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राजस्थान चुनाव: "आदिवासी जलियांवाला बाग" के नाम से मशहूर मानगढ़ धाम राष्ट्रीय स्मारक घोषित

"मानगढ़ धाम राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के आदिवासियों के लिए एक पवित्र स्थान है और आदिवासी इसे अपनी पहचान के रूप में पेश करते हैं। मानगढ़ धाम को चर्चित जलियांवाला बाग हत्याकांड से 6 साल पहले हुए आदिवासियों के नरसंहार के लिए जाना जाता है। इसे कभी-कभी “आदिवासी जलियांवाला” भी कहा जाता है। भाजपा और कांग्रेस दोनों राजनीतिक रूप से इस जगह के महत्व को समझते हैं और इसका उपयोग करना चाहते हैं। जहां इस साल गुजरात में चुनाव होने हैं वहीं अगले साल मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी चुनाव होने हैं। भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) की बढ़ती प्रासंगिकता भी यहां मायने रखती है।"
Jallianwala bagh
फ़ोटो साभार: यूट्यूब

गुजरात में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। कभी भी चुनाव की तारीखों का ऐलान हो सकता है। इस बीच तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के मुख्यमंत्रियों के साथ पीएम नरेंद्र मोदी आज गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमा से सटे राजस्थान के जिला बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम पहुंचे। जहां उन्होंने 1913 में ब्रिटिश सेना की गोलीबारी में जान गंवाने वाले आदिवासियों को श्रद्धांजलि दी और एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया। इसके साथ ही उन्होंने मानगढ़ धाम राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा था जिसमें राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में मानगढ़ धाम को “राष्ट्रीय स्मारक” घोषित करने की मांग राखी गयी थी। आज यानि मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बांसवाड़ा जिले के मानगढ़ धाम में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देने के दौरान मंच साझा किया। इस दौरान सरकार ने एक बयान जारी कर बताया कि पीएम मोदी ने राजस्थान के मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक के रूप में घोषित कर दिया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मानगढ़ धाम को चर्चित जलियांवाला बाग हत्याकांड से छह साल पहले हुए आदिवासियों के नरसंहार के लिए जाना जाता है और इसे कभी-कभी “आदिवासी जलियांवाला” भी कहा जाता है। ब्रिटिश सेना ने 17 नवंबर, 1913 को राजस्थान और गुजरात की सीमा पर मानगढ़ की पहाड़ियों में सैकड़ों भील आदिवासियों को मार डाला था। 8 अगस्त को अशोक गहलोत द्वारा पीएम मोदी को लिखे एक पत्र में नरसंहार में के दौरान 1500 आदिवासियों के मारे जाने का जिक्र है। मानगढ़ की इस पहाड़ी पर अंग्रेजी हुकूमत ने डेढ़ हजार से ज्यादा युवाओं, बुजुर्गों, महिलाओं को घेरकर मौत के घाट उतार दिया था। एक साथ डेढ़ हजार से ज्यादा लोगों की जघन्य हत्या करने का पाप किया। दुर्भाग्य से आदिवासी समाज के इस संघर्ष और बलिदान को आजादी के बाद लिखे गए इतिहास में जो जगह मिलनी चाहिए थी वो नहीं मिली।

पीएम मोदी ने कहा, “भारत का अतीत भारत का इतिहास भारत का वर्तमान और भारत का भविष्य आदिवासी समाज के बिना पूरा नहीं होता है। हमारी आजादी की लड़ाई का भी पग-पग इतिहास का पन्ना-पन्ना आदिवासी वीरता से भरा पड़ा है। 1857 की क्रांति से भी पहले विदेशी हुकूमत के खिलाफ आदिवासी समाज ने बगावत का बिगुल फूंका था।” उन्होंने कहा, “राजस्थान की धरती तो बहुत पहले से आदिवासी समाज की देशभक्ति की गवाह रही है। इसी धरती पर हमारे आदिवासी भाई-बहन महाराणा प्रताप के साथ उनकी ताकत बनकर खड़े हुए थे। हम आदिवासी समाज के बलिदानों और उनके योगदान के कर्जदार हैं।” पीएम मोदी ने आगे कहा, “आदिवासी समाज के अतीत और इतिहास को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आज देशभर मे आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित विशेष म्यूजियम बनाए जा रहे हैं जिस भव्य विरासत से हमारी पीढ़ियां वंचित रह रही थीं वो अब उनके चिंतन का, उनके सोच का और उनकी प्रेरणाओं का हिस्सा बनेगी।”

