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राजस्थान: सचिन पायलट को ‘संघर्ष यात्रा’ में क्या मिला?

विधानसभा चुनाव नज़दीक है, लेकिन कांग्रेस के भीतर कुछ ठीक नहीं चल रहा है, राजस्थान में पार्टी के दो बड़े नेता गहलोत और पायलट फिर आमने-सामने आ गए हैं।
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फ़ोटो साभार : PTI

10 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी थी, उससे ठीक एक दिन पहले सचिन पायलट ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कहा था कि 'ऐसा लगता है कि पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता वसुंधरा राजे अशोक गहलोत की नेता हैं सोनिया गांधी नहीं’। इसी कॉन्फ्रेंस में सचिन पायलट ने जनसंघर्ष यात्रा निकालने का ऐलान भी किया था।

सचिन पायलट की जनसंघर्ष यात्रा 11 मई को अजमेर में शुरु हुई और 15 मई को जयपुर में एक बहुत बड़ी सभा के साथ खत्म हुई। अब जब यात्रा खत्म हो चुकी है, तब इसके कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। क्योंकि सचिन पायलट की ओर से अपनी ही सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अल्टीमेटम दिया गया है कि अगर उनकी मांगे पूरी नहीं हुईं तो वो पूरे प्रदेश में आंदोलन करेंगे।

पायलट का कहना है कि, ‘अभी तक गांधीवादी तरीके से अपनी बात रख रहे थे, गांव-ढाणी, शहरों में बड़ा आंदोलन होगा। न्याय करवाएंगे। हम लोगों के पास कुछ नहीं है। हम तो पैर में जूता डालकर निकल पड़े थे। हम बिना पद के गाली खा-खाकर संगठन के लिए काम कर रहे हैं और आप सत्ता में बैठकर मलाई खा रहे हो। लोग यह सुन लें कि मुझे किसी सीमा में न बांधें, मैं किसी एक धर्म या समाज का नहीं हूं। मैं 36 कौम का बेटा हूं। राजस्थान का बेटा हूं।’

पायलट की इन चंद लाइनों के बयान में वो सबकुछ है, जिससे प्रदेश के मुख्यमंत्री समेत दिल्ली में बैठे आलाकमान को सचेत हो जाना चाहिए।

सबसे पहले उन तीन मांगों को जानते हैं, जिसके लिए सचिन ने अल्टीमेटम दिया है...

* अजमेर स्थित राजस्थान लोक सेवा आयोग को भंग कर नया सिस्टम बनाएं। एक कानून बनाया जाए और अध्यक्ष-मेंबर की नियुक्ति से पहले जांच की जाए, जैसे हाईकोर्ट के जज की होती है।

* जिन छात्रों का पेपर लीक के कारण नुकसान हुआ है, उन्हें उचित आर्थिक मुआवज़ा दिया जाए।

* वसुंधरा सरकार के दौरान हमने जो जांच के आरोप लगाए थे, उनकी जांच हो।

पायलट की इस यात्रा में ख़ास बात ये थी कि अजमेर से जयपुर तक सवा सौ किलोमीटर की इस यात्रा के दौरान सचिन पायलट और उनके समर्थक मंत्री, विधायकों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर कोई निशाना नहीं साधा, लेकिन, जयपुर में हुई सभा में सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक और मंत्रियों ने सीधा अशोक गहलोत को अपने निशाने पर लिया। गहलोत सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए और आने वाले दिनों में बड़े आंदोलन की चुनौती भी पेश की गई। जन-संघर्ष पद यात्रा की समापन सभा में अशोक गहलोत सरकार में मंत्री हेमाराम चौधरी और राजेंद्र सिंह गुढ़ा समेत 14 मौजूदा विधायक शामिल हुए। जबकि 14 पूर्व विधायक भी सभा में शामिल हुए। इस यात्रा में पांच बोर्ड के अध्यक्ष, सात प्रदेश कांग्रेस पदाधिकारी, 10 ज़िला कांग्रेस अध्यक्ष, 17 लोकसभा एवं विधानसभा कांग्रेस प्रत्याशियों समेत छात्रसंघ, युवा, महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यक विभाग के नेता भी शामिल हुए।

