक की पिछली बीजेपी सरकार ने हिजाब प्रतिबंधित करने का आदेश दिया था।
Hijab
फोटो साभार : आउटलुक

राजस्थान के हवा महल से बीजेपी विधायक बालमुकुंद आचार्य इस वक्त पूरे देश की मीडिया सुर्खियों में छाए हुए हैं। इसकी प्रमुख वजह उनके द्वारा एक सरकारी स्कूल में दिया गया हिजाब विरोधी बयान और ‘जय श्री राम’ का नारा है, जिसे भड़काऊ बताया जा रहा है। बालमुकुंद के इस बयान को लेकर कुछ मुस्लिम छात्रों ने जयपुर के सुभाष चौक पुलिस स्टेशन का घेराव किया और मांग की कि विधायक स्कूलों का माहौल ख़राब न करें और अपने किए की माफ़ी मांगें।

आपको बता दें कि 29 जनवरी, सोमवार की सुबह विधायक बालमुकुंद ने जयपुर के गंगापोल इलाक़े में राजकीय बालिका माध्यमिक विद्यालय का दौरा किया। इसके बाद एक वीडियो आया, जिसमें वो मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने पर स्कूल प्रशासन की खिंचाई कर रहे हैं। उन्हें स्कूल में घूमते और छात्रों को ‘जय श्री राम’ के नारे लगवाते हुए भी देखा जाता है। फिर एक और वीडियो आया, जिसमें वो स्कूल अधिकारियों से कह रहे हैं कि स्कूल में हिजाब नहीं पहनना चाहिए। जो पहने, उसे रोकना चाहिए।

इसके बाद एक तीसरा वीडियो भी आया है, जिसमें वो मंच से 'भारत माता की जय' और 'सरस्वती माता की जय' के नारे लगाते हुए दिख रहे हैं। भाषण के दौरान कहते हैं, "कुछ बच्चे नहीं बोल रहे हैं। क्या बात है? मना किया गया है क्या?" इसके बाद खबर ये है कि बालमुकुंद आचार्य ने लड़कियों के हिजाब पहनने पर आपत्ति जताई, स्कूल प्रशासन को हड़काया, भाषण दिया। जिसका समर्थन बाद में कैबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीणा भी करते नज़र आए। मीणा ने कहा कि वो मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा से बात करेंगे, कि सरकारी और निजी स्कूलों में सिर ढकने पर प्रतिबंध लगाया जाए।

लड़कियों का क्या कहना है?

प्रदर्शन कर रही लड़कियों ने मीडिया से कहा, "विधायक बालमुकुंद आचार्य वार्षिक समारोह में भाग लेने के लिए हमारे स्कूल आए थे। हमने उनका स्वागत किया। हमें बताया गया कि हिजाब की अनुमति नहीं है। उन्होंने कहा कि हिजाब पहनकर लड़कियां कैसे सांस ले सकती हैं। उन्होंने कहा- हिजाब को स्कूल में अलाऊ नहीं करेंगे। उन्हें माफी मांगनी चाहिए।"

मामले के तूल पकड़ते ही बालमुकुंद आचार्य की सफाई भी सामने आई। उन्होंने कहा कि वो सिर्फ स्कूल प्रिंसिपल से ड्रेस कोड के नियमों के बारे में पूछ रहे थे। उनका कहना था कि, "मैंने स्कूल के प्रिंसिपल से पूछा है कि जब 26 जनवरी को कोई कार्यक्रम होता है या सरकारी स्कूल में कोई वार्षिक उत्सव होता है, तो क्या दो अलग-अलग ड्रेस का प्रावधान है? प्रिंसिपल ने न कहा और कहा कि छात्र इसका पालन नहीं करते हैं।"

इस पूरी घटना के बाद मुस्लिम और हिंदू छात्रों ने पुलिस को अलग-अलग शिकायतें सौंपीं। स्थानीय मीडिया को पुलिस उपायुक्त (जयपुर उत्तर) राशि डोगरा ने बताया कि दोनों समूह आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें स्कूल में उनकी धार्मिक प्रथाओं का पालन करने की अनुमति नहीं दी जा रही है। शिकायतें ज़िला कलेक्टर को भेज दी गई हैं।

कर्नाटक में हिजाब का मामला राजनीति की भेंट चढ़ा

ध्यान रहे कि हिजाब का मुद्दा साल 2022 में उस वक्त पहली बार सुर्खियों में आया था जब कर्नाटक की पिछली बीजेपी सरकार ने हिजाब प्रतिबंधित करने का आदेश दिया था। तब ये मुद्दा शिक्षा और धर्म से आगे बढ़ता राजनीति और कानूनी लड़ाई के बीच उलझ कर लड़कियों को शिक्षा से दूर करने की एक और साज़िश के तौर पर देखा जाने लगा था। हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा ये मामला फिलहाल किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट के खंडित फैसले के लगभग एक साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी सर्वोच्च अदालत में इसके लिए बड़ी बेंच गठन होना बाकी है। ऐसे में राजस्थान में बालमुकुंद आचार्य की ये बातें एक बार फिर सियासी रंग दे सकती हैं।

गौरतलब है कि हिज़ाब का ये पूरा विवाद सियासी रोटियां सेकने का एक खेल नज़र आता है। जहां इसे आम जनता के हितों से दूर धार्मिक रंग देने की कोशिश की जाती है। इसमें कई लोग पक्ष और विपक्ष में बंटे हुए होते हैं, तो वहीं एक धड़ा प्रगतिशील लोगों का भी है, जो हिजाब के हिमायती तो नहीं हैं, लेकिन वो इसे जबरन उतरवाने के ख़िलाफ़ भी हैं। और इसका सबसे बड़ा कारण उनका ये डर रहा है कि कहीं इसके चलते मुस्लिम लड़कियां शिक्षा से दूर न हो जाएं और शायद यही वजह रही कि कर्नाटक में इसके विरोध में और ज़्यादा महिलाओं ने न चाहते हुए भी हिजाब की ओर कदम बढ़ा दिए।

वैसे बालमुकुंद आचार्य इससे पहले भी विवादों में रहे हैं। कुछ समय पहले ही उन्होंने चुनाव जीतने के बाद मीट की दुकानों को बंद करवाने का फरमान दिया था, जो सोशल मीडिया पर खूब वायरल भी हुआ था। ऐसे ही कई और उनके बयान भी विवादित रहे हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए इन पर कोई कार्रवाई होगी, या ये मामला कर्नाटक की तरह ही एक बड़ा विवाद बनने जा रहा है।

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