मानगढ़ गवाह है भील आदिवासियों के अदम्य साहस और एकता का, जिसकी वजह से अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पड़े। ये एकजुटता भील आदिवासियों के नेता गोविंद गुरु की अगुवाई के कारण पैदा हुई थी। उनका जीवन भील समुदाय के लिए रहा। इस ऐतिहासिक विद्रोह में भीलों के निशाने पर केवल अंग्रेज नहीं थे बल्कि स्थानीय रजवाड़े भी थे, जो लगातार इन आदिवासियों पर जुल्म ढाह रहे थे। इसी सब से जानकार भी गुजरात चुनाव से ठीक पहले पीएम मोदी के इस दौरे के राजनीतिक मायने तलाश रहे हैं? पीएम मोदी की जनसभा में हजारों आदिवासी पहुंचे जिसमें मध्य प्रदेश के आदिवासी भी शामिल थे। यानी गुजरात के साथ 2023 में राजस्थान और मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों पर पीएम मोदी की नज़र अभी से है? जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि समाज के हर तबके में समभाव पैदा हो इसलिए गोविंद गुरु जी ने संप सभा बनाई। उनके आदर्श आज भी एकजुटता, प्रेम और भाईचारे की प्रेरणा दे रहे हैं। उनके अनुयायी आज भी भारत की आध्यात्मिकता को आगे बढ़ा रहे हैं।

गोविंद गुरु ने जगाई आदिवासियों में चेतना

1857 के सैन्य विद्रोह को एक साल भी नहीं हुआ था। देश उथल-पुथल से गुजर रहा था। 1857 की क्रांति के एक साल बाद गोविंद गुरु का जन्म हुआ। युवा होने पर उन्होंने ये समझ लिया जब तक शोषित समुदायों के लोगों को साथ नहीं लाएंगे, तब तक कुछ नहीं होगा। वह लोगों को एकजुट करने लगे, बस्तियों में जाते, जागरुकता पैदा करते, साथ ही सामाजिक सुधार और चेतना का संदेश भी देते। उन्होंने बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल खोलने की कोशिश की. साथ ही उनका विश्वास रजवाड़ा द्वारा चलाई जाने वाली अदालतों में नहीं था। गोविंद गुरु अपने लोगों को एक ही बात समझाते थे– ना तो जुल्म करो और ना इसे सहो। अपनी मिट्टी से प्यार करो। सामाजिक जागरुकता फैलाने के लिए उन्होंने कई कविताएं लिखीं. जिसे खुद गाते और समूह के साथ उन्हें गाया जाता। नतीजा ये हुआ कि आदिवासी एकजुट होने लगे और असर बढ़ने लगा। इससे दक्षिणी राजस्थान, गुजरात और मालवा के आदिवासी संगठित होकर बड़ी जनशक्ति बन गए।

गोविंद गुरु राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के आदिवासियों को शिक्षित बनाकर देश की मुख्य आवाज बनाना चाहते थे। एक ओर उनके नेतृत्व में आदिवासी जागरूक हो रहे थे तो दूसरी ओर देशी रजवाड़े और उनकी रहनुमा अंग्रेजी हुकूमत को लगने लगा कि अगर आदिवासी एकजुट होंगे तो ये किसी खतरे की तरह होगा। लंबे समय से राजे-महाराजे भीलों और आदिवासियों से बेगारी कराते आए थे। वो अब भी ऐसा ही चाहते थे. जब उन्होंने ऐसा करने से मना किया तो राजे-महाराजे से लेकर अंग्रेज तक उनसे नाराज रहने लगे। आदिवासियों की बढ़ती जागरूकता देशी राजवाड़ों, अग्रेजों औऱ व्यापारियों सभी को नाखुश कर रही थी। सभी उनके खिलाफ होने लगे।

7 दिसंबर 1908 को संप सभा का वार्षिक अधिवेशन बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से सत्तर किलोमीटर दूर मानगढ़ में हुआ। इसमें हजारों लोग शामिल हुए। 1913 में गोविंद गुरु की अगुवाई में आदिवासी फिर राशन पानी लेकर वहां जुटे। इसे देखकर विरोधियों ने अफवाह फैला दी कि ये सभी विद्रोह करके रियासतों पर कब्जा करना चाहते हैं।