बिना नाम लिए पायलट ने अशोक गहलोत पर हमला किया, "हम तो बिना पद के गाली खा-खा कर, ख़ून के घूंट पी-पी कर जनता के बीच संगठन का काम कर रहे हैं, आप मलाई खा-खा कर, गाली दे-दे कर हमें बदनाम करने का काम कर रहे हैं, अब यह होने वाला नहीं है।"

यानी यहां ये कहना ग़लत नहीं होगा कि सचिन पायलट अब अशोक गहलोत के साथ आर पार के मूड में नज़र आ रहे हैं। हालांकि यहां सवाल ये है कि सचिन पायलट इस यात्रा से क्या चाहते हैं?

ज़ाहिर है कि सचिन पायलट लाख कह लें, कि ये यात्रा ग़ैर राजनीतिक है, और इसमें किसी का विरोध नहीं छुपा हुआ है, लेकिन जो आक्रामकता उन्होंने और उनके समर्थकों ने दिखाई है, इससे साफ ज़ाहिर है कि वो ख़ुद को अब अशोक गहलोत के समकक्ष खड़ा करना चाहते हैं। यानी आने वाले चुनाव में वो पार्टी की ओर से ख़ुद को मुख्यमंत्री का चेहरा बनवाना चाहते हैं। क्योंकि सचिन पायलट ने जिन तीन मुद्दों का ज़िक्र किया है, पेपर लीक का मामला सीधे तौर पर युवाओं को अपने साथ जोड़ने में मदद करेगा, तो वसुंधरा राजे के भ्रष्टाचार के आरोपों की फाइल खुलवाने में कामयाब हो जाते हैं, तो कांग्रेस को वोट देने वालों में सचिन का नाम बड़ा हो जाएगा।

सचिन क्या चाहते हैं इसे लेकर हमने राजस्थान के पत्रकार जितेंद्र सीकर से सवाल किया कि सचिन पायलट सीधे तौर पर अशोक गहलोत को निशाना बना रहे हैं, चुनाव भी आने वाले हैं.. ऐसे में पार्टी इतना डैमेज कंट्रोल एक साथ कैसे करेगी?

इसपर जितेंद्र का जवाब था, कि ऐसा भी हो सकता है कि सचिन पायलट को खुला मंच देना कांग्रेस आलाकमान का कोई प्लान हो। यानी एक ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने काम कर रहे हों, उनके अपने समर्थित विधायक हैं, अपनी जनता है, तो दूसरी ओर सचिन पायलट उन वोटरों को बटोरने में कामयाब हो जाएंगे जो कांग्रेस से नाराज़ हैं। इसे एक लाइन में ऐसे समझ लीजिए कि राज्य में सत्ता तो कांग्रेस के पास है ही, विपक्ष की भूमिका भी कांग्रेस ही निभा रही है। यानी दूसरे को मैदान देना ही नहीं चाहती। इसे यूं देख लीजिए कि अनशन हो या यात्रा... सचिन लगातार उन लोगों को संबोधित कर रहे हैं या उन लोगों के बीच जा रहे हैं, जो वसुंधरा पर कार्रवाई नहीं होने से कांग्रेस के खिलाफ वोट देना का मन बना रहे हैं। ये रणनीति हाईकमान की हो सकती है, इसे इसलिए भी पुख्ता तौर पर कहा जा सकता है कि सचिन पायलट पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।

हालांकि इस जवाब पर हमने सवाल किया कि ऐसे में तो सचिन पायलट ख़ुद को पार्टी के लिए सबसे बड़ा विलेन बना लेंगे और उनकी मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा का क्या होगा?

इसपर जितेंद्र सीकर ने कहा कि हो सकता है कि आगे चलकर सचिन पायलट को केंद्र में कोई बड़ी ज़िम्मेदारी मिल जाए। या हो सकता है कि अशोक गहलोत दिल्ली में ज़िम्मेदारी लें और पायलट को राजस्थान दे दें।

वैसे ये कहना ग़लत नहीं होगा कि जिस तरह कांग्रेस ने कर्नाटक चुनावों में ख़ुद को लोकल मुद्दों पर झोंक दिया था, और भाजपा को बड़ी हार दे दी ठीक इसी तरह राजस्थान में वापसी के लिए भी कोई बड़ी रणनीति तैयार की जा रही हो। लेकिन इसका दूसरा पहलू ये भी है कि राज्य के ही कुछ नेता पायलट के एक्शन को सही और गहलोत की चुप्पी को सही मान रहे हैं।