1500 आदिवासी मारे गए थे

तब ये इलाका बंबई राज्य के अधीन था। बंबई राज्य का सेना अधिकारी अंग्रेजी सेना लेकर 10 नवंबर 1913 को मानगढ़ पहाड़ी के पास पहुंचा। सशस्त्र भीलों ने बलपूर्वक आयुक्त सहित सेना को वापस भेज दिया. सेना पहाड़ी से कुछ दूर पर ठहर गई। भीलों और अंग्रेजों के बीच कोई बातचीत नहीं होने की स्थिति बनती गई। अंग्रेजों ने तुरंत मेवाड़ छावनी से सेना बुलाई। सेना ने 17 नवंबर 1913 को मानगढ़ पहुंचते ही फायरिंग शुरू कर दी और आदिवासी मरने लगे। एक के बाद एक कुल 1500 आदिवासी मारे गए। गोविंद गुरु के पांव में गोली लगी। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और मुकदमा चला। फांसी की सजा सुनाई गई। बाद में फांसी को आजीवन कारावास में बदल दिया गया। अच्छे चाल-चलन के कारण सन 1923 में उन्हें रिहा कर दिया गया। रिहा होने के बाद वे गुजरात के पंचमहल जिला के कंबोई गांव में रहने लगे। जिंदगी के अंतिम दिनों तक वह जन-कल्याण के काम में लगे रहे। 1931 में उनका निधन हो गया. उन 1500 आदिवासियों की शहादत की याद में मानगढ़ पहाड़ी पर पत्थरों से एक स्मारक बनवाया गया।

मानगढ़ के राजनीतिक मायने क्या है?

बांसवाड़ा जिले का मानगढ़ धाम आदिवासियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। बांसवाड़ा जिला मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान के बॉर्डर पर है। पीएम मोदी ने तीनों राज्यों की 99 विधानसभा सीटों पर निशाना साधा है। मध्य प्रदेश में विधानसभा की 47 तथा 6 लोकसभा सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। वहीं, राजस्थान में 25 और गुजरात में 27 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। जबकि 80 से ज्यादा सीटों पर इनका प्रभाव है। गुजरात और मध्य प्रदेश के आदिवासियों को साधने के लिए बीजेपी काफी समय से कोशिश कर रही है। गुजरात में आदिवासी वोट की अहमियत काफी है। राज्य में करीब 15 फीसदी आदिवासी वोटर हैं और इसका सीधा असर गुजरात की 27 से ज्यादा सीटों पर देखने को मिलता है. जो किसी भी राजनीतिक पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

अलग भील प्रदेश बनाने की भी उठ चुकी है मांग

इस इलाके के महत्व का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 2017 में गठित बीटीपी के मुख्य उद्देश्यों में से एक अलग “भील प्रदेश” का निर्माण है और उस लक्ष्य की जड़ें मानगढ़ धाम में हैं। बीटीपी राजस्थान के अध्यक्ष डॉ वेलाराम घोगरा के अनुसार, भील समाज सुधारक और आध्यात्मिक नेता गोविंद गुरु ने 1913 में मानगढ़ हत्याकांड के बाद सबसे पहले आदिवासियों के लिए अलग राज्य की मांग उठाई थी। एक सदी बीत जाने के बाद यह मांग आखिरकार जनजातीय राजनीति और समुदाय के हितों को जोड़ने के बीटीपी के उद्देश्य के साथ गति पकड़ती दिख रही है। बीटीपी चार राज्यों में फैले 39 जिलों में से एक भील प्रदेश बनाने की कल्पना करती  है जिनमें गुजरात के 16 राजस्थान के 10  मध्यप्रदेश के  7 और महाराष्ट्र के 6 राज्य शामिल हैं। 

राजस्थान में आदिवासी प्रदेश के सबसे दक्षिणी जिलों बांसवाड़ा, जहां सभी पांच विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं डूंगरपुर जहां की चार, प्रतापगढ़ में दो, उदयपुर की आठ में से पांच सीटें एवं सिरोही तक मौजूद है जहां एसटी के लिए एक सीट आरक्षित है। इन पांच जिलों की एसटी सीटों को मिलाकर राज्य की कुल 25 सीटों में से 17 सीटें हैं। इन 25 में से कांग्रेस के पास 13 और बीजेपी के पास 8 सीटें हैं जबकि  बीटीपी और निर्दलीय के पास दो-दो सीटें हैं।

हालांकि बीटीपी के बढ़ने से भाजपा कांग्रेस जैसी दोनों बड़ी पार्टियों के बीच बेचैनी बढ़ गई है। यह घबराहट दिसंबर 2020 में राजस्थान जिला परिषद (ZP) चुनावों के दौरान दिखाई दी थी। जब सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा के जिला परिषद सदस्य एक जिला प्रमुख उम्मीदवार को हराने के लिए एकजुट हुए थे  जिसे बीटीपी ने डूंगरपुर में समर्थन दिया था। बीटीपी समर्थित निर्दलीय ने डूंगरपुर जिला परिषद की 27 में से 13 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि भाजपा और कांग्रेस ने आठ और छह सीटों पर जीत हासिल की थी।

साभार : सबरंग 

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