कांग्रेस नेता सुरेश चौधरी ने न्यूज़क्लिक से बताया कि संघर्ष यात्रा किसी के खिलाफ नहीं, ये भ्रष्टाचार के खिलाफ है, लोगों का सहयोग करने के लिए, उन्हें मज़बूत करने के लिए, हक की बात मनवाने के लिए है। इसमें कांग्रेस के खिलाफ कोई बात नहीं है। सचिन पायलट ज़मीन से ज़ुड़े नेता हैं, उन्होंने साल 2013 में कांग्रेस को खड़ा किया था। हालांकि कुछ निम्न पदाधिकारी हैं, जो सचिन पायलट की बात करते हैं, उन्हें हटाने के लिए कहते हैं, अगर मैं उनकी पोल खोलूं तो वो खुद ही पार्टी का विरोध करते हैं। हालांकि सुरेश ने ऐसे अधिकारियों का नाम नहीं लिया।

हमने सवाल किया कि सचिन की यात्रा में पार्टी से जुड़ा न कोई झंडा था न निशान.. कहीं ये विरोधी यात्रा तो नहीं थी?

इस पर उन्होंने कहा कि 45 के तापमान में हज़ारो का हुजूम चला, कुछ लोग नंगे पांव उनके साथ चले। रही बात झंडों और तस्वीरों की तो महात्मा गांधी, सोनिया गांधी, अंबेडकर की तस्वीर लेकर चले है। यानी आप कह सकते हो कि इस यात्रा में राष्ट्रीय ध्वज लेकर चले हैं, जैसे राहुल गाधी ने यात्रा निकाली थी।

मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव राम सिंह कास्वां बताते हैं कि जब सरकार बनी तो पायलट उप-मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे, तब तक तो कोई मुद्दा नहीं उठाया, फिर मानेसर चले गए, उनके आने के बाद विधानसभा के तीन सत्र में भी आवाज़ नहीं उठाई। कर्नाटक के चुनाव में 40 प्रतिशत कमीशन के उस नैरेटिव को तोड़ने के लिए भाजपा ने पायलट का उपयोग किया है, 9 मई को प्रेस कॉन्फ़्रेंस की और 10 मई को कर्नाटक की वोटिंग थी, सब काम इसीलिए किए हैं और भाजपा के इशारे पर किए गए हैं।" कस्वां मानते हैं कि इससे कांग्रेस कमज़ोर हो रही है, वो कहते हैं, "भाजपा पायलट के ज़रिए वसुंधरा को बाहर करना चाह रही है और कांग्रेस को कमज़ोर, सब काम भाजपा के कहने पर ही हो रहा है।"

यहां ये कहना ग़लत नहीं होगा कि राज्य में पार्टी का हर नेता अलग तरह की बात कर रहा है, कोई पायलट के इस कदम का समर्थन कर रहा है, तो कोई विरोध। तो पत्रकारों को लगता है कि हाईकमान की रणनीति हो सकती है। हालांकि हमें ये याद रखने की भी ज़रूरत है सचिन पायलट ने कभी खुले तौर पर पार्टी से अलग जाने का या हाईकमान की ख़िलाफत जैसी बात नहीं की है, ऐसे में ये किसी बड़ी रणनीति का हिस्सा है, इससे नकारा नहीं जा सकता।

अगर रणनीति है तो हो सकता है परिणाम बेहतर हो जाएं, अगर अंर्तकलह है, तो हो सकता है नुकसान हो जाए... लेकिन ये सारा खेल इस साल के आख़िर तक होने वाले 200 सीटों के लिए विधानसभा चुनाव के लिए है। जिसमें पिछले बार कांग्रेस ने 100 सीटें जीत ली थीं, और भाजपा को 73 पर रोक दिया था। लेकिन राज्य का एक इतिहास है कि कोई भी सरकार रिपीट नहीं होती। यही कारण है कि कांग्रेस ख़ुद की वापसी के लिए सारे दांव चल रही है।